- भारती पाण्डेय
प्राकृतिक आपदाओं की मार से बदहाल उत्तराखण्ड मध्य हिमालयी क्षेत्र में आता है। यहां के लिए अनियोजित एवं अवैज्ञानिक सोच से तैयार होने वाली विकास योजनाएं असल में विनाश को जन्म देने का काम करती हैं। गत् पखवाड़े राज्य के कुमाऊं क्षेत्र में भारी बारिश ने जो कहर बरपाया उससे एक बार फिर राज्य के रहनुमाओं की समझ पर सवाल खड़े होने लगे हैं
गत् 17 से 19 अक्टूबर को असमय हुई अतिवृष्टि के कारण उत्तराखण्ड में बादल फटने और बाढ़ जैसी आपदाओं ने बारिश के 124 सालों के रिकॉर्ड तोड़ने के साथ ही जान-माल को अत्यधिक क्षति पहुंचाई। इस आपदा में नैनीताल जिले में 400 मिली मीटर से अधिक वर्षा हुई जिसने इससे पूर्व के 264 मिली मीटर वर्षा के रिकॉर्ड को तोड़ दिया जबकि बरसात के समय में भी सामान्य बारिश 65 मिली मीटर से अधिक नहीं होती। मुक्तेश्वर में वर्षा की मात्रा मापने वाले यंत्र में 1897 से आज तक इतनी वर्षा रिकॉर्ड नहीं की गई है।
बारिश की तीव्र गति ने बहाव इतना बढ़ाया कि भारी मात्रा में भू-स्खलन हुआ, नदियों का बहाव तेज हुआ जिसकी चपेट में लोगों के घर-परिवार, दुकानें, सड़कें आदि आकर ध्वस्त हुए। इस आपदा में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 82 मौतें हुईं जिनमें से सर्वाधिक नैनीताल में 35 लोगों की मौत, 5 घायल, चम्पावत में 11 मौतें, 4 घायल, बागेश्वर में 9 मौतें, 1 लापता, ऊधमसिंह नगर में 2 मौतें, तीन घायल, पिथौरागढ़ में 3 मौतें, 2 घायल, पौड़ी में 3 मौतें, 2 घायल, चमोली में 1 मौत, 4 घायल, उत्तरकाशी में 10 मौतें, 2 घायल अल्मोड़ा में 6 मौतें, 2 घायल हुए। आपदा के कारण अस्पताल न पहुंच पा रहे रास्तों में फंसकर मरी गर्भवती महिलाओं, मरीजों की मत्ृयु को इसमें शामिल नहीं किया गया है। शासन द्वारा 900 करोड़ रुपए के नुकसान का प्राथमिक आकलन किया गया है। नैनीताल जिले में 74 भवनों को क्षति पहुंची है, इनमें 19 भवन पूर्णरूप से ध्वस्त हो गए। 55 भवनों को आंशिक क्षति पहुंची है। अल्मोड़ा में 40 भवनों को नुकसान पहुंचा है, इनमें 7 भवन पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। 33 भवनों को आंशिक क्षति पहुंची है। चंपावत में 2 भवनों को आंशिक क्षति पहुंची है। ऊधमसिंह नगर में 4 भवन पूर्ण रूप से ध्वस्त हुए। 16 को आंशिक क्षति पहुंची है। इसके अलावा 74 झोपड़ियों के साथ 7 गौशालाएं बाढ़ में बह गईं। जिले में अभी तक 78 बड़े पशुओं, 30 छोटे पशुओं और 31 हजार से अधिक कुक्कुट के मरने की जानकारी मिलीे है। चमोली में 15 भवनों को क्षति पहुंची है। राज्य में आपदा के कारण 45 हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि पर धान की फसल समेत अन्य नकदी फसलें बर्बाद हुई जिसके तहत कृषि विभाग ने किसानों को लगभग 97 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है।
