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Uttarakhand

मां गंगा की मझधार में निशंक की नैया

आगामी लोकसभा चुनाव में अभी एक साल का समय शेष है। लेकिन राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं ने इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित उत्तराखण्ड के हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में टिकटार्थियों ने अपने-अपने गणित लगाने शुरू कर दिए हैं। गंगा के खादर यानी हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में राजनीति के महारथी चुनावी अखाड़े में कूदने को तैयार हैं। लेकिन रेफरी यानी हाईकमान की हरी झंडी का सभी को इंतजार है। हरिद्वार में इस समय कांग्रेस और भाजपा से टिकट के बहुत से दावेदार सामने आ रहे हैं। बसपा ने पहले ही टिकट की घोषणा कर दी है तो राज्य आंदोलनकारी भावना पांडेय ने भी अपनी पार्टी जेसीपी से ताल ठोककर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। भाजपा-कांग्रेस के नेता टिकट पाने की जोर-आजमाइश में लगे हैं। ऐसे में दो बार के सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के लिए तीसरी बार टिकट पाने और जीत की हैट्रिक मारने की चुनौती है। फिलहाल उनके सामने एंटी इनकंबेंसी के अलावा अपनी ही पार्टी के प्रतिद्वंद्वियों को अपने पक्ष में करना और क्षेत्र की नाराज जनता की नाराजगी दूर करना बेहद मुश्किल भरा काम है

हरिद्वार के धार्मिक महत्व से देश-विदेश के लोग परिचित हैं। लिहाजा हर राजनेता यहां का सांसद बनने में दिलचस्पी रखता है। अतीत में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती इस सीट से भाग्य आजमा चुकी हैं। हालांकि वे असफल रहीं। लेकिन पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद और उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। एक और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ अभी यहां का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। निशंक 2014 की मोदी लहर में
रिकॉर्ड वोटों से जीते थे। इसके बाद 2019 में भी वह यहां से जीतकर देश की सबसे बड़ी सभा में पहुंच चुके हैं। इस बार उनकी जीत की हैट्रिक पर सबकी निगाहें हैं। इससे पहले उन्हें अपना टिकट बचाने की जद्दोजहद करनी होगी। भाजपा में इस सीट से कई दावेदार हैं। उनके विरोधी गुट से मदन कौशिक के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद के साथ ही सतपाल महाराज जैसे कई दिग्गज नेता टिकट के दावेदार हैं। देखा जाए तो इस बार दिक्कत यह है कि उन्हें चुनौती पार्टी के बाहर से ही नहीं, बल्कि भीतर से भी मिल रही है। जिस तरह कर्नाटक विधानसभा में भाजपा को करारी हार मिली है उसके बाद से पार्टी फूक-फूक कर कदम रख रही है।

दूसरी तरफ कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ ही पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा है। हरीश रावत की हरिद्वार लोकसभा में सक्रियता और समस्याओं को उठाने की हर कोई तारीफ कर रहा है। फिलहाल कांग्रेस-भाजपा दोनों पार्टियों के आलाकमान के लिए सोचने का विषय है कि वे किन उम्मीदवारों पर दांव लगाते हैं। उधर बसपा इस बार खानपुर के विधायक उमेश कुमार की पत्नी सोनिया शर्मा पर दांव लगा रही है तो राज्य आंदोलनकारी भावना पांडेय ने भी अपनी जेसीपी पार्टी से दावेदारी कर सियासी गर्मी बढ़ा दी है। पहले हिमाचल प्रदेश और अब कर्नाटक में कांग्रेस से मिली शिकस्त के बाद वर्ष 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव को भाजपा बेहद गंभीरता से ले रही है। बताया जा रहा है कि संगठन ने उत्तराखण्ड को ए-कैटेगरी के राज्यों में शामिल किया हुआ है। इसका कारण भाजपा का पिछले दो लोकसभा चुनाव में राज्य की पांचों लोकसभा सीट पर काबिज होना है। पार्टी के सामने आगामी चुनावों में इसी प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती होगी।

