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मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत ने खुलेआम राजकीय कर्मचारी सेवा आचरण नियमावली का उल्लंघन कर देहरादून में जमीन खरीद ली। वे वर्षों से नियम विरुद्ध देहरादून में सेवाएं दे रही हैं। लेकिन शिक्षा विभाग में उनसे पूछने की हिम्मत नहीं है। वित्त मंत्री प्रकाश पंत और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी सहित पक्ष-विपक्ष के तमाम नेताओं की ऐसी लंबी फेहरिस्त है जिनके परिजन नियम विरुद्ध सुगम क्षेत्रों में सेवा कर रहे हैं। समरथ को नाहिं दोष गुसाईं की कहावत इतनी चरितार्थ हो रही है कि कोई उन्हें पूछने वाला नहीं। दूसरी तरफ उत्तरा पंत बहुगुणा जैसी कोई शिक्षिका 25 वर्षों तक दुर्गम में सेवा करने के बावजूद सुगम में तैनाती की जायज मांग करती है तो उसे विभागीय आचरण नियमावली का दोषी मानकर तत्काल निलंबित कर दिया जाता है। मुख्यमंत्री के तुगलकी फरमान से शिक्षिका के खिलाफ हुई इस कार्रवाई पर जनता में भारी आक्रोश है और राजनीति गर्मा गई है
राज्य में सरकारी कर्मचारियों से जबर्दस्त भेदभाव होता रहा है। एक तरफ तो वे कर्मचारी हैं जो बड़े मजे से सुगम इलाकों में सेवाएं दे रहे हैं। दूसरी तरफ वे हैं जिनका पूरा जीवन दुर्गम इलाकां में सेवाएं देते बीत जाता है। इस फर्क की सिर्फ एक वजह है राजनीतिक सिफारिशें औेर रसूख का जलवा। जिसके पास जिनती बड़ी सिफरिश और रसूख, उसका उतना बड़ा जलवा। जिसके पास यह दोनां नहीं हैं तो उसका कोई पूछने वाला भी नहीं है। उत्तरकाशी जिले में तैनात एक शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा भी दूसरी तरह की राजकीय कर्मचारी हैं। जिनके पास न तो कोई राजनीतिक सिफारिश है और न ही सत्ता का रसूख। यही वजह है कि उनकी तकरीबन पूरी नौकरी दुर्गम इलाकों में सेवा करते ही बीत गई। रिटायर होने के मुहाने पर भी उनका तबादला नहीं हो पाने के कारण उनके भीतर का गुबार मुख्यमंत्री के सामने निकल आया। दुर्भाग्य से मुख्यमंत्री ने भी उनकी संवेदनाओं को समझने के बजाय बुरी तरह से अपमानित कर दिया। साथ ही मौखिक तौर पर उनको निलंबित करने और पुलिस हिरासत में लिए जाने के आदेश भी जारी कर दिए।

उत्तरकाशी जिले के नौगांव विकासखंड के अंतर्गत जेष्टवाड़ी गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत सहायक अध्यापिका उत्तरा पंत बहुगुणा की 25 वर्ष की सरकारी नौकरी दुर्गम इलाकों में ही बीत गई। उनके पति देहरादून के मानसिंहवाला में अपने दोनों पुत्रों की देखभाल करते रहे। लेकिन वर्ष 2015 में उनका देहांत होने के बाद उत्तरा बहुगुणा ने अपना स्थांनातरण देहरादून में किए जाने के लिए विभागीय स्तर से लेकर मुख्यमंत्री तक अर्जी लगाकर गुहार की। लेकिन कहीं से भी उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। हालांकि इस बीच राजनीतिक सिफारिशों और सत्ता से नजदीकियां रखने वाले शिक्षकों का जमकर तबादला ओैर एटैचमेंट होता रहा।

उत्तरा बहुगुणा इस उम्मीद के साथ मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जनता दरबार में पहुंची कि मुख्यमंत्री उनकी परेशानी समझ सकेंगे। लेकिन मुख्यमंत्री ने बड़ी संवेदनहीनता दिखाते हुए उत्तरा को ही नसीहत का पाठ पढ़ाते हुए पूछा कि नौकरी पाते हुए क्या लिखकर दिया था। इस पर उत्तरा बहुगुणा बोली कि मैंने यह तो नहीं लिखकर दिया था कि पूरी जिंदगी बनवास भोगूंगी। इस पर मुख्यमंत्री तैश में आ गए और उन्होंने उत्तरा बहुगुणा के निलंबन और उन्हें पुलिस हिरासत में लेने के मौखिक आदेश जारी कर दिए। त्वरित कार्यवाही करते हुए पुलिस ने शांति भंग करने के जुर्म में चालान काट दिया। शिक्षा विभाग ने भी तत्काल कार्यवाही की ओर हुए उत्तरा बहुगुणा को सरकारी कर्मचारी सेवा आचरण नियमावली का दोषी मानकर निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया।
