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Uttarakhand

धामी के सामने चुनौतियों का पहाड़

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को इस साल सत्ता की डगर पर कई चुनौतियों को पार करना होगा। सबसे बड़ी चुनौती 73 हजार करोड़ रुपए के कर्ज तले दबे प्रदेश के लाखों कर्मचारियों को वेतन व पेंशन देना है। धामी ने पिछले बरस चुनाव अभियान के दौरान उत्तराखण्ड को 2025 तक देश का अग्रणी राज्य बनाने की घोषणा की थी। निसंदेह उनके इस वायदे से लोगों की बहुत सारी उम्मीदे जगी हैं। गत विधानसभा चुनाव पार्टी मेनिफेस्टो में जनता से कुछ वायदे किए हैं, उन वायदों को पूरा करने की चुनौती भी धामी के कंधों पर है। सबसे बड़ा काम तो इस साल होने वाले निकाय चुनाव में पार्टी की साख बचाना है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले निकाय चुनाव का सेमीफाइनल ही धामी की सफलता की कसौटी माना जाएगा। धामी को अपनी छवि भी बनाए रखनी है और लोगों की उम्मीदें भी पूरी करनी हैं

भू-कानून को लागू करना
जुलाई 2021 में प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद धामी ने अपने वायदे के मुताबिक भू कानून के अध्ययन के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। 5 सितंबर 2022 को 80 पेज की रिपोर्ट में समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय-विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपनी 23 संस्तुतियां सरकार को सौप दी हैं। सरकार के लिए चुनौती यह है कि एक तरफ तो वह कह रही है कि राज्य के 57 स्थानों पर चिन्हित भूमि पर फाइव स्टार होटल, फिल्म सिटी, कोटा की तरह कोचिंग इंस्टीट्यूट का हब और छोटी-बड़ी टाउनशिप विकसित की जाएंगी। लेकिन सवाल यह है कि ऐसे में वह अगर समिति की संस्तुति मानती है तो उक्त संस्थानों के लिए जमीन की उपलब्धता कैसे हो पाएगी? दूसरा सवाल यह भी है कि अगर बाहरी लोगों को प्रदेश में निवेश करने से वंचित किया गया तो फिर विकास की धारा कैसे बहेगी?

दायित्व बंटवारे का इंतजार
धामी सरकार अपने नेताआें और कार्यकर्ताआें को बहुत जल्दी दायित्व देने की तैयारी कर रही है। जब से धामी-2 सरकार बनी है तब से ही भाजपा के नेता दायित्व बंटवारे का इंतजार कर रहे हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार इस समय एक हजार से अधिक बड़े नेता विभिन्न दायित्वों और राज्य मंत्री स्तर का दर्जा पाने के लिए बेताब हैं। कई नेता इसके लिए केंद्रीय संगठन तो कई राज्य संगठन की परिक्रमा करने में लगे हैं। हालांकि काफी समय से सरकार दायित्व आवंटन को टाल रही है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अब नए साल के शुरू में दायित्व वितरण की शुरुआत करने वाले हैं। पटवारी पुलिस का परिवर्तन उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक समय से राजस्व पुलिस की व्यवस्था को बदलने की तैयारी पिछले साल ही शुरू हो चुकी थी। अंकिता हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस के स्थान पर पूरे प्रदेश में नागरिक पुलिस की व्यवस्था करने की मांग उठ रही है। विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण भी मुख्यमंत्री धामी को इस संबंध में पत्र लिख चुकी हैं। जबकि उच्च न्यायालय ने भी सरकार से पूछा है कि राजस्व पुलिस की व्यवस्था बदलने के संबंध में सरकार ने क्या किया है । 2018 में उच्च न्यायालय राजस्व पुलिस की व्यवस्था खत्म करने का निर्णय दे चुका था, लेकिन तब सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी। परिस्थितियों को देखते हुए सरकार अब राजस्व पुलिस की व्यवस्था में बदलाव करने का मन बना चुकी है। इसके चलते 14 अक्टूबर 2022 को धामी सरकार ने राज्य के राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस की तैनाती की दिशा में कदम बढ़ाए थे। धामी कैबिनेट राजस्व क्षेत्रों में 6 पुलिस थाने और 20 चौकी खोलने का प्रस्ताव पास करा चुकी है। इसके अलावा नए साल की शुरुआत में ही 52 थाने और 19 रिपोर्टिंग पुलिस चौकियों का विस्तार करते हुए 1800 गांवों को नियमित पुलिस व्यवस्था के अंतर्गत अधिसूचित कर दिया गया है।

ओपीएस की बहाली
राजस्थान और छत्तीसगढ़ कांग्रेस शासित राज्यों में कर्मचारियों को पुरानी पेंशन बहाली (ओपीएस) का निर्णय ले लिया गया है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस इसी मुद्दे पर अपनी सरकार बना चुकी है। ऐसे में उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार को अपना रुख साफ करना होगा। राज्य सरकार आगामी निकाय और लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पुरानी पेंशन बहाली के मु्द्दे पर कर्मचारियों को नाराज नहीं कर सकती है। जो कि धामी के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही है। प्रदेश में पुरानी पेंशन भाली की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। 18 दिसंबर 2022 को राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के आह्नान पर कर्णप्रयाग में पेंशन हुंकार रैली
निकाली गई।