हरिद्वार भाजपा में निशंक के सांसद बनने से पूर्व मदन कौशिक और सुरेश जैन के गुट आमने-सामने होते थे। जैन के कांग्रेस में जाने के बाद उनका गुट तो खत्म हो गया लेकिन इसके बाद उसकी जगह निशंक गुट ने ले ली। हालांकि दोनों के गुट कभी आमने सामने तो नहीं आए लेकिन राजनीतिक दूरी दोनों बनाए रहते है। इसका कारण कौशिक का अब लोकसभा टिकट पाने की मंशा बताया जा रहा है। फिलहाल कौशिक को प्रदेश नेतृत्व ने जिस कदर हाशिए पर डाला हुआ है वह जगजाहिर है। एक वरिष्ठ विधायक होने के बावजूद भी उनको मंत्रिमंडल से दूर रखना कहीं न कहीं यह संदेश देता नजर आ रहा है कि प्रदेश नेतृत्व को अब उनकी जरूरत नहीं है। इस बात को हरिद्वार की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले कौशिक बखूबी समझ रहे हैं। इसके चलते वह केंद्र में अपनी जगह तलाश रहे हैं। फिलहाल हरिद्वार लोकसभा से कौशिक टिकट पाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन उनकी भी एक कमजोरी है, वह यह कि 2022 के विधानसभा चुनाव में उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते उनके ही गृह जनपद में उनकी पार्टी के विधायकों की संख्या 8 से 3 पर सिमट जाना और कांग्रेस के विधायक 2 से 5 पर पहुंच जाना। इसके साथ ही उन पर हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा में स्वामी यतीश्वरानंद को हराने और लक्सर के पूर्व विधायक संजय गुप्ता द्वारा उन पर हराने के आरोप लगाए थे। इससे उनकी छवि को गहरा दाग लगा। निशंक के टिकट प्रतिद्वंदियों में स्वामी यतीश्वरानंद भी शामिल हैं। यतीश्वरानंद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सबसे निकटतम नेता माने जाते हैं। उनका हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव हारने के बाद भी सक्रिय रहना इसकी तरफ इशारा करता है कि वे भी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारियों में शामिल हैं। हरिद्वार के चुनावी जंग में उतरने की चर्चा सतपाल महाराज की भी है। बताया जा रहा है कि महाराज राज्य की कैबिनेट में होने के बावजूद भी खुलकर काम नहीं कर पा रहे हैं। राजनीतिक पंडित बताते हैं कि महाराज धामी सरकार से छुटकारा पाने के साथ ही हरिद्वार लोकसभा टिकट पाने की जुगत में हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी हरिद्वार लोकसभा सीट पर नजर गड़ाए हुए हैं। वजह तीन पहाड़ी बाहुल्य सीटों का इस क्षेत्र में होना भी बताया जा रहा है। जिसमें एक डोईवाला विधानसभा सीट से वे पूर्व में विधानसभा सदस्य रह चुके हैं। हरिद्वार में कई दौरे करने से उनके यहां से चुनाव लड़ने की चर्चाओं को बल मिल रहा है।