अब बात दूसरे पक्ष की करें तो मामला साफ है। कमजोर पर ही सबका जोर दिखाई दे रहा है। आज सरकारी विभागों में हजारां ऐसे कर्मचारी हैं जिनकी पूरी सेवा सुगम और मैदानी इलाकों में गुजर चुकी है। यहां तक कि शासन और प्रशासन में बैठे हुए उच्चाधिकारियों में तो कई ऐसे हैं जिन्होंने कभी पहाड़ों का मुंह भी नहीं देखा। वे सचिवालाय के अलावा देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर जिलों में ही तैनाती पाते रहे हैं। उन्होंने कभी दुर्गम में अपना स्थांनातरण नहीं होने दिया।
इस पूरे प्रकरण में यह बात भी सामने आई आ रही है कि स्थानांतरण कानून के प्रावधानों के अनुसार जिले से बाहर किसी भी सूरत में स्थानांतरण नहीं किया जा सकता। लेकिन सवा साल की भाजपा सरकार के गठन के बाद से लेकर आज तक चहेतों और राजनीतिक रसूखदारों के लिए नियम-कानूनों को ताक पर रखा गया है और कई अध्यापकों का जिलों तो क्या मंडलों से बाहर तक स्थानांतरण और एटैचमेंट किया जाता रहा है।
शिक्षा विभाग रसूखदारों और राजनीतिक सिफारिशों पर किस तरह से काम करता है, इसकी बानगी इस बात से समझी जा सकती है कि स्थानांतारण कानून लागू होने के बाद भी मनमर्जी से चहेतों का स्थानांतरण किया जा रहा है। शिक्षा विभाग द्वारा पांच शिक्षकों को देहरादून स्थित एससीईआरटी और डायट में तैनाती दी गई है, जबकि इनमें से सभी शिक्षक टिहरी पौड़ी और रुद्रप्रयाग जिले में तैनात थे। लेकिन इनके लिए जिले से बाहर स्थांनतारण नहीं होने का नियम लागू नहीं हुआ। हैरानी इस बात की है कि 24 मई को शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे द्वारा विभागीय समीक्षा के दौरान एक साथ पांच शिक्षकों को एससीईआरटी और डायट में तौनाती दिए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई गई और इन सभी के स्थानांतरण रद्द किए जाने के आदेश जारी किए।
विभागीय अधिकारी किस तरह से अपने ही विभाग के मंत्री के आदेशां की अवहेलना करते हैं वह इस बात से साफ हो जाता है कि मंत्री के आदेश के बावजूद किसी भी शिक्षक का स्थानांतरण रद्द नहीं किया गया, उल्टे एक और शिक्षक को भी अंतर जनपद से तबादला करके डायट में तैनाती दे दी गई। सुगम और दुर्गम के नाम पर चांदी काटने वाले रसूखदारों की बात करें तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की धर्म पत्नी सुनीता रावत इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार सुनीता रावत की सहायक अध्यापिका के तौर पर नियुक्ति सुगम में ही हुई और तब से लेकर आज तक वे 22 वर्षों से देहरादून जैसे सुगम क्षेत्र में नौकरी कर रही हैं। विभाग से मिली जानकारी की बात करें तो सुनीता रावत धर्मपत्नी त्रिवेंद्र रावत की नियुक्ति 24 मार्च 1992 को श्रीगनर स्वीत गांव के कफल्टी प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। यह स्वीत गांव श्रीनगर से महज छह किमी दूर है। वर्तमान में यहां बदरीनाथ हाइवे से सटकर राजकीय मेडिकल कॉलेज स्थापित हो चुका है। यह पूर्ण तह सुगम क्षेत्र है। पहली नियुक्ति के महज 4 माह में ही 16 जुलाई 1992 को सुनीता रावत का स्थानांतरण पौड़ी जिले के ही मैंदोली प्राथमिक विद्यालय में हो गया। यानी स्थानांतरण भी सुगम में ही हुआ। इसके बाद महज 4 वर्ष में ही 27 अगस्त 1996 को सुनीता रावत धर्मपत्नी त्रिवेंद्र रावत का स्थंनातरण पोड़ी जिले से सीधे देहरादून के अजबपुरकलां प्राथमिक विद्यालय में हो गया। यह ट्रांसफर सीधे-सीधे अंतर जनपद में हुआ। बताने की जरूरत नहीं है कि देहरादून तो राज्य का सबसे सुगम क्षेत्र है जहां हर सरकारी कर्मचारी और नौकरशाह स्थानांतरण पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं।
