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Uttarakhand

हाशिए पर हरीश रावत के समर्थक

एक कहावत है कि अंधा बांटे रेवड़ी अपनों ही अपनों को दे। यह कहावत फिलहाल उत्तराखण्ड की कांग्रेस पर सटीक बैठ रही है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने तीन दिन पूर्व प्रदेश के 13 जिलाध्यक्षों के नामेां की घोषणा की है। जिसमें सिर्फ एक ही गुट के लोगों को पदों से नवाजा गया है। जबकि दूसरे गुट को दरकिनार कर दिया गया है। विधानसभा चुनावों में अपनी फजीहत करा चुकी उत्तराखण्ड कांग्रेस में एक बार फिर शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। कई गुटों में बट चुकी कांग्रेस इस बार पार्टी के नवनियुक्त जिलाध्यक्षों को लेकर आपसी विवाद का केंद्र बनी है। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खास लोगों का नवनियुक्त कमेटी से पत्ता साफ कर दिया है। प्रदेश में फिलहाल नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह के अधिकतर जिलाध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में आक्रोश चरम पर है।
कांग्रेस में नवनियुक्त जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर सबसे पहले विद्रोह की आवाज प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं जागेश्वर के विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने बुलंद की है। वर्तमान में प्रदेश में सभी 11 विधायकों में सबसे वरिष्ठ विधायक कुंजवाल का दर्द है कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में उनकी राय तक नहीं ली गई है। इसके खिलाफ उन्होंने न केवल मोर्चा खोल दिया है बल्कि प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह से भी सख्त लहजे में फोन पर शिकायत कर दी है। इसी का नतीजा है कि आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह को दिल्ली तलब कर लिया है। गोविंद सिंह कुंजवाल के साथ ही पूर्व राज्यसभा सांसद एवं प्रदेश कैबिनेट मंत्री रहे महेंद्र सिंह माहरा ने भी अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए पार्टी छोड़ने तक की धमकी दे डाली है।
दरअसल, अल्मोड़ा में आक्रोश की आग सुलगने का कारण ननवनियुक्त जिलाध्यक्ष मोहन सिंह मेहरा रहे हैं। मेहरा का सबसे पहले विरोध करने वाले पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष पिताम्बर पांडे थे। इसके बाद गोविंद सिंह कुंजवाल मेहरा के मनोययन को लेकर फट पड़े। मेहरा ने गत विधानसभा ुचनावों में जागेश्वर से विधानसभा चुनाव लड़ने की हुंकार भरी थी। हालांकि बाद में उन्हें किसी तरह मना लिया गया था। लेकिन बताया जा रहा है कि उन्होंने चुनाव में पार्टी प्रत्याशी गोविंद सिंह कुंजवाल का साथ नहीं दिया। यहीं से कुंजवाल और मेहरा में ठनी हुई है। अल्मोड़ा जिला अध्यक्ष के लिए कुंजवाल की पहली पसंद पूर्व राज्य दर्जा मंत्री बिट्टू कर्नाटक हंै। कर्नाटक के लिए कुंजवाल ही नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा भी पहली पसंद बने हुए थे। यहां तक कि बिट्टू कर्नाटक का नाम जब जेपी अग्रवाल के समक्ष गया तो दावेदारी में वह अकेले ही थे। लेकिन हरीश रावत के विरोधी गुट ने रातोंरात कर्नाटक की जगह मोहन सिंह मेहरा का नाम आगे कर उस पर केंद्रीय मोहर लगवा ली।
इसी तरह  चंपावत जिले का भी हाल रहा। यहां पूर्व राज्यसभा सांसद महेंद्र मेहरा के खास समर्थक ओमकार धोनी का नाम काटकर एन वक्त पर कार्यकारी जिलाध्यक्ष रहे उत्तम देव का नाम फाइनल कर दिया गया। सर्वविदित है कि महेंद्र माहरा को हरीश रावत लाॅबी का माना जाता है। इस तरह कई जनपदों के जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में हरीश रावत गुट के लोगों के पत्ते काट दिए गए। नैनीताल के जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल को इंदिरा हृदयेश गुट का माना जाता है। नैनवाल की पुनः ताजपोशी के लिए इंदिरा हृदयेश का आशीर्वाद मिला, जबकि रावत गुट यहां परिवर्तन कराने के मूंड में था। इसी तरह पिथौरागढ़ का जिलाध्यक्ष त्रिलोक मेहरा को बनाया गया जो पूर्व विधायक मयूख महर के खास बताए जाते हंै। इससे धारचूला के विधायक हरीश धामी मुखर हो गए हैं। धामी का कहना है कि पूरे प्रदेश में सिर्फ प्रीतम सिंह और इंदिरा हृदयेश के ही समर्थकों को जिलाध्यक्ष बनाया गया है। हालांकि पूरे कुमाऊं की अगर बात करें तो यहां एक बागेश्वर जनपद को छोड़कर कोई भी जिलाध्यक्ष कांग्रेस के सभी गुटों की आम सहमति से नहीं बनाए गए हैं। यहां के जिलाध्यक्ष लोकमणि पाठक की बने हैं। फिलहाल इस बाबत पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि वह 15 अगस्त के दिन इस मुद्दे को लेकर मीडिया के समक्ष हाजिर होंगे। उनकी इस घोषणा से प्रदेश कांग्रेस में खलबली मच गई है। कुंजवाल ने स्पष्ट कहा है कि घोषित जिलाध्यक्ष  में जातीय समीकरण के साथ-साथ वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा गया है। फिलहाल प्रदेश कांग्रेस संगठन कुंजवाल  के आक्रोश को लेकर चिंतित है। कुछ दिन पहले ही कुंजवाल ने देहरादून में प्रदेश अध्यक्ष को  लेकर नेता प्रतिपक्ष पर निशाना साधा था।
फिलहाल जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में एक ही गुट विशेष को महत्व दिए जाने से पार्टी के कार्यकर्ताओं में खासा रोष पैदा हो गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता खजान पांडे का कहना है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब उत्तराखण्ड की हालत भी उत्तर प्रदेश कांग्रेस की तरह हो जाएगी।

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