उत्तराखण्ड के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं। पहले से ही विधानसभा में बैकडोर से हुई नियुक्तियों को लेकर चर्चाओं में रहे अग्रवाल के बेटे पीयूष अग्रवाल की ओर से नगर निगम ऋषिकेश की विवादित जमीन को अपने नाम कराने का मामला सुर्खियों में है
उत्तराखण्ड सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के पुत्र पीयूष अग्रवाल द्वारा ऋषिकेश उप जिलाधिकारी के कार्यालय को एक पत्र दिया जाता हे जिसमें खसरा नंबर 279/1 में स्थित 184 वर्ग मीटर भूमि पर भवन निर्माण हेतु एनओसी दिए जाने की मांग की गई। इस पत्र पर उप जिलाधिकारी द्वारा तहसीलदार ऋषिकेश से आख्या मांग कर 28 फरवरी 2019 को पीयूष अग्रवाल को एनओसी प्रदान कर दी गई। इस एनओसी के बाद पीयूष अग्रवाल द्वारा नगर निगम में अभिलेखो में भूमि दर्ज करवाने का आवेदन दिया गया जिस पर सहायक नगर आयुक्त द्वारा उक्त भूमि को पीयूष अग्रवाल के नाम अभिलेखों मे दर्ज भी कर दिया गया। सतही तौर पर यह माला एक तरह से सामान्य ही लग रहा है लेकिन इस पूरे मामले को देखा जाए तो सत्ता और रसूख के साथ प्रशासन की मिलीभगत का पूर खेल सामने आ रहा है। जिसमें तहसील प्रशासन के साथ-साथ नगर निगम प्रशासन भी पूरी तरह से मंत्री के सुपुत्र के लिए सभी नियमों को ताक पर रखकर काम करता दिखाई पड़ रहा है।
पीयूष अग्रवाल के एनओसी प्रकरण की बात करें तो इस मामले में पूरी तरह से नियमों को जान-बूझकर अनदेखा किया गया है। एनओसी के मामले में तहसीलदार द्वारा 29 फरवरी 2019 को अपनी आख्या दी गई है जबकि 2019 में फरवरी माह 28 दिन का था। साथ ही उप जिलाधिकारी ऋषिकेश द्वारा एनओसी में स्पष्ट करते हुए उल्लेख किया है कि खसरा नंबर 279/1 निर्विवाद और वाद रहित भूमि है। जबकि यह भूमि शुरू से ही विवादों में रही है और इसी खसरे में भूमि की रजिस्ट्री और भवन निर्माण पर भी रोक लगी हुई है। इसके चलते इस क्षेत्र में भवनां के मानचित्र भी स्वीकृत नहीं किए गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि खसरा नंबर 279 बहुत बड़ा खसरा है जिसके अब कई भाग हो चुके हैं। पीयूष अग्रवाल की भूमि भी इसी खसरे के भाग 279/1 में है जिसमें 184 वर्गमीटर भूमि पीयूष अग्रवाल पुत्र प्रेमचंद अग्रवाल को उनकी माता शशि प्रभा अग्रवाल द्वारा 27 सितंबर 2018 को मुख्तारनामा के आधार पर अपने नाम किया और नगर आयुक्त ऋषिकेश अपनी आदेश में यह स्पष्ठ तौर पर अंकित कर रहे हैं कि ‘खाता संख्या 135 नगर निगम में रमेश चंद्र घिल्डियाल के नाम दर्ज है लेकिन उक्त संपत्ति श्रीमती शीतल कोहली पत्नी जितेंद्र कोहली द्वारा पीयूष अग्रवाल को क्रय की गई है। श्रीमती कोहली का नाम पालिका अभिलेखों में दर्ज नहीं है। उक्त संपति खसरा संख्या 279/1 के अंतर्गत आती है। तथा प्रश्नगत भूमि/ प्रकरण में भविष्य में नामांतरण अथवा उसके बाद यदि किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न होता है तो ऐसी दशा में यह अनापत्ति प्रमाण पत्र स्वतः ही निरस्त समझा जाएगा।’
