केंद्र और राज्य के हर चुनाव में मतदाताओं से रोजगार बढ़ाने के वायदे किए जाते हैं। लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद यह वायदे कोरी घोषणाएं साबित होती हैं। उत्तराखण्ड में हुए विधानसभा चुनावों में भी बड़े-बड़े राजनीतिक दल युवाओं को लुभाने के लिए नई-नई योजनाएं लाने का वायदा कर रहे थे। कोई नई नौकरियां लाने की बात कह रहा था तो किसी ने स्वरोजगार के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराने का वायदा किया था। भाजपा ने तो प्रदेश में 50 हजार नौकरी देने का वायदा किया। साथ ही जो युवा बेरोजगार हैं उन्हें 3 हजार रुपए प्रतिमाह बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की थी। लेकिन आलम यह है कि अब तक के कार्यकाल में धामी सरकार बेरोजगारी कम करने के मामले पर गंभीरता से आगे नहीं बढ़ पाई है। केंद्र सरकार की ‘अग्निवीर योजना’ ने तो राज्य के बेरोजगारों में उल्टा आक्रोश पैदा करने का काम किया है
‘उत्तराखण्ड सैन्य भूमि है। यहां का हर युवा देशसेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता है, लेकिन केंद्र सरकार के सशस्त्र बलों में ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ को लागू करने से प्रदेश के युवाओं को भारी आघात पहुंचा है। पहाड़ के युवाओं के लिए सेना में जाना अपने सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करना माना जाता है, इसलिए अधिकतर युवा बाल्यकाल से ही सेना में जाने की तैयारियों के लिए जुट जाते हैं, लेकिन अब सेना में चार साल की सेवा तय करने से प्रदेश के युवाओं में भारी रोष है एवं कई युवा ऐसे हैं, जिनकी शारीरिक दक्षता और मेडिकल क्लियर हो चुका है। युवा लिखित परीक्षा का इंतजार कर रहे थे पर भर्ती प्रक्रिया रद्द कर दी गई है। प्रदेश के अभिभावकों को अपने बच्चों के भविष्य को लेकर अब अधिक चिंताएं हैं। मुख्यमंत्री खुद सैन्य परिवार से आते हैं। इसलिए आशा है कि वह युवाओं की चिंता को बेहतर समझेंगे। क्योंकि केंद्र में भी भाजपा की सरकार है तो प्रदेश के युवा चाहते हैं कि सीएम उनका प्रतिनिधित्व करते हुए प्रधानमंत्री एवं रक्षा मंत्री के सामने उनकी चिंता को रखें। सेना में चार साल के ‘टूर ऑफ ड्यूटी जैसे प्रस्ताव पर एक बार फिर पुनर्विचार करते हुए रद्द किया जाए। अन्यथा युवा अपना रोष जताते हुए केंद्र और राज्य सरकार के विरुद्ध निरंतर विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे।’
यह कहना है अल्मोड़ा के एक युवा राजेश रावत का। राजेश पिछले कई साल से सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ‘अग्निवीर योजना’ ने उनके सेना में जाने के सपने को धूमिल कर दिया। प्रदेश में राजेश जैसे 8 लाख 42 हजार बेरोजगार युवा पंजीकृत हैं। पूरे राज्य में कुल 82 लाख मतदाता हैं। इनमें से करीब 25 फीसदी मतदाता बुजुर्ग हैं। यदि इन मतदाताओं को हटा दिया जाए तो राज्य में बेरोजगार वोटरों का आंकड़ा इससे भी ऊपर निकल जाता है। फिलहाल प्रदेश में नौ फीसदी नौकरी योग्य ग्रेजुएट युवा बेरोजगार घूम रहे हैं। कहे तो प्रदेश में हर दसवां वोटर बेरोजगार है। ऐसे में उत्तराखण्ड में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बन गई है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 30 सितम्बर 2021 को अपने ट्विटर अकाउंट से पोस्ट कर जानकारी दी कि इन्वेस्टमेंट समिट के अंतर्गत सूचना प्रौद्योगिकी के द्वारा रुपये 4,625.48 करोड़ के एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये, लगभग रुपये 3,500 करोड़ से अधिक का कार्य आरम्भ हो चुका है और राज्य में पिछले साढ़े चार साल में 15,000 से अधिक अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रोजगार का सृजन हुआ है। एक ओर सरकारी विभागों में 57 हजार पद खाली हैं और एक पद के लिए 256 युवा आवेदन करते हैं दूसरी और सरकार साढ़े चार साल में मात्र 15 हजार रोजगार की बात करती है। ऐसे में विधानसभा चुनावों के दौरान धामी सरकार के द्वारा अपने मेनिफेस्टो में किया गया 50 हजार नौकरी का वायदा कैसे पूरा होगा इसको लेकर संशय बना हुआ है।
