‘मुझे नहीं पता था कि एक छोटी-सी पुड़िया
मुझे बर्बाद कर देगी’
यह बात कहते हुए महज 20 वर्षीय राहुल उन घटनाओं के अतीत में खो जाता है जिन्होंने उसे उन अंधेरी गलियों में धकेल दिया है जिनसे निकलने का रास्ता उसे सूझ नहीं रहा है। एक आत्मग्लानी से कि जिन सुनहरे सपनों को उसने और उसके मां-बाप ने उसके भविष्य के लिए संजोया था वो एक चुटकी नशे की भेंट चढ़ गए। यह कहानी सिर्फ राहुल की नहीं है स्मैक के नशे में डूबे उस हर युवा की है जो इसकी चपेट में आ गया है। इन अंधी गलियों में जा चुके युवक और युवतियां नशे के इतने आदी हो चुके हैं कि वो चाहकर भी नशे की गिरफ्त से खुद को बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं।
उम्र के जिस पड़ाव में युवा अपने भविष्य को संवारने के सपने देखते हैं उस उम्र में युवा वर्ग भटकाव का शिकार होता जा रहा है। युवाओं में स्मैक के नशे की प्रवृत्ति युवा पीढ़ी को तो जकड़ ही रही है इसके साथ-साथ सामाजिक और व्यावहारिक स्तर पर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं जिसका दुष्परिणाम युवाओं का चोरी की ओर बढ़ती प्रवृत्ति के रूप में देखा जा रहा है। सवाल है कि क्या जिम्मेदार लोग इसके प्रति संजीदा हैं या फिर बर्बाद होती युवा पीढ़ी से बेखबर हैं?
उत्तराखण्ड राज्य भी स्मैक के कारोबार और युवाओं में इसके नशे की बढ़ती प्रवृत्ति से अछूता नहीं है। इसका कारोबार और स्मैक के नशे के शिकार युवाओं की संख्या मैदानी क्षेत्रों से संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है। स्मैक के नशे का शिकार 16 से 25 वर्ष तक के युवा है इसमें युवतियों की संख्या कम नहीं है। स्कूलों, कोचिंग संस्थानों के आस-पास घूमने वाले स्मैक नशा कारोबारियों के लिए आसान शिकार है युवा। एक बार इन्हें नशे की लत लगाने के बाद स्मैक के तस्कर इन्हें कुछ समय पश्चात सप्लायर के तौर पर इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करते।
नैनीताल जिले की बात करें तो पिछले सात- आठ सालों में यहां स्मैक का कारोबार तेजी से फैला है। हल्द्वानी नैनीताल सहित ग्रामीण क्षेत्रों के अंदर तक इन्होंने अपना कारोबार फैला दिया है। कभी चोरी जैसी कभी-कभार घटने वाली घटनाएं आज ग्रामीण क्षेत्रों में आम हो चली हैं। इन घटनाओं के खुलासे के बाद जो तस्वीर सामने नजर आती वो इस मायने में चिंता पैदा करने वाली है कि बच्चे तक अपनी नशे की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चोरी जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। नैनीताल जिले के अंतर्गत ही पिछले डेढ़ वर्षों में पुलिस ने चार किलो से ज्यादा स्मैक तस्करों से पकड़ी है। 2021 में जहां दो किलो के आस-पास स्मैक पकड़ी वहीं 2022 में अब तक दो किलो के लगभग स्मैक पुलिस ने जब्त की है। स्मैक तस्करी में लगभग पौने तीन सौ मुकदमे दर्ज करने के साथ साढ़े तीन सौ के करीब लोगों को गिरफ्तार किया गया है। स्मैक के कारोबारियों ने स्मैक की तस्करी से आर्थिक सम्पन्नता हासिल की है वहीं कई संपन्न परिवारों को उजाड़ दिया। खास बात ये है कि इसमें सम्पन्न परिवार के युवा ही स्मैक तस्करों के निशाने पर होते थे लेकिन अब मध्यम एवं गरीब तबका भी इनके निशाने पर आ गया है। मध्यम व गरीब वर्ग का यही युवा स्मैक की जरूरतों को पूरी करने के लिए चोरी, चेन स्नैचिंग जैसी प्रवृत्ति की ओर प्रेरित हुआ है। नशा मुक्ति केंद्रों पर आने वाले युवाओं में अधिकतर स्मैक के शिकार हैं।
हल्द्वानी के एक नशा मुक्ति केंद्र में आए एक ट्यूशन टीचर को उनके ही छात्र ने स्मैक के नशे का आदी बना दिया। नशे के तस्करों की निगाहें उस युवा वर्ग पर ज्यादा हैं जो हल्द्वानी के ही एक प्रतिष्ठित परिवार इन्हीं परिशानियों से जूझ रहा है। इकलौता पुत्र नशे की गिरफ्त में ऐसा आया कि अब इन्हें सूझ नहीं रहा कि उसके लिए रास्ता क्या तलाशा जाए। कभी पढ़ाई में अव्वल रहने वाले उनके पुत्र की जिंदगी नशे की गलियों में यूं खोई कि कई बार की काउंसिलिंग के बाद भी उनका बेटा सामान्य नहीं हो पाया है।
