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Uttarakhand

रानीखेत में टूटेगा मिथक

रानीखेत विधानसभा में भाजपा के अंदर प्रत्याशी को मन से स्वीकार न करना और पार्टी के भीतर भारी अंतर्विरोध के साथ ही विधायक करन माहरा के विकास कार्य इस बार कांग्रेस के लिए सकारात्मक संकेत है। लगता है कि लगातार दो बार जीतने का मिथक इस बार टूटने की ओर अग्रसर है

मिथक या कहे लोक विश्वास या फिर मान्यताएं, राजनीति में हमेशा से रहे हैं। उत्तराखण्ड की राजनीति में भी कमोबेश सभी दल इन मिथकों पर भरोसा रखते हुए कुछ सीटों पर टिकट बंटवारे में सावधानी बरतते आए हैं तो किसी क्षेत्र में जाने से भी बड़े नेता परहेज करते आए हैं। उत्तराखण्ड के परिपेक्ष्य में देखें तो माना जाता है कि जो व्यक्ति मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़ता है तो वो विधानसभा चुनावों में पराजित होता है। भुवन चंद्र खण्डूड़ी 2012 में मुख्यमंत्री रहते चुनाव लड़े और कोटद्वार से चुनाव हार गए। इसी प्रकार 2017 के विधानसभा चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव लड़े तो वे भी दो विधानसभा सीटों हरिद्वार (ग्रामीण) और किच्छा से चुनाव हार गये। इस बार पुष्कर सिंह धामी मुख्यमत्री रहते खटीमा से चुनाव मैदान में है। देखना दिलचस्प होगा कि वो इस मिथक को तोड़ पाते है या नहीं। इसी प्रकार मान्यता है कि उत्तराखण्ड का शिक्षा मंत्री विधानसभा चुनावों में पराजित होता है। 2002 में शिक्षा मंत्री रहे नरेन्द्र सिंह भण्डारी, 2007 के विधानसभा चुनावों में पराजित हो गए। 2007 में भाजपा की सरकार में शिक्षा मंत्री रहे गोविंद सिंह बिष्ट, 2012 के विधानसभा चुनावों में पराजित हुए। वर्ष 2012 में उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मंत्री प्रसाद नैथानी, 2017 में विधानसभा चुनावों में हार गये। इस बार 2017 में अरविंद पाण्डे भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री है। देखना होगा कि क्या इस बार उत्तराखण्ड के शिक्षा मंत्री से जुड़ा मिथक टूटता है या नहीं। इसी प्रकार पेय जल मंत्री रहे मंत्रियों के विषय में भी यही मान्यता है। 2002 में तिवारी सरकार में पेयजल मंत्री रहे सुरेन्द्र सिंह नेगी, 2007 का चुनाव हारे। 2007 में भाजपा सरकार में पेयजल मंत्री प्रकाश पंत, 2012 में चुनाव हारे। 2012 में मंत्री प्रसाद नैथानी के पास भी पेयजल मंत्रालय था, वो 2017 में चुनाव हार गये थे। इस बार बिशन सिंह चुफाल सरकार में पेयजल मंत्री हैं सबकी निगाहें इस बार डीडीहाट सीट पर है कि क्या पेयजल मंत्री से जुड़ा मिथक इस बार टूटेगा या बरकरार रहेगा।

मिथकों के विषय में रानीखेत विधानसभा का इतिहास दिलचस्प रहा है। उत्तराखण्ड राज्य बनने से पूर्व या राज्य बनने के बाद सरकारें आती-जाती रही लेकिन एक मिथक आज नहीं टूटा कि जो मुख्यमंत्री रानीखेत आया उसने अपनी कुर्सी गंवा दी। अस्सी के दशक में वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री के रूप में रानीखेत आए और अपनी कुर्सी गंवा बैठे। 1989 में रानीखेत आए नारायण दत्त तिवारी अगले कुछ समय बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री हो गए। 1980 में रानीखेत में मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह आए लेकिन डकैतों द्वारा किए नरसंहार की घटना के चलते कुछ दिनों बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 1991 से 1996 के बीच मुलायम सिंह यादव दो बार रानीखेत आए। प्रथम बार तत्कालीन विधायक जसंवत सिंह बिष्ट की पुत्री के विवाह में आए लेकिन कुछ समय बाद अयोध्या में कारसेवकों के ऊपर गोली चलाने की घटना के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। दूसरी बार वो एक पर्यटन से संबंधित से एक कार्यक्रम और पर्यटक आवास गृह चिलियानौला के उद्घाटन के सिलसिले में रानीखेत आए थे। कुछ दिनों पश्चात ही बसपा द्वारा सपा-बसपा गठबंधन की सरकार से हट जाने के चलते मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। उत्तराखण्ड राज्य बनने के पश्चात तो नित्यानंद स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, भुवनचंद्र खण्डूड़ी, हरीश रावत, त्रिवेंद्र सिह रावत को रानीखेत आने का खामियाजा मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के रूप में उठाना पड़ा। त्रिवेंद्र सिंह रावत तो 2021 के बजट सत्र में भाग लेने के लिए गैरसैंण को रानीखत होते हुए गये थे। उसके एक हफ्ते के अंदर ही तो अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए। इस बार पुष्कर सिंह धामी भाजपा के प्रचार में रानीखेत से आए हैं। देखना है कि क्या पुष्कर सिंह धामी इस मिथक को तोड़ अपनी कुर्सी को बचा पाते हैं? रानीखेत से जुड़े दो मिथक और है कि रानीखेत से विधायक उस दल का नहीं चुना जाता जिस दल की सरकार होती है। 2002 से 2017 तक यही होता आया है। 2002 में कांग्रेस की सरकार थी तो विधायक थे भाजपा के अजय भट्ट। 2007 में भाजपा की सरकार बनी तो विधायक रहे कांग्रेस से करन माहरा। 2012 में सरकार कांग्रेस की तो विधायक भाजपा से अजय भट्ट। 2017 में सरकार भाजपा की तो विधायक कांग्रेस से करन माहरा। इन मिथकों के इतर एक मिथक और भी है जो शायद इस बार टूटने जा रहा कि रानीखेत विधानसभा से कोई लगातार दो बार विधायक नहीं चुना गया। वर्तमान चुनावी परिदृश्य को देखकर लगता है कि कम से कम इस बार दो बार लगातार विधायक न चुनने का मिथक टूटेगा।

