[gtranslate]

अजय भट्ट संघर्षों के थपेड़ों से बने राजनेता हैं। ऐसे नेता के पास अनुभवों की कमी नहीं होती। जनता को उनसे आशाएं हैं कि वे केंद्रीय मंत्री के तौर पर देश के साथ ही अपने प्रदेश के लिए भी बेहतर काम कर पाएंगे। हालांकि सांसद बनने के बाद उनके द्वारा गोद लिए गांव जगलिया के निवासियों में वायदों के पूरा नहीं होने के चलते पनप रहा रोष भट्ट की कार्यशैली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह बन उभरने लगा है

राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर आसान नहीं होता। खासकर उन लोगों के लिए तो यह सफर और भी चुनौतीपूर्ण साबित होता है जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से मजबूत न हो। शून्य से शिखर तक पहुंचने का ऐसा ही राजनीतिक सफर अजय भट्ट का भी है। नैनीताल- ऊधमसिंहनगर के सांसद अजय भट्ट को मोदी मंत्रिमंडल में रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री के रूप में जगह मिली है। पहली बार के सांसद अजय भट्ट ने उत्तराखण्ड में हवा में तैर रहे कई नामों को पछाड़कर मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाई है। अजय भट्ट के केंद्र में मंत्री बनने से लंबे अंतराल के बाद नैनीताल संसदीय क्षेत्र से किसी सांसद को केंद्र में मंत्री बनने का मौका मिला है।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपने राजनीतिक जीवन की पारी शुरू करने वाले अजय भट्ट सक्रिय रूप से 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से राजनीति में जुड़ गए थे। 1985 में वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष और युवा मोर्चे की प्रांतीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। अजय भट्ट बताते हैं कि पिता स्व ़ कमलापति भट्ट के असमय निधन के चलते उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। किराए की दुकान लेकर सब्जी बेची, मजदूरी भी की, गैंती, बेल्चा जैसे उपकरण उनके संघर्ष के साथी रहे। इतनी मुफलिसी में अपनी शिक्षा प्राप्त की। कुमाऊं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा कैम्पस से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की और फिर रानीखेत में वकालत शुरू की। अल्मोड़ा में ही उनके साथ एलएलबी की सहपाठी रहीं पुष्पा भट्ट से उनका विवाह हुआ जो वर्तमान में नैनीताल उच्च न्यायालय में अपर महाधिवक्ता हैं। नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्वकाल में पुष्पा भट्ट परिवारिक न्यायालय में जज के तौर पर कार्यरत थीं।

अजय भट्ट का राजनीतिक जीवन उस वक्त शुरू हुआ जब भारतीय जनता पार्टी अपने शैशवकाल में थी। उस वक्त भारतीय जनता पार्टी के लिए कार्यकर्ता जुटाना मुश्किल होता था। चुनावों में जमानतें जब्त कराते भाजपा के प्रत्याशी उस वक्त सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को चुनाव लड़ते थे। 1991 के पश्चात भाजपा का उत्थान कई राजनीतिक चेहरों को भाजपा की राजनीति में स्थापित कर गया। उनमें अजय भट्ट भी एक थे। वाजपेयी सरकार में राज्यमंत्री रहे स्व ़ बची सिंह रावत के विधायक रहते अजय भट्ट भाजपा संगठन में ही स्थान पाते रहे, लेकिन बची सिंह रावत के लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनने पर 1996 में अजय भट्ट को रानीखेत विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनने का मौका मिला और विधायक बने। 2000 में उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद बनी अंतरिम सरकार में वे कैबिनेट मंत्री बने तथा स्वास्थ्य, आबकारी, आपदा प्रबंधन मंत्रालयों का  कार्यभार संभाला। आपदा प्रबंधन विभाग को अजय भट्ट ने ही व्यवस्थित रूप दिया। 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में रानीखेत से अजय भट्ट विधायक चुने गये, लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के करन माहरा से पराजित होना पड़ा। 2012 का विधानसभा चुनाव अजय भट्ट ने करन माहरा को पराजित कर जीता। 2012 में विधायक चुने जाने के पश्चात् 2012 उनके राजनीतिक जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ जिसमें अजय भट्ट ने क्षेत्रीय संकोचों से बाहर निकल राज्य की राजनीति में स्वयं को स्थापित किया।

