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Uttarakhand

नमामि गंगे बनी नाकामी गंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे के तहत ऋषिकेश के दूषित पानी को गंगा में गिरने से रोकने के लिए तमाम उपाय किए गए। करोड़ों रुपए के विकास कार्य कराने के दावे किए गए। लेकिन जमीनी हकीकत को देखें तो गंगा को शुद्ध और स्वच्छ बनाने की योजना पूरी तरह परवान नहीं चढ़ पाई। आज भी एक दर्जन नाले अपनी सारी गंदगी को गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं। योग नगरी में अधिकारियों की लापरवाही से केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना नमामि गंगे नाकामी गंगे में तब्दील होती दिख रही है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वर्ष 2014 में नमामि गंगा मिशन आरंभ किया तो गंगा नदी के उद्गम स्थल गंगोत्री में होने से स्वभाविक तौर पर उत्तराखण्ड को सबसे ज्यादा प्रमुखता दी गई और प्रदेश में ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के लिए करोड़ों की योजनाएं स्वीकृत की गई। इन योजनाओं में सीवरेज पम्पिंग स्टेशन और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के अलावा गंगा नदी के तटां और घाटों के निर्माण को रखा गया। इसके अलावा खेती को सिंचित करने के लिए सिंचाई का जल भी उपलब्ध करवाया जाना भी इस कार्यक्रम को एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया गया है। ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम को धरातल पर उतारने के लिए कई ईकाइयों को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। जिसमें राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत गंगा नदी के तट पर स्थित धार्मिक स्थानां, नगरों और कस्बों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषित नदी, नालों का जल परिशोधन करने के लिए सीवरेज सिस्टम को मजबूत करने की कई योजनाएं है। इसके अलावा इन सभी क्षेत्रों में मोक्षधाम यानी शमशान घाटों और स्नान घाटों का निर्माण की योजनाएं रखी गई हैं।

उत्तराखण्ड में केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के तहत इसके लिए राज्य प्रबंधन ईकाई जिसमें नगर निगम, नगर पालिका एवं नगर पंचायत के साथ-साथ वन विभाग, सिंचाई विभाग, पेयजल निगम और वेवकास्ट को शामिल किया गया है। पेयजल निगम को वेस्ट वाटर, सीवरेज सिस्टम, सीवरेज लाइन और नालों की टेपिंग का कार्य सौंपा गया है। इसके लिए उपरोक्त सभी विभागों से तालमेल करके पेयजल निगम को इसकी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है।

लेकिन नरेंद्र मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को स्वयं उत्तराखण्ड सरकार के वही विभाग पलीता लगा रहे हैं जिनके कंधों पर गंगा नदी को स्वच्छ और निर्मल करने का दारोमदार है। गंगा को प्रदूषण से मुक्त करने के बड़े-बड़े दावे तो किए जा रहे हैं लेकिन ऐसे दावे धरातल पर खरे नहीं उतरते नजर आ रहे हैं। आज भी गंगा नदी में गंदे नालों का पानी बगैर किसी ट्रीटमेंट के ही गिर रहा है। इसकी सबसे बड़ी बानगी ऋषिकेश के तौर पर सामने आ रही है जिसमें गंगा नदी में गिरने वाले सभी नालों को सीवरेज सिस्टम से जोड़ने के दावे किए गए हैं जबकि कम से कम 12 नाले आज भी बगैर किसी ट्रीटमेंट के ही या तो सीधे गंगा में गिर रहे हैं या गंगा की सहायक नदियों और नालों से होकर गंगा में समाहित हो रहे हैं। इससे नमामि गंगे कार्यक्रम एक तरह से उत्तराखण्ड में नाकामी कार्यक्रम बन रहा है।