हैरानी की बात यह है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की धर्मपत्नी सुनीता रावत का विभागीय प्रमोशन 24 मई 2008 को हुआ, लेकिन स्थानांतरण पॉलिसी के अनुसार उनका स्थानांतरण नहीं किया गया, क्योंकि तब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भाजपा की खण्डूड़ी सरकार में कैबिनेट मंत्री के पद पर तैनात थे और किसी भी विभाग के मुखिया या शिक्षा मंत्री की इतनी ताकत नहीं थी कि वे एक कैबिनेट मंत्री की पत्नी का स्थांनातरण करने का साहस दिखा पाते, जबकि स्थानांतरण पॉलिसी में प्रमोशन पाने वाले कर्मचारी का स्थानांतरण होना अति आवश्यक था।
उत्तरा बहुगुणा के निलंबन में नियमों को ताक पर रखकर एकतरफा कार्रवाई की गई है, उत्तरकाशी के प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी केएस चौहान ने उत्तरा पंत बहुगुणा पर बगैर विभागीय अनुमति के मुख्यमंत्री जनता दरबार में प्रतिभाग करने और राजकीय कर्मचारी सेवा आचरण नियमावली के उल्लंघन का जो आरोप लगाया है। जानकारों के अनुसार उसमें दम नहीं है। शिक्षा अधिकारी ने 28 जून को निलंबन का आदेश जब जारी किया तो पूरे राज्य के विद्यालयों में सालाना एक माह का अवकाश चल रहा है। किसी भी राज्य कर्मचारी या अर्द्ध राजकीय कर्मचारी का निलंबन करने से पूर्व उसको नोटिस जारी करके उसका पक्ष लिया जाता है। इसके लिए जांच की जाती है। अगर जांच में मामला सही पाया जाता है तभी कर्मचारी का निलंबन किया जाता है। उत्तरा पंत बहुगुणा के खिलाफ तुगलकी फरमान की तर्ज पर त्वरित कार्रवाई हो गई, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की धर्मपत्नी सुनीता रावत द्वारा कई बार राजकीय कर्मचारी सेवा आचरण नियमावली का उल्लंघन किए जाने के बावजूद विभाग ने उन्हें कोई नोटिस तक जारी नहीं किया।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की धर्मपत्नी सुनीता रावत ने वर्ष 2010 से लेकर 2012 तक देहरादून में करोड़ों के भूखंड खरीदे हैं जिनकी सूचना उन्होंने अपने विभाग को नहीं दी। जबकि किसी भी कर्मचारी को राजकीय कर्मचारी सेवा आचरण नियमावली के अनुसार जमीन-जायदाद खरीदने-बेचने और यहां तक कि ऋण लेने तक की सूचना अपने विभाग को देनी अतिआवश्यक है। कुछ दिन पहले ‘दि संडे पोस्ट’ ने इस खबर को ‘घर में ही घिरी जीरो टॉलरेंस की नीति’ शीर्षक के साथ विस्तार से प्रकाशित किया था। जिसमें खुलासा किया गया था कि मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी सुनीता रावत ने आय से अधिक संपति जोड़ने का काम किया है और राजकीय कर्मचारी सेवा आचरण नियमावली का भी उल्लंघन किया है।
ऐसा नहीं है कि केवल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की ही धर्मपत्नी वर्षों से देहरादून में तैनात हैं। और भी ऐसे कई राजनेता एवं रसूखदार हैं जो सत्ता प्रतिष्ठानों से जुड़े होने के कारण उनके परिजनों का भी देहरादून या मनपसंद सुगम स्थलों पर नियमों को ताक पर रखकर स्थानांतरण किया गया है। राज्य की लगभग हर सरकार में जमकर अपने चहेतों और खास लोगों के लिए सभी नियमों को बदला गया है। जो सीधा स्थानांतरित नहीं हो पाए उन्हें एटैचमेंट के सहारे देहरादून में लाया गया है। जिनमें राज्य के वित्त मंत्री प्रकाश पंत की धर्मपत्नी चंद्रा पंत प्रमुख हैं। उन्हें 2008 में एससीईआरटी देहरादून में एटैचमेंट के सहारे स्थानांतरित किया गया। 2015 में उनका तबादला देहरादून के राजपुर रोड स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में कर दिया गया। इस तरह वे तकरीबन 10 वर्ष से देहरादून में तैनाती का सुख ले रही हैं। टिहरी के भाजपा विधायक धन सिंह नेगी की धर्मपत्नी भी 2009 से वर्तमान में देहरादून के राजपुर रोड के राजकीय इंटर कॉलेज में तैनात हैं।