इन सबके बावजूद नगर निगम प्रशासन द्वारा उक्त 184 वर्ग मीटर की भूमि संपत्ति पीयूष अग्रवाल के नाम नगर निगम अभिलेखों में दर्ज कर दी गई। इस पत्र में भी गंभीर त्रुटि साफ दिखाई दे रही है। शीतल कोहली द्वारा पीयूष अग्रवाल को भूमि क्रय करना लिखा गया है जबकि इसको विक्रय करना अंकित किया जाना था। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि जिस तरह से तहसीलदार 28 फरवरी को 29 फरवरी लिख रहे हैं उसी प्रकार मुख्य नगर आयुक्त भी विक्रय को क्रय लिख रहे हैं। यानी मंत्री पुत्र के लिए प्रशासन बेहद जल्दबाजी में कार्य कर रहा था जिससे अभिलेखां की त्रुटियों को भी अनदेखा कर दिया गया। यहीं से पूरे मामले में बड़ा झोल नजर आ रहा है।
एक बात यह भी गौर करने वाली है कि फरवरी 2019 में ऋषिकेश के तत्कालीन उप जिलाधिकारी प्रेमलाल के पास नगर निगम के मुख्य नगर आयुक्त का दयित्व भी था और नगर निगम के तत्कालीन सहायक नगर आयुक्त उत्तम सिंह नेगी मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के पीएस ताजेंद्र सिंह नेगी के नजदीकी रिश्तेदार बाताए जाते हें। इसी नजदीकियों के चलते पीयूष अग्रवाल के लिए तहसील प्रशासन और नगर निगम प्रशासन पूरी तरह से दबाब में काम कर रहा था।
दरअसल ऋषिकेश नगर क्षेत्र में जमीनों को लेकर अनेक मामले सामने आते रहे हैं। भरत विहार का खसरा नंबर 279 वर्षों से विवादित रहा है और इस खसरे के 279/12 भाग में 6-5720 हेक्टेयर भूमि को राजस्व विभाग में दर्ज किया हुआ है यानी राजस्व अभिलेखों में यह भूमि जिलाधिकारी देहरादून के नाम दर्ज हो चुके हैं। लेकिन इस खसरे की आड़ में तहसील प्रशासन और नगर निगम प्रशासन की मिलीभगत से खसरा नंबर 279/12 के भूखंडों को 279/1 के नाम से खरीदा और बेचा जाता रहा है। ऐसा आम चर्चा में रहा है।
खसरा नंबर 279/1 विजया शर्मा पुत्री ज्योति प्रसाद शर्मा के नाम संक्रमणीय भूमिधरी के नाम से राजस्व अभिलेखां में चली आ रही है। ज्योति प्रसाद शर्मा श्रीभरत मंदिर महत परिवार के ही व्यक्ति रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद जमींदारी उन्मूलन एक्ट के बाद कई भूमि को राजस्व में दर्ज किया गया लेकिन भरत मंदिर परिवार के लोगों की भूमि को इसमें नहीं जोड़ा गया। इसके चलते इस खसरे में विवाद होता गया और मामला न्यायालयों तक भी पहुंचा लेकिन भरत मंदिर परिवार की भूमि पर कोई आंच नहीं आई। 2011 में एक जनहित याचिका के मामले की सुनवाई के दौरान नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा ऋषिकेश नगर की जमीनां की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी। इसके बाद नगर क्षेत्र में किसी भी भूमि का पंजीकरण नहीं हो पा रहा था। इसके कारण 2016 में एक याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की गई जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने नगर क्षेत्र में भूमि की रजिस्ट्री पर लगी रोक हटा दी। हालांकि यह रोक एक तरह से गैर विवादित भूखंडों और खसरां जिन पर पूर्व से ही रोक लगी थी, उन खसरों और भूखंडों की भी रजिस्ट्रियां ऋषिकेश तहसील में होने लगीं। यहां पर तहसील प्रशासन की भूमिका भी सवालां के घेरे में आती है जो भूमि के बड़े कारोबारियों के हितों के लिए विवादित खसरे 279 की रजिस्ट्री पर रोक को लगाए रखने की बजाय उसकी भी रजिस्ट्री करता रहा और इसकी आड़ में राजस्व विभाग के जरे इंतजाम में दर्ज भूमि पर भी रजिस्ट्रियां होती चली गईं। जमकर भवनों का निर्माण होता चला गया जबकि भवनों के निर्माण के लिए मानचित्र भी स्वीकृत नहीं हो रहे थे। मोजूदा समय में तकरीबन 40 से भी ज्यादा बड़े-बड़े भवन और व्यापारिक प्रतिष्ठान शोरूम तक इस खसरे के भूखंडों में खड़े हो चुके हैं।