ऋषिकेश पेयजल निगम के इंजीनियर रविन्द्र सिंह गंगाड़ी ने ‘दि संडे पोस्ट’ संवाददाता को चुनौती देते हुए कहा कि वह एक भी ऐसा नाला नहीं खोज सकते जो बगैर ट्रीटमेंट के गंगा नदी में गिर रहा हो। लेकिन ‘दि संडे पोस्ट’ संवाददाता ने जब स्थलीय निरीक्षण किया तो पाया कि कम से कम 12 ऐसे नाले आज भी ऐसे हैं जिनका पानी सीधे गंगा नदी में गिर रहा है। इनमें से कई ऐसे नाले हैं जो गंगा नदी के तट से लगे हुए हैं। कुछ नाले ऐसे भी हैं जो सीवरेज ट्रीटमेंट से परिशोधन होकर छोड़ा जा रहा है, लेकिन एसटीपी के कुछ दूरी पर बस्तियों, होटल का गंदा पानी मिल रहा है और वही पानी सीधे गंगा में मिल रहा है।

 

शिवाजी नगर के गंदे नाले का पानी

नगर के शांति नगर, सांईघाट, रम्भा नदी और सर्वहारा नगर के नालों को टेप करके एसटीपी से जोड़कर परिशोधित जल छोड़ा जा रहा है लेकिन इन्हीं नालां में कई छोटे नाले सीधे तोर पर मिल रहे हैं। विभाग इन नालों को टैप करने की अपनी जिम्मेदारी को पूरा मान चुके हैं और परिशोधित जल में आवासीय कॉलोनियों और इनमें बहने वाले गंदे पानी को, नालों में जाने से रोकने के लिए आम जनता को ही जिम्मेदार बता रहे हैं।
ढालवाला में 67 करोड़ की लागत से बनाया गया 5 एमएलडी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया गया है। जिसमें पूरे ढालवाला क्षेत्र को जोड़ा ही नहीं गया है। इसी एसटीपी से परिशोधित जल चंद्रभागा नदी में छोड़ा जा रहा है। प्लांट से महज 2 सौ मीटर दूर आवासीय कॉलोनियां विकसित है। साथ ही इस क्षेत्र में कई होटल-ढाबे भी हैं जिनका गंदा पानी इसी परिशोधित जल में मिल रहा है और यही जल चंद्रभागा नदी से होता हुआ गंगा नदी में मिल रहा है। यही नहीं चंद्रभागा नदी के तट पर चारधाम यात्रा बस अड्डा भी है जहां सैकड़ों बसें प्रतिदिन खड़ी रहती हैं। इन बसों की रोज धुलाई-सफाई सीधे चंद्रभागा नदी के तट पर अवैध तरीके से नदी में ही बोरिंग करके लगाए गए डीजल पम्पों द्वारा प्रेशर युक्त जल से होती है। जिससे बसों की धुलाई से साबुन के साथ-साथ डीजल आदि का मिश्रित जल भी चंद्रभागा नदी में गिरता है और यही जल गंगा नदी में मिल जाता है।
टिहरी बांध विस्थापितों के क्षेत्र लक्कड़घाट में 26 एमएलडी की क्षमता वाले एसटीपी का निर्माण विगत वर्ष में हो चुका है और बेहतर कार्य भी कर रहा है लेकिन बांध विस्थापितों की कॉलोनियों को इससे जोड़ा नहीं जा सका है। इसके लिए सीवर लाइन की योजना स्वीकृत हो चुकी है। इस क्षेत्र में कई छोटे-बड़े नाले हैं जिनमें इस क्षेत्र के सैकड़ों आवासीय भवनों का गंदा पानी मिलता है जो गंगा नदी में मिल रहा है। रम्भा नदी जो कि सर्वहारा नगर एवं शिवाजी नगर से होकर गुजरती है, को पम्पिंग स्टेशन द्वारा एसटीपी से तो जोड़ा गया है लेकिन शिवाजी नगर में इसी नदी में हजारों आवासों का गंदा पानी निरंतर गिर रहा है जो आगे जाकर सीधे गंगा नदी में ही समाहित हो जाता है।

