देहरादून। उत्तराखण्ड में नौकरशाही सरकार के खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रही है। यह एक ऐसा गंभीर आरोप है जो आजकल प्रदेश की राजनीति में गरमाया हुआ है। हैरत की बात यह है कि इस तरह के आरोप लगाने वाले कोई विपक्ष के नेता नहीं हैं, बल्कि सत्ता में काबिज भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री और उसके निर्वाचित विधायक इस तरह के आरोप प्रदेश की अफसरशाही पर लगा रहे हैं।
दरअसल, प्रदेश के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे द्वारा प्रदेश की नौकरशाही को लेकर बहुत ही गंभीर बयान दिया गया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 57 विधायकों के बहुमत वाली सरकार है, लेकिन निकम्मे अधिकारी सरकार को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। ऐसे निकम्मे अधिकारियों की शिकायत लेकर केंद्र सरकार तक जाने की बात कहकर शिक्षा मंत्री पांडे ने प्रदेश की राजनीति में सरकार और नौकरशाही के मामले को एक बार फिर से उजागर कर दिया। जिसमें अधिकारियों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच बड़े-बड़े विवाद हो चुके हैं।
यह भी दिलचस्प है कि कुछ ही दिन पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सार्वजनिक तौर पर यह बयान दिया था कि किसी भी सूरत में राज्य के अफसर जनप्रतिनिधियां से बड़े नहीं हो सकते। उनको जनप्रतिनिधियों का सम्मान करना ही पड़ेगा। मुख्यमंत्री का यह बयान तब आया कि जब राज्य के मुख्य सचिव द्वारा शासन स्तर से लेकर जिला और राज्य के सभी विभागों के कार्यालय अध्यक्षों को एक पत्र जारी किया गया था जिसमें सांसद और विधायकों का सम्मान करने, उनके मिलने का समय तय करने का आदेश दिया गया था।
मुख्य सचिव के इस पत्र से प्रदेश की राजनीति गरमा गई और एक बार फिर से साबित हो गई कि अफसरशाही जनप्रतिनिधियों की घोर अनदेखी करते रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि विपक्ष इस बात को लगातार उठाता रहा है और इसे लेकर सदन में भी अपनी बात सरकार के सामने रख चुका है। बावजूद इसके सरकार और शासन स्तर से इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
हैरानी इस बात की है कि मुख्यमंत्री के नौकरशाही के लिए दिए गए बयान और मुख्य सचिव के पत्र जारी करने के तुरंत बाद दो बड़ी घटनाएं सामने आई है जिसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि प्रदेश की नौकरशाही को न तो शासन का डर है और न ही सरकार का। आज हालात इस कदर हो चले हैं कि सत्ता में काबिज भाजपा विधायक और कैबिनेट मंत्री तक को राज्य की नौकरशाही पर सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप लगाना पड़ रहा है तो मामला कोई सामान्य नहीं कहा जा सकता।
सबसे पहले कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे के बयान की बात करें तो वे राज्य के विद्यालयी, प्रौढ़ एवं संस्कृत शिक्षा मंत्री के अलावा खेल और युवा कल्याण तथा पंचायती राज मंत्री हैं। इससे जाहिर है कि अरविंद पांडे के मंत्रालयों में सैकड़ों अधिकारी नौकरशाह होंगे। लेकिन अरविंद पांडे का यह कहना कि राज्य में 57 विधायकों की सरकार के खिलाफ प्रदेश के निकम्मे अफसर एक बड़ा षड्यंत्र रच रहे हैं जिससे सरकार की छवि को नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि ऐसे अधिकारियों की शिकायत लेकर वे केंद्र सरकार तक जाएंगे।
कैबिनेट मंत्री द्वारा अधिकारियों के कार्यशैली को लेकर दिए गए बयान और इनकी शिकायत केंद्र सरकार से करने की बात कहना अपने आप में ही सवाल खड़े कर देती है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि राज्य सरकार अपने ही अधिकारियों की कार्यशैली को सुधारने में इस कदर नाकाम हो चुकी है कि अब केंद्र सरकार तक से इसके लिए शिकायत करने की बात सामने आ रही है।
पूरे प्रकरण में एक बात यह भी है कि कांग्रेस लगातार प्रदेश सरकार पर यह आरोप लगाती रही है कि प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के इशारों पर ही काम करती है। केंद्र की इच्छानुसार प्रदेश में राज्य सरकार नीतियां बनाती है और उनको लागू कर रही है। अगर केंद्र को किसी योजना से एतराज है तो वह योजना राज्य हित में ही क्यों न हो राज्य सरकार उसे समाप्त करने से भी पीछे नहीं हटती है। एक तरह से कांग्रेस के नेता सरकार पर केंद्र सरकार की पिछलग्गू होने का आरोप तक लगाते रहे हैं। कैबिनेट मंत्री द्वारा अफसरों की कार्यशैली की शिकायत को लेकर केंद्र सरकार तक जाने की बात एक तरह से कांग्रेस के आरोपों की पुष्टि करता है।