इसी खसरे को लेकर 9 जून 2022 को ऋषिकेश के उप जिलाधिकारी शैलेंद्र सिंह नेगी द्वारा जिलाधिकारी देहरादून को पत्र लिखा गया है। जिसमें स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि उक्त खसरे में वाद 25 प्रचालित है और उच्च न्यायालय द्वारा स्थगन आदेश भी जारी किए हुए हैं। इससे यह भी साफ हो जाता है कि ऋषिकेश तहसील प्रशासन को विवादित खसरे 279/1 और 279/12 की स्थिति भलीभांति ज्ञात थी। साथ ही उक्त खसरे के भूखंडों पर भवन निर्माण की भी पूरी जानकारी थी। याद रहे कि 2004 में इसी खसरे में उपजिलाधिकारी ऋषिकेश की फर्जी मुहर से भवनों के निर्माण के लिए एनओसी प्रकरण हुआ था जिसमें तत्कालीन उप जिलाधिकारी गरीश कुमार शर्मा के नाम से फर्जी एनओसी बनाई गई थी। मामले के खुलासे के बाद एक अधिवक्ता, कर कमेटी के अध्यक्ष, नगर पालिका के दो सभासद और एक महिला के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया जिसमें उनको जेल भी भेजा गया। हालांकि बाद में हाईकोर्ट से उनको जमानत मिल गई थी लेकिन इस मामले से साफ हो गया था कि खसरा संख्या 279 वर्षों से विवादित रहा है और इसी खसरे में फिर से एनओसी का मामला सामने आया है जिसमें प्रदेश सरकार के वित्त और शहरी विकास मंत्री का पुत्र पीयूष अग्रवाल भी शामिल है।
फिलहाल पूर्व जिलाधिकारी और राजेश कुमार द्वारा भरत विहार स्थित विवादित खसरे 279/12 में जमीनां की रजिस्ट्रियों पर रोक लगाई जा चुकी है। साथ ही निर्मित और निर्माणाधीन
भवनों पर कार्यवाही के आदेश भी दिए जा चुके हैं जिस पर कार्यवाही चल रही है। भरत विहार में सात भवनों को अवैध सील कर दिया गया है।
प्रेमचंद अग्रवाल के परिजनों के नाम भूखंड और रिसॉर्ट
28 मार्च 2013 को पीयूष अग्रवाल पुत्र प्रेमचंद अग्रवाल (पीसी अग्रवाल) ऋषिकेश तहसील में निर्मल सी में सविता देवी पत्नी भीम सिंह से 200 वर्ग मीटर का भूखंड खरीदा। जिसकी कीमत 5 लाख दर्शाई गई है। इन्होंने ही 4 अप्रैल 2013 को ऋषिकेश तहसील में श्यामपुर सी में सुंदर सिंह पुत्र मुस्सा सिंह से 200 वर्ग मीटर का भूखंड खरीदा जिसकी कीमत भी 5 लाख बताई गई है। 28 सितंबर 2017 को ऋषिकेश तहसील के अंतर्गत बढ़कोट माफी डंडी में पीयूष अग्रवाल द्वारा संजीव कुमार शर्मा पुत्र एचडी शर्मा से 163-638 वर्ग मीटर का भूखंड 19 लाख 90 हजार में खरीदा गया। 27 सितंबर 1018 को ऋषिकेश तहसील के अंतर्गत शिवा इंक्लेव में अपनी माता शशि प्रभा
अग्रवाल पत्नी प्रेमचंद अग्रवाल से 184 वर्ग मीटर के भूखंड का मुख्तारनामा अपने नाम किया। जिसका मूल्य 21 लाख 16 दर्शाया गया।
