मानसून सत्र में धामी सरकार ने जन कल्याण की कई योजनाएं घोषित कर डाली, लेकिन विपक्ष सहित आंदोलनकारी संगठनों ने जिन सवालों पर सरकार को घेरा, वे आगामी विधानसभा चुनाव में अहम मुद्दे बनने वाले हैं
उत्तराखण्ड विधानसभा का मानसून सत्र नई सरकार के लिए चुनौतियों से भरा रहा। सदन में जाति प्रमाण पत्र, बेरोजगारी और कोरोना जांच में फर्जीवाड़े जेैसे मामले उठने से यह साफ हो गया कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को इन मुद्दों पर जनता के सवालों का जवाब देना पड़ेगा। कई संगठनों द्वारा अपनी-अपनी मांगों को लेकर विधानसभा सत्र के दौरान प्रदर्शन और आंदोलन भी जनता की सरकार संग भारी नाराजगी के चलते आने वाले चुनाव में भाजपा के लिए बड़ा संकट पैदा करने के संकेत देता नजर आ रहा है।
सत्र में सरकार ने 5720. 78 करोड़ का अनुपूरक बजट पास किया हैे जिसमें स्वरोजगार, कोविड से लड़ने के लिए तैयारियां, ग्रामीण सड़कों का निर्माण, समग्र शिक्षा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और केंद्रीय सड़क निधि के तहत खर्च करने का प्रावधान रखा गया है। चुनावी वर्ष में वर्तमान विधानसभा के मानसून सत्र का माहौल पूरी तरह चुनावी रंग में रंगा रहा। नए मुख्यमंत्री ने इस सत्र में एक के बाद एक कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा कर डाली। मुख्यमंत्री सौभाग्य योजना, मुख्यमंत्री वात्सल्य योजना, राष्ट्रीय कृषि वानिकी एवं बांस मिशन योजना, विधि, शासकीय एवं अशासकीय विद्यालयों के भवन निर्माण तथा छात्रावासों के निर्माण के लिए भी बजट में प्रावधान रखा गया है। इसके अलावा गौरा देवी कन्या धन योजना में लाभ से वंचित रही 33 हजार कन्याओं को उनका हक देने की घोषणा स्वयं मुख्यमंत्री ने सदन में की। तकरीबन 49 करोड़ का बजट इस मद में दिया जाएगा।
मलिन बस्तियांे के लिए सरकार ने संशोधन विधेयक पास किया जिसके चलते तीन वर्ष तक अभी अवैध मलिन बस्तियों को तोड़े जाने से राहत दी गई है। इसके साथ ही दस विधेयकों को सदन में पास किया गया है। सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में दस नाली भूमिधरों को भूमिहीन की श्रेणी में रखने की बात सदन में कही।
सरकार के अनुपूरक बजट में प्रमुख मदों में बजटीय प्रावधान को देखें तो केंद्र पोषित योजनाओं के लिए लगभग 318 करोड़, वाह्य सहायतित योजनाओं के लिए 56 करोड़, पीएमजीएसवाई के लिए 570 एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 449 करोड़ और केंद्रीय सड़क निधि के लिए 200 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। जल जीवन मिशन 401 करोड़, नवीनीकरण एवं शहरी परिवर्तन मिशन के लिए 137.29 करोड़, प्रधानमंत्री आवास योजना 70.01 करोड़, समग्र शिक्षा 214.57 करोड़, कोविड आपदा में सहायता 600 करोड़, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना 100 करोड़ तथा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मानदेय के लिए 33 करोड़ का प्रावधान रखा गया है।
इसी तरह से पार्ट टाइम दाइयों के लिए 15.50 करोड़, शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए 293 करोड़, कैम्पा योजना के लिए 150 करोड़, माॅडल राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों के लिए 62.53 करोड़, मार्गों और पुलिया की मरम्मत के लिए 55 करोड़, बाढ़ सुरक्षा कार्यों के लिए 30 करोड़ तथा नगरीय पेयजल योजनाओं के निर्माण के लिए 25 करोड़ एवं स्मार्ट सिटी योजना के लिए 60 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में भूमि अधिग्रहण और एनपीबी के लिए 93 करोड़, केदारनाथ और बदरीनाथ धाम में कार्य के लिए 15 करोड़,चारधाम एवं विभिन्न स्थान भूमि क्रय के लिए 15 करोड़, कोटद्वार मेडिकल काॅलेज स्थापना के लिए 20 करोड़, रोडवेज के लिए 42 करोड़, राजकीय आईआईटी के लिए 62.53 करोड़, वर्क फोर्स डेवलपमेंट फाॅर माॅडल इकोनाॅमी के लिए 25 करोड़ रखे गए हैं। जलागम विकास परियोजना के लिए 30 करोड़ तथा उद्यान बीमा योजना के लिए 26.56 करोड़ का प्रावधान किया गया है।