दो कारण यहां स्पष्ट नजर आ रहे हैं पहला भाजपा द्वारा आम कार्यकर्ताओं की पसंद और अजय भट्ट की भावनाओं को नजरअंदाज कर प्रमोद नैनवाल को रानीखेत से प्रत्याशी बनाना और दूसरा करन माहरा द्वारा क्षेत्र में किए गये कार्य। भाजपा की बात करें तो स्थानीय संगठन और कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद प्रमोद नैनवाल को भाजपा से टिकट देना खुद भाजपा को भारी पड़ रहा है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका खुद को चुनाव प्रचार से अलग कर चुका है। भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य रहे एक नेता का कहना है कि पिछले चुनाव में अजय भट्ट को हार का कारण बने व्यक्ति को जिस प्रकार पार्टी ने हम पर थोपा है वो भाजपा के उस आम कार्यकर्ता को तो कतई स्वीकार नहीं है जो अजय भट्ट की हार को आज तक भूला नहीं है। जो अजय भट्ट मुर्दाबाद के नारे लगाते रहे आज हमारा मन तो उसकी जिंदाबाद के नारे लगाने की गवाही नहीं देता। रानीखेत विधानसभा से दावेदार रहे भाजपा के लोग मैदान में कहीं नजर नहीं आ रहे। भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी रहे नेता का कहना है कि आज धमकाने की राजनीति चल रही है, उससे कार्यकर्ता और जनता खिन्न है। रानीखेत महाविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता अतुल जोशी का कहना है कि रानीखेत विधानसभा चुनाव में कभी कांग्रेस जीती कभी भाजपा जीती लेकिन जनता के बीच जातिगत विभेद कर चुनाव जीतने की मंशा इससे पहले कभी नहीं देखी गई। आज भाजपा ब्राह्मण ठाकुर कार्ड खेलने की कोशिश कर रही है जिसे जनता ने न पहले स्वीकार किया न आज करेगी। भाजपा का ये प्रयास भी उसे नुकसान देता दिख रहा है। करन माहरा का कहना है कि ‘भाजपा प्रत्याशी ने तो कई मर्यादाएं लांघ दी हैं। स्वर्गीय गोविंद सिंह माहरा, स्व ़ पूरन माहरा और स्वयं मुझ पर निजी आक्षेप स्वस्थ लोकतंत्र के लक्षण तो कतई नहीं है।’ करन माहरा का कहना है चुनाव मुद्दों पर लड़ा जाय तो बेहतर था लेकिन भाजपा प्रत्याशी संभावित हार की हताशा में उन लोगों पर जिनका रानीखेत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है, अपमान कर रहे हैं। कांग्रेस से जुड़े एक पदाधिकारी का कहना है कि विपक्ष में रहते हुए सरकार से लड़कर जिस प्रकार करन माहरा ने रानीखेत विधानसभा के विकास को गति दी है उससे भाजपा की बौखलाहट साफ नजर आती है।

करन माहरा का कहना है कि ‘विपक्ष में रहते हुए भी मैंने जो कार्य किए उन्हें धरातल पर जाकर कोई स्वयं देख सकता है। 97 गांवों को सड़कों से जोड़ लोगों के आवागमन की सुविधा को आसान किया। गोविंद सिंह माहरा नागरिक चिकित्सालय में हाईटेक एम्बुलेंस, डेंटल एक्सरे, 22 साल बाद खून जांच की नई मशीन, ऑक्सीजन प्लांट, ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर, भिक्यिसैण में चिकित्सालय में ऑक्सीजन प्लांट, अल्ट्रासाउंड की मशीन, भतरौजखान और ताड़ीखेत स्वास्थ्य केंद्रों में 108 एम्बुलेंस की सुविधा, प्राइमरी स्कूलों का एक मिशन के तहत दशा बदलने का कार्यक्रम मेरी विधानसभा क्षेत्र में चले रहे हैं। भतरौजखान में डिग्री कॉलेज के लिए फर्नीचर, भूमि हस्तांतरण और भवन निर्माण के लिए धन अवमुक्त कराया। मैं पहला विधायक हूं जिसने विधायक निधि से ट्यूब वैल का निर्माण किया। एकल गांव पंपिंग योजना शुरू करने वाला मैं एकमात्र विधायक हूं। बासो थापला की पेयजल और कोबयां की नई पंपिंग योजना मील का पत्थर साबित होगी। ये सिर्फ विकास कार्यों की बानगी हैं। विस्तार में मैं आपको बताऊंगा तो आप देखेंगे कि विकास कार्यों में हमने कहीं कोर कसर नहीं छोड़ी है चाहे तो सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा का कोई क्षेत्र हो।’ रानीखेत विधानसभा में भाजपा के अंदर प्रत्याशी को मन से स्वीकार न करना और पार्टी के भीतर भारी अंतर्विरोध के साथ ही विधायक करन माहरा के विकास कार्य इस बार कांग्रेस के लिए सकारात्मक सकेत है और लगता है कि लगातार दो बार ने जीतने का मिथक इस बार टूटने की ओर अग्रसर है।

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