1 मार्च 2021 को प्रेमचंद अग्रवाल की धर्मपत्नी शशि प्रभा अग्रवाल के नाम से ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित कोड़ियाला में रेखा रावत पत्नी एन एस रावत का 3470 वर्ग मीटर में बना हुआ पिंडर ग्लेश्यिर रिसोर्टस प्रा लि खरीदा। जिसकी कीमत 2 करोड़ 16 लाख 23 हजार दर्शाई गई है। 23 जुलाई 2022 को ऋषिकेश देव प्रयाग मार्ग पर कोड़ियाला में ही शशि प्रभा अग्रवाल पत्नी प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा 840 वर्ग मीटर का भूखंड संजीव थपलियाल पुत्र आर सी थपलियाल, शशि चमोली पत्नी विनाद चमोली तथा आनंद शर्मा पुत्र जगत नारायण शर्मा से 59 लाख 50 हजार में खरीदा। गौर करने वाली बात यह है कि इस भूखंड की एक स्वामीनी शशि चमोली धर्मपुर विधानसभा से निर्वाचित भाजपा विधायक विनोद चमोली की पत्नी हैं। इसके अलावा 27 मई 2022 को देहरादून तहसील के अंतर्गत सीमा द्वार जीएमएस रोड पर पीयूष अग्रवाल द्वारा 59 लाख 60 हजार की कीमत का 66-52 वर्ग मीटर का भूखंड खरीदा गया। 6 अगस्त 2022 को ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित तपोवन में पीयूष द्वारा 1 करोड़ 56 लाख की कीमत का भूखंड अर्जुन सिंह पुत्र जेएस कंडारी से खरीदा गया है।
बात अपनी-अपनी
कंडीशनल एनओसी पूर्व में दी गई थी और 279/1 खसरे के लिए दी गई थी। हम कार्यवाही 279/12 में कर रहे हैं जिनको एनओसी दी। उन्होंने नगर निगम में भूमि अपने नाम करवाने का आवेदन किया होगा तो नगर निगम ने उक्त भूमि का नामांतरण कर दिया। अब अगर कोई विवाद या आपत्ति दर्ज करवाता है तो वही अधिकारी या कोर्ट जिनमें भूमि नामांतरण किया है, वहीं इस पर कार्यवाही कर सकता है। फिलहाल हमारे पर खसरा नंबर 279/1 को कोई प्रकरण नहीं है, जो भी है वह न्यायालय में हैं।
शैलेंद्र नेगी, उप जिलाधिकारी ऋषिकेश
आप जिसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं, इस पर खबर मत लिखो। क्यों लिख रहे हो।
प्रेम लाल, पूर्व उपजिलाधिकारी ऋषिकेश
मैं आपको कोई अधिकृत बयान नहीं दे सकता। आपने पूछा है तो मैं आपको सिर्फ जानकारी दे सकता हूं, इसे मेरा बयान नहीं समझिएगा। हमें एक पत्र मिला है। फिलहाल हमारे मुख्य नगर आयुक्त देश से बाहर हैं जब वे वापस आएंगे तब टैक्स कमेटी बैठेगी और वह मुख्य नगर आयुक्त को अपनी रिपोर्ट देगी।
रमेश रावत, सहायक नगर आयुक्त ऋषिकेश
चार बार से प्रेमचंद अग्रवाल इस क्षेत्र के विधायक हैं। लेकिन इस क्षेत्र में उनका कोई भी काम देखने को नहीं मिला। लेकिन भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से अग्रवाल जी उबर नहीं पाए हैं। अपने पुत्र जिसको वह बेरोजगार बताते हैं और उसके लिए कभी उपनल से नौकरी का बंदोबस्त करते हैं तो कभी मुख्यमंत्री का सलाहकार बना देते हैं। ऋषिकेश का सबसे बड़ा बेरोजगार उनका पुत्र पीयूष अग्रवाल है जो करोड़ों की जमीनें खरीद रहा है। अगर बेटा बेरोजगार है तो वह कैसे करोड़ों की जमीनें अपने नाम खरीद रहा है। गंभीर बात यह है कि मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने विधानसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग को दिए गए शपथ पत्र में अपने बेटे की संपत्तियों का कोई उल्लेख नहीं किया है। यह सरासर झूठा शपथ पत्र का भी मामला बनता है।
जयेंद्र रमोला, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य कांग्रेस