मंत्री की हनक
कृष्ण कुमार
राजधानी ग्यारह दिनों तक कूड़े के ढेर में तब्दील होती रही, लेकिन शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने अपनी अकड़ में हड़ताली कर्मचारियों से बात करने की जरूरत तक नहीं समझी। अंततः मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को खुद आगे आना पड़ा, लेकिन तब तक सरकार की फजीहत हो चुकी थी। मंत्री कौशिक अपने दंभ में पहले भी सरकार की किरकिरी करवा चुके हैं
प्र देश की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के मंत्रियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े होते रहे हैं। कभी मंत्रियों की अपने विभागों के सचिवों से पटरी नहीं खाने की खबरें आती रही हैं तो कभी मंत्रियों के आपसी झगड़े सरकार को असहज करते रहे हैं। इससे सरकार के कामकाज को लेकर उसकी नीति और नीयत पर संदेह भी जताए जाते रहे हैं। हाल ही में सरकार के सबसे पावरफुल कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक की कार्यशैली के चलते जहां सरकार को हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा, वहीं ग्यारह दिनों तक देहरादून शहर गंदगी ओैर कूडे़ के ढेर में तब्दील हो गया। राजधानी में गंदगी बढ़ने से जनता का जीना मुहाल हो गया, मगर शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने हड़ताली कर्मचारियों से बातचीत करने की कोशिश तक नहीं की। मदन कौशिक भाजपा के दिग्गज नेताओं में श्ुामार किए जाते हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही वे हरिद्वार से विधायक का चुनाव जीतने रहे। पृथक उत्तराखण्ड राज्य में भी वे अपनी चुनावी जीत का सिलसिला बरकरार रखे हुये हैं। पांच बार के विधायक कौशिक भाजपा की हर सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। खण्डूड़ी सरकार हो या निशंक सरकार या फिर वर्तमान त्रिवेंद्र रावत की सरकार, कैबिनेट मंत्री का पद मदन कौशिक के लिए हमेशा सुरक्षित रहा है। राजनीति में पद पाना हर नेता की इच्छा रहती है। कौशिक इस दृष्टि से सफल हैं, लेकिन कई बार उनकी कार्यशैली पार्टी के लिए नुकसानदायक हो जाती है। अपने विभागों में कड़ा रुख अपनाने के कारण मदन कौशिक की छवि भाजपा में सभी कैबिनेट मंत्रियों से पृथक ही रही है। अक्सर उन्हें तानाशाह के तौर पर देखा जाता है। इस रवैये से हाल ही में कौशिक की दो बड़े मामलों में जिस तरह से फजीहत हुई है उससे यह साफ हो गया है कि उनकी कार्यशैली वर्तमान में भी उसी ढर्रे पर चल रही है जिस तरह भाजपा की पूर्व सरकारों के समय में चलती रही है। देहरादून नगर निगम के सफाईकर्मियों की वेतन बढोतरी को लेकर हुई हड़ताल से पूरे शहर के हालात बद से बदतर होते रहे, लेकिन शहरी विकास मंत्री पूरे ग्यारह दिनों तक इस समस्या को दूर करने के प्रयास से परहेज करते रहे। आखिरकार सरकार की फजीहत होने लगी तो स्वयं मुख्यमंत्री ने सामने आकर सफाईकर्मियों से बातचीत की। उनकी तकरीबन सभी मांगों को मान लिया गया और ग्यारह दिनों से चली आ रही हड़ताल खत्म हो पाई। मुख्यमंत्री के प्रयास से कूड़े का ढेर बन चुके देहरादून शहर को राहत मिल पाई। इसके साथ ही अब सरकार पर भी गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं कि जब सरकार ने सफाईकर्मियों की सभी मांगों को मानना ही था तो पहले ही इस दिशा में कदम क्यों नहीं उठाया गया? क्यों शहर को ग्यारह दिनों तक कूडे़ के ढेर में तब्दील होने दिया? क्यों शहर को नरक बनाने के प्रयास किए गए? शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक हड़ताली सफाईकर्मियों से इन ग्यारह दिनों में संवाद क्यों नहीं स्थापित करना चाहते थे? जबकि शहर के दिनों दिन बद से बदतर होते चले गए? क्यों आखिर मुख्यमंत्री को ही इसके लिए आगे आकर सफाईकर्मियों से वार्ता करनी पड़ी? साफ है कि इसके पीछे कहीं न कहीं भाजपा की अंदरूनी राजनीति भी हावी रही है। सूत्रों की मानें तो शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने शुरू में ही हड़ताली सफाईकर्मियों मांगों को मानने से साफ इंकार कर दिया था जिसका मुख्यमंत्री ने भी अनुमोदन किया। सफाईकर्मियों से संवाद बनाने में भी सरकार ने कोई रुचि नहीं ली जिससे हड़ताली सफाईकर्मियों में दिन-ब-दिन रोष फैलता रहा और शहर के हालात बिगड़ते रहे। सवाल यह भी उठता है कि जब सरकार विधायकों के वेतन भत्ते बढ़ाने में एक क्षण की देरी नहीं करती, राज्य कर्मियों को सातवां बेतनमान देने में भी देर नहीं कर रही है, तो निगम के सफाईकर्मियों की वेतन बढ़ाने की मांग को अनसुना क्यों करती