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Uttarakhand

धामी के दांव से सकते में खनन सिंडिकेट

वाडिया इंस्टीट्यूट फॉर हिमालयन ज्योलॉजी द्वारा 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखण्ड के आधे से अधिक हिस्से ‘संवेदनशील’ और ‘अति संवेदनशील’ इको क्षेत्र में आ चुके हैं जहां भूस्खलन के खतरे बढ़ते जा रहे हैं। इतनी भयावह स्थिति होने के बावजूद राज्य सरकारों का खनन के प्रति प्रेम लगातार परवान चढ़ता रहा है। राज्य गठन के बाद से ही राजनेता, नौकरशाह और खनन व्यापारी की तिकड़ी पूरी व्यवस्था पर हावी रही है। राज्य में चाहे जिस दल की सरकार रही हो, अवैध और अंधाधुंध खनन के आरोपों से हर सरकार, हर मुख्यमंत्री का दामन दागदार रहा है। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय समय-समय पर अवैध खनन को रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी करता रहा है लेकिन राज्य की नौकरशाही नए-नए तरीके इजाद कर ‘खनन की गंगा’ को बहते रहने का मार्ग साफ करती रही है। अपनी ईमानदार कार्यशैली के लिए जानी गई खण्डूड़ी सरकार में भी ‘सारंगी की भ्रष्ट धुन’ खूब बजी। निशंक और हरीश रावत सरकार में भी खनन का ‘खेला’ जमकर हुआ। इसी तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में उनके एक ओएसडी पर अवैध खनन के आरोप लगे। वर्तमान की धामी सरकार को तो ‘खनन प्रेमी’ सरकार तक कहा जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लेकिन खनन रॉयल्टी दरों को बदलकर न केवल अपने ऊपर लग रहे आरोपों को धो डाला है बल्कि खनन लॉबी को भी सकते में डाल दिया है

‘उत्तराखण्ड में खनन ऐसा व्यवसाय बन चुका है जिसमें हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा निकलता है। इन्हें रोकने का प्रयास करने वाले प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों पर खनन माफिया हमले भी कर चुके हैं। ईमानदार अधिकारियों का तबादला कराना तो इनके बाएं हाथ का खेल है। सरकार अगर सही नीयत से इस खेल को बंद कराना चाहती है तो सबसे पहले खनन नीति को स्पष्ट करना होगा।’ 7 जून 2015 को खटीमा के तत्कालीन विधायक पुष्कर सिंह धामी ने यह बात कही थी। 3 जुलाई 2021 को जब पुष्कर सिंह धामी पहली बार सूबे के मुख्यमंत्री बने तो उनसे प्रदेश की जनता को काफी उम्मीदें जगी थी, खासकर खनन के मामले में। वह खनन जिससे प्रदेश को खासा राजस्व मिलता है। धामी लेकिन अपने पहले कार्यकाल में खनन सिंडिकेट के दबाव में आते नजर आए थे। इस दौरान निजी भूमि के समतलीकरण का ‘खेला’ हुआ था। समतलीकरण के नाम पर खनन को जमकर अंजाम दिया गया। हालात ऐसे पैदा हुए कि और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तो मुख्यमंत्री को ‘खनन प्रेमी’ की उपाधि तक दे डाली थी। इसी खनन को लेकर अब धामी सरकार ने दरों का ऐसा दांव चला है जिससे पूर्व की सरकारें बचती आ रही थीं। इससे खनन लॉबी को झटका तो लगा ही है साथ ही धामी ने अपने ऊपर लगे ‘खनन प्रेम’ के दाग को धोने का दांव चल दिया है।
पिछले साल दिसंबर माह में ही ‘एक राज्य, एक रॉयल्टी’ की मांगों को लेकर लोग धरने पर बैठ गए थे। धरना दे रहे लोगों का कहना था कि पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में प्राइवेट पट्टाधारक सरकारी निगमों के मुकाबले बहुत कम रॉयल्टी दे रहे हैं जिससे सरकारी निगम नुकसान में है। जबकि प्राइवेट पट्टाधारकों की सस्ती खनन सामग्री को लोग ज्यादा खरीद रहे हैं। इसके बाद पूर्ववर्ती सरकारों के समय की खनन नीति का अध्ययन करने के निर्देश दिए गए। इस अध्ययन के जरिए यह सुनिश्चित करना था कि खनन नीति में ऐसा क्या संशोधन किया जाए जिससे कि सरकारी क्षेत्र के निगमों की आमदनी ज्यादा हो सके। याद रहे कि वन विकास निगम के तहत गौला, कोसी, दाबका, नंधौर एवं अन्य नदियां आती हैं। वन विकास निगम के अलावा कुमाऊं मंडल विकास निगम और गढ़वाल मंडल विकास निगम भी खनन के पट्टे जारी करता है। जबकि नाप भूमि पर निजी पट्टे दिए जाते हैं।

