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Uttarakhand

गदरपुर में होगा महासंग्राम

गदरपुर विधानसभा सीट पर पिछले दो टर्म से भाजपा का कब्जा है। वर्तमान विधायक अरविंद पाण्डेय का इस बार भी पार्टी प्रत्याशी बनना तय बताया जा रहा है। राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री पाण्डेय से जनता खासी नाराज है। उन पर चुनाव पूर्व किए गए वादों को पूरा न करने का आरोप इस बार उनकी जीत की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बनता नजर आ रहा है। कांग्रेस के भीतर दावेदारों की भरमार है। एक से बढ़कर एक हैवीवेट दावेदारों के चलते यहां पार्टी को आंतरिक असंतोष और भीतरघात का खतरा है। इस बार आम आदमी पार्टी भी इस सीट से अपना प्रत्याशी उतारने जा रही है

गदरपुर विधानसभा क्षेत्र को तराई का गुलदस्ता यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां सभी धर्म और जाति के लोग निवास करते हैं। मुस्लिमों के साथ ही सिख मतदाता हैं, तो वहीं दूसरी तरफ बंगाली, पहाड़ी, पूर्वांचली, पंजाबी और बुक्सा जनजाति तथा वन गुर्जर भी बड़ी संख्या में यहां रहते हैं। यहां की सामाजिक संरचना को देखें तो राजनीतिक लिहाज से यह विधानसभा क्षेत्र सभी रंगों को समेटे हुए है। जब से उत्तराखण्ड अलग राज्य बना है तब से यहां हुए चार बार के विधानसभा चुनावों में दो बार बंगाली समुदाय के नेता प्रेमानंद महाजन विधायक बने हैं, जबकि पिछले दो चुनावों में पूर्वांचली समाज से आने वाले अरविंद पाण्डेय को जीत मिली। पाण्डेय फिलहाल राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। इससे पहले अरविंद पाण्डेय बाजपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते थे। बाजपुर सीट के अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित हो जाने के चलते पाण्डेय गदरपुर शिफ्ट कर गए। वे दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन अब 2022 के चुनाव में पाण्डेय की जीत का हैट्रिक लगना कठिन नजर आ रहा है। वैसे भी उत्तराखण्ड में एक मिथक है कि प्रदेश का शिक्षा मंत्री चुनाव हार जाता है। चाहे वह स्वर्गीय डॉक्टर इंदिरा हृदयेश रही हों, गोविंद सिंह बिष्ट रहे हों या मंत्री प्रसाद नैथानी, शिक्षा मंत्री रहते सभी चुनाव हारे हैं। अरविंद पाण्डेय पर यह मिथक कितना सटीक बैठेगा यह तो 2022 के विधानसभा चुनाव में ही पता चलेगा।

पूर्व में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही बसपा इस सीट पर लीडिंग पार्टी बनकर उभरती रही है। लेकिन इस बार बसपा का स्थान आम आदमी पार्टी पाने को बेताब है। भाजपा और कांग्रेस के साथ ही इस विधानसभा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी से टिकट पाने वालों की लाइन लगी है। यहां सबसे ज्यादा टिकटार्थी कांग्रेस में हैं। कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद पालने वाले पार्टी नेता फिलहाल होर्डिंग्स और पोस्टरों में अपनी उम्मीदवारी की होड़ मचाए हुए हैं। कुछ नेता ऐसे भी हैं जो पिछले चार साल से विधानसभा क्षेत्र में कहीं दिखाई नहीं देते थे वह भी आजकल सक्रिय हैं। कांग्रेस गदरपुर में अक्सर इसलिए हारती रही है कि उसके नेताओं में कभी एका नहीं रहा। इसी का फायदा पिछले दो टर्म से वर्तमान विधायक और कैबिनेट मंत्री अरविंद पाण्डेय उठाते रहे हैं। वह कहते भी रहते हैं कि अगर दस कांग्रेसी टिकट की दावेदरी करते हैं तो उनमें से एक को टिकट मिलता है और बाकी के नौ नेता उन्हें जिताने का काम करते हैं। पिछले दो विधानसभा चुनावों में ऐसा ही कुछ देखने को मिल चुका है। इस बार भी इसी उम्मीद से भाजपा विधायक अरविंद पाण्डेय की बांछें खिली हुई हैं। इस समय जो कांग्रेस के टिकटार्थी मैदान में हैं उनकी संख्या नौ है। नौ के नौ नेता कांग्रेस में अपने- अपने टिकट की दावेदारी ठोक रहे हैं और क्षेत्र में घूम रहे हैं। दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के दावेदार हैं। आम आदमी पार्टी में पांच नेता टिकट मांग रहे हैं। हालांकि जब से जरनैल सिंह काली आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं तब से अन्य नेता उनसे दावेदारी में पीछे हो गए हैं। लेकिन इसी के साथ आम आदमी पार्टी के उन नेताओं में असंतोष उत्पन्न हो गया है जो वर्षों से क्षेत्रीय समस्याओं को उठा रहे थे और जनता के बीच जा रहे थे। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं में इस बार कोई जोश नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि यूकेडी अगर यहां से अपना प्रत्याशी मैदान में उतारेगी तो महज रस्म अदाएगी के तौर पर, क्योंकि यूकेडी का यहां कोई नेता सक्रिय नहीं है।
भाजपा में वैसे तो उम्मीदवार अरविंद पाण्डेय ही होंगे, लेकिन यहां से पूर्व में चुनाव लड़ चुके रविंद्र बजाज भी अपनी दावेदारी पेश करते नजर आ रहे हैं। रविंद्र बजाज की यह दावेदारी भाजपा के आंतरिक सर्वे पर निर्भर है। अगर भाजपा के आंतरिक सर्वे में पाण्डेय की स्थिति कमजोर दिखती है तो फिर ऐसे में पार्टी रविंद्र बजाज पर दांव लगा सकती है। कांग्रेस एंटी इनकंबंेसी के आधार पर अरविंद पाण्डेय की हार करार दे रही है।