असमय हुई अतिवृष्टि ने आपदा को जन्म देकर भयावह स्थितियां पैदा की। 18 अक्टूबर से ही नैनीताल जिले की मुख्य हाईवे बंद हो गए, मोबाइल नेटवर्क सेवा बंद हो गई जिस कारण लोगों की आवाजाही के साथ-साथ ही राहत कार्य भी प्रभावित हुए 21 अक्टूबर से पहले तक अन्य जिलों से संपर्क टूट गए। स्थानीय प्रशासन इस दौरान पूरा मुस्तैद नजर आया। आपदाग्रस्त इलाके के लोग बताते हैं कि आपदा की इस घड़ी में पुलिस, पेयजल, विद्युत विभाग समेत पूरा सरकारी अमला राहत पहुंचाने में लगा रहा। नैनीताल प्रशासन ने अनुमान लगाया है कि जिले में 120 करोड रुपए का भारी नुकसान हुआ है।
कुमाऊं में नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक में अत्यधिक मौतें दर्ज की गई हैं। रामगढ़ क्षेत्र के एक गांव सकुना में मकान ध्वस्त होने के कारण 9 बिहारी मजदूरों की मौत हुई जिनमें से 8 लाशों को निकाल लिया गया परन्तु एक अभी भी नहीं मिल पाई है। बाढ़ की स्थिति के कारण पानी और मलबा इतनी तीव्र गति से आया कि कुछ ही पलों में घर जमीन में समा गए और लाशें तक बह गईं। बोहराकोट में बगीचे तक रौखड में बदल चुके हैं, पांच दुकानें एवं तीन घर पूरे सामान के साथ ध्वस्त, यहां दो लोगों की दर्दनाक मौत के अलावा 15 दकुानों के अंदर तक मलबा समा गया। इस क्षेत्र में देवेंद्र मेर के औषधियों से भरे 4 कमरे नष्ट हो गए जिस कारण 25-30 लाख की औषधियां एवं मशीनों के नुकसान के साथ 40 लाख से अधिक का नुकसान हो गया। इसी क्षेत्र के निवासी पृथ्वीराज कहते हैं कि उनका मछली का कारोबार पूरी तरह नष्ट हो चुका है और कोई मदद नहीं मिल रही है। सरकार का सिर्फ आश्वासन और वादों तक सीमित रहना प्रदेश में नाउम्मीदी उत्पन्न कर रहा है।
इस आपदा ने प्रभावित क्षेत्रों के भविष्य को भी दांव पर लगा दिया है। नैनीताल के बिड़ला कॉलेज के पांच कर्मचारियों का मकान ध्वस्त हो गया जिसमें बीए में पढ़ाई कर रहे 4 बच्चों जिसके चलते बीएससी की एक छात्रा के सारे प्रमाण पत्र नष्ट हो गए और उनकी पहचान पर संकट आ खड़ा हुआ है। पहाड़ों में लगातार हो रहे अनियंत्रित विकास कार्यों ने पहाड़ को पूरी तरह खोखला कर दिया है और अब उनमें इतनी सहनशक्त नहीं बची कि वो इस तरह की आपदाएं झेल पाएं। ऐसे में भी सरकार एवं प्रशासन समय रहते आपदा संभावित क्षेत्र के लोगों को पुनर्वासित करने के लिए प्रयास करने में भी अफसल साबित हो रही है। इसका जीवंत उदाहरण कैंची है जहां पर घर के ऊपर मलबा आने से दबकर दो भाई-बहनों (रितु चौहान 23 वर्ष और अभिषेक चौहान 17 वर्ष) की मौत हो गई। दोनों भाई-बहन अकस्मात आए मलबे में दब गए और भाई की तुरंत मौके पर ही मत्ृयु हो गई थी जबकि बहन को रेस्क्यू कर जीवित निकाल तो लिया गया लेकिन मार्ग बंद होने और संचार व्यवस्था ठप होने के कारण उसे अस्पताल नहीं ले जाया जा सका।