धामी की दूसरी बार सरकार बनने के बाद उक्त नीति का अध्ययन किया ही जा रहा था कि तभी हल्द्वानी के हल्दूचौड़ निवासी गगन पाराशर व अन्य ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर दी। इस याचिका में दो बिंदुओं को न्यायालय के समक्ष रखा गया था। जिसमें पहले यह था कि राज्य में नदियों में मशीनों के खनन की अनुमति नहीं है लेकिन इसके बावजूद लगातार बड़ी- बड़ी मशीनें नदियों में उतारी जा रही हैं। राज्य खनन नियमावली में केवल मैन्युअली नदियों में बजरी, पत्थर और बोल्डर चुगान की अनुमति है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अचानक राज्य की सभी छोटी-बड़ी नदियों में खनन के लिए बड़ी-बड़ी पोकलैंड मशीनें (जेसीबी) उतार दी गई थीं। एक तरह से सरकार के मौखिक निर्देश पर राज्य की नदियों में इस तरह का खनन किया जा रहा था। इन बड़ी मशीनों के कारण नदियों में अनुमति से कई गुना गहराई तक खुदाई की जा रही थी। पोकलैंड मशीनें और रेत, बजरी, बोल्डर ढुलान के लिए डम्पर आदि नदियों तक पहुंचाने के लिए सड़कें खोदे जाने से भी नदियों को भारी नुकसान हो रहा था।

याचिका में दूसरे बिंदु की तरफ भी न्यायालय का ध्यान इंगित कराया गया। याचिकाकर्ता गगन ने नदियों की सरकारी व पट्टों के माध्यम से होने वाले प्राइवेट खनन की रॉयल्टी दरों में भिन्नता का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि वन निगम की दरें 31 रुपया प्रति कुंतल और निजी पट्टाधारकों की 12 रुपया प्रति कुंतल रॉयल्टी निर्धारित है, जिसकी वजह से निजी खनन कारोबारी कम टैक्स दे रहे हैं, जबकि सरकार ज्यादा दे रही है जिससे सरकार को घाटा हो रहा है। रॉयल्टी के इस अंतर के कारण प्राइवेट खनिज सस्ता होने की वजह से लोग प्राइवेट खनन कारोबारियों से उपखनिज खरीद रहे हैं। याचिका में सरकारी व प्राइवेट में एक समान रॉयल्टी दरें निर्धारित करने की मांग की गई थी।

19 दिसंबर 2022 को इसी याचिका पर मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में सुनवाई हुई। इस दौरान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने याचिका में उठाए गए सवालों को वाजिब मानते हुए तत्काल प्रभाव से प्रदेश की सभी नदियों में मशीनों से खनन पर रोक लगा दी। इसके अलावा सरकारी और निजी खनन की रॉयल्टी दरों में भिन्नता पर हाईकोर्ट ने सचिव खनन से पूछा कि वन विकास निगम की 31 रुपया प्रति कुंतल रॉयल्टी और प्राइवेट खनन वालों की 12 रुपए प्रति कुंतल रॉयल्टी क्यों है?

इस संबंध में सरकार चाहती तो एक शपथ पत्र देकर प्राइवेट पट्टाधारकों और निगम के खनन लाट में अंतर को पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल से चली आ रही खनन नीति का मामला बताकर अपने आपको सेफ्टी मोड में ला सकती थी। लेकिन धामी सरकार ने ऐसा करने की बजाय रॉयल्टी दरों में उलटफेर कर खनन नीति को पहले से पारदर्शी बनाने की दिशा में काम किया है। धामी सरकार ने रॉयल्टी दरों में घटत-बढ़त करके न केवल अपने ऊपर लगे ‘खनन प्रेमी सरकार’ के आरोपों को धो दिया है इससे सीएम धामी ने खनन लॉबी को भी सकते में डाल दिया है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने सबसे पहले खनन के पट्टों को निजी हाथों में देने की शुरुआत की थी। जबकि नदियों में इससे पहले प्राइवेट पट्टों का प्रावधान नहीं था। तब से ही वन विकास निगम और प्राइवेट पट्टाधारकों की रॉयल्टी दरों में अंतर चला आ रहा था। यह अंतर न केवल हरीश रावत सरकार में बल्कि भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत की सरकार में भी बदस्तूर जारी रहा।

 