गले की फांस बना है ग्रेड पे
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने पहले कार्यकाल में 20 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके उत्तराखण्ड पुलिस के सिपाहियों को 4600 ग्रेड पे देने की घोषणा की थी। 22 अक्टूबर 2021 को पुलिस स्मृति दिवस पर देहरादून के रेसकोर्स स्थित रिजर्व पुलिस लाइन में आयोजित कार्यक्रम में सीएम ने बकायदा इसका एलान किया था। इसका लाभ वर्ष 2001 बैच के 1500 सिपाहियों को मिलन था। वर्ष 2001 और 2002 में भर्ती हुए पुलिसकर्मियों को वर्तमान में लगभग 50,000 वेतन मिलता है। ऐसे में अगर 4600 ग्रेड पे लागू होता तो 2001 में भर्ती होने वाले पुलिसकर्मियों की सैलरी में 15,000 रु की बढ़ोत्तरी हो जाती, यानी 20 वर्ष सेवा पूरे हुए ग्रेड पे वाले पुलिस कर्मियों की तनख्वाह सीधे 65,000 हो जाती। ऐसे में अगर ग्रेड पे में बढ़ोत्तरी होती तो सरकार के खजाने पर इस साल से 15 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ पड़न लाजिमी था। ग्रेड पे की मांग को लेकर 2001 बैच के सिपाहियों के परिजन पिछले साल दो बार सड़क पर उतर चुके है। 2022 में जनवरी माह में ग्रेड पे के स्थान पर एकमुश्त दो लाख रुपये देने का शासनादेश जारी किया गया। इसके बाद ­कार्मिकों और उनके परिजनों के पत्र सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे थे। इनमें त्यागपत्र को स्वीकार कर, पेंशन की गुहार लगाई गई थी। गत् वर्ष सितंबर माह में धामी ने ग्रेड पे के समाधान का दावा करते हुए एएसआई का नया रैंक स1जित करते हुए 1750 नए पद स्वीकृत करने के आदेश दिए थे।

ढूंढना होगा कर्ज का मर्ज
उत्तराखण्ड पर इस समय 73,751 करोड़ रुपए का कर्ज हो चुका है। प्रदेश की वित्तीय हालत हर महीने सुधरने की बजाय बिगड़ती जा रही है। बीते वर्ष कैग की रिपोर्ट ने भी सरकार को चेताया था जिसमें कहा गया था कि प्रदेश में वित्तीय हालत बिल्कुल भी सही नहीं है। कैग और राज्य के अर्थ एवं संख्या विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार साल 2016-17 की अगर बात करें तो प्रदेश पर 44,583 करोड़ रुपए का कर्ज था, जो साल 2021 में 73,751 करोड़ रुपए पहुंच गया। राज्य की वित्तीय हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं कि अब सरकार हर साल अगर कर्ज ले रही है वह इस वजह से कि जो कर्ज लिया गया है, उसका ब्याज और मूल चुका सके। यानी कर्ज उतारने के लिए राज्य सरकार कर्ज पर कर्ज ले रही है। रिजर्व बैंक का उत्तराखण्ड सरकार के ऊपर 53,302 करोड़ रुपए का ऋण है। जबकि भारत सरकार को भी 3813 करोड़ रुपए देनदारी है। राज्य सरकार अपने कर्मचारियों के ईएफ जीपीएस, राष्ट्रीय बचत स्कीम से 16.636 करोड़ की उधारी चल रही है। सबसे ज्यादा राज्य सरकार का पैसा कर्मचारियों की तनख्वाह और पेंशन में जा रहा है, जिसमें 39.68 प्रतिशत खर्च हो रहा है, जबकि 8 प्रतिशत वेतन और 7 प्रतिशत पेंशन का सालाना खर्च सरकार के ऊपर बढ़ रहा है। ऐसे में धामी सरकार को महज जीएसटी करके भरोसे भरोसे न रहकर आय वृद्धि के नए साधन तलाशने होंगे।