हरिद्वार के राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो यहां से दो राष्ट्रीय पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ही ज्यादातर चुनाव जीतती रही हैं। 1977 से लेकर अब तक हुए चुनावों में 6 बार भाजपा तो 5 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज करी है। 1977 में जनता पार्टी की लहर चली तो भगवानदास राठौड़ चुनाव जीते। 1980 में इस सीट से लोकदल के जगपाल सिंह चुनाव जीते। 1984 में कांग्रेस के सुंदर लाल ने इस सीट पर कब्जा किया। इसके बाद 1987 में उन्हीं की पार्टी के राम सिंह सांसद चुने गए। 1989 में कांग्रेस के टिकट पर जगपाल सिंह सांसद चुने गए। तीन बार लगातार कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी होते रहे। इसके बाद लगातार चार बार भाजपा ने हरिद्वार लोकसभा सीट पर अपनी पताका फहराई। 1991 में भाजपा के राम सिंह और 1996 में हरपाल सिंह साथी सांसद बने। हरपाल सिंह साथी भाजपा के टिकट पर लगातार तीन बार सांसद चुने गए। 1996 के अलावा 1998, 1999 में भी साथी चुनाव जीते। 2004 में समाजवादी पार्टी के राजेंद्र कुमार बाडी चुनाव जीते। 2009 में यहां के कांग्रेस के हरीश रावत सांसद चुने गए। 2014 में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को भाजपा ने मैदान में उतारा। निशंक ने कांग्रेस के खांटी नेता हरीश रावत की पत्नी रेणुका रावत को चुनाव हराकर डेढ़ लाख वोटों से जीत हासिल की। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनावों में निशंक ने एक बार फिर विजय हासिल की। इस बार उन्होंने कांग्रेस के ही अंबरीश कुमार को ढाई लाख से भी अधिक वोटों से पराजित किया। अंबरीश कुमार की दो साल पहले कोरोना वायरस की चपेट में आने से मौत हो गई है।

हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में कुल मिलाकर 14 विधानसभा सीटें आती हैं। जिनमें 11 विधानसभा सीटें हरिद्वार और तीन सीटें देहरादून जिले की हैं। फिलहाल 14 में से 6 पर भाजपा और 5 सीटों पर कांग्रेस काबिज है। दो सीट बसपा के खाते में है और एक सीट पर निर्दलीय विधायक उमेश कुमार का कब्जा है। जिस तरह भाजपा में जहां कई उम्मीदवार टिकट के लिए जोर- आजमाइश कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत दावेदार हैं। हरीश रावत 2009 में इस संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीते थे। तब वह हरिद्वार के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते थे। आज भी उनकी लोकप्रियता बरकरार है। हालांकि 2014 में हरिद्वार की जनता ने उनकी पत्नी रेणुका रावत को डेढ़ लाख से भी अधिक मतों से चुनाव हराया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में हरिद्वार ग्रामीण से भाजपा प्रत्याशी स्वामी यतीश्वरानंद से विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। कांग्रेस के दूसरे प्रत्याशियों को देखा जाए तो हरीश रावत आज भी सबमें अव्वल हैं। 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद जनता राज्य की सरकार को भी देख रही है और हरीश रावत के राजनीतिक दुश्मनों को भी। ऐसे में हरीश रावत का पलड़ा भारी माना जा रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हरीश रावत के प्रति जनता की भावनाएं आज भी बरकरार हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखें तो कांग्रेस के लिए एक-एक सीट महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक की जीत ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जोश से भर दिया है। कांग्रेस की मंशा भी यही है कि लोकसभा चुनावों में दो बार शिकस्त मिलने के बाद उन्हें इस बार हर हालत में जीत मिलनी चाहिए। इसके चलते कांग्रेस उसी पर दांव खेलेंगी जो उन्हें सीट निकालकर दे। हरिद्वार सीट पर हरीश रावत को टिकट देने का एक फायदा कांग्रेस को यह भी होगा कि भीम सेना उनका समर्थन करेगी। इसी के साथ सपा से अगर गठबंधन होता है तो इस स्थिति में सपा के कार्यकर्ता हरीश रावत को सहर्ष समर्थन के लिए तैयार हो सकते हैं, जबकि अन्य प्रत्याशियों के लिए भीम सेना और सपा का समर्थन टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। हरीश रावत अगर हरिद्वार से चुनाव लड़ते हैं तो उन्हें एक और सियासी फायदा यह होगा कि यहां उनका नैनीताल की तरह कोई धुर विरोधी गुट नहीं है। हरिद्वार में उनके लिए ऐसा राजनीतिक अवरोधक दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता है।

