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Uttarakhand

भविष्य सुधारने की सार्थक पहल

कहते हैं कि पहाड़ का पानी और जवानी नीचे की ओर जाते हैं। लेकिन पहाड़ की बेटी बीना नेगी मिश्रा ने इसे गलत साबित कर दिखाया है। बीना ने अपने पति सुमन मिश्रा, आलोक सोनी और राहुल रावत के साथ उत्तराखण्ड के पहले लाइब्रेरी विलेज का शुभारंभ कर न केवल पलायन को चुनौती दी है, बल्कि ईको विलेज का भी आगाज कर दिया है। कहा जा रहा है कि हमारा गांव-घर फाउंडेशन के जरिए रूद्रप्रयाग जिले के दूरस्थ गांव मणिगुह में हुआ पुस्तक तीर्थ का यह प्रयोग युवाओं के लिए भविष्य की तस्वीर बनेगा

देश जब 74वां गणतंत्र दिवस मना रहा था ऐसे समय में रूद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर मणीगुह गांव में पुस्तक तीर्थ का शुभारंभ हो रहा था। अब तक अधिकतर पुस्तकालय खोले जाते रहे लेकिन यह उत्तराखण्ड में अपनी तरह का पहला ऐसा पुस्तकालय बना है जहां से शुरू हुई शिक्षा की अलख गांव-गांव नहीं बल्कि घर-घर तक पहुंचेगी। फिलहाल शुरुआत लाइब्रेरी विलेज से हो चुकी है। वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी के हाथों हुए इस पुस्तक तीर्थ के उद्घाटन के बाद पहले फेस में मोहल्ला पुस्तकालय अस्तित्व में आ गए हैं। गांव-घर फाउंडेशन के द्वारा सेंट्रल लाइब्रेरी मणीगुह गांव में खोली गई है जबकि 7 मोहल्ला पुस्तकालय जिन्हें पुस्तक मंदिर भी कहा जा रहा है, का संचालन भी शुरू कर दिया गया है। जिनमें मणीगुह के साथ ही बड़ी, स्यालडोभा, प्रताप नगर, खालियो, खमोली, मालकी आदि है। सभी मोहल्ला पुस्तकालय की जिम्मेदारी वॉलियंटर के कंधों पर रहेगी। इनमें अंकिता नेगी, उदय कुंवर, दिया नेगी, प्रिया, साक्षी, टीना राणा, निधि भट्ट, अंबिका कुंवर, मेघा, पुर्ति आदि को जिम्मेदारी दी गई है। सभी कॉलेज के छात्र हैं और प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। मोहल्ला पुस्तकालयों में सभी वर्ग का ध्यान रखते हुए किताबों का कलेक्शन किया गया है। जैसे बुजुर्गों के लिए धार्मिक किताबों से लेकर उपन्यास, कहानी साथ ही बच्चे के लिए बाल साहित्य लूडो और महिलाओं के लिए पत्रिकाओं आदि की व्यवस्था की गई है।

कविता पाठ करते युवा कवि अविनाश मिश्रा एवं अन्य

वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी ने गांव-घर महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा कि दिल्ली जैसे महानगरों में नौकरी पाकर अपनी जड़ों को भूल जाने वाले लोगों को इस पुस्तकालय के जरिए एक सकारात्मक संदेश भी दिया गया है। इस संदेश में छिपा सार यह है कि महानगरों में रहते हुए भी अपनी जन्मभूमि के लिए भविष्य की तस्वीर बनाई जा सकती है। पलायन का दंश झेलते उत्तराखण्ड के लिए गांव-घर फाउंडेशन का यह प्रयास युवा पीढ़ी के लिए निश्चित तौर पर संजीवनी बनकर सामने आएगा। मणिगुह और आस-पास के छात्रों को अब इस आधुनिक लाइब्रेरी में अध्ययन करने के लिए वह पाठन सामग्री मिलेगी जो उनकी तकदीर बदल देगी।
मणिगुह के छात्रों और युवाओं के भविष्य को संरवारने का बीड़ा उठाया है उत्तराखण्ड की बेटी बीना नेगी मिश्रा ने। बीना ने इस लाइब्रेरी की स्थापना के लिए अपनी नौकरी को भी दांव पर लगा दिया। वह दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैंनेजर के पद पर कार्यरत थीं। जहां वह अपने पति सुमन मिश्रा के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही थीं। लेकिन बीना के अंदर अपनी जन्मभूमि के लिए कुछ अलग हटकर करने का जज्बा था।
रेख्ता फाउंडेशन में कार्यरत ‘सुफीनामा’ के संपादक सुमन मिश्रा ने बीना की जन्मभूमि मणिगुह में शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने के लिए उसका हर कदम पर साथ दिया। मणिगुह गांव के शीशुपाल सिंह रावत जो अब विदेश में रहते हैं, उनके खाली पड़े घर को किराए पर लेकर शिक्षा का मंदिर स्थापित करने की योजना की शुरुआत की गई। जिसको मूर्तरूप देने में बीना और सुमन के साथ आलोक सोनी और राहुल रावत ने भी समर्पित होकर काम किया। आलोक सोनी कई जाने-माने अखबारों में फोटोग्राफर के तौर पर काम कर चुके हैं। जबकि राहुल रावत कैशियर हैं। स्थानीय निवासी महेश नेगी बटर फ्लाई एनजीओ की नौकरी को छोड़कर पुस्तकालय में सेवाएं दे रहे हैं। इन सभी के मैनेजमेंट में क्रांच पर्वत की तलहटी में शिक्षा के मंदिर का जब 26 जनवरी को शुभारंभ हुआ तो पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गई।