विधानसभा में नेता विपक्ष और फिर उत्तराखण्ड प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष के रूप में उनका कांग्रेसनीत सरकार के विरुद्ध कड़ा संघर्ष उन्हें एक नई पहचान दे गया। हालांकि उनकी इन जिम्मेदारियों के चलते उनका अपने विधानसभा क्षेत्र से संपर्क कम हो गया जिसका खामियाजा उन्हें 2017 के विधानसभा चुनाव की पराजय के रूप में झेलना पड़ा जबकि उनके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया था। भाजपा नेतृत्व ने उन पर विश्वास जताए रखते हुए उन्हें फिर से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व सौंपा। शायद कभी कोई हार आपकी किसी नई जीत के दरवाजे खोल देती है ऐसा ही अजय भट्ट के साथ हुआ। तत्कालीन सांसद भगत सिंह कोश्यारी द्वारा 2019 लोकसभा चुनाव न लड़ने की घोषणा के चलते भाजपा ने फिर से अजय भट्ट पर अपना विश्वास जता उन्हें लोकसभा का उम्मीदवार नैनीताल ऊधमसिंहनगर संसदीय क्षेत्र से बनाया। नैनीताल संसदीय क्षेत्र से नये चेहरे अजय भट्ट का मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार कद्दावर नेता हरीश रावत से था यहां पर अजय भट्ट हरीश रावत को भारी मतों से हरा सांसद चुने गए।

उत्तराखण्ड की राजनीति में अजय भट्ट को हालांकि भगत सिंह कोश्यारी लॉबी का माना जाता है। स्वयं अजय भट्ट भी भगत सिंह कोश्यारी को अपना राजनीतिक गुरू मानते हैं जबकि उनके राजनीतिक संघर्षों के साथी स्व ़ बची सिंह रावत थे। मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने के पश्चात अजय भट्ट का राजनीतिक कद निश्चित रूप से बढ़ा है। रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की केंद्रीय मंत्रिमंडल से छुट्टी और त्रिवेंद्र-तीरथ के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चा के बीच अजय भट्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विश्वास जताना निश्चित ही अजय भट्ट के बढ़ते प्रभाव को दिखाता है। अजय भट्ट का मानना है पार्टी ने जो उन्हें दिया उसे सहर्ष स्वीकारा है। वो अपनी सेवाएं पार्टी जहां चाहे वहां देने को हमेशा तैयार रहे। वो अपनी भूमिका स्वयं तैयार नहीं करते पार्टी करती है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि पहले पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री और फिर अजय भट्ट को केंद्र में मंत्री बनाना कुमाऊं में हरीश रावत की चुनौती को निष्प्रभावी करने की रणनीति है। मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री दोनों कुमाऊं से होने पर कुमाऊं- गढ़वाल का क्षेत्रीय संतुलन जरूर गड़बड़ा गया है। लेकिन जातिगत समीकरणों को भाजपा ने जरूर साधा है।

शायद अजय भट्ट की चुनौती यहीं से फिर शुरू होती है। केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में रक्षा व पर्यटन का प्रभार उत्तराखण्ड के लिहाज से दोनों मंत्रालय महत्वपूर्ण हैं। अगर इच्छाशक्ति हो तो और मोदी मंत्रिमंडल के महज शोपीस न रहें तो उत्तराखण्ड के लिए बड़ा करने का अवसर अजय भट्ट के पास है। हालांकि केंद्र में मंत्री होने के नाते उनका दायित्व पूरे भारत के लिए है। भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार उत्तराखण्ड में राजनीतिक प्रयोग किए हैं उसे देखकर लगता है कि भाजपा ने पुराने नेताओं को दरकिनार कर नये नेतृत्व को उभारना शुरू कर दिया है जिसमें पुष्कर धामी और अजय भट्ट को आगे कर पार्टी ने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। संभव है भविष्य में अजय भट्ट किसी और बड़ी भूमिका में नजर आएं।

