[gtranslate]
Uttarakhand

दांव-पेंच में फंसा नजूल, भू-कानून

भू-कानून का मुद्दा भाजपा-कांग्रेस के अहम मुद्दों में से एक रहा है। लेकिन अब यह दोनों की प्राथमिकताओं से नदारद है। जबकि प्रदेश का आम व्यक्ति भू-कानून की मांग कर रहा है तो वहीं नजूल भूमि पर बसे लोग मालिकाना हक चाहते हैं। इससे इतर नजूल भूमि का मामला भी अदालती कार्यवाहियों की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है

वर्ष 2022 में जब उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव चल रहे थे तो नजूल और भूमि कानून का मुद्दा भाजपा-कांग्रेस के अहम मुद्दों में से एक था लेकिन अब यह सत्ता-विपक्ष दोनों की प्राथमिकताओं से नदारद है। जबकि उत्तराखण्ड का आम व्यक्ति जहां भू-कानून की मांग कर रहा है तो वहीं नजूल भूमि पर बसे लोग मालिकाना हक चाहते हैं। लेकिन इसके इतर जहां नजूल भूमि का मामला अदालती कार्यवाहियों की भेंट चढ़ गया तो वहीं भू-कानून को गठित समिति की रिपोर्ट को भी अमली जामा पहनाने में देर हो रही है।

नजूल भूमि सरकारी भूमि है। इसमें ऐसी भूमि शामिल होती है जिसका मालिकाना हक किसी विभाग को नही सांपा जाता है। निकाय क्षेत्रों में नजूल भूमि के पट्टों का आवंटन संबंधित निकाय करते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में यह अधिकार जिलाधिकारियों के पास है। समय-समय पर नजूल भूमि पर लोग काबिज होते रहते हैं। कुछ को निकाय व प्रशासन ने पट्टा दिया है तो एक बड़ी आबादी बिना पट्टे के काबिज है। पूरे प्रदेश में 392204 हेक्टेयर नजूल भूमि है जिसमें करीब डेढ़ लाख लोग बसे हैं। देहरादून, अल्मोड़ा, हल्द्वानी, रूद्रपुर, रूड़की, ऋषिकेश शहरों में हजारों लोग नजूल भूमि में बसे हैं। इन लोगों की नजूल संबधी फाइलें नगर निकायों व विकास प्राधिकरणों में लंबे समय से पड़ी हैं। चुनावी दृष्टिकोण से देखें तो भी यह मुद्दा 20 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करता है। यही वजह है कि हर चुनाव में यह मुद्दा बनता रहा है। रूद्रपुर में तो 70 फीसदी आबादी नजूल भूमि पर बसी है। अगर यह फ्री होल्ड होती है तो नजूल नीति के तहत लोग नये सर्किल रेट के अनुसार जमीन का मूल्य चुका सकते हैं। पिथौरागढ़ जनपद में भी 10 हजार से अधिक लोगों को उनका मालिकाना हक नहीं मिला है। सीमांत जनपद में 1600 नाली भूमि नजूल है। लोगों का कई सालों से इस पर कब्जा है और कई लोगों ने पक्के मकान भी बना लिए हैं। चिमस्यानौला, कोतवाली, रोडवेज व केमू स्टेशन, खड़कोट, ल्यून्ठूडा, सिल्थाम क्षेत्र में लोग नजूल भूमि पर रह रहे हैं। इसमें से कई लोगों को पट्टा जारी हुआ है तो कई ने अतिक्रमण किया हुआ है। अगर नजूल भूमि फ्री हो जाती है तो हजारों लोगों को राहत मिल सकती है।

यही हाल चंपावत जनपद के लोहाघाटवासियों का भी है। यहां नजूल भूमि फ्री करने के लिए लोगों ने पैसा भी जमा कराया है। लोग चाहते हैं कि जमीन की खतौनियों को शून्य कर दिया जाय। लोहाघाट नगर तो नजूल भूमि पर ही बसा है। यहां 3220 नाली से अधिक जमीन नजूल की है। नजूल भूमि पर बसे लोगों की दिक्कत यह है कि संपत्ति जोड़ने के बाद भी यहां के लोगों का अपना कहने के लिए कुछ नहीं है। लोग अपनी बनाई संपत्ति पर मालिकाना हक चाहते हैं। जनपद पिथौरागढ़ के बेरीनाग व चौकोड़ी में 2160 परिवारों के पास अपनी भूमि नहीं है। बेरीनाग में 9667 नाली व चौकोड़ी में 41358 नाली भूमि की खरीद- फरोख्त बांड पेपर की जरिए हुई है। इस प्रक्रिया के चलते अब तक कई मकान भी बन चुके हैं। बेरीनाग में चौदह सौ व चौकड़ी में सात सौ से अधिक मकान, होटल, आवासगृह व पर्यटक लॉज हैं लेकिन इन पर मालिकाना हक नहीं है। अगर कानून के हिसाब से देखें तो यह सभी अवैध की श्रेणी में आते हैं। चौकोड़ी, बेरीनाग की भूमि के मालिकाना हक को लेकर क्षेत्रवासी लंबे समय से लामबंद रहे हैं। भूमि की श्रेणी स्पष्ट नहीं हो पाने से यहां भूमि पर बसे लोगों को मालिकाना हक नहीं मिल पा रहा है। प्रशासन ने भूमि को लेकर वहां पर निर्माण कार्यों पर रोक लगाई है यह मामला लगातार लटकता जा रहा है। तीन हजार की आबादी भूमि का मालिकाना हक न मिलने से प्रभावित है।