कुछ कांग्रेसी नेताओं और विधायकों के परिजन भी देहरादून और सुगम क्षेत्रों में मौज काट रहे हैं। प्रताप नगर के पूर्व कांग्रेसी विधायक विक्रम सिंह नेगी की पत्नी सुशीला नेगी 2014 से टिहरी जिले से स्थानांतरित होकर देहरादून में कार्यरत हैं। भाजपा के पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री और वर्तमान में प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला की पत्नी भाजपा सरकार बनने के कुछ ही माह में देहरादून स्थित शिक्षा निदेशालय में आसानी से स्थानांतरित होकर सुगम में पहुंच गई हैं। राज्य की पहली अंतरिम भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत की पत्नी भी देहरादून में कई वर्षों से कार्यरत हैं।
अगर सांसदों की बात करें तो शायद उत्तराखण्ड राज्य के 18 वर्षों के इतिहास में पहली बार किसी शिक्षिका को प्रदेश से बाहर एटैचमेंट के नाम पर तैनात किया गया है और यह रिकॉर्ड भाजपा के राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी की पत्नी के नाम दर्ज किया है। भाजपा सरकार बनते ही अनिल बलूनी अपनी पत्नी को देश की राजधानी नई दिल्ली में एटैचमेंट करवा गए। जिस महिला की नियुक्ति प्रदेश के विद्यार्थियों का भविष्य सवारने के लिए हुई थी अब वे राजनीतिक रसूख के चलते अपना और अपने परिवार का भविष्य संवारने के लिए देश की राजधानी में तैनात हैं। उन्हें नियम विरुद्ध स्थानिक आयुक्त बनाए जाने की चर्चाएं भी मीडिया में खूब रहीं। बताया जाता है कि भारी विरोध के बाद बलूनी अपनी पत्नी को स्थानिक आयुक्त नहीं बना सके।
 यह मामले तो शिक्षा विभाग के हैं अगर राज्य के सभी विभागों की बात करें तो हर विभाग में इस तरह से जुगाड़ स्थानांतरण और एटैचमेंट निरंतर होते रहे हैं। स्थानांतरण कानून के लागू होने के बावजूद सरकार द्वारा दस फीसदी स्थानांतरण की छूट देने से यह मामले और भी तेजी से सामने आ रहे हैं। आबकारी विभाग में तो स्थानांतरण एक्ट की जगह पॉलिसी बनाए जाने की बात स्वयं आबकारी मंत्री प्रकाश पंत कर चुके हैं। सूत्रों की मानें तो आबकारी विभाग में कई ऐसे चेहरे हैं जो वर्षों से एक ही जगह डटे हुए हैं। स्थानांतरण एक्ट के चलते उनका स्थानांतरण न हो पाए इसके लिए नीति बनाए जाने की बात की जा रही है। पुलिस विभाग हो या परिवहन विभाग या फिर लोक निर्माण विभाग या सिंचाई विभाग तकरीबन हर विभाग में इसी तरह से जुगाड़ करके सुगम में तैनाती पाने का काम हो रहा है। लेकिन सरकार स्थानांतण कानून बनाकर भी लाचार होने का ढांग कर रही है।
उत्तरा पंत बहुगुणा मामले में राजनीति भी जम कर हो रही है। कांग्रेस प्रदेश सरकार और खासतौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ आंदोलन कर रही है। वह इस मामले को महिला विरोधी बताकर सरकार को कोस रही है। दूसरी ओर भाजपा इसे एक सरकारी कर्मचारी की अनुशासनहीनता का मामला मानकर अपना बचाव कर रही है। लेकिन इन सबके बीच यह भी साफ हो गया है कि उत्तरा बहुगुणा विगत तीन वर्षों से अपने विद्यालय से गैर हाजिर ही चल रही हैं।  2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय उत्तरा बहुगुणा को गैर हाजिर होने पर सेवा समाप्ति का नोटिस तक जारी हो चुका है। इससे यह साबित हो चुका है कि कांग्रेस इस मामले को भाजपा से जोड़कर देख रही है, जबकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय में उत्तरा बहुगुणा का स्थानांतरण नहीं हो पाया था।