अब बात करते हैं हरिद्वार के दो बार के सांसद डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की। निशंक जब पहली बार हरिद्वार के सांसद बने तो तब यहां की 14 विधानसभा में से 11 पर भाजपा काबिज थी। तब कांग्रेस महज तीन सीटों तक ही सीमित थी। लेकिन निशंक के दूसरी बार के कार्यकाल में भाजपा की सीटें लगभग आधी कम हो गईं। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हरिद्वार जनपद की 11 में से 5 सीट जीतकर सबको चौंका दिया था। जबकि सत्तारूढ़ भाजपा को महज तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि दूसरी तरफ हरिद्वार की जनता ने पंचायत चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई। जिला पंचायत की 44 सीटों में से 37 सीट भाजपा के खाते में दर्ज की गई। हालांकि विपक्षी पार्टी इसके लिए भाजपा को आरोपित करते हुए कहते है कि सत्ता दल की सियासत में जबरन उन जिला पंचायत सदस्यों को अपनी पार्टी में आने के लिए मजबूर किया गया जो अधिकतर निर्दलीय थे। जिला पंचायत पर वर्चस्व के साथ ही भाजपा ने यह भी दावा किया कि पिछले 33 सालों में पहली बार हुआ जब हरिद्वार में भाजपा का जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख, ज्येष्ठ प्रमुख, कनिष्ठ प्रमुख बने हैं। भाजपा की माने तो यह पहली बार हुआ है जब जिले में अस्सी प्रतिशत प्रधान पद पर भी भाजपा ने ही जीत दर्ज की है। पिछले दिनों बसपा के महासचिव राजेंद्र चौधरी, हरिद्वार की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष और कांग्रेस की ज्वालापुर से विधानसभा प्रत्याशी रही बरखा रानी, वरिष्ठ किसान नेता चौधरी कीरत सिंह समेत दर्जनों बड़े नेता भाजपा में शामिल हुए। भाजपा में शामिल कराने का श्रेय सांसद निशंक को जाता है। लेकिन खानपुर के निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने उनके इस श्रेय पर पानी फेरते हुए कहा कि ‘वे सभी लोग स्वार्थवश भाजपा में शामिल किए गए हैं, ये अपने घोटाले पर पर्दा डालने भाजपा में आए है। अब भाजपा जिला पंचायत के घोटाले को ढक लेगी। जिसमें जिला पंचायत की करोड़ां रुपए रिकवरी भी नहीं ली जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।’

हरिद्वार में निर्माणाधीन रिंग रोड

भाजपा के सांसद डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का दावा है कि हरिद्वार जिले का पिछले 50 वर्षों की तुलना में भाजपा सरकार के 8 साल के कार्यकाल में सबसे ज्यादा विकास हुआ है। वह अपनी उपलब्धियों में रिंग रोड और मेडिकल कॉलेज को सुमार करते हुए यह कहते हुए नहीं थकते कि उनकी दोनों योजना हरिद्वार के विकास में मील का पत्थर साबित होंगी। जबकि भाजपा के ही कार्यकर्ता यह कहते सुने गए कि दोनों ही योजनाओं का निशंक से दूर-दूर तक नाता नहीं है। भाजपा कार्यकर्ताओं की मानें तो हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक ने उक्त दोनों योजनाओं को लाने के लिए जमीनी प्रयास किए थे। 800 करोड़ की योजना से 48 किलोमीटर का रिंग रोड हरिद्वार के चारों तरफ बन रहा है। यह योजना हरिद्वार शहर में तीर्थयात्रियों से लगने वाले जाम से लोगों को निजात दिलाएगी। जिन यात्रियों को दिल्ली से ऋषिकेश जाना है और ऋषिकेश से दिल्ली जाने वाले लोग भी इस रिंग रोड के सहारे बाहर-बाहर निकल जाएंगे। इस योजना के तहत दर्जनों गांवों के किसानों की भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और उन्हें मुआवजा भी मिल चुका है। पहले चरण में बहादराबाद टोल प्लाजा से श्यामपुर के बीच निर्माण कार्य चल रहा है। जबकि दूसरे चरण में चंडी घाट चौक से लेकर आरटीओ चौक तक का निर्माण कार्य शुरू होना है। इस रिंग रोड के पूरे होने की समय सीमा 2024 तय की गई है।