रॉयल्टी की दर में हुए बदलाव

नदी व पट्टों के नाम                                                                                       पहले                                      अब                                         कमी/वृद्धि
उत्तराखण्ड वन विकास निगम गौला नदी                               29.35 रुपए                    22. 14 रुपए                                 7.14 की कमी
उत्तराखण्ड विकास निगम कोसी, दाबका                               28.38 रुपए                     21.31 रुपए                                  7.07 की कमी
उत्तराखण्ड वन विकास निगम नंट्टार व अन्य नदियां             26.30 रुपए                      19.64 रुपए                                6.66 की कमी
गढ़वाल मंडल विकास निगम                                              19.92 रुपए                       16.62 रुपए                                 3.30 की कमी
कुमाऊं विकास मंडल                                                           20.72 रुपए                      16.62 रुपए                                4.14 की कमी
निजी नाप भूमि पट्टे एवं सभी अनुज्ञाएं                                   13.41                                   19.11                                        5.70 की बढ़ोतरी
(नोट :- यह सूची रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से है)

 

यहां यह भी बताना जरूरी है कि राज्य में निकलने वाले 65 से 70 प्रतिशत उपखनिज का चुगान आरक्षित वन क्षेत्रों से निकलने वाली नदियों से किया जाता है। प्रदेश के आरक्षित वन क्षेत्रों में स्थित नदियों में खनन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से जारी गाइडलाइन के अनुसार किया जाता है। इसके अनुसार, रॉयल्टी की दरों के साथ सीमांकन एवं सुरक्षा क्षतिपूर्ति पौधरोपण, स्टांप शुल्क, वन्य जीव शमन, श्रमिक कल्याण कोष, धर्मकांटा, कम्प्यूटरीकृत तौलाई, सीसीटीवी कैमरा, परिचालन व्यय जैसी तमाम औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। जिससे वन विकास निगम की रॉयल्टी दरें राजस्व और निजी खनन पट्टों से अधिक थी। धामी सरकार गत 18 जनवरी को वन निगम की रॉयल्टी पहले जहां प्रति कुंतल 31 थी उसे घटाकर 22 कर दिया गया है। वन विकास निगम की रॉयल्टी पर पूरे प्रति कुंतल 9 रुपए कम किए गए हैं। जबकि दूसरी तरफ प्राइवेट पट्टाधारकों की रॉयल्टी पहले जहां प्रति कुंतल 12 थी उसे बढ़ाकर प्रति कुंतल 19 रुपए कर दिया है। प्राइवेट पट्टाधारकों की रॉयल्टी पर पूरे 7 रुपए बढ़ाए गए हैं। धामी सरकार का यह फैसला बेहद महत्वपूर्ण फैसला माना जा रहा है और कहा जा रहा है कि इससे सरकार को राजस्व में इजाफे के साथ ही उत्तराखण्ड की नदियों को नया जीवन मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

उत्तराखण्ड की आर्थिकी में खनन का बड़ा योगदान है। इसलिए समय-समय पर खनन संबंधी नियमों में बदलाव किए गए। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद वर्ष 2001 में उत्तराखण्ड उपखनिज नीति लाई गई। इसके बाद वर्ष 2002, 2007, 2008 में इसमें संशोधन किए गए। वर्ष 2011 में नई खनिज नीति और 2015 में उपखनिज (रेत, बजरी, बोल्डर) नीति लाई गई। वर्ष 2016 में उपखनिज नीति में फिर बदलाव किया गया। इनमें रॉयल्टी दरें, खनन पट्टों में बदलाव, खनन पट्टों के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से पर्यावरणीय अनुमति लेने जैसे विषय शामिल किए गए। राज्य में खनिज और उपखनिज के खनन के पट्टे दिए जाते हैं। उपखनिज बालू, बजरी, बोल्डर के कुल 339 खनन पट्टे दिए जाते हैं। इनके अलावा खनिज सोप स्टोन के 105, खनिज मैग्नेसाइट के 03, खनिज लाइम स्टोन के 04, स्टोन क्रेशर और स्क्रीनिंग प्लांट के 276, पुलवराइजर प्लांट के 25 खनन पट्टे दिए जाते हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश भर में उपखनिज के भंडारण के 465 लाइसेंस दिए जाते हैं।