मणिगुह में जहां सेंट्रल पुस्तकालय की स्थापना हुई है उसके ठीक सामने उत्तर में हिमालय पर्वत की चांदी की तरह चमकती चोटियों का विंहगम दृश्य मनमोह लेता है। यहां के चौखंबा, मंदानी, जान्हूकुट, संतोयत, ऊखीमठ और केदारघाटी के साथ ही नंदा देवी पर्वत शृंखलाओं की मनोहर छटा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। यहां पूरब में क्रांच पर्वत की चोटी पर बना उत्तर भारत का अकेला कार्तिक स्वामी का मंदिर है तो उत्तर पश्चिम में (चांदनिया चंद्रेश्वर महादेव) विराजमान हैं। पहाड़ों पर शिक्षा का अध्ययन केंद्र बनने को लेकर लोग कितने उत्साहित हैं इसे इससे समझा जा सकता है कि पुस्तकालय का शुभारंभ होने से पहले ही 8000 किताबें दिल्ली और उत्तराखण्ड से बड़े लेखकों के द्वारा दान की गई है। ये पुस्तकें सेंट्रल पुस्तकालय के दो बड़े हॉल में लगाई गई हैं। तीसरे हॉल में कम्प्यूटर लगे हैं। यहां स्मार्ट क्लास भी चलाई जाएंगी।
पुस्तकालय में बच्चों से लेकर युवाओं, महिलाओं, बुजुर्गों सभी के लिए अध्ययन सामग्री की व्यवस्था की गई है।

सेंट्रल पुस्तकालय

पुस्तकालय में 1890 से 1920 के बीच छपा शशिभूषण द्विवेदी का निजी संग्रह है तो ‘अपने-अपने राम’ के लेखक भगवान सिंह की पुस्तकें हैं तो ‘बनासजन’ पत्रिका के संपादक पल्लव का कलेक्शन है। 18वीं शदी में दीवान मीर की हाथ से लिखी किताबें हैं तो ललित मोहन थपलियान का नाटक संग्रह है। उर्दू में हनुमान चालीसा, मुंशी नवल किशोर द्वारा प्रकाशित किताबों के साथ ही ‘श्रीमद्बराह पुराण’ के अलावा ‘रामा स्वमेध’, ‘अमृत सागर’ आदि मौजूद हैं। कबीर दास के साथ ही तुलसीदास, महादेवी वर्मा, गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ का अनमोल खजाना भी लाइब्रेरी में मौजूद है।

हमारा गांव-घर फाउंडेशन की संस्थापक बीना नेगी मिश्रा के अनुसार पुस्तक तीर्थ का पहला पड़ाव लाइब्रेरी विलेज पूरा हो चुका है। इस पुस्तक तीर्थ के अंदर जहां अध्ययन है तो वहीं अध्यात्म भी है। इस अध्यात्म के तहत उत्तर भारत में एकमात्र कार्तिक स्वामी का मंदिर हैं जहां अभी तक सिर्फ स्थानीय लोग ही पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं। लेकिन यहां की सुरम्य वादियों से पैदल ट्रैक कराकर पर्यटकों को वहां तक पहुंचाना उनका अगला लक्ष्य है। चांदनिया जिसे चंद्रेश्वर महादेव भी कहा जाता है, के अलावा पोखरी, कुवारिका मंदिर और भुतेरनाथ के आध्यात्मिक स्थालों पर पर्यटक जब पहुंचेंगे तो निश्चित तौर पर स्थानीय पर्यटक को बढ़ावा मिलेगा।

