दीपावली से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराखण्ड दौरा प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के चेहरे की रौनक वापस लौटाने का काम कर गया है। सर्वविदित है कि खटीमा चुनाव हारने के बाद भी धामी को ही मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय प्रदेश भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं को खासा अखरता और खटकता रहा है। इस अखर-खटक का असर धामी सरकार की स्थिरता को लेकर उठ रहे सवालों और कयासबाजियों के जरिए सामने आने लगा था। प्रधानमंत्री के इस दौरे ने ऐसे सभी सवालों और कयासबाजियों पर पूर्ण विराम तो लगाया ही है, प्रदेश मंत्रिमंडल में बड़ी फेरबदल का रास्ता भी साफ कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस दौरे के दौरान जिस खास अंदाज में मुख्यमंत्री को आगे बढ़ाया, उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि उनका भरोसा धामी के ऊपर कायम है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दीपावली से पहले उत्तराखण्ड के दौरे पर गए। उत्तराखण्ड के प्रति विशेष लगाव रखने वाले मोदी ने न केवल कई सौ करोड़ की विकास योजनाओं का अपने इस दौरे के दौरान शिलान्यास किया बल्कि मुख्यमंत्री धामी के एक कथन पर अपनी सहमति दर्ज कराते हुए उन्होंने प्रदेश भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को भी स्पष्ट संकेत दे दिया कि राज्य सरकार की कमान धामी के हाथों में ही रहेगी। इस बात का पहला संकेत चीन की सीमा से सटे चमोली जिले के गांव माणा की बाबत प्रधानमंत्री के कथन से मिला। अलकनंदा और सरस्वती नदी का संगम स्थल कहे जाने वाला माणा तिब्बत से मात्र 26 किमी ़ दूर भारत का अंतिम गांव हैं। 22 अक्टूबर के दिन प्रधानमंत्री इस गांव पहुंचे थे। यहां आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने माणा को देश का अंतिम गांव कहने के बजाए पहला गांव कहे जाने का सुझाव दिया। धामी के इस सुझाव को तुरंत प्रधानमंत्री ने अपनी स्वीकृति दे डाली। अपने संबोधन में मोदी ने याद दिलाया कि 25 बरस पूर्व उन्होंने भाजपा की एक बैठक यहां आयोजित की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री के सुझाव को स्वीकारते हुए कहा कि ‘मेरे लिए हर सीमांत गांव देश का पहला गांव हैं क्योंकि यहां के लोग देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं।’ प्रधानमंत्री के इस कथन ने धामी के चेहरे की रौनक वापस लौटाने का काम कर दिया। इससे पहले 21 अक्टूबर को मोदी ने गौरीकुंड से केदारनाथ के लिए 12,67 करोड़ की लागत वाले रोपवे परियोजना की आधारशिला रखी और गोविंदघाट से हेमकुंड साहिब के लिए 1,163 करोड़ की रोपवे परियोजना का भी शिलान्यास कर प्रदेश के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किए जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल कर पूर्व में किए अपने वायदों को अमलीजामा पहनाने का काम कर दिखाया है।

इसके अलावा 61 किमी के जोशीमठ मलारी हाईवे के चौड़ीकरण के लिए 422 करोड़, 68 लाख तथा 51 किमी के माणा पास हाईवे चौड़ीकरण के लिए 574 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास भी पीएम ने किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस तरह देश में भारत माला सागरमाला परियोजानाएं चलाई गई हैं अब देश मे पर्वतमाला की बारी है। जिसमें सड़कों का चोड़ीकरण और हाईवे निर्माण के साथ साथ रोपवे और रेलवे का नेटवर्क का विकास किया जाएगा। मुख्यमंत्री धामी के चेहरे की रौनक वापस लौटने के पीछे केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखण्ड के लिए स्वीकृत की जा रही इन योजनाओं का भी बड़ा योगदान है। बीते कुछ अर्से से धामी सरकार अपने विकास कार्यों के बजाए नित्-नए घोटालों के चलते सुर्खियां बटोर रही थीं। हालांकि इन घोटालों का वर्तमान सरकार विशेषकर मुख्यमंत्री धामी से कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन प्रदेश भाजपा की अंदरूनी खींचतान चलते राज्य सरकार और स्वयं मुख्यमंत्री डिफेंसिव मोड में जा पहुंचे थे। राज्य के अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में भारी भ्रष्टाचार और राज्य विधानसभा में हुई नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद और धन बल के आरोप सामने आने के बाद से राज्य सरकार को मीडिया, विशेषकर सोशल मीडिया में जमकर टारेगेट किया जाने लगा है। धामी विरोधी तब और सक्रिय हो उठे जब 19 बरस की नवयुवती की गुमशुदगी और बाद में हत्या की जाने की बात सामने आई। रुअंकिता भंडारी हत्याकांड चलते पूरे देश में उत्तराखण्ड की छवि खराब तो हुई ही, राज्य सरकार की कार्यशैली को लेकर भी प्रश्न उठने लगे हैं। धामी सरकार के सामने संकट इन भर्तियों में हुए भ्रष्टाचार की निष्पक्ष जांच को लेकर ‘इधर कुआं-उधर खाई’ की स्थिति के बतौर सामने आया है क्योंकि दोनों ही मामलों में बड़े भाजपा नेताओं की संलिप्तता स्पष्ट नजर आ रही है। यहां पर धामी ने वह कर दिखाने का साहस-प्रयास किया जिसने एक तरफ जनसामान्य के मध्य उनकी छवि तो जगमगाई लेकिन भाजपा भीतर उनके खिलाफ षड्यंत्रों में तेजी आने लगी। भर्ती चयन परीक्षा घोटाले में आयेग के पूर्व अध्यक्ष आरबीएस रावत, पूर्व सचिव मनोहर कान्याल और पूर्व परीक्षा नियंत्रक आरएस पोखरियाल को जेल भेजने का मामला हो या चर्चित आईएएस अधिकारी रामविलास यादव को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भेजना, कमोवश धामी सरकार ने जिस तरह से कार्यवाही की है उससे कई बड़े भाजपा नेताओं के निशाने पर धामी आ गए हैं।