प्रदेश के विभिन्न भागों से करीब 15 नए जिलों को बनाने की मांग वर्षों से हो रही है। लेकिन जनभावनाओं का सम्मान करने के बजाए सरकार ने नया मंडल गठित करने की घोषणा कर अनावश्यक बवाल अलग से खड़ा कर डाला
गैरसैंण को प्रदेश की तीसरी कमिश्नरी बनाने की घोषणा से भले ही गैरसैंणवासी फूले न समा रहे हों लेकिन नए जिलों के गठन के मामले को ठंडे बस्ते में डाले जाने से इसकी मांग करने वाली जनता न सिर्फ निराश है, बल्कि खासी आक्रोशित भी। जिलों के गठन की यह अनदेखी तब हो रही है जब विधानसभा सत्र के दौरान डीडीहाट के विधायक विशन सिंह चुफाल एवं पुरोला के विधायक राजकुमार ने यह सवाल उठाया था। सरकार के मुखिया को जिलों की मांग कतई रास नहीं आई। उन्होंने इसकी अनदेखी कर गैरसैंण को मंडल गठित करने की घोषणा कर दी, जबकि इसी मसले पर वर्ष 2017 में ठीक विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा व कांगे्रस में जमकर राजनीति हुई थी। इसे चुनावी मुद्दा बना इसे भुनाने की कोशिश भी हुई। तब कांग्रेस ने 8 जिले बनाने का राग अलापा। पूर्ववर्ती सरकार ने नए जिलों के गठन के लिए आनन-फानन में एक हजार करोड़ की धनराशि का कार्पस फंड भी बनाने की बात कही लेकिन राज्य की त्रिवेंद्र सरकार ने सत्ता में आते ही जिला पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट आने तक जिलों के पुनर्गठन से कदम पीछे खींच लिए। अब चार साल बाद जिलों के गठन की अनदेखी एवं गैरसैंण को प्रदेश का तीसरा मंडल बना सरकार ने क्या संदेश देना चाहा, हाल-फिलहाल इस पर सवाल उठाये जा रहे हैं।
वर्ष 2011 में रमेश पोखरियाल निशंक के समय प्रदेश भाजपा सरकार ने डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार, पुरोला जिलों की अधिसूचना तक जारी कर दी थी। बाद में कांगे्रस की विजय बहुगुणा एवं हरीश रावत सरकार ने इस पर खामोशी ओढ़ ली थी। तब भाजपा नेता कांगे्रस पर जिलों का गठन न करने का आरोप लगाते थे। लेकिन 2017 में भाजपा सरकार सत्ता में आई लेकिन चार साल बीतने के बाद एक भी जिले का निर्माण नहीं कर पाई। अब बचाव में पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट का बहाना बनाया गया, जबकि 2012 में गठित पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट 9 वर्ष बाद भी सार्वजनिक नहीं हो पाई है। दशकों से पूरे प्रदेश में 15 से अधिक नए जिलों की मांग को लेकर आंदोलन होता रहा है। उत्तरकाशी में यमुनाघाटी को अलग जिला बनाने की मांग 1980 से चली आती रही है। बड़कोट, नौगांव, पुरोला, मोरी के लोग यमुनाघाटी जिला चाहते हैं। चमोली जनपद में कर्णप्रयाग को नया जिला तो नई टिहरी में घनसाली व प्रतापनर को जिला बनाने की मांग भी वर्षों से है। पिथौरागढ़ जनपद में डीडीहाट व गंगावली तो पौड़ी में लैंसडौंन, कोटद्वार, धुमाकोट व बीरोंखाल को अलग जिला बनाने की मांग उठती रही है। अल्मोड़ा में रानीखेत को अलग जिला बनाने की मांग 1955 से होती रही है। उधमसिंहनगर में काशीपुर व खटीमा को नया जिला बनाने की मांग भी वर्षों पुरानी है।
हरीश रावत सरकार के समय में प्रदेश में 11 नए जिलों एवं दो नई कमिश्नरी के साथ ही 16 नए विकास खंड़ों का खाका भी खींचा गया था। तब पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने कहा था कि जिन नए जिलों का सीमांकन आदि कार्य पूर्ण होगा उनका पहले सृजन किया जाएगा। तब जिले के मानकों का शिथिलीकरण भी कांगे्रस सरकार द्वारा किया गया था। वर्ष 1991 की जनसंख्या के आधार पर नए जिले के गठन के लिए न्यूनतम 15 लाख की आबादी का मानक था लेकिन वर्ष 2012 में गढ़वाल कमिश्नर की अध्यक्षता में गठित समिति ने इसे डेढ़ लाख कर दिया। इसी तरह न्यूनतम पांच हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के मानक को एक लाख हेक्टेयर, विकासखंडों की न्यूनतम संख्या दस से घटाकर तीन, थानों की संख्या 12 से घटाकर 3, लेखपालों की न्यूनतम संख्या 300 से घटाकर 50 कर दी थी। चूंकि जिलों के गठन में भारी- भरकम रकम खर्च होती है, इसलिए कोई भी सरकार इस पर खामोशी बनाए रखना उचित समझती है। खर्चों के नजरिए से देखें तो एक जिले को बनाने के लिए करीब 310 से करोड़ रुपए से अधिक का अनुमानित खर्च है। कलेक्ट्रेट, जिला कारागार, पुलिस लाइन सहित पास से ज्यादा जिला स्तरीय अधिकारियों के कार्यालयों, आवासों एवं वाहनों की खरीद में इतना पैसा खर्च हो जाता है। त्रिवेंद्र सरकार ने तर्क पेश किया कि नई प्रशासनिक इकाइयों के निर्माण के लिए जिला पुनर्गठन आयोग बनाया हुआ है, उसकी रिपोर्ट आने के बाद ही अगले कदम उठाए जाएंगे। साथ ही सरकार का यह भी तर्क कि जितनी धनराशि नया जिला बनाने में खर्च होगी, उससे विकास कार्यों को गति दी जा सकती है।
कैसे बनता है जिला: जिस जिले के भू-भाग को काटकर नया जिला बनाया जाना है उस जिले के प्रशासन द्वारा तैयार किया गया प्रस्ताव रेवेन्यू बोर्ड को भेजा जाता है। प्रस्ताव का अध्ययन करने के बाद सीआरसी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की जाती है। इसके बाद प्रस्ताव शासन को भेजा जाता है। फिर इसे कैबिनट की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। मंजूरी के बाद नए जिले का गठन होता है।
बात अपनी-अपनी
गैरसैंण को जिला बनाना था, लेकिन बना दी कमिश्नरी। इस कमिश्नरी में शामिल जिलों के लोगों की राय भी नहीं ली गई।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
पुनर्गठन आयेाग की रिपोर्ट आने के बाद तब की परिस्थितियों के अनुरूप राज्य में नए जिलों के गठन के संबंध में फैसला लिया जाएगा।
मदन कौशिक, संसदीय कार्यमंत्री उत्तराखण्ड
विकास के लिए जिले बहुत महत्वपूर्ण हैं। भाजपा की पूर्ववर्ती सरकारों ने जिन नए जिलों की घोषणा की थी उन्हें जिला बनाने के साथ गैरसैंण को भी जिला बनाना था।
पुष्पेश त्रिपाठी, पूर्व विधायक उक्रांद