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Uttarakhand

मियावाकी तकनिकी से होगा पौधारोपण…

  इकोलॉजिकल सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र अब जापानी तकनीक मियावाकी से काम किया जा रहा है, आने वाले दिनों में यदि मियांवाकी तकनीक के परिणाम सही आए तो पहाड़ी और मैदानी इलाकों में किसान भी पौधारोपण में इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकेंगे, जिससे आपदा या भूकंप जैसी स्थितियों में छोटे और बड़े पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। मियावाकी टेक्नोलॉजी एक जापानी तकनीक है जो जापान के वैज्ञानिक मियावाकी द्वारा तैयार की गई थी, इस तकनीक में छोटे-छोटे पौधों से लेकर बड़े पौधे एक ही प्लॉट में रोपित किए जाते हैं और उसके बाद उनके ऊपर से पुआल डाल दी जाती है जिससे ओस या एसिड रेन से पौधों को कोई नुकसान न पहुंचे, जैसे जैसे पौधे बड़े होते जाते हैं पूरी नर्सरी एक परिवार के रूप में विकसित होती है, कोई सबसे छोटा पौधा होता है तो कोई सबसे बड़ा या कोई प्रजाति छोटी मोटी हो जाती है, जो एक परिवार के रूप में सामने आती है यानी अगर कभी आपदा जैसी स्थिति आती है तो बड़ा पौधा अपने से छोटे पौधे का बचाव कर लेता है यानी जमीनी स्तर पर सारे पौधों की जड़ें इतनी मजबूत हो जाती हैं की एक सीमित अवस्था तक किसी पौधे को नुकसान नहीं पहुंचता, लिहाजा यह प्रयोग हल्द्वानी के अनुसंधान केंद्र द्वारा पीपल पड़ाव स्थित नर्सरी में किया जा रहा है। हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र ने 60 प्रजातियों के चार प्रकार के करीब 720 पौधे इस तकनीक के जरिए लगाए हैं जिन पर शोध कार्य चल रहा है, उम्मीद की जा रही है कि इस तकनीक के जरिए हो रहे शोध से नए परिणाम सामने आएंगे जो आने वाले दिनों में आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में बहुत बेहतर कारगर साबित हो सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक यह तकनीक उन जगहों के लिए बेहतर साबित हो सकती है जहां पेड़ पौधे कम उग पाते हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है की एक पौधे की आड़ में दूसरा पौधा जल्दी विकसित हो जाता है, क्योंकि यह तकनीक पूरे इकोलॉजिकल सिस्टम पर निर्भर करती है, लिहाजा इस तकनीक पर काम किया जाना आने वाले दिनों में बेहतर साबित हो सकता है। मियावाकी एक जापानी वैज्ञानिक थे जिन्होंने जापान में रहकर वनस्पतियों पर काफी शोध किया तो पता चला कि भूकंप और आपदा से वहां की वनस्पतियों को काफी नुकसान हो रहा है, लिहाजा उन्होंने इस तकनीक का प्रयोग वनस्पतियों पर किया जो भूकंप जैसी खतरनाक चीजों से वनस्पतियों को बचाने में काफी हद तक सफल रहा लिहाजा ऐसी तकनीक को अब हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र भी वनस्पतियों को उगाने में कर रहा है, उम्मीद की जानी चाहिए कि मियावाकी तकनीक के जल्द सार्थक परिणाम सामने आएंगे।

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