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण तब देखने को मिला जब विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खुडूड़ी ने विधानसभा में भर्ती मामले में कड़ी कार्यवाही कर के सभी भर्तियों को निरस्त किया तो मीडिया द्वारा उन्हें एक मजबूत और ईमानदार नेता के तौर पर इस कदर प्रचारित किया गया कि मानो ऋतु खंडूड़ी जल्द ही राज्य की मुख्यमंत्री बनने वाली हों। इन बातों को तब ज्यादा हवा मिली जब ऋतु खंडूड़ी द्वारा राज्य मुख्य सचिव और डीजीपी के साथ राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर एक बैठक की गई। और
सोशल मीडिया पर इस बैठक की तस्वीर डाली गई। इस बैठक के बाद मीडिया और सोशल मीडिया में तमाम तरह के विमर्श और चर्चाएं शुरू होने लगीं और एक बारगी तो यहां तक कहा जाने लगा कि मुख्यमंत्री धामी की विदाई जल्द ही होने वाली है।
घात-प्रतिघात के इस दौर में लेकिन धामी सरकार ने कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज करा प्रधानमंत्री मोदी की नजरों में खरा उतरने का रास्ता चुना। कानून व्यवस्था को दुरस्त करने के लिए धामी लगातार बैठकें कर रहे हैं। कोरोनाकाल के बाद चारधाम यात्रा ने नया रिकॉर्ड बनाया। केदारनाथ में ही 16 लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए जो आज तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। इससे राज्य की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को भी गति मिली है। राज्य के कई प्रस्तावों को केंद्र सरकार ने स्वीकृती दी है जिसमें हाल ही में एचएमटी कारखाने की भूमि का अधिकार प्रदेश को दिया गया है। जल्द ही प्रदेश में समान नागरिकता कानून को भी लागू किए जाने की संभावनाएं हैं।
सूत्रां की मानें तो प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को एक तरह से पूरा अभयदान तो दिया ही है, साथ ही राज्य में मंत्री मंडल में फेरबदल और मंत्री मंडल विस्तार के लिए भी खुली छूट देकर धामी पर अपना भरोसा और ज्यादा मजबूत किया है। माना जा रहा है कि जल्द ही राज्य में मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल हो सकता है जिसमें चार बड़े मंत्रियां को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। इनमें दो भाजपा और दो कांग्रेसी मूल के मंत्री हैं। यह भी माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान मंत्रिमंडल के फेरबदल के लिए दो संभावनाओं पर काम कर रहा है जिसमें एक संभावना यह है कि गुजरात प्रदेश की तरह से समूचा मंत्री मंडल को ही बदला जा सकता है और दूसरा यह है कि जिन- जिन मंत्रियों पर गंभीर आरोप लग रहे हैं उनको बाहर किया जाए।
सूत्रां के अनुसार गुजरात मॉडल की संभावना ज्यादा बताई जा रही है। लेकिन यह गुजरात के विधानसभा चुनाव के बाद हो सकता है। क्योंकि गुजरात में जिस तरह से भाजपा ने समूचा मंत्रीमंडल को बदल कर रख दिया उसका प्रभाव विधानसभा चुनाव में कितना पड़ता है यह देखना होगा। भाजपा फिर से बहुमत से सरकार बना लेती है तो उत्तराखण्ड की राजनीति में भाजपा का गुजरात का मंत्रीमंडल मॉडल लागू किया जा सकता है अन्यथा कुछ समय के बाद मंत्री मंडल में बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है।
भाजपा ने यह निर्णय ऐसे ही नही लिया है। विगत छह माह से एक तरह से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अकेले सरकार चलाते नजर आ रहे हैं। जबकि सरकार ने जिलों का प्रभार मंत्रियों को दिया हुआ है लेकिन इसमें कोई ठोस कार्य नहीं हो पा रहा है। प्रभारी मंत्रियों की सुस्ती के चलते जिले के प्रशासनिक इकाइयों पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। इसमें अधिकतर अधिकारी जिलों का संचालन मुख्यालय से ही कर रहे है। यहां तक कि तहसील प्रशासन में भी तेजी देखने को नही मिल रही है। इसका बड़ा असर राज्य की कानून व्यवस्था पर भी पड़ा है।
अंकिता भंडारी प्रकरण में राजस्व विभाग की भूमिका पर सवाल खड़े हुए तो सरकार की सख्ती के बाद जिला प्रशासन नींद से जागा। हरिद्वार शराब कांड हो या अल्मोड़ा प्रकरण दोनों में ही जिला प्रशासन की सुस्ती देखने को मिल चुकी है। बरसात के समय आई बड़ी-बड़ी आपदाओं के समय में भी यह सब कुछ देखने को मिल चुका है। देहरादून के मालदेवता आपदा के समय स्थानीय विधायक के आपदाग्रस्त क्षेत्र में पहुंचने पर भी जिला प्रशासन के अधिकारियों की गैरमौजूदगी भी इसी ओर इशारा कर रही है। जबकि कई बार मुख्यमंत्री अधिकारियों को फटकार लगा चुके हैं। कमोबेश यही हाल मंत्रियों और उनके विभागों का भी देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि मंत्रियों की कार्यशैली और उनकी क्षमता तथा उनके विभागों और काम की समीक्षा की गई है जिसमें कई मंत्री पूरी तरह से खरे नहीं उतरे हैं।