राज्य में रोजगार को लेकर विरोधाभाषी आंकड़े दिखाई दे रहे हैं। एक ओर जहां राज्य में बेरोजगारी की दर में मामूली गिरावट आई है तो शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर में उत्तराखंड देश मे छटवें स्थन पर पुहंच गया है। यही नही 15 से 29 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी की दर में राज्य देश में सातवें पायदान पर है।
केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा कराए गये सर्वे के अनुसार राज्य में जनवरी 2022 से मार्च 2022 के दौरान देश भर में उत्तराखण्ड प्रदेश छटवें स्थान पर है। राज्य में शहरी युवाओं में बेरोजगारी की दर 11 दशमलव 9 प्रतिशत रही है। जबकि सर्वाधिक शहरी
बेरोजगारी की दर में जम्मू कश्मीर 11 दशमलव 6 तथा सबसे कम शहरी बेरोजगारी में गुजरात 4 दशमलव 4 है। इसके अलावा प्रदेश में शहरी युवाओं के 15 से लेकर 29 आयु वर्ग में भी उत्तराखंड देश में सातवें स्थान पर रहा है। इस वर्ग में 29 दशमलव 3 प्रतिशत रही है जबकि देश में इस आयु वर्ग की बेरोजगारी दर 20 दशमलव 2 प्रतिशत है जिसमें उत्तराखण्ड 9 दशमलव 1 प्रतिशत ज्यादा है।
विगत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष बेरोजगारी की दर में गिरावट भी देखी जा रही है। जनवरी 2021 से मार्च 2021 तक राज्य में शहरी बेरोजगारी की दर 14.3 रही जो अप्रैल से जून 2021 में बढ़ कर 17 प्रतिशत हो गई थी। जुलाई से सितंबर में इसमें बढ़ोत्तरी हुई और 17.4 प्रतिशत शहरी बेरोगारी की दर हो गई। अक्टूबर से दिसम्बर तक यह घट कर 15.5 रह गई और जनवरी 2022 से मार्च 2022 में भी यह घट कर 11.9 प्रतिशत रह गई है। प्रदेश में शहरी बेरोजगारी की दर में पिछले तकरीबन एक वर्ष में भले ही बेरोजगारी की दर घटी है लेकिन देश भर में छठवें स्थान पर होने से राज्य के युवाओं में बेरोजगारी बढ़ रही है वह अपने आप मे ंचिंता का विषय है। पृथक उत्तराखण्ड राज्य बनने के साथ दो अन्य राज्य झारखंड और छत्तीसगढ़ भी वजूद में आए थे। दोनो ही राज्यों को बने हुए भी 22 वर्ष हो चुके है बावजूद इसके इन दोनो की तुलना में उत्तराखण्ड में बेरोजगारी ज्यादा है। जहां छत्तीसगढ़ में शहरी बेरोजगारी की दर 11.7 के साथ देश में सातवें स्थान पर है तो वही झारखंड में महज 8.0 प्रतिशत के साथ पंद्रहवें स्थान पर है। यही नहीं पर्वतीय क्षेत्र बाहुल्य हिमाचल प्रदेश भी उत्तराखण्ड से कम बेरोजगारी वाला पहाड़ी राज्य है। 2020 में भी उत्तराखण्ड देश के दस सर्वाधिक बेरोजगारी वाला प्रदेशो में प्रथम रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनामी द्वारा कराए गए सर्वे में देश के पर्वतीय राज्यों में भी उत्तराखण्ड में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर बताई गई थी। केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों से साफ है कि राज्य में बेरोजगारी की दर बढ़ रही है। जबकि प्रदेश में पिछले पांच वर्ष में सरकार ने रोजगार देने के तमाम तरह के दावे किए हैं। पिछली सरकार में मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र रावत ने 7 लाख युवाओं को रोजगार देने का दावा भी किया था जबकि हकीकत में तत्कालीन सरकार के समय महज 2816 ही पदों पर सरकारी नौकरियों में भर्तियां की गई थी। हैरानी की बात यह है कि यह सभी पद पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार के समय में ही बनाए गए थे। जबकि राज्य सरकार ने इस को अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बता कर वाहवाही भी लूटी थी।