आपदा में 19 अक्टूबर की सुबह अपने 8 कमरों का घर और पूरी जमीन खो चुके नंद किशोर जो अभी सरकारी उद्यान फार्म में रह रहे हैं, ने बताया कि आपदा ने उनके जीवन की सारी कमाई उनसे छीन ली है। वे कहते हैं कि हमें 20 नाली जमीन दान में मिली थी जो कि पूरी तरह बह गई। पाई-पाई जोड़कर घर पर रखे हुए लगभग एक-डेढ़ लाख के आभूषण तथा 25-30 हजार की नकदी, बर्तन, कपड़े, बिस्तर आदि सब नष्ट हो गए हैं। नंद किशोर कहते हैं कि उनका घर पूर्ण रूप से नष्ट हो चुका है। परन्तु इसके बाद भी उन्हें सहायता राशि के लिए मात्र 3800 रुपए का चेक ही प्राप्त हुआ है क्योंकि दान में प्राप्त वह जमीन उनके नाम पर रजिस्टर्ड नहीं थी। नन्द किशोर पुलिस चौकी में मैस में काम करते हैं। उनके दो बेटे हैं जिनमें से बडे़ बेटे का हाल ही में लगभग एक माह पूर्व ही अल्सर का ऑपरेशन हुआ था तथा दूसरा बेटा विद्युत विभाग में संविदा में कार्यरत है। उन्होंने कहा कि आपदा ने उनके सामने जीवन का संकट उत्पन्न कर दिया है और सब कुछ खो जाने के बाद भी कोई विशेष राहत उन्हें प्राप्त नहीं हुई जबकि इसकी असल में उन्हें जरूरत है।
c क्षेत्र के रापड निवासी एवं पत्रकार आनंद नेगी की मृत्यु हो गई। वो अपने पुश्तैनी घर में निर्माण कार्य कर रहे थे। 17 अक्टूबर को बारिश के समय वो पूरे गांव को आपदा की संभावना व्यक्त् करते हुए सतर्क रहने की सलाह दे रहे थे और लगातार क्षेत्र की कवरेज दे रहे थे परन्तु उसी रात भारी बारिश के कारण मलबे की चपेट में आने के कारण उनका घर ध्वस्त हो गया जिसमें वे और उनके भतीजे के दो बच्चे असमय काल-कल्वित हो गए। अल्मोड़ा के पास ही हीराडूंगरी एवं सिराड़ में दो बच्चियां घर में दबकर मौत का ग्रास बन गईं।
आपदा के दौरान आम जनता को भारी परेशानियां झेलनी पड़ी। सड़के बंद हो जाने के कारण बाजार में दूध, सब्जी आदि की सप्लाई बंद हो चुकी थी और इस कारण महंगाई ने आसमान छूं लिया। अल्मोड़ा की बाजार में 120 रुपया टमाटर और पिथौरागढ़ की बाजार में 160 रुपया टमाटर बेचा गया। सड़कों के नुकसान के बाद से अभी तक बाजार में पेट्रोल की किल्लत, गांवों और शहरों में पाइप लाइन टूटने से पेयजल संकट बना हुआ है। अल्मोड़ा जिले का बेस अस्पताल भी अतिवृष्टि के परिणाम अभी तक भुगत रहा है। अतिवृष्टि के दौरान अस्पताल में 17 अक्टूबर से पानी की किल्लत है और बेस अस्पताल होने के बावजूद भी पेयजल आपूर्ति विभाग ने व्यवस्था दुरुस्त करने पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया। अस्पताल के कर्मचारियों, मरीजों एवं तीमारदारों को पानी का संकट झेलना पड़ रहा है।
उत्तराखण्ड राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं पहले ही लचर अवस्था में हैं। आए दिन गर्भवती महिलाएं स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में, अस्पताल न पहुंच पाने के कारण अपनी जान गंवा रही हैं। पहाड़ों में अब भी ऐसे कई गांव हैं जहां पैदल मार्गों की भी उचित व्यवस्था नहीं है। अक्सर गर्भवती महिलाओं या किसी मरीज को पैदल मार्ग से सड़क तक लाने के ‘डोली’ का प्रयोग किया जाता है जिसमें अत्यधिक समय लगता है। अतिवृष्टि के कारण आई इस आपदा के बाद कई मोटर मार्ग बंद हैं। सड़क पर पहुंच जाने के बाद भी मरीज और गर्भवती महिलाएं अस्पताल समय पर नहीं पहुंच पा रही हैं। 28 अक्टूबर की देर रात धौलादेवी ब्लॉक के गल्ली निवासी पूरन सिंह की 22 वर्षीय पत्नी हीरा देवी को प्रसव पीड़ा हुई। सड़क बंद होने के कारण परिजनों ने पड़ोस की