ऐसी ही कहानी एक सम्पन्न परिवार की युवती की है जो अपने शानदार शैक्षिक करियर के बाद भी स्मैक के नशे के चलते अपना करियर चौपट कर मानसिक परेशानियां से गुजर रही है। नशा मुक्ति संचालक केंद्रों में जो बात आमतौर पर बात निकल कर आई उसने यह तो स्पष्ट किया कि जिस उम्र में बच्चों पर मां-बाप को बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत है उस उम्र में वो अपने बच्चों को नजरअंदाज कर देते हैं। अच्छे स्कूल अच्छा खानपान और भरपूर जेब खर्च देकर वो बच्चे के प्रति अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और अभिभावकों की इसी कमजोरी का फायदा नशे के सौदागर उठाते हैं।
आजकल जहां संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकल परिवारों का चलन बढ़ा है उसने भी बच्चों में एकाकीपन बढ़ाया है और यही एकाकीपन युवाओं को कभी गलत रास्ते पर ले जाता है। नैनीताल जिले की बात करें तो यहां स्मैक कारोबारियों की गतिविधियां नैनीताल, भीमताल और हल्द्वानी और उसके आस-पास के उन क्षेत्रों में ज्यादा है जहां शैक्षणिक संस्थान हैं। शैक्षणिक संस्थानों में भी खासकर जहां हॉस्टल की सुविधा है तथा युवा अपने घर से दूर है। युवकों के साथ-साथ युवतियां भी स्मैक के नशे की प्रवृत्ति से अछूती नहीं हैं। नशे की तस्करी के कारोबार में पुरुष व महिलाएं भी बराबर शामिल हैं। महिलाओं पर पुलिस का शक कम होने के चलते कारोबारी अब इस धंधे में महिलाओं को आगे करने में लगे हैं। स्मैक तस्करी में बढ़ती महिलाआें की गिरफ्तारी बताती है कि स्मैक तस्कर पुलिस के भय से अब अपनी रणनीति बदलने लगे हैं।
उत्तराखण्ड पुलिस के सेवानिवृत्त उच्च अधिकारी का कहना है कि इस नशे के उन्मूलन के लिए सबकी सहभागिता जरूरी है क्योंकि इसका सिर्फ कानूनी पहलू नहीं है इसका सामाजिक पहलू भी है। पुलिस स्मैक कारोबारियों के खिलाफ कार्रवाई करती है उन्हें गिरफ्तार कर जेल भी भेजती है लेकिन इसकी सप्लाई चेन में स्मैक की तस्करी करने वाला भी शामिल है और स्मैक का सेवन करने वाला भी है। स्मैक का सेवन करने वाला भले ही सप्लाई चेन की अंतिम कड़ी हो लेकिन वो हिस्सा तो है ही। ऐसे में अभिभावकों का भी दायित्व है कि वो अपने बच्चे के अप्रत्याथित व्यवहार को नजरअंदाज न करें। पुलिस स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से शैक्षणिक संस्थानों में नशे की प्रवृत्ति के खिलाफ जनजागरूकता पैदा करने के लिए कार्यक्रम चलाती है।
डॉ. सुशीला तिवारी स्मारक चिकित्सालय के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. युवराज पंत के अनुसार समय के साथ नशे का स्वरूप बदला है। अब ड्रग्स अल्कोहल नहीं बल्कि ट्राई ड्रग है। नशे के प्रति चिंता पिछले दस-पंद्रह सालों में बढ़ने का कारण भी है। नशा तो समाज में सदियों से रहा है लेकिन नशे के प्रति जो समाज जागृत हुआ है उसका एक कारण आयु वर्ग है। पहले के समाज में नशे की आयु वर्ग 25 से 35 वर्ष थी। 7 वर्ष की उम्र के बच्चे को भी स्मैकके नशे का मरीज पाया जा रहा है। अब ड्रग्स लेने वाला तबका 15-17-18 आयु वर्ग का है। पुराने समय में नशा अपराध का बड़ा कारण नहीं था। ड्रग्स खरीदने के लिए पैसे न होने पर चोरी, चेन स्नेचिंग, मर्डर जैसे अपराध हो रहे हैं। किसी नशे की शुरुआत सिर्फ शौक के लिए होती है, एडिक्ट बनने के लिए बॉडी टॉलरेंस के कारण डोज, फ्रीक्वेंसी, क्वांटिटी बढ़ती जाती है और वो एडिक्ट बना देता है। इसमें पियरनेस या साथी समूह की भूमिका महत्वपूर्ण है। ड्रग्स की चपेट में आए युवा अपने साथियों को भी इस ओर प्रेरित करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण भूमिका इसमें अभिभावकों की है उन्हें अपने बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। बच्चा अगर ड्रग्स की शुरुआत कर रहा तो उसके व्यवहार में बदलाव होना लाजिमी है। इन्हें साइको फिजिकल चेंजेज कहते हैं। स्कूल से शिकायत, पैसे की मांग, जरूरत से ज्यादा बोलना, चिड़चिड़ापन, नजरें चुराना, मां-बाप के साथ न बैठना, देर से घर आना जैसे लक्षण है जिन्हें मां-बाप आसानी से देख सकते हैं। हमारे पास ऐसे बच्चे आते हैं जो कहते हैं कि उनके क्लास के 40 से 50 प प्रतिशत बच्चे ड्रग्स लेते हैं।
अभी हमारा फोकस बड़े पैमाने पर आ रही ड्रग्स पर है। इसमें जो लिप्त है उसके खिलाफ कार्रवाई होने जा रही है। जनजागरूकता भी जरूरी है। जब तक परिवार वाले जागरूक नहीं होंगे तब तक इसे पूर्ण रूप से रोका जाना संभव नहीं है।
पंकट भट्ट, वरिष्ठ पुलिस, अधीक्षक नैनीताल