चकबंदी की राह
5 सितंबर 2022 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बागेश्वर में प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में चकबंदी कराने का एलान किया था। उन्होंने कहा था कि पहाड़ी इलाकों में यह मांग लंबे समय से की जा रही है। छितरे खेतों के कारण पहाड़ के लोगों को खेती का लाभ नहीं मिल पा रहा है। चकबंदी लागू करने के लिए व्यापक आकलन किया जा रहा है। उत्तराखण्ड पर्वतीय जोत चकबंदी एवं भूमि व्यवस्था नियमावली 2020 को मंत्रिमंडल ने 21 मई को मंजूरी दे दी है। अनिवार्य चकबंदी की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा है। गौरतलब है कि तिवारी सरकार में भूमि सुधार परिषद का गठन किया गया। लेकिन यह परिषद अपना कार्यकाल पूरा करने तक चकबंदी पर कोई ड्राफ्ट तैयार नहीं कर पाई। जनवरी 2015 में हरीश रावत ने चकबंदी सलाहकार समिति गठित की। यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने तेजी से काम करते हुए सितंबर 2015 में 8 महीनों में ही चकबंदी को लेकर ड्राफ्ट तैयार कर लिया। जुलाई 2016 में हरीश रावत ने केबिनेट में चकबंदी प्रस्ताव पास किया और इसमें कानून की शक्ल ले ली। चकबंदी पर ड्राफ्ट तैयार होने के बाद विधेयक विधानसभा में आने से पहले ही हरीश रावत सरकार गिर गई। 2017 में विधानसभा चुनाव में त्रिवेंद्र सरकार प्रदेश में आई और उसने एक बार फिर चकबंदी को लेकर समिति के अध्यक्ष के रूप में केदार सिंह को जिम्मेदारी देते हुए नोटिफिकेशन किया। केदार सिंह रावत ने यह कहकर समिति में काम करने से इंकार कर दिया कि अब कानून बन चुका है और समिति का इसमें कोई रोल नहीं है।

बैकडोर भर्ती प्रकरण
विधानसभा में कर्मचारियों की बैकडोर भर्ती प्रकरण पर राजनीति अभी भी जारी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपने- अपने तरीके से इस मुद्दे को भुनाने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री समेत भाजपा की पूरी टीम इस पर यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि अगर किसी की भर्ती गलत तरीके से हुई है तो उन्हें हटाना बिल्कुल सही कदम है। जबकि कांग्रेस ने 228 कर्मचारियों को नौकरी से हटाए जाने का विरोध किया है। कांग्रेस की मांग है कि नौकरी पाने वालों की बजाय गलत तरीके से नौकरी देने वालों पर एक्शन लिया जाना चाहिए। इसलिए कांग्रेस के नेता पूर्व स्पीकर और मौजूदा कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल का इस्तीफा मांग रहे हैं। इंसाफ की मांग को लेकर बर्खास्त कर्मचारियों ने आखिरी हथियार यानी आंदोलन का रास्ता चुन लिया है। नौकरी से निकाले गए कर्मचारी बीते एक पखवाड़े से देहरादून में धरने पर बैठे हैं।

बेरोजगारों को रोजगार
मुख्यमंत्री धामी ने अपने पहले कार्यकाल में 26 हजार नौकरियां देने का वादा किया था। जिसमें से अभी भी हजारों पदों पर भर्तियां रुकी हुई है। इसके साथ ही गत विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी प्रमुख मुद्दा रहा है। जिसको लेकर विपक्ष हमेशा भाजपा सरकार पर हमलावर रहा है। अब धामी सरकार को सरकारी नौकरियों के अलावा अन्य रोजगार के मुद्दों पर फोकस करना होगा। उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग ने फिलहाल नए साल के लिए जो तारीख तय की वह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से जारी तिथियों को ध्यान में रखते हुए की गई है। उसके अनुसार नए साल में कई विभागों में 5,700 पदों पर भर्ती के विज्ञापन जारी किए जाएंगे। इन सभी को मिलाकर 32 भर्ती परीक्षाओं का कैलेंडर जारी किया जा चूका है।

निकाय चुनाव में पार्टी की स्थिति
मुख्यमंत्री धामी की असल परीक्षा इस साल होने वाले उत्तराखण्ड में नगर निकाय चुनावों में होगी। वर्तमान में नगर निकायों में भाजपा का वर्चस्व है, जिसे बरकरार रखने की चुनौती उनके सामने होगी। इस चुनाव को वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए धरातल तैयार करने से भी जोड़कर देखा जाएगा। राज्य में लोकसभा की पांच सीटें हैं, जिनमें वर्ष 2014 से भाजपा काबिज है। अब लोकसभा चुनाव में राज्य से हैट्रिक बनाने की चुनौती होगी। नवंबर 2018 में उत्तराखण्ड नगर निकाय चुनाव में मेयर और अध्यक्ष पद की 84 सीटों पर चुनाव हुए थे। इसमें 34 सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 25 सीटें आई थी। वहीं 23 सीटों पर जीत हासिल कर निर्दलीय प्रत्याशियों ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। जबकि बसपा ने एक सीट पर कब्जा किया।

अंकिता हत्याकांड में वीआइपी के नाम का खुलासा
उत्तराखण्ड में पिछले साल सनसनी बना अंकिता भंडारी हत्याकांड अभी भी सरकार के लिए चुनौती बना है। इस प्रकरण में एसआईटी ने अपनी जांच रिपोर्ट दे दी है। जिसमें उसने पांच सौ पन्नों की चार्जशीट में सौ गवाह बनाए हैं, जबकि 30 से अधिक दस्तावेजी सबूत शामिल किए गए हैं। वहीं वीआईपी के नाम पर अभी भी सस्पेंस बरकरार है। 26 दिसंबर 2022 को अंकिता भंडारी हत्याकांड में वीआईपी के नाम का खुलासा करने की मांग को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने देहरादून के गांधी पार्क में धरना दिया।

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