निशंक के प्रयासों से हरिद्वार में 200 रेहड़ी पटरी वालों को वेंडिंग जोन में स्थापित किया जा चुका है। इसके अलावा नगर निगम का बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, स्थानीय पार्किंग, मठ-मंदिरों, सार्वजनिक स्थलों के समीप सर्वे चल रहा है। जहां दो से ढाई हजार रेहड़ी पटरी के लघु व्यापारियों को वेंडिंग जोन के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान कर भयमुक्त रोजगार का दावा किया जा रहा है। हरिद्वार में पॉन्ड टैक्सी के संचालन की भी तैयारी चल रही है। ये टैक्सियां ऊपर केबिल पर चलेंगी। इसके लिए फिलहाल हरिद्वार में सर्वे कार्य शुरू हो गया है। इस योजना को मूर्त रूप लेने से पहले ही भाजपा में श्रेय लेने की होड़ मची हुई है। कौशिक और निशंक दोनों ही गुट के कार्यकर्ता इस योजना को हरिद्वार में लाने का श्रेय अपने- अपने नेता को देने में जुटे हैं। लालढांग में एक मॉडल डिग्री कॉलेज का निर्माण कार्य चल रहा है। हालांकि यह योजना केंद्र सरकार की है लेकिन इस पर भी निशंक और कौशिक गुट द्वारा अपने-अपने दावे किए जा रहे हैं।

कहा जा रहा है कि श्रेय लेने की राजनीति के चलते निशंक एक मामले में बहुत जग हंसाई करवा चुके हैं। मामला हरकी पौड़ी का है। यहां सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) फंड से हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने हरकी पौड़ी के सौंदर्यीकरण के लिए 32 करोड़ के विकास कार्य कराए थे। हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने सांसद डॉ रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को इस कार्य के उद्घाटन में बुलाना तक गवारा नहीं समझा। गंगा सभा से ही उद्घाटन कराया गया था। बताते हैं कि सांसद निशंक को हरकी पौड़ी के सौंदर्यीकरण का उस समय पता चला जब काम शुरू हुए एक पखवाड़ा बीत चुका था। इसके बाद निशंक ने इस कार्य के शुरू होने को भी अपने प्रयासों में शामिल बताना शुरू किया। लेकिन कुछ दिनों बाद ही इस कार्य में घोटाला सामने आया। जिस घास का मार्केट में 30 से 32 रुपया वर्ग फुट का रेट था वह 500 रुपये वर्ग फुट तक लगाना दर्शाया गया। इसके बाद निशंक इस योजना से अपना बचाव करते नजर आए।

लोगों का कहना है कि हरिद्वार में अधूरा पड़ा ऋषिकेश हाईवे, बेरोजगारी, टूटी सड़कें, गंगा प्रदूषण, किसानों की समस्याएं आदि को लेकर यह माना जा रहा था कि ये सारे मुद्दे कहीं न कहीं भाजपा सांसद निशंक के लिए नकारात्मक माहौल बनाएंगे। कोरोना काल में जब जनता परेशान थी तब सांसद निशंक का जनता के बीच न आना भी उनके मतदाताओं में आक्रोश का कारण बना था। तब जनता का आक्रोश उनके प्रति यहां तक जा पंहुचा था कि ‘सांसद गुमशुदा हैं’ के पोस्टर तक लग गए थे। हरिद्वार में हाईवे के निर्माण का जो श्रेय निशंक ले रहे हैं उसे जनता यह कह खारिज कर रही है कि यह योजना तो कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुई थी। हालांकि अभी भी भूपतवाला और ऋषिकेश रेलवे लाइन टनल तक इस मार्ग पर लगने वाला भारी जाम लोगां के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।