विवादों से भी रहा है नाता

अजय भट्ट अपने बयानों को लेकर अकसर विवादों में घिर जाते हैं। अगस्त, 2016 में भट्ट ने पहाड़ी क्षेत्र के ब्राह्मणों को लेकर खासी विवादास्पद बयानबाजी कर डाली थी। बकौल भट्ट पहाड़ के ब्राह्मण बगैर मदिरापानी किए मंत्रोच्चार नहीं कर पाते हैं। उनके इस बयान से प्रदेश की राजनीति में भारी हड़कंप मच गया था। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड में ब्राह्मण-ठाकुर हमेशा से ही बड़ा वोट बैंक होने के चलते राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। राज्य में 50 प्रतिशत ठाकुर तो 30 प्रतिशत के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं। ऐसे में भट्ट के बयान पर कांग्रेस ने भारी हो-हल्ला मचाया था। मई 2019 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी पर भट्ट ने आपत्तिजनक टिप्पणी कर डाली थी। राफेल विमान सौदे पर मोदी सरकार पर राहुल गांधी द्वारा भारी भ्रष्टाचार के आरोपों को नकारते हुए तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भट्ट ने राहुल को ‘मानसिक रूप से विकलांग’ कह डाला था। जून, 2019 में भट्ट ने तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी पर टिप्पणी करते हुए उनकी तुलना गुस्साए सांड से कर दी थी। अक्टूबर, 2019 में भट्ट के एक विवादित बयान ने उनकी लोकसभा सीट नैनीताल के तराई क्षेत्र में रह रहे बंगाली समाज को खासा आक्रोशित कर डाला। नागरिकता कानून का विरोध कर रहे बंगाली समाज को सांसद भट्ट ने भगोड़ा कह क्षेत्र में तनाव पैदा कर डाला।

जुलाई, 2019 में भट्ट तब देशभर में चर्चा का विषय बन गए जब लोकसभा में होम्योपैथी केंद्रीय परिषद् संशोधन बिल पर बोलते हुए उन्होंने उत्तराखण्ड से निकलने वाली गरुड़-गंगा नदी के पानी में चमत्कारिक शक्तियों के होने की बात कह डाली। बकौल भट्ट इस नदी की तलहटी में मिलने वाले लाल रंग के पत्थर को यदि पानी में कुछ देर डालकर उस पानी को गर्भवती महिला को पिलाया जाए तो उसकी डिलिवरी सामान्य प्रक्रिया से हो जाती है और डिलिवरी के लिए ऑपरेशन की जरूरत नहीं रहत। इतना ही नहीं भट्ट ने यह भी दावा संसद में कर डाला कि इस पत्थर को घर में रखने पर सांप इत्यादि का खतरा नहीं रहती। भट्ट के इस बयान पर उनकी खासी आलोचना तब राष्ट्रीय स्तर पर हुई थी। रानीखेत का विधायक रहते भट्ट पर क्षेत्र की उपेक्षा के आरोप भी लगातार लगते रहते हैं।

गत् विधानसभा चुनावों में उनकी हार का एक बड़ा कारण क्षेत्रवासियों की नाराजगी होना रहा। नैनीताल संसदीय सीट से ऐतिहासिक जीत दर्ज कराने वाले भट्ट से उनके वोटरों की नाराजगी की खबरें अभी से आने लगी हैं। 2019 में सांसद बनने के बाद भट्ट ने नैनीताल जिले के एक-एक गांव जंगलिया को गोद लेने की घोषणा कर वहां विकास कार्यों के वायदों की झड़ी लगा दी थी। उन्होंने ग्रामीणों से तब गांव में सड़क, पानी, शिक्षा, बिजली, कृषि और इंटरनेट इत्यादि सुविधाओं का वायदा किया था। दो वर्ष बीत जाने के बाद भी यह गांव जस का तस है। सांसद से नाराज ग्रामीणों ने मई माह में गांव को मुख्य संपर्क मार्ग से जोड़ने के लिए खुद ही सड़क बनानी शुरू कर दी है। गौरतलब है कि 1984 से ग्रामीण इस सड़क की मांग करते आ रहे हैं। सोलह सौ की बड़ी आबादी वाले इस गांव में अब श्रमदान के जरिए रोड निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD