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रूपा देवी न तो कोई वैज्ञानिक हैं और न ही पर्यावरणविद्। लेकिन दुनिया को स्पष्ट संदेश दे रही हैं कि पर्यावरण के लिए बुग्यालों का बचा रहना जरूरी है। इसके लिए वे पिछले पंद्रह वर्षों से मुहिम चलाए हुए हैं। यही वजह है कि लोग उन्हें ‘बुग्यालों की मदर टेरेसा’ कहते हैं

हर साल सीमांत जनपद चमोली में मां नंदा की वार्षिक लोकजात का आयोजन होता है। 12 बरसों में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात की तुलना में इस लोकजात का महत्व कम नहीं है। इसमें जनपद चमोली के 7 विकासखंडों और अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर घाटी के 803 गांवों की भागीदारी होती है। लोकजात में बंड भूमियाल की छंतोली दशोली की डोली राजराजेश्वरी की डोली कुरूड से चलकर बेदनी बुग्याल पहुंचती हैं। यहां तर्पण-पूजा के बाद लोकजात सम्पन्न होती है। इस साल नंदा की वार्षिक लोकजात 31 अगस्त से शुरू हुई और 16 सितंबर को हिमालय के बुग्यालों में पूजा-अर्चना कर संपन्न हो गई।

हिमालयी बुग्यालों की ‘मदर टेरेसा’ कहा जाता है, पिछले नंदा की लोकजात जिन बुग्यालों में संपन्न होती है, उनको बचाने की चिंता भी स्थानीय स्तर पर होती रही है। रूपा देवी नामक एक महिला जिसे कि 15 सालों से बुग्याल बचाओ मुहिम में शिद्दत से जुटी हैं। ठेठ पहाड़ी लोक संस्कृति को चरितार्थ करती हुई वेशभूषा, पहाड़ जैसा बुलंद हौसला, चेहरे पर चमक और बुग्यालों को बचाने की जिद लिए कुलिंग गांव, देवाल ब्लॉक की 65 वर्षीय रूपा देवी हिमालय के बुग्यालो को बचाने की मुहिम विगत 15 बरसों से चला रही है। रूपा देवी न तो कोई पर्यावरणविद् है ना ही कोई वैज्ञानिक, ना कोई अफसर और न ही कोई राजनेता। दुनिया की चमक-धमक से कोसों दूर बस बुग्यालां को लेकर चिंतित। बुग्यालों को बचाने की उनकी अपनी परिभाषा है जो उन्होंने पहाड़ और अपने जीवन संघर्षों से सीखा। लोग उन्हें बुग्यालां की मदर टेरेसा कहकर बुलाते हैं क्योंकि जिस तरह मदर टेरेसा दीन दुखियों, मरीजों की निःस्वार्थ सेवा करती थी ठीक उसी तरह रूपा देवी भी बुग्यालां की निःस्वार्थ सेवा करती आ रही है। रूपा देवी हर साल नंदा देवी लोकजात यात्रा में वेदनी बुग्याल में आयोजित रूपकुंड महोत्सव में लोगों को बुग्यालों और हिमालय को बचाने का संदेश देती है। यही नहीं वो इस दौरान अन्य महिलाओं के संग बुग्यालो में सैलानियों और घोड़े खच्चरों की आवाजाही से जो गड्डे हो जाते हैं उन्हें मिट्टी से भरती हैं। वेदनी बुग्याल की सुंदरता को संवारती हैं।


रूपा देवी बताती हैं कि बुग्यालों में जगह- जगह भूःक्षरण होने से हमारे बुग्याल धीरे- धीरे सिकुडते जा रहे हैं। बुग्यालों का अत्यधिक दोहन हो रहा है। जिसकी वजह से बुग्यालों में मौजूद झील, कुंड, ताल सूखते जा रहें हैं। अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप और आवाजाही से बुग्यालो में पर्यावरण असंतुलन पैदा हो गया है। फलस्वरूप हर साल हिमालयी परिक्षेत्र में बर्फवारी कम होती जा रही है। बुग्यालों में जगह-जगह बेतरतीब कूड़ा-कचरा फैलाया जा रहा है। बुग्यालों को शहर बनाया जा रहा है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले 10 सालों में ही हम वेदनी बुग्याल और आली बुग्याल सहित अन्य हिमालयी बुग्यालां को सदा के लिए खो देंगे। हमें बुग्यालां के संरक्षण की दिशा में ठोस पहल करनी होगी। इसके लिए सभी लोगों को आगे आना होगा।

हिमालयी बुग्यालां में रात्रि विश्राम को लेकर आली, वेदनी, बगजी समिति की याचिका पर माननीय हाइकोर्ट ने बुग्यालों में रात्रि विश्राम के लिए टेंटों पर रोक लगाने के सवाल पर रूपा देवी कहती हैं कि हिमालय के बुग्यालों की सुंदरता का हर कोई मुरीद है जिस कारण हर कोई यहां आना चाहता है। हम भी ट्रैकिंग के पक्षधर हैं। लेकिन नियंत्रित ट्रैकिग हो। बुग्यालों में टैंट लगाकर रात्रि विश्राम पर पाबंदी सही फैसला है, क्योंकि टैंट लगाने के लिए पूरे बुग्यालो में जगह जगह गड्डे करके बुग्याल को छलनी किया जा रहा है जिससे उन जगहों पर उगने वाली बहुमूल्य वनस्पति भी विलुप्त होती जा रही है। इसके अलावा चारागाह के नाम पर हर साल बुग्यालों में हजारों की तादाद में मवेशियों को भी लाया जा रहा है जिससे बुग्यालो को नुकसान हो रहा है। इसलिए बुग्यालों में नियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप के अलावा सबकुछ प्रतिबंधित होना चाहिए।

रूपा देवी कहती हैं कि जब ये बुग्याल ही नहीं रहेंगे तो हमें शुद्ध हवा कहां से मिलेगी और पानी कहां से पीयेंगे। हरियाली नहीं होगी तो जीवन का अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा। सरकारों से लेकर आमजन को बुग्यालों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे। मेरा गाँव कुलिंग आज भूस्खलन के कारण नेस्तानाबूत हो गया है। ये सबकुछ हिमालय के साथ छेडखानी का नतीजा और प्रतिफल है।

वास्तव में देखा जाए तो रूपा देवी का बुग्यालों के प्रति असीम प्यार व बदरंग होते बुग्यालों की पीड़ा महसूस करना उन्हें अन्य लोगों से दूसरी कतार में खड़ा करता है। उम्र के इस पड़ाव पर 3,354 मीटर की ऊंचाई पर नंदा की वार्षिक लोकजात में रूपा देवी की बुग्याल बचाओ मुहिम को करीब से देखना बेहद सुखद लगा। आवश्यकता है तो हमें रूपा देवी के व्यक्तित्व से सीख लेनी की।

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