सांसद निशंक के बारे में कहा जाता है कि वे फिलहाल अपने टिकट को लेकर चिंतित हैं। उन्हें आशंका है कि जिस तरह आलाकमान ने उनके केंद्रीय राज्य मंत्री पद से पर काटे थे कही ऐसा ही उनके टिकट के साथ न हो जाए। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि सोते-जागते उन्हें अपने टिकट की चिंता सताए रहती है। इस संबंध में लोग एक वाकया सुनाते हैं जिसके तहत एक दिन प्रबोधानंद गिरी महाराज ने उनकी हरिद्वार में तीसरी बार की उम्मीदवारी पर सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा कि हरिद्वार एक संतों की नगरी है, यहां से निशंक को नहीं बल्कि किसी संत को भाजपा का टिकट मिलना चाहिए। प्रबोधानंद गिरी के इतना कहने के अगले दिन ही निशंक सक्रिय हो उठे। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि संतों का स्वागत है, वे सभी संतों का सम्मान करते हैं। बताया जा रहा है कि इसके बाद निशंक न केवल हरिद्वार के संतों, बल्कि महाराज और मंडलेश्वर सभी के दर पर गए और सभी के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते देखे गए।

हरिद्वार में यह भी चर्चा है कि निशंक को भाजपा से जुड़ा कोई नेता अगर अनदेखा करता है तो वह उसकी खैर-खबर लेने से भी पीछे नहीं हटते हैं। कोई कार्यक्रम हो और उसमें निशंक को न बुलाया जाए यह उन्हें गवारा नहीं। जानकारी के अनुसार भाजपा के व्यापारी नेता डॉ विशाल गर्ग द्वारा गौतम फार्म हाउस में एक अपने समाज का ‘वैश्य समाज सम्मलेन’ आयोजित किया गया था। जिसमें उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और पूर्व मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को बुलाया, लेकिन वे निशंक को बुलाना भूल गए। इस पर निशंक ने गर्ग के सामने नाराजगी व्यक्त की और कहा कि उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया। इस पर जब गर्ग ने कहा कि यह तो उनके समाज का सम्मेलन था तो इस पर उन्होंने गर्ग को हिदायत देते हुए कहा कि आपने यह ठीक नहीं किया, अगर वे उन्हें बुलाते तो समाज के लिए कोई घोषणा करते।

निशंक जब पहली बार हरिद्वार के सांसद बनें तब यहां की 14 विधानसभा में से 11 पर भाजपा काबिज थी। तब कांग्रेस महज तीन सीटों तक ही सीमित थी। लेकिन निशंक के दूसरी बार के कार्यकाल में भाजपा की सीटें लगभग आधी कम हो गईं। 2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हरिद्वार जनपद की 11 में से 5 सीट जीतकर सबको चौंका दिया था। जबकि सत्तारूढ़ भाजपा को महज तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। हालांकि दूसरी तरफ हरिद्वार की जनता ने पंचायत चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई। जिला पंचायत की 44 सीटों में से 37 सीट भाजपा के खाते में दर्ज की गई। हालांकि विपक्षी पार्टी इसके लिए भाजपा को आरोपित करते हुए कहते हैं कि सत्ता दल की सियासत में जबरन उन जिला पंचायत सदस्यों को अपनी पार्टी में आने के लिए मजबूर किया गया जो अधिकतर निर्दलीय थे। जिला पंचायत पर वर्चस्व के साथ ही भाजपा ने यह भी दावा किया कि पिछले 33 सालों में पहली बार हुआ जब हरिद्वार में भाजपा का जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लॉक प्रमुख, ज्येष्ठ प्रमुख, कनिष्ठ प्रमुख बने हैं। भाजपा की मानें तो यह पहली बार हुआ है जब जिले में अस्सी प्रतिशत प्रधान पद पर भी भाजपा ने ही जीत दर्ज की है

 