ऐसा नहीं है कि केवल कैबिनेट मंत्री अरविंद पांडे द्वारा ही राज्य के अफसरों की कार्यशैली पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। पूर्व में राज्य मंत्री रेखा आर्य भी अधिकारियों पर कुछ इसी तरह के आरोप लगा चुकी हैं। मंत्री रेखा आर्य द्वारा अपने महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग में भ्रष्टाचार के आरोपों में उप निदेशक के खिलाफ कार्यवाही करने के आदेशों और निर्णयों का शासन स्तर के अधिकारियों ने पालन नहीं किया।
दरअसल, मंत्री रेखा आर्य ने नमक वितरण घोटाले के आरोपां में घिरी महिला उप निदेशक का स्थानांतरण दूसरे जिले में करने का आदेश जारी किया जिससे जांच में किसी प्रकार की बाधा न आ सके लेकिन अधिकारियों ने उक्त अधिकारी का स्थानांतरण दूसरे जिले में करने के बजाय देहरादून जिले में दूसरे ही विभाग में कर दिया।
यह एक विभागीय मंत्री के आदेशों का सरासर घोर उल्लंघन का मामला बनता है। इस पर मंत्री रेखा आर्य खासी नाराज हुई और सार्वजनिक तौर पर अधिकारियों पर कई आरोप लगाते हुए उनकी शिकायत मुख्यमंत्री से करने की बात कही। हैरानी की बात यह है कि मुख्यमंत्री से शिकायत करने के बावजूद मंत्री रेखा आर्य के आदेशां का आज तक पालन नहीं हो पाया है।
कुछ इसी तरह से किच्छा के विधायक राजेश शुक्ला द्वारा सरकारी अस्पताल के रवैये को लेकर धरना देने और सरकार के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाने का मामला भी सामने आया है। दरअसल, विधायक राजेश शुक्ला ने एक गरीब बीपीएल श्रेणी की महिला के इलाज के लिए अस्पताल को फोन किया, लेकिन अस्पताल ने इलाज करने के बजाय जिला अस्पताल रेफर कर दिया। वहां भी राजेश शुक्ला ने महिला के इलाज के लिए फोन किया लेकिन महिला को वहां से भी इलाज मयस्सर नहीं हुआ। इसके बाद महिला को तीसरे अस्पताल ले जाया गया। वहां से भी उसे बगैर इलाज के ही लौटा दिया गया। आखिरकार हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में महिला को उपचार के लिए ले जाया गया, लेकिन वहां उपचार में देरी होने से महिला की मौत हो गई।
इस मामले में देखा जाए तो सभी अस्पताल प्रशासन द्वारा घोर लापरवाही बरती गई। महिला का इलाज करने के बजाय रेफर करने में ही ज्यादा रुचि दिखाई। सबसे गम्भीर बात यह है कि महिला को अन्य अस्पतलों में रेफर करने के बावूजद उसको एम्बुलेंस की सुविधा तक नहीं दी गई। घंटों तक महिला को इलाज के लिए अस्पताल-दर- अस्पताल ले जाया जाता रहा जिसके चलते महिला की मौत हो गई। सरकारी अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली से विधायक राजेश शुक्ला इतने व्यथित हो गए कि वे अस्पताल परिसर में ही धरने पर बैठ गए। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी सरकार के खिलाफ बड़ी साजिश रच रहे हैं जिससे सरकार की बदनामी हो।
इस पूरे प्रकरण में एक बात सामने आई है कि मामला स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा है जिसके मुखिया स्वयं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं, तो क्या यह समझा जाए कि मुख्यमंत्री के विभागीय अधिकारी सरकार के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। बकौल विधायक राजेश शुक्ला की मानें तो उनका आरोप सीधे मुख्यमंत्री के आधीन विभागीय अधिकारियों पर ही हैं।
अब सवाल यह भी है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार है और राज्य की नौकरशाही पर सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने का आरोप स्वयं भाजपा विधायक और सरकार के मंत्री लगा रहे हैं, तो इसे किस तरह से लिया जाए यह बड़ा गंभीर सवाल है। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव जनप्रतिनिधियों के सम्मान करने के लिए पत्र जारी करते हैं। बावजूद इसके हालातों में रत्तीभर का सुधार नहीं आ पा रहा है तो इसका कौन दोषी है, यह गंभीर चिंतन का विषय बना हुआ है। हालांकि स्वास्थ्य सचिव द्वारा विधायक राजेश शुक्ला के धरने और आरोप के मामले में जांच कमेटी बनाए जाने का आदेश जारी कर दिया है, लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि सरकार अपने अधिकारियों पर क्यों नहीं लगाम कस पा रही है। ओैर कौन वे अधिकारी हैं जो सरकार के खिलाफ साजिश रच रहे हैं, जिन पर सरकार कार्यवाही तक नहीं कर पा रही।