अब भाजपा-कांग्रेस के बीच यह मामला फंसता हुआ दिखाई दे रहा है। राजनीति के बीच उत्तरा बहुगुणा और उनके जैसे हजारों कर्मचारियों जिनकी तकरीबन पूरी नौकरी दुर्गम में सेवा देते कटी है, उनका स्थानांतरण सुगम में नहीं हो पा रहा है। उनके हित पर सरकार और शिक्षा विभाग क्या निर्णय लेता है, क्या राज्य में सही मायनों में स्थानांतरण कानून का पालन किया जाएगा या नहीं, यह आने वाला समय बताएगा। बहरहाल मुख्यमंत्री ने अपने पद की गरिमा के विपरीत आचरण कर प्रदेश की राजनीति गर्मा दी है।
‘मैं कोई आंतकवादी नहीं हूं’
मैं कोई गुंडा या आतंकवादी हूं जो मुख्यमंत्री मुझे पुलिस से गिरफ्तार करने का आदेश दे रहे थे। मैं तो अपनी समस्यास को लेकर उनके पास जनता दरबार में गई थी। मेरे साथ कई वर्षों से अन्याय हो रहा है। पहले तो मेरा समायोजन जानबूझ कर अधिकारियों के द्वारा गलत किया गया। मेरे मूल स्कूल की जगह मुझे दूसरे स्क्ूल में भेज दिया गया। फिर मुझ पर तमाम तरह के आरोप लगाए गए। मेरे कई वर्ष से एलपीआई तक नहीं दी गई जिससे मेरा वेतन मुझे नहीं मिल पाया। हरीश रावत जी की सरकार में मुझे एलपीआई मिली, लेकिन वेतन नहीं मिला। मुख्यमंत्री जी मेरी समस्या को सुनना ही नहीं चाहते थे। कम से कम वे मुझे इतना तो कह सकते थे कि मेरा स्थानांतरण नियम के तहत नहीं हो सकता। लेकिन उन्होंने तो मुझे एक बड़े अपराधी की तरह से अपमानित किया और पुलिस से कहा कि मुझे गिरफ्तार कर ले। मैं अपराधी  हूं क्या? मैं एक शिक्षिका हूं और 25 सालों से मुझे दुर्गम में रखा गया है। सरकार और मुख्यमंत्री मेरी समस्या पर ध्यान दे। मैं अब न तो सरकार के पास जाने वाली हूं और न ही मंत्री जी के पास। न मैं चहती हूं कि वे मेरे पास आए या मुझे अपने पास बुलाए। वे सिर्फ मेरी समस्या का विभागीय स्तर पर हल निकाले। मैं आगे क्या करूंगी या क्या नहीं करूंगी पता नहीं, पर मेरे सामने कानूनी रास्ते खुले हुए हैं। शुरुआत में शिक्षा विभाग से करने वाली हूं जिन्होंने मेरे समायेजन में साजिश की है।
सिफारिश और रसूख का जलवा
  1. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह की पत्नी वर्षों से देहरादून में ही तैनात।
  2. वित्त मंत्री प्रकाश पंत की पत्नी का देहरादून में एटैचमेंट।
  3. राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी की पत्नी का हल्द्वानी से सीधे नई दिल्ली में एटैचमेंट।
  4. टिहरी के विधायक धन सिंह नेगी की पत्नी देहरादून में तैनात।
  5. प्रदेश उपाध्यक्ष ज्योति गैरोला की पत्नी देहरादून में तैनात।
  6. भाजपा के राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत की पत्नी वर्षों से देहरादून में कार्यरत।
केंद्रीय कपड़ा राज्यमंत्री अजय टम्टा शायद एकमात्र ऐसे बड़े भाजपा नेता हैं जिन्होंने अति दुर्गम क्षेत्र में तैनात अपनी पत्नी के ट्रांसफर के लिए रसूख का इस्तेमाल नहीं किया। राज्य के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की मुनस्यारी तहसील के अंतिम गांव जुम्मा में टम्टा की पत्नी को पहली पोस्टिंग मिली थी। ट्रांसफर नीति के अनुसार उनका स्वतः ट्रांसफर तीन वर्ष के बाद सुगम क्षेत्र में हो जाना था। लेकिन पति के केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद उनकी कई वर्षों से पोस्टिंग जुम्मा में ही है। ‘दि संडे पोस्ट’ को उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस दौरान उन्होंने मेटरनिटी लीव मांगी लेकिन वह भी स्वीकृत नहीं हुई। अजय टम्टा इस दौरान खण्डूड़ी सरकार में कैबिनेट मंत्री और बाद में सांसद बन केंद्र सरकार में उत्तराखण्ड से इकइलौते प्रतिनिधि भी बन गए लेकिन उनकी पत्नी का ट्रांसफर नियमानुसार सुगम में नहीं हुआ। वर्तमान में वे लीव विद आउट पे पर चल रही हैं।

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