अब नजूल भूमि को लेकर सरकारी प्रयासों पर नजर डालें तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब हाल में राज्य सरकार ने राष्ट्रपति के पास यह विधेयक भेजा तो वहां से इसे लौटा दिया गया। राष्ट्रपति भवन ने विधेयक मिलने के बाद इसे केंद्र के पास भेजा था लेकिन केंद्र ने विधेयक के कई प्रावधानों पर आपत्ति जताई तो राष्ट्रपति ने इसे मंजूर न कर लौटा दिया। अभी हाल में धामी सरकार के कैबिनेट बैठक में नजूल भूमि विधेयक 2021 को वापस लेने का निर्णय लिया गया है और तय किया गया कि अब संसोधित विधेयक को सदन में लाया जाएगा। पूर्व में भी सरकार द्वारा लाए जाने वाले नजूल अध्यादेश को राज्यपाल द्वारा लौटाया जा चुका है। इसकी वजह यह थी कि उस वक्त यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में लंबित था। नजूल नीति 2009 पर हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई। सबसे पहले वर्ष 2009 में सरकार नजूल भूमि आवंटन और फ्री होल्ड के लिए नजूल नीति लेकर आई थी। लेकिन 2013 से इस नीति पर कानूनी वाद शुरू होने से यह मामला अटक गया।

वर्ष 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने नई नजूल नीति को मंजूरी दी थी लेकिन हाई कोर्ट के स्तर से प्रदेश की नजूल नीति निरस्त होने से सरकार मुश्किल में आ गई थी। हाईकोर्ट ने सरकार की नजूल नीति खारिज कर दी और अवैध कब्जेदारों को हटाने के आदेश दे दिए थे। वर्ष 2009 में लाई गई थी नजूल नीति लेकिन 2018 में हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। उत्तराखण्ड सरकार ने इस नीति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। प्रदेश के प्रमुख शहरों में 2018 से हजारों परिवारों पर बेदखली की तलवार लटकी हुई थी। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में लटकने के कारण नई नीति नहीं बन पाई। वर्ष 2021 में प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली तो धामी कैबिनेट ने नजूल नीति 2021 को हरी झंडी दी थी। नजूल भूमि को फ्री होल्ड करने के लिए तीन श्रेणियां बनाकर सर्किल रेट तय किए गए। ऊधमसिंह नगर जिले के रूद्रपुर, गदरपुर, काशीपुर व गढ़वाल के देहरादून, रुड़की, हरिद्वार जैसे शहरों में यह मुद्दा काफी प्रभावी रहा है। जबकि कांग्रेस, भाजपा दोनों का कहना है कि सरकार की नीतियां जनहित में ही बननी चाहिए। पार्टियां इस मामले में जनता के पक्ष में खड़ी हैं। लोगों को नजूल भूमि पर भूमिधरी का अधिकार चाहिए। राज्य सरकार का कहना है कि राज्य सरकार को भूमि का प्रबंधन करने का अधिकार है।

इसी तरह प्रदेश में भू कानून का मुद्दा भी काफी प्रभावी रहा है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री धामी ने ही भू कानून पर पांच सदस्यीय समिति बनाई थी। इस समिति का अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार को बनाया था। अब समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है लेकिन इसे कानूनी जामा पहनाने में अभी देर है। जहां तक भू कानूनों की बात है तो प्रदेश में वर्ष 2002 तक उत्तराखण्ड में जमीन खरीदने के लिए सख्त भू कानून थे। तब बाहर के राज्यों के लोग यहां पर 200 वर्ग मीटर जमीन ही खरीद सकते थे। वर्ष 2007 में इसकी सीमा 250 वर्ग मीटर कर दी गई। 6 अक्टूबर 2018 में प्रदेश सरकार एक अध्यादेश लाई जिसमें राज्य में जमीन खरीद की सीमा को समाप्त कर दिया। अब बाहर के राज्यों का कोई भी व्यक्ति जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकता है। 2018 तक प्रदेश में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भू सुधार अधिनियम 195 लागू था। इसमें धारा 193 (क) व धारा 154 (2) जोड़ सरकार ने राज्य में भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को समाप्त कर दिया था। उसी के बाद से भू कानून का मामला जोर पकड़ने लगा।