वर्ष 2002 के पहले आम चुनाव में यहां से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर प्रेमानंद महाजन जीते थे। महाजन बंगाली समुदाय से आते हैं। वह बंगाली और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मजबूत आधार चलते चुनाव जीते। तब यहां से कांग्रेस ने काशीपुर निवासी सतेन्द्र चंद्र गुड़िया को टिकट दिया था। गुड़िया पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के खास थे। गुड़िया को तब तिवारी की पैरवी पर काशीपुर से लाकर यहां चुनाव लड़ाया गया था, लेकिन बाहरी प्रत्याशी होने के कारण गदरपुर के मतदाताओं ने उन्हें अस्वीकार किया। गुड़िया को महज 8500 वोट मिले थे। 2002 में बसपा के प्रेमानंद महाजन का मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशी श्यामलाल सुखीजा से था। सुखीजा दूसरे नंबर पर रहे। यहां से तीसरे नंबर पर कांग्रेस के सतेन्द्र चंद्र गुड़िया थे, तो चौथे नंबर पर भाजपा कंडीडेट थे। भाजपा ने यहां से सीताराम राय को चुनाव लड़ाया था। उन्हें करीब 8400 वोट मिले थे जबकि प्रेमानंद महाजन 20500 वोट पाकर विजयी रहे। इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां से राजेंद्र पाल सिंह ‘राजू’ को टिकट दिया। राजेंद्र पाल सिंह को 22500 वोट मिले। देखा जाए तो राजेंद्र पाल सिंह ने यहां कांग्रेस का जनाधार बढ़ाया। भाजपा ने 2007 में यहां से रविंद्र बजाज को प्रत्याशी बनाया। बजाज को 22000 मत मिले। जरनैल सिंह काली ने यहां से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और 13 हजार 500 मत प्राप्त किए। हालांकि एक बार फिर जीत का सेहरा बसपा प्रत्याशी प्रेमानंद महाजन के सिर पर बंधा। महाजन 28,600 वोट पाकर चुनाव जीते थे। कांग्रेस की सबसे अजीबो-गरीब स्थिति यहां 2012 के विधानसभा चुनाव में रही। तब प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी चौधरी विरेंद्र सिंह थे जबकि सह प्रभारी यूपी के विलासपुर के तत्कालीन विधायक संजय कपूर थे। दोनों ही प्रभारी अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की पैरवी करते दिखे। चौधरी विरेंद्र सिंह जहां शिल्पी अरोड़ा को टिकट दिलाने की पैरवी कर रहे थे, तो दूसरी तरफ संजय कपूर अपनी संबंधी रीना कपूर को टिकट दिलाना चाहते थे। जबकि पार्टी के आंतरिक सर्वे में इन दोनों के अलावा तीसरे व्यक्ति की दावेदारी मजबूत बताई गई थी। ऐसे में पार्टी हाईकमान के सामने असमंजस की स्थिति आ गई। आनन-फानन में तब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के भतीजे मनीषी तिवारी को टिकट दे एक बार फिर गदरपुर में बाहरी नेता को थोप दिया गया। जिसका नतीजा मनीषी तिवारी को हार के रूप में सामने आया। तब कांग्रेस नेता और पार्टी के प्रबल दावेदार रहे राजेंद्र पाल सिंह के बारे में यह चर्चा जोरों पर चली कि तिवारी को हराने के लिए उन्होंने भाजपा के कंडीडेट अरविंद पाण्डेय को अंदरखाने समर्थन दे दिया था जिससे भाजपा प्रत्याशी की जीत हुई। यहां यह बताना भी जरूरी है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्व विधायक प्रेमानंद महाजन गदरपुर छोड़कर रूद्रपुर से चुनाव लड़े।