निशंक से सबसे ज्यादा नाराज हरिद्वार का किसान वर्ग है। किसानों का इकबालपुर चीनी मील पर कई सालों से करोड़ों रुपए का गन्ना भुगतान बकाया है। जिसके लिए वे कई सालों से भुगतान कराये जाने को लेकर आन्दोलनरत हैं। निशंक ने उनसे उनका गन्ना भुगतान का वायदा किया था लेकिन अभी तक भी उन्हें उनकी फसल का बकाया पैसा नहीं मिला है। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किसानों का इस मुद्दे पर साथ देकर निशंक की चिंता को बढ़ा दिया है। वे पिछले दिनों इकबालपुर चीनी मील पर किसानों के बकाए को लेकर धरने पर बैठे थे। हालांकि सरकार ने जब उनसे बकाया भुगतान करने का वायदा किया तो उन्होंने अपना धरना स्थगित कर दिया। इकबालपुर के किसान रामबीर सिंह के अनुसार अबकी बार हरिद्वार के किसान निशंक को मजा चखाने के मूड में हैं। उनके बार-बार कहने के बाद भी उनका गन्ना भुगतान नहीं कराया जाना निशंक का नकारात्मक पक्ष उजागर करता है। इस मामले में वे कांग्रेस नेता हरीश रावत की तारीफ करते हुए कहते हैं कि वह जिस तरह से हमारे साथ सांसद रहने के दौरान रहते थे उसी तरह बिना सांसद रहे भी रहते हैं। हमारी हर समस्या को वे उठाते हैं। लेकिन भाजपा सरकार हम किसानों की तरफ ध्यान नहीं देती है।

 

निशंक से सबसे ज्यादा नाराज हरिद्वार का किसान वर्ग है। किसानों का इकबालपुर चीनी मील पर करोड़ों रुपए का गन्ना भुगतान बकाया है। जिसके लिए वे कई सालों से भुगतान कराए जाने को लेकर आंदोलनरत हैं। निशंक ने उनसे उनका भुगतान का वायदा किया था लेकिन अभी तक उन्हें उनकी फसल का बकाया नहीं मिला है। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किसानों का इस मुद्दे पर साथ देकर निशंक की चिंता को बढ़ा दिया है। वे पिछले दिनों इकबालपुर चीनी मील पर किसानों के बकाए को लेकर धरने पर बैठे थे। हालांकि सरकार ने जब उनसे बकाया भुगतान करने का वायदा किया तो उन्होंने अपना धरना स्थगित कर दिया। इकबालपुर के किसान रामबीर सिंह के अनुसार अबकी बार हरिद्वार के किसान निशंक को मजा चखाने के मूड में हैं। उनके बार-बार कहने के बाद भी उनका गन्ना भुगतान नहीं कराया जाना निशंक का नकारात्मक पक्ष उजागर करता है। इस मामले में वे कांग्रेस नेता हरीश रावत की तारीफ करते हुए कहते हैं कि वह जिस तरह से हमारे साथ सांसद रहने के दौरान रहते थे उसी तरह बिना सांसद रहे भी रहते हैं

 

किसान नेता इरशाद अली हरीश रावत की सराहना करते हुए कहते हैं कि जब हरीश रावत हमारे सांसद थे तब देश में चाहे कहीं भी हो लेकिन प्रत्येक शनिवार-रविवार को वे हरिद्वार की जनता के बीच होते थे। यहां आकर वे जनता के दर्द को समझते थे और उसे दूर करने की हरसंभव कोशिश करते थे। लेकिन जब से निशंक हरिद्वार के सांसद बने हैं तब से वे गांवों के लोगों के बीच आकर झांकते भी नहीं हैं। हां, इतना जरूर है कि जब लोकसभा चुनाव आते हैं तब चुनावों से एक साल पहले ही वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वह भी भाजपा के लोगों के बीच आकर चाय जरूर पी जाते हैं। जब भी कोई उनके सामने अपनी समस्या रखता है तो वे वायदे का लॉलीपॉप थमा जाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार गोपाल नारसन हरीश रावत और निशंक में तुलना करते हुए कहते हैं कि अगर अपने सांसद के बीच हम अपनी कोई समस्या रखें तो कैसे रखें। उनका सिर्फ एक ही जनप्रतिनिधि है वे भी हरिद्वार में कोई होटल चलाते हैं। लेकिन हरीश रावत जी के कई जनप्रतिनिधि थे जिनसे हम अपनी समस्याओं को शेयर करते रहते थे।

साथ में नावेद अख्तर/अली खान

 

 

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