रही है? जबकि इनके वेतन बढ़ोतरी पर महज कुछ ही करोड़ का भार पड़ेगा। शहरी विकास विभाग जिसके मंत्री मदन कौशिक हैं, उसके तहत प्रदेश के सभी शहरों के निकाय संचालित होते हैं तो फिर क्यों कौशिक ग्यारह दिनों तक परिदृश्य से गायब रहे। क्यों सफाईकर्मियों से वार्ता करने के बजाय उनकी मांगों को नाजायज मानने रहे। मंत्री की इसी हनक के चलते देहरादून जैसा शहर जो कि प्रदेश का एक मात्र स्मार्ट सिटी बनाए जाने की योजना में शामिल है, गंदगी की मार झेलता रहा। सरकार भी देहरादून को स्मार्ट सिटी बनाए जाने को लेकर अपनी पीठ थपथपाती रही है। हड़ताली सफाईकर्मियों से वार्ता करने का दबाब भाजपा संगठन द्वारा बनाए जाने के बावजूद मदन कौशिक टस से मस नहीं हुए। सरकार और खास तोैर पर मंत्री मदन कौशिक की उदासीनता के चलते प्रशासन भी कोई ठोस कार्यवाही करने में नाकाम रहा है। प्रशासन की लचर कार्यप्रणाली का आलम यहां तक रहा कि नगर में फैले हुए कूड़े को साफ करने के लिए पुलिस का सहयोग तक नहीं लिया गया। तहसील चौक पर प्रशासन द्वारा कूड़े को उठाने का जब भी प्रयास किया गया तो हड़ताली कर्मचारियों के भारी विरोध के चलते उसने अपने हाथ खड़े कर दिए। उच्च स्तर से इसके लिए पुलिस व्यवस्था मुहैया नहीं करवाई गयी। हड़ताली कर्मियों द्वारा कूडे की गाड़ियों की हवा तक निकाल दी गई इसके बावजूद सरकार और प्रशासन कोई ठोस कदम उठा पाया। जबकि शहरी विकास मंत्री द्वारा पहले ही इस मामले में कदम उठाए जाने चाहिए थे। अंततः मुख्यमंत्री को ही इसमें सामने आना पड़ा, लेकिन तब तक सरकार की फजीहत हो चुकी थी। साथ ही यह भी संदेश गया कि सरकार को अपनी मांगों के लिए हड़ताल करने से झुकाया जा सकता है। अब राज्य भर के कर्मचारियों ने सरकार को अपनी मांगों और सातवें वेतन आयोग की शिफारिशों को लागू करने का अल्टीमेटम दिया है। अगर सरकार ने इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले समय में प्रदेश भर में हड़ताल का माहौल दिखाई दे सकता है। ऐसा नहीं है कि शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की कार्यशैली पहली बार समाने आई है। पूर्व में नगर निकायों के सीमा विस्तार के लिए जारी अधिसूचना हाईकोर्ट ने महज इसलिए खारिज की कि यह राज्यपाल की ओर से अधिसूचित नही की गई थी। अधिसूचना राज्यपाल द्वारा अधिसूचति की जाती है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की ही नीति रही है जिसके चलते सरकार को हाईकोर्ट से झटका मिला है। इसमें यह बात सामने आई है कि जानबूझ कर सरकार द्वारा ऐसा किया गया जिससे नगर निकायों में चुनाव टाले जा सकें। मदन कौशिक का विरोध भाजपा में होता रहा है। कांगे्रस से भाजपा में आए एक विधायक का आरोप है कि मदन कौशिक सदैव पहाड़ विरोधी मानसिकता के नेता रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि अगर हरिद्वार नगर निगम में सफाईकर्मियों की हड़ताल हुई होती तो मदन कौशिक दो ही दिन में हड़ताल तुड़वाने में सबसे आगे रहते। लेकिन देहरादून के हालात बदहाल होते रहे और मंत्री जी सोते रहे। अपनी ही पार्टी के एक विधायक द्वारा मदन कौशिक पर लगाए गए आरोप सही हैं या नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन इतना तो तय है कि मदन कौशिक अपनी कार्यशैली से पूर्व मे ंभी चर्चित रहे हैं। पूर्व में उनकी कार्यशैली से भाजपा के कई विधायकों के साथ उनका विवाद चर्चाओं में रहा। भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी के दौरान भी मदन कौशिक के साथ भाजपा विधायकों का विवाद सामने आ चुका है। बहरहाल जो भी हो मुख्यमंत्री के प्रयासों के चलते निगम के सफाईकर्मियों की हड़ताल समाप्त हो चुकी है और अब नगर धीरे-धीरे साफ होने भी लगा है। लेकिन जिस तरह से देहरादून शहर को कूड़े का ढेर बनाया गया उसमें मंत्री की हनक ही सबसे बड़ी जिम्मेदार बताई जा रही है। शायद यह मंत्री जी की ही कार्यशैली का नतीजा रहा है कि सरकार को फजीहत झेलनी पड़ी और हाईकोर्ट से भी सरकार को झटका मिला। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार किस तरह से आने वाले समय में कर्मचारियों के आंदोलनों से निपटती है।
हमने पूरा प्रयास किया कि नगर में सफाई व्यवस्था बनी रहे। लेकिन जहां १७०० सफाई कर्मचारी नगर में सफाई का काम करते हो वहां ७० लोगों से पूरा शहर साफ नहीं हो सकता था। फिर भी हमने कई जगहों से कर्मचारी बुलाए और सफाई का काम कराया। हड़ताल जल्द खत्म हो भी सकती या नहीं भी। इस पर मैं कोई कमेंट्स नहीं कर सकता।बी.के. जोगदण्डे, मुख्य नगर अधिकारी नगर निगम देहरादून