समतलीकरण में दर असमानता
ऐसा नहीं है कि दरो में असमानता पहली बार सामने आई है। बल्कि एक अन्य मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। फर्क सिर्फ यह था कि यहां समतलीकरण का मामला था। इससे जुड़े प्रकरण में एक महत्वपूर्ण फैसला 26 सितंबर 2022 को आया। जिसमें नैनीताल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रमेश खुल्बे की बेंच ने 28 अक्टूबर 2021 के उस शासनादेश को निरस्त कर दिया जिसमें सरकार ने उपखनिज संशोधन अधिनियम 2001 में संशोधन किया था। अदालत ने यह नियम पूरी तरह से निजी भूमिधारियों को लाभ पहुंचाने के लिए माना था। इसके तहत खनन माफिया अफसरों और नेताओं का गठजोड़ उजागर हुआ था। अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि इस नीति से प्रदेश सरकार को 2000 करोड़ से भी अधिक का राजस्व नुकसान हुआ। तब प्रदेश सरकार ने समतलीकरण के नाम पर खनन पट्टे के लाइसेंस जारी कर दिए थे। जिसे हल्द्वानी के याचिकाकर्ता सत्येंद्र तोमर ने अदालत में चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि इस संशोधन से निजी व्यक्तियों और स्टोन क्रशर संचालकों को रीसाइकि्ंलग का लाभ मिल रहा है। इससे पट्टाधारकों को निजी खनन कर्ताओं के बीच में रेत, बजरी, रोड़ी, कंक्रीट, मिट्टी की दरों को लेकर भारी अंतर था। समतलीकरण के नाम निजी भूमि धारी 7 रुपए की दर से उपखनिज दे रहे थे तो पट्टा धारकों को यह 42 रुपए में बेचने पड़ रहे थे। पट्टा धारकों की रॉयल्टी हर साल 10 प्रतिशत बढ़ाने की शर्त भी थी। तब चर्चा थी कि नेता और अधिकारी राज्य की कमाई नहीं करना चाहते थे, बल्कि खनन माफियाओं को फायदा पहुंचाकर अपनी जेब भरने में लगे थे।

 

बात अपनी-अपनी
हमारे कार्यकाल में पॉलिसी जरूर बनी थी लेकिन रॉयल्टी में ज्यादा अंतर नहीं था। रॉयल्टी का अंतर तो बाद की सरकारों में आया। अगर रॉयल्टी अंतर होता तो हमारे कार्यकाल में भी ऐसे ही धरना प्रदर्शन होते जैसे अब हुए थे। फिलहाल मुख्यमंत्री जी ने रॉयल्टी अंतराल कम करके खनन से रोजगार पा रहे लोगों को राहत दी है। लेकिन अभी भी लोग धरने पर बैठे हैं। यह वही लोग हैं जिन्होंने एक राज्य एक रॉयल्टी के लिए आंदोलन शुरू किया था। डंपर मालिक अपनी वाजिब मांग कर रहे हैं। ईंधन से लेकर हर चीज बढ़ी है। ऐसे में उनके लिए ढुलाई का किराया भी बढ़ना जरूरी है। बहुत से लोग अपनी गाड़ी की किस्तें तक नहीं भर पा रहे हैं। क्योंकि उनकी गाड़ी कई महीनों से घरों में खड़ी है। ऐसे में उनके लिए सरकार द्वारा रियायतें दी जानी चाहिए। ट्रांसपोर्ट विभाग द्वारा गाड़ियों का फिटनेस के मामले में 15 साल का दिल्ली वाला फॉर्मूला भी यहां लागू किए जाने से पहले इस पर गहनता से विचार किया जाना चाहिए था। दिल्ली में तो गाड़ी को 15 साल में इसलिए रिटायर किया जाता है कि वहां पर पॉल्यूशन बहुत ज्यादा होता है। लेकिन यहां दूसरी परिस्थितियां हैं। फिलहाल खनन के कारोबारियों को वाहन स्वामियों के लिए ढुलाई, भाड़े आदि में बढ़ोतरी करनी नियत संगत होगी।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तराखण्ड

उत्तराखण्ड में अनियंत्रित खनन से पहाड़ों की स्थिरता बुरी तरह प्रभावित हो रही है। निजी पट्टों के नाम पर कम रॉयल्टी के आधार पर अनियंत्रित खनन को बढ़ावा दिया जा रहा है। क्योंकि वहां पर न तो भारत सरकार के मानकों का पालन हो रहा है और न हीं कोई ठोस निगरानी है। जबकि वन विकास निगम की खनन साइटों पर फिर भी कमोबेश भारत सरकार की खनन मॉनिटरिंग नियमावली का अनुपालन करने की बाध्यता है। आरबीएम एक ही प्रकार की वन उपज है। लेकिन रॉयल्टी सहित अन्य चार्ज वन विकास निगम के पट्टों में अधिक और निजी पट्टों में कम होने से अनियंत्रित खनन के कारोबार को लगातार बढ़ावा मिल रहा था।
दुष्यंत मैनाली, वरिष्ठ अधिवक्ता, हाईकोर्ट नैनीताल

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