विगत पांच वर्षों में देखें तो उद्योगों में भी हालत बद्तर ही रही है। इन उद्योगों में ज्यादातर शहरी क्षेत्रों के युवाओं को ही
रोजगार मिलता रहा है, बावजूद इसके राज्य में औद्योगिक निवेश के नाम पर केवल दिखावा ही किया जाता रहा है। चाहे वह इंवेस्टर समिट का मामला हो या राज्य सरकार द्वारा प्रदेश में औद्योगिक निवेश बढ़ाए जाने के दावे हो इस से राज्य में रोजगार के अवसर ज्यादा मिले हों यह आंकड़ों से पता चल रहा है कि हकीकत और सरकारी दावों में बड़ा अंतर है।
राज्य में सितंबर 2018 से लेकर जून 2019 तक केवल दस माह में ही प्रदेश के 7 हजार से ज्यादा लघु उद्योग बंद हो गए थे जबकि राज्य सरकार प्रदेश में उद्योगों से 40 हजार लोगों को रोजगार मिलने का दावा करती रही। दिलचस्प बात यह है कि मार्च 2019 से लेकर जून 2019 तक महज तीन माह में ही 3672 लघु उद्योग प्रदेश में बंद हो गए थे। यह समय तब का है कि जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत राज्य में चालीस हजार करोड़ के निवेश होने की बात कह रहे थे और 14 हजार करोड़ के निवेश के कार्य प्रदेश मे पूरे होने का दावा कर रहे थे।
आज सरकारी दावों और हालातों में कितना फर्क आया है यह भी सरकारी तंत्र से ही साफ पता चल रहा है। राज्य के कौशल विकास एवं सेवायोजन मंत्री सौरभ बहुगुणा द्वारा सदन में जानकारी दी है उसके अनुसार राज्य में साढ़े आठ लाख पंजीकृत युवा हैं। बेरोजगारों को प्रशिक्षण और रोजगार दिए जाने के सवाल का जवाब भी राज्य की स्थिति को साफ करता है कि सरकारी
नौकरियों के इतर रोजगार पाने में भी कामयाबी नहीं मिल पाई है। राज्य में चलाए जा रहे रोजगार मेले में कुल 19680 युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया है जिसमें महज 7 सौ प्रशिक्षितों को ही रोजगार मिल पाया है। यानी 18 हजार 980 युवाओं को रोजगार मेले में प्रशिक्षण मिलने के बावजूद रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाया है। यह भी बताना जरूरी है कि एक तरफ तो प्रदेश में बेरोजगारी का भार बढ़ रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार को अपने कर्मचारियों के वेतन भत्ते निकालने में ही 16 हजार करोड़ की चपत लग जाती है।
हालांकि कुछ अच्छी बात यह रही कि सदन में पिछले पांच वर्ष में राज्य के 71,31,32 युवाओं को रोजगार से जोड़ा गया है जिसमें 16,874 युवाओं को सरकारी सेवाओं में और 155159 युवाओं को आउट सोर्सिंग के माध्यम से विभागों में रोजगार दिया गया है तथा 58,1999 युवाओं को राज्य के प्राइवेट सेक्टर में रोजगार मिला है। साथ ही सरकार के द्वारा 32 विभागां से प्राप्त जानकारी के अनुसार 15581 सरकारी पदो में भर्ती की स्वीकृति विभिन्न रोजगार आयोगों को भेजे जा चुके हैं जिन पर कार्यवाही चल रही है।
बात अपनी-अपनी
उत्तराखण्ड में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां जिम्मेदार हैं। दोनों ही सरकारों ने केवल विज्ञापनों में ही रोजगार देने की बात कही है। जो भी सरकारी भर्तियां होती हैं उनमें जान-बूझकर इस तरह से फंसा दिया जाता है कि मामला कोर्ट में चला जाता है जहां से निर्णय आने में देरी हो रही है। यह सरकार और नौकरशाहों का ही बड़ा खेल है। रुड़की में भी भर्ती को लेकर घपला सामने आ चुका है। इससे राज्य के युवाओं को रोजगार केसे मिलेगा।
शिव प्रसाद सेमवाल, मीडिया सलाहकार उक्रांद
क्या कारण है कि हर सरकारी भर्तियों में कुछ न कुछ ऐसा मामला होता है कि वह कोर्ट में चला जाता है। शीघ्र ही माननीय मुख्यमंत्री जी से इस बारे में मिलने वाला हूं और इस तरह के मामलों में कार्मिक विभाग की भूमिका की जांच करवाए जाने की मांग करने वाला हूं। सरकारी नौकरियों में फर्जीवाड़े के मामले बढ़ रहे हैं जिन पर कठोरतम कार्यवाही करने की जरूरत है।
रविंद्र जुगराण, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी