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Uttarakhand

उत्तराखण्ड के मांझी केसर सिंह

यह कहानी एक साधारण आदमी के असाधारण जुनून, जज्बे और संघर्ष की है। जिसके पास न ताकत थी और न पैसा। लेकिन उन्होंने अपने जोश और जिद की बदौलत एक ऐसे असंभव काम को संभव बना दिया जिसे करने की हिम्मत बहुत कम लोग जुटा पाते है। शुरुआत में जब वह नदी में उतरा करते थे तो लोग उन्हें देखकर पागल कहा करते थे। लेकिन इस बात ने इनके निश्चय को और भी मजबूत किया। नदी का बढ़ता पानी और बाढ़ की विभीषिका से जब लोगों को राहत मिलने लगी तो लोगों ने उनका लोहा मानना शुरू कर दिया। आज उनके अथक प्रयास और मेहनत का ही नतीजा है कि कई गांव हुड्डी नदी के प्रकोप से बच रहे हैं। हालांकि इस कार्य में उन्हें पूरे 12 साल लगे। लोग उन्हें उत्तराखण्ड का दशरथ मांझी कहते हैं। मांझी जहां हाथ में छेनी और हथोड़े का प्रयोग कर पत्थर काट रास्ता बनाते रहे वहीं इन्होंने एक लोहे की छड़ के बूते पत्थर की दीवार खड़ी कर नदी के अनियंत्रित रुख को नियंत्रित कर दिखाया

‘कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।’ कवि दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां चरितार्थ कर दिखाई है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विधानसभा क्षेत्र चंपावत के गांव चंदनी निवासी केसर सिंह ने। उनका एक प्रयास कई गांवों के लोगों के लिए संजीवनी बन गया है। युवा और मेहनती लोगों के लिए केसर सिंह रोल मॉडल के रूप में सामने आए हैं। उत्तराखण्ड और नेपाल देश की सीमा पर बसे बनबसा के आस-पास का इलाका कभी पानी से लबालब भर जाता था। खासकर तब जब बरसात में उफनाई नदी बनबसा में बाढ़ की वजह बनती थी। पानी का सैलाब न केवल मानव बस्तियों बल्कि नदी के पश्चिमी छोर के जंगलों को भी अपनी चपेट में ले लेता था। पिछले ढाई दशकों से हुड्डी नदी बनबसा के लिए खतरा बन रही थी। बरसाती पानी से हुड्डी नदी उफान पर बहने लगती थी। वर्षों से नदी में जमे मलबे (आरबीएम) से बरसाती पानी नदी में रुख करने की बजाय गांवों की ओर बहने लगता था। इससे चंदनी, आनंदपुर, बमनपुरी आदि गांव के घरों में पानी घुस जाता था। यही नहीं बल्कि नदी के इस कटान ने कृषि भूमि को भी चौपट करने का काम किया।

राजस्व उपनिरीक्षक अमर सिंह मंगला के अनुसार चंदनी, आनंदपुर, बमनपुरी गांव की करीब 40 बीघा भूमि नदी की भेंट चढ़ चुकी थी। वहीं उफान में बहने वाली नदी से वनों को भी नुकसान हो रहा था। नदी के तेज कटान से हजारों पेड़ तबाह हो चुके हैं। ग्रामीण वर्षों से हुड्डी नदी से बचाव कार्य कराने की मांग शासन-प्रशासन से करते रहे हैं। इसके अलावा लोगों ने नदी में बाढ़ की वजह बनने वाले आरबीएम को बाहर कर सफाई कराने की भी मांग की थी। पूर्वी तराई वन प्रभाग खटीमा के एसडीओ बाबू लाल की मानें तो नदी से चुगान और आरबीएम निकालने की अनुमति केंद्र सरकार से मिलती है, जिसके लिए राज्य सरकार को पहल करनी होगी। लेकिन इस ओर राज्य और केंद्र दोनों ने ही आंखें मूंदे रखीं।

ऐसे समय पर केसर सिंह गांव के लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आए।। केसर सिंह धूप हो बरसात या जाड़े का मौसम,लोहे की छड़ से हुड्डी नदी का पत्थर निकालकर पत्थर की दीवार बनाने का काम करते रहे हैं। ऐसे में जब सब लोग हाड़ कंपाती ठंड से बचने के लिए अपनी-अपनी रजाइयों में दुबके पड़े हैं, तब केसर सिंह कोहरे में ही सुबह सवेरे नदी की तरफ रुख करते हैं। जहां वह जुट जाते हैं नदी के बीच से पत्थर निकालने में। वे नदी के पानी में घुसकर लोहे की छड़ की मदद से हर दिन 4 से 5 घंटे नदी से पत्थर निकालने में लगे रहते हैं। इन पत्थरों को वे नदी के बीच से निकाल कर किनारों पर रख देते हैं। पूरे दिन यही सिलसिला चलता रहता है। इस काम को वह निस्वार्थ भाव से बीते 12 सालों से लगातार कर रहे हैं। उनके इस मैराथन प्रयास का असर धीरे-धीरे दिखने भी लगा है। केसर सिंह की इसे जीवटता ही कहेंगे कि एक इंसान ने अकेले के बूते बिना किसी मदद के एक लोहे की छड़ के बल पर कई गांवों को बरसाती हुड्डी नदी के भू-कटाव से बचाने का सराहनीय काम किया है। यही नहीं बल्कि केसर सिंह ने अपने गांव को हुड्डी नदी के कटाव से बचाने के अलावा आर्मी कैंट एरिया के किनारे से बहने वाले आर्मी नाले के कटाव को भी पत्थर की दीवार लगा आर्मी केंद्र की भूमि को बचाया है। केसर सिंह के निःस्वार्थ भाव से किया जा रहा यह काम आज पूरे उत्तराखण्ड के लोगों के लिए प्रेरणादायक बन गया है। लोगों का कहना है कि जिस काम को आज तक राज्य गठन के बाद से सरकारी तंत्र, तमाम मशीनरी होने के बाद भी नहीं करा जा सका, वह केसर सिंह ने अपने दम पर कर दिखाया। केसर सिंह के निःस्वार्थ कार्य से स्थानीय लोग भी कायल हैं।

बनबसा की पूर्व ग्राम प्रधान एवं जिला पंचायत सदस्य विमला सजवान केसर सिंह के साहसपूर्ण कार्य की प्रशंसा करते नहीं थकती हैं। वह कहती हैं कि आज अगर केसर सिंह मेहनत नहीं करते तो उनके गांवों को बाढ़ की विभीषिका से कोई नहीं बचा पाता। स्थानीय लोग केसर सिंह के इन प्रयासों को गांवों के लिए वरदान मानते हैं।

चंदनी के ग्राम प्रधान अनिल प्रसाद के अनुसार आज अगर उनके गांवों में भू-कटाव रुका है या गांव में हुड्डी नदी का पानी नहीं आ रहा है तो वह केवल और केवल केसर सिंह के व्यक्तिगत प्रयासों एवं जीवटता के दम पर हुआ है।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम प्रकाश भट्ट कहते हैं कि जिस काम को आज तक राज्य गठन के बाद से सरकारी तंत्र तमाम मशीनरी होने के बाद भी नहीं कर पाया जबकि केसर सिंह ने अकेले ही कई गांवों को बचाने के लिए वह काम कर मिसाल कायम की है। इस प्रेरणादाई सराहनीय कार्य के बावजूद राज्य सरकार का ध्यान केसर सिंह पर आज तक फिलहाल नहीं जा पाया है। बनबसा क्षेत्र के अधिकतर लोगों की चाहत है कि प्रेरणादायक व्यक्तित्व बन चुके केसर सिंह को राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत करना चाहिए ताकि उनसे राज्य के अन्य लोग भी प्रेरणा ले सकें।

केसर सिंह के कार्यों का मुआयना करते चंदनी गांव के प्रधान अनिल प्रसाद और सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम प्रकाश भट्ट

मेरे पिताजी फौज में देश सेवा करते रहे उन्होंने मुझे भी सेवा करने की सीख दी। वे देश सेवा के लिए जाने गए लेकिन मेरा प्रयास गांवों को बचाने में लगा रहा। बारह साल पहले जब मैंने नदी से गांवों को बचाने की कोशिश शुरू की थी तब हर कोई मुझे पागल समझता था। अब वही लोग मेरा सम्मान करते हैं। एक बार नदी से पत्थर निकालते समय मेरा पैर फिसल गया था। तब मेरा पैर टूट गया था। तब कोई मेरी सहायता
के लिए नहीं आया। इसके बाद जब मैं सही हुआ तो मुझे लोगों ने नदी पर जाकर काम करने के लिए मना किया। मुझसे कहा गया कि अगर जितनी मेहनत नदी में जाकर करते हो वही कहीं और करते तो हजारों रुपए रोजाना मजदूरी मिलेगी। लेकिन यह तो सिर्फ अपने लिए होता मुझे तो गांवों के हजारों लोगों को बचाने का जोश चढ़ा हुआ था सो में नहीं रुका। हमारे यहां के पूर्व विधायक कैलाश गहतोड़ी ने मेरी मेहनत और लगन को देखते हुए मुख्यमंत्री कोष से एक लाख रुपए की सहायता राशि दिलवाई थी जो मेरे पास आने तक 78,000 रुपए के रूप में प्राप्त हुई थी।
केसर सिंह

 

 

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