 


वॉलिंटियर को सम्मानित करते सुमन और बीना

पर्यटक यहां अध्ययन और अध्यात्म के लिए आएंगे तो उन्हें स्थानीय ग्रामीणों के रोजगार से जोड़ने के लिए ‘होम स्टे’ की भी शुरुआत की जाएगी। जिसका ट्रेलर गांव-घर महोत्सव में पहुंचे करीब 30 लोगों को होम स्टे कराकर किया जा चुका है। जो लोग होम स्टे के इच्छुक हैं वे खुद सामने आए हैं। उन्होंनें गांव-घर महोत्सव में आए आगंतुकों को अपने चूल्हे पर बनी मंडवे की रोटी, झंगुरे की खीर, भट्ट की चुड़कानी, भंगजीरा की चटनी और पालक का साग आदि खिलाकर पहाड़ी व्यंजनों से परिचित कराया।

पुस्तक तीर्थ के अगले चरण में स्थानीय किसानों को बढ़ावा दिया जाएगा। जिसमें उनके लोकल उत्पाद को पैदा कराने के साथ ही महानगरों में ऊंची कीमत पर ले जाकर बिक्री कराई जाएगी। इससे चौपट होती खेती को तो बढ़ावा मिलेगा ही साथ ही स्थानीय लोग अपने आय के साधन विकसित कर सकेंगे। जिससे रोजगार के लिए उन्हें शहरों की ओर पलायन नहीं करना पड़ेगा। देहरादून स्थित सचिवालय में अनुभाग अधिकारी और गांव मणीगुह के निवासी भगवान सिंह नेगी ने कहा कि गांव घर फाउंडेशन के द्वारा जो शैक्षिक शुरुआत की गई है वह मणीगुह और आस-पास के ग्रामीणों, युवाओं, छात्रों, महिलाओं के लिए मार्ग दर्शक बनकर उनकी दिशा तय करेगा। रेख्ता फाउंडेशन में ‘सूफीनामा’ के संपादक और गांव-घर पुस्तकालय के प्लानर सुमन मिश्रा के अनुसार मणीगुह में प्रत्येक साल बसंत पंचमी के अवसर पर पुस्तक मेले का आयोजन किया जाएगा। जिसमें सुप्रसिद्ध कथाकार, साहित्यकार और रचनाकार के अलावा कवि और लेखकों को आमंत्रित किया जाएगा।

साहित्य-संस्कृति का संगम बना गांव-घर महोत्सव
गोविंद सिंह नेगी और धर्मवीर सिंह नेगी के संचालन में शुरू हुए गांव-घर महोत्सव में कई स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने सांस्कृतिक और संगीत प्रोग्राम किए। नाटय कलाकारों ने ललित मोहन थपलियान के नाटक ‘खाड लापता’ का संजीव चित्रण किया। कवि सम्मेलन में युवा कवि अविनाश मिश्रा, सुभाष तराण और गढ़वाली कवि सुभाष भट्ट ने अपनी कविताओं के जरिए समाज में पुस्तकों और पढ़ाई का महत्व बताया। परिचर्चा में जामिया मिलिया इस्लामिया की प्रोफेसर हरप्रीत कौर, साहित्यकार और कवयित्री कस्तूरिका मिश्रा, और आभा थपिलयाल ने पठन-पाठन की संस्कृति और समसामयिक मुद्दों पर विचार प्रकट किए। प्रसिद्ध रंगकर्मी एवं शैलनट के संस्थापक श्रीष डोभाल ने नाटक विधा पर अपना अनुभव साझा किया। कार्यक्रम में संतोष रावत द्वारा निर्देशित फिल्म ‘पाताल ती’ को पहली बार उत्तराखण्ड के किसी दूरस्थ गांव में प्राइवेट स्क्रीनिंग पर दिखाया गया। यह फिल्म 39वें बुसान अंतरराष्ट्रीय शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में पहली बार उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर बनी ऐसी फिल्म चुनी गई थी जिसे विश्व के 111 देशों की 2548 फिल्मों में से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान मिला है।

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