महिलाओं को बुला घर पर ही हीरा का प्रसव कराया गया, प्रसव के बाद प्रसूता ने एक बेटी को जन्म दिया। कुछ देर बाद महिला की हालत बिगड़ने लगी तो ग्रामीण प्रसूता को ‘डोली’ के माध्यम से अस्पताल ले जाने लगे। घर से दो किलोमीटर दूर पहुंचने पर ही मार्ग में प्रसूता ने दम तोड़ दिया।
प्रधान प्रतिनिधि जगदीश सिंह ने बताया कि हनुमान गढ़ी-रोलगल्ली मोटरमार्ग होते हुए धौलादेवी अस्पताल गांव से 15 किलोमीटर दूर है। इन दिनों सड़क बंद होने से करीब 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यदि मार्ग दुरुस्त होता तो महिला की मृत्यु नहीं होती। उन्होंने बताया कि गल्ली गांव के लोगों को 108/एंबुलेंस की सुविधा नहीं मिलती है। यहां सड़क तक पहुंचने के लिए पैदल चलना पड़ता है। इसलिए 108/एंबुलेंस के कर्मचारी गांव तक आने से कतराते हैं। जागेश्वर के विधायक गोविंद सिंह कंुजवाल कहते हैं कि सड़क बंद होने से प्रसूता की मौत होना दुर्भाग्यपूर्ण है। मैंने खुद उस सड़क का निरीक्षण किया था। जिस स्थान पर सड़क धंसी है वहां एक चट्टान है जिसे काटने का ग्रामीण विरोध कर रहे हैं जिससे सड़क खुलना संभव नहीं हो पा रहा है। अगर ग्रामीण विरोध करना छोड़ दें तो सड़क आसानी से बन जाएगी। लोक निर्माण विभाग का कहना है कि जल्द ही मार्ग खोलने की कोशिशें जारी हैं। जिलाधिकारी अल्मोड़ा वंदना सिंह ने उपचार न मिलने से महिला की मौत पर सख्ती बरतते हुए तीन सदस्यीय मजिस्ट्रेट जांच समिति गठित कर आख्या मांगी है।
बात अपनी-अपनी
हिमालय को ध्यान में रखे बिना अनियंत्रित और अनियोजित विकास कार्य किए जा रहे हैं अगर यही परिरस्थितियां रही तो पहाड़ पूरी तरह ध्वस्त हो जाएंगे। तमाम विकास कार्यों का मलबा अनियंत्रित रूप से नालों में फेंका गया है, बांध बनाए गए हैं। सरकारों ने कभी भी हिमालय को नहीं समझा। राहत राशि के नाम पर झुनझुना पकड़ाने से बेहतर यह है कि सरकार स्वयं पीड़ितों को मकान बनाकर दे। पुनर्वास के लिए जो भी उपयुक्त जमीन थी उस पर पूंजीपतियों, प्रभावशाली लोगों और माफियाओं ने अतिक्रमण कर कब्जा कर लिया है। अखबारों एवं मीडिया में मुख्यमंत्री-मत्रियों के दौरे की खबरें ही आती हैं जो धरातल के सच से काफी अलग हैं।
पीसी तिवारी, अध्यक्ष उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी
अवैज्ञानिक और पर्वतीय क्षेत्रों के प्रतिकूल किया जा रहा छोटा-बड़ा हर तरह का निर्माण आपदा का प्रमुख कारण है।
दिनेश उपाध्याय, पत्रकार ‘नैनीताल समाचार’