प्रदेश में जनभावनाओं के अनुरूप भू-कानून बनेगा। इस कानून के लिए बनाई गई समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। रिपोर्ट के अध्ययन के बाद नया भू-कानून बनेगा।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड

क्या चाहती है जनता?

* बाहरी राज्यों से भूमि खरीदने आ रहे लोगों का आपराधिक इतिहास भी खंगाला जाए ताकि उत्तराखण्ड में आपराधिक प्रवृति के लोगों को रोजगार देने के नाम पर शरण न मिले।
*कृषि भूमि कृषि के अतिरिक्त अन्य किसी भी कार्य में प्रयोग में न लाई जाय।
* उद्योग और अन्य व्यापार के लिए बाहरी प्रदेशों के लोगों को जमीन सिर्फ लीज में मिले।
*लीज की अवधि 30 वर्ष से अधिक न हो।
* उत्तराखण्ड में लगने वाले 50 प्रतिशत उद्योग और व्यापार यहां के स्थानीय उत्पादों यानी फसलों, फलों-फूलों व जड़ी-बूटियों पर आधारित हां।
* उद्योगों में यहां के 90 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिले।
*उत्तराखण्ड के गरीब लोगों को लीज में भूमि मिले।

भू-कानून की जरूरत क्यों?

* उत्तराखण्ड की भूमि पर बाहरी लोगों की बढ़ती बसावट को देखते हुए प्रदेश में भू-कानून की मांग हो रही है।
* बाहरी लोगों का सस्ते दामों पर जमीन खरीदना, कारोबार करना।
* बाहरी लोग उद्योगों के नाम पर यहां जमीन खरीद रहे हैं, लेकिन उद्योग नहीं लगा रहे हैं।
* कृषि योग्य भूमि को गैर कृषि के नाम पर बेचा जा रहा है।
* बाहरी लोगों की दखलअंदाजी से यहां न सिर्फ भूमि बल्कि यहां के आर्थिक व प्राकृतिक संसाधनों पर बाहरी लोगों का कब्जा हो रहा है।
* लोग लगातार भूमिहीन होते जा रहे हैं।
* मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल की भांति इनर लाइन परमिट कानून होनी चाहिए।

क्या कहती है भू कानून समिति की रिपोर्ट
* कृषि तथा औद्यानिक प्रयोजन हेतु कृषि भूमि क्रय करने की अनुमति जिलाधिकारी स्तर के बजाय शासन स्तर से देने का प्रावधान हो।
* सूक्ष्म, लघु, मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति भी शासन स्तर से दी जाए।
* विभिन्न प्रायोजनों हेतु जो भूमि खरीदी जाएगी उसमें समूह ग एवं समूह घ श्रेणियों में स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो। उच्चतर पदों पर योग्यतानुसार वरीयता दी जाए।
* भूमि क्रय करने के पश्चात् भूमि का सदुपयोग करने की अवधि तीन वर्ष से अधिक न हो।
* इकाइयों/संस्थाओं द्वारा कितने स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाय इसकी सूचना अनिवार्य रूप से शासन को उपलब्ध कराई जाए।
* प्राथमिकता के आधार पर सिडकुल, खाली पड़े औद्योगिक प्लॉट्स/बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए।
* केवल बड़े उद्योगों के अतिरिक्त चार-पांच सितारा होटल, रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल/वोकेशनल प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट आदि को अनिवार्यता प्रमाण पत्र के आधार पर भूमि क्रय करने की अनुमति शासन स्तर से दी जाय। अन्य प्रायोजन हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो।

* कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवन के लिए अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय सदस्यों हेतु खरीद सकता है।
* भूमि जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई है, उसका उल्लंघन रोकने के लिए एक जिला/मंडल/शासन स्तर पर एक टास्क फोर्स बनाई जाए ताकि ऐसी भूमि को सरकार में निहित किया जा सके।
* सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइन बोर्ड लगाए।
* धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय/निर्माण किया जाता है तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर पर निर्णय लिया जाए।
* नदी, नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों, सार्वजनिक भूमि आदि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे/निर्माण धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान हो।

You may also like

MERA DDDD DDD DD