सत्र में सरकार के सामने कम समय और बेहतर प्रदर्शन को लेकर साफ तौर पर चुनौतियां उभरती साफ नजर आईं। साथ ही आर्थिक स्थिति को लेकर भी चुनौतियां साफ हो गई हैं। चार हजार सौ बीस करोड़ के अनुपूरक बजट में करीब 55 प्रतिशत केंद्र पोषित योजनाओं का है। उत्तराखण्ड में हर सरकार के कार्यकाल में केंद्र पोषित योजनाओं के बजट को खर्च करने का रिकाॅर्ड खराब रहा है। अब जबकि सरकार के पास काम करने के लिए महज चार माह हैं और चार माह के बाद विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने की संभावनाएं हैं, तो सरकार चुनाव में अपनी सरकार के कामकाज और प्रदर्शन को लेकर खासी दबाव में है।
सत्र में जिस तरह से सरकार के लोक- लुभावन घोषणाओं और बजट का प्रावधान रखा गया है उससे यह भी साफ है कि आने वाले समय में सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री धामी को विधानसभा चुनाव में जनता के सामने कई सवालों का सामना करना पड़ सकता है। कांग्रेस के विधायकों द्वारा सदन में भू कानून और चारधाम यात्रा से जुड़े मसलों पर प्राइवेट बिल प्रस्तुत करने से भी साफ है कि सरकार को इन मुद्दांे पर जनता के सवालांे से जूझना पड़ सकता है। केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 के संशोधन का प्रस्ताव सदन में रखा जिसे सरकार ने अस्वीकार कर दिया। सरकार की तरफ से सदन को आश्वस्त किया गया कि वह इस विषय पर स्वयं गम्भीर है और इसके लिए सभी जिलाधिकारियों से संशोधन के लिए सुझाव मांगे हैं। यानी सरकार भी राज्य में कड़े भू-कानून की उठ रही प्रबल मांग को लेकर दबाव में है।
धारचुला के विधायक हरीश धामी उत्तराखण्ड चारधाम देवस्थानम् निरसन विधेयक 2021 सदन में लेकर आए और इसको सदन में रखने की अनुमति मांगी। जिस पर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने सदन में बताया कि सरकार ने इसके लिए एक हाई पावर कमेटी का गठन कर दिया है। धामी का यह बिल भी अस्वीकार कर दिया गया। गौर करने वाली बात यह है कि देवस्थानम् बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहित और हक- हकूकधारियों में पहले ही भारी रोष है। पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी को देखते हुए इस पर विचार करने की बात की थी, लेकिन धामी सरकार ने इस पर एक कमेटी का गठन करके सभी हक- हकूकधारियों से बातचीत करके मामले को सुलझाने का प्रयास किया है। जबकि कमेटी के अध्यक्ष पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनोहरकांत ध्यानी पहले ही कह चुके हैं कि देवस्थानम् बोर्ड रद्द नहीं होगा। इससे तीर्थ पुरोहितों में फिर से प्रदेश सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ गई है।
2022 के विधानसभा चुनाव में चारधामों के उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिले की 15 विधानसभा सीटों पर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी सरकार पर भारी पड़ सकती है। कांग्रेस ने पहले ही साफ कर दिया है कि कांग्रेस की सरकार आने के तुरंत बाद देवस्थानम् बोर्ड को खत्म कर दिया जाएगा। साथ ही आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत किए गए कर्नल अजय कोठियाल भी देवस्थानम् बोर्ड को समाप्त करने की पैरवी कर चुके हैं।
राजनीतिक तौर पर कांग्रेस भू-कानून और देवस्थानम् बोर्ड के मामले में सरकार से दो कदम आगे जाती हुई दिखाई दे रही है। उसके विधायकों द्वारा इन दोनों ही मामलों में प्राइवेट बिलों को सदन में लेकर आने से भाजपा और धामी सरकार पूरी तरह से असहज हो चुकी है। चुनाव में कांग्रेस इन दोनों मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने का काम करेगी जिसका असर सरकार की चुनावी रणनीति पर पड़ सकता है। सरकार के मानसून सत्र में चुनाव की छाया साफ देखी जा सकती है। पुष्कर सिंह धामी अपने व्यवहार केे चलते विपक्ष के विधायकों की नजर में प्रशंसा भी पा चुके हैं। हरीश धामी अपने क्षेत्र में टेलीफोन कनेक्टीविटी को लेकर और विधायक मनोज रावत चारधाम यात्रा शुरू करने को लेकर सदन के बाहर धरने पर बैठ गए तो स्वयं मुख्यमंत्री धामी धरने पर आकर दोनों ही विधायकों के हाथ पकड़कर सदन में ले गए। उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करने की बात कहकर धरना समाप्त करवा दिया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियोें को तुरंत मोबाइल कनेक्टविटी के लिए जल्द से जल्द कार्यवाही करने का आदेश दिया और केंद्र सरकार से भी अनुरोध करने की बात कही। वहीं चारधाम यात्रा को आरम्भ करने की बाबत सत्र में सरकार ने न्यायालय में अपना पक्ष रखने की बात कही।