आस्था पथ पर लोक निर्माण विभाग के बंगले के नीचे ऋषिकेश नगर के तिलक रोड का नाला भी गंगा नदी में गिर रहा है। नगर निगम द्वारा इसी गंदे नाले को छुपाने के लिए अपना बोर्ड लगाया हुआ है जिससे किसी को यह गंदा नाला न दिखार्द दे सके। विभागीय अधिकारियों का दावा है कि इस नाले को टैप कर दिया गया है जबकि आज भी इस नाले में गिरने वाले कूड़ा-करकट को साफ तौर पर देखा जा सकता है। स्वर्गाश्रम में 3 एमएलडी का एसटीपी बना हुआ है और 3 एमएलडी का टेंडर स्वीकृत हो चुका है। इस क्षेत्र में कई नाले हैं जिनको टैप करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन आज तीन ऐसे नाले हैं जो कि सीधा गंगा नदी में गिर रहे हैं। इनमें र्स्वगाश्रम के दक्षिण छोर जहां एसटीपी बनाया गया है, के समीप बहने वाला बरसाती नाला और बाघ नाला बगैर ट्रीटमेंट के ही गंगा नदी में मिल रहा है। इस नाले में क्षेत्र के आवासीय कॉलोनियों, आश्रमों का गंदा पानी, कूड़ा-करकट के साथ-साथ क्षेत्र की कई गौशालाओं का गोबर सीधे गंगा में गिर रहा है। दूसरा नाला लक्ष्मण झूला के टैक्सी यूनियन के समीप प्राचीन बरसाती नाला भी है जो अपने साथ आवासीय भवनों, आश्रमों का कूड़ा-करकट और गंदा पानी गंगा नदी में गिरा रहा है। इसके अलावा लक्ष्मण झूला पुलिस थाने के नजदीक बहने वाला बरसाती नाला भी है जो इसी तरह से सीधा गंगा नदी में मिल रहा है।

टिहरी के तपोवन क्षेत्र में 3 एमएलडी का एसटीपी बनाया गया है। इस प्लांट से परिशोधित जल को बरसाती नाले में छोड़ा जाता है। यह नाला कई होटलों, आश्रमों और आवासीय कॉलोनियों का गंदा पानी और कूड़ा-करकट लेकर गंगा नदी में जा रहा है। इसी तरह से मुनी की रेती तपोवन बाईपास में पार्किंग स्थल के समीप पुराना बरसाती नाला भी है जिसमें इस क्षेत्र के आवासीय भवनां और होटल, रिसॉर्ट का गंदा पानी मिल रहा है। यह नाला इस क्षेत्र के ड्रेनेज सिस्टम के तौर पर वर्षों से चला आ रहा है। इसी नाले में अब नालियां जोड़ दी गई हैं जो कि गंदे पानी को अपने साथ सीधे गंगा नदी में मिला देती है।

 

पूरे प्रकरण के पहले जब डीपीआर बनी थी तब 6-7 साल पहले एक-एक नाले का सर्वे कराया गया था। उसके आधार पर आज की डेट में जो जानकारी है कोई भी नाला सीधे गंगाजी में नहीं जा रहा है। अगर कोई नाला जा रहा है और हमारे संज्ञान में आएगा तो जांच करा तत्काल कार्यवाही की जाएगी। इसमें एक बात और है कि जैसे-जैसे बसावटें बसती जाती हैं उसी तरह से नए-नए नाले भी बन जाते हैं। यह भी संभावित है कि नए नाले क्रिएट हो सकते हैं। आप मुझे सारी जानकारी भेज दीजिए। अगर मुझे कहीं से सूचना मिल जाएगी तो मैं उस पर तुरंत एक्टिव होउंगा और उस पर कार्यवाही करूंगा। त्रिवेणी घाट का एसपीटी पहले का बना हुआ है, जब से मैं काम देख रहा हूं तब से ही मैं बता सकता हूं।
उदय राज, अपर सचिव पेयजल निगम

 

नालों की टेपिंग हम नहीं करते, ये जल संस्थान करता है। जितने नाले सीधे गंगा में गिरते थे उनको शोषित कर दिया गया है। नए नाले बने होंगे, उनको भी ठीक कर लिया जाएगा।
एस. के. वर्मा, कार्यक्रम
निदेशक पेयजल निगम निर्माण

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