इसके बाद हुए 2017 के विधानसभा चुनाव। इष् चुनाव में कांग्रेस में वैसे तो कई नेता टिकट मांग रहे थे लेकिन प्रमुख दावेदारी दो नेताओं के बीच हो गई जिनमें दोनों नेता पंजाबी थे। इनमंे एक पूर्व में कांग्रेस से 2007 से चुनाव लड़ चुके राजेंद्र पाल सिंह थे, जबकि दूसरे जरनैल सिंह काली। आखिर में पार्टी हाईकमान ने कांग्रेस का टिकट राजेंद्र पाल सिंह को दिया। ऐसे में जरनैल सिंह काली कांग्रेस के बागी हो गए। वे बसपा में चले गए। बसपा ने काली को टिकट दे दिया। इस तरह 2017 में एक बार फिर राजेंद्र पाल सिंह और जरनैल सिंह काली आमने- सामने आ गए। जबकि इससे पहले भी 2007 में जरनैल सिंह काली समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े थे तो पाल कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में दो पंजाबी प्रत्याशियों के चुनाव लड़ने का फायदा भाजपा उम्मीदवार अरविंद पाण्डेय को मिला। पंजाबी वोट आपस में कट गए, जबकि पूर्वांचल के साथ ही पहाड़ी और बंगाली मतों को पाण्डेय अपनी ओर करने में सफल रहे। तब अरविंद पाण्डेय 40,600 वोट लेकर विजयी रहे थे। जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस उम्मीदवार राजेंद्र पाल सिंह रहे। उन्हें 27,452 वोट मिले। तीसरे नंबर पर बसपा के जरनैल सिंह काली रहे। काली कांग्रेस प्रत्याशी से सिर्फ एक हजार वोट ही कम पाए थे। उन्हें 26,500 मत प्राप्त हुए थे। एक बार फिर राजेंद्र पाल सिंह और जरनैल सिंह काली की 2022 में आमने-सामने भिड़ंत हो सकती है क्योंकि काली ने बसपा छोड़कर आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली है। जरनैल सिंह काली आम आदमी पार्टी के टिकटार्थियों में सबसे मजबूत माने जा रहे हैं। हालांकि राजेंद्र पाल सिंह की कांग्रेस से दावेदारी में फिलहाल पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहे स्वर्गीय जनकराज शर्मा की बहू सुरेशी शर्मा सबसे बड़ा रोड़ा बनी हुई हैं। सुरेशी शर्मा जनकराज शर्मा के अनुज अविनाश शर्मा की पत्नी हैं। सुरेशी शर्मा का प्लस प्वाइंट यह है कि एक तरफ कांग्रेस के अधिकतर टिकटार्थी जहां गदरपुर शहर की तरफ अपना जनाधार बनाए हुए हैं, वहीं सुरेशी शर्मा बाजपुर की होने के साथ ही बाजपुर शहर से सटे गदरपुर विधानसभा क्षेत्र में अधिक पैठ बनाए हुए हैं। जनकराज शर्मा ने अपने राजनीतिक वजूद के चलते गदरपुर विधानसभा क्षेत्र को बाजपुर तक सीमांकन कराने में दिलचस्पी ली थी। जनकराज शर्मा दूरगामी सोच के नेता थे वह बखूबी जानते थे कि अगले विधानसभा चुनाव में बाजपुर सीट आरक्षित हो सकती है। ऐसे में उन्होंने गदरपुर विधानसभा सीट को बाजपुर तक फैलाकर सीमांकन कराया था। शर्मा फैमिली का बाजपुर के आस-पास चकरपुर, रामनगर, कैलाखेड़ा इलाके में अच्छा दखल रहता है।

ममता हलदर भी कांग्रेस से टिकट मांगने वालों की लाइन में हैं। वह 2017 से गदरपुर मंडी समिति की डायरेक्टर हैं। इसके साथ ही वह कांग्रेस की पीसीसी सदस्य हैं। पूर्व में ममता कांग्रेस पार्टी की प्रदेश उपाध्यक्ष रही हैं, तो वर्तमान में प्रदेश की महासचिव हैं। वह जिला पंचायत का चुनाव भी लड़ीं, लेकिन हार गईं। जब यशपाल आर्य पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे तब वह महिला कांग्रेस कमेटी की प्रदेश सचिव भी रह चुकी हैं। पिछले साल वह चुनाव कमेटी की सदस्य भी रही हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें लालकुआं विधानसभा क्षेत्र की प्रभारी भी बनाया था। इसके अलावा वह चंपावत जिले की पार्टी पर्यवेक्षक भी रही हैं।

क्षेत्र भ्रमण पर विधायक अरविंद पाण्डेय

प्रेमानंद महाजन बहुजन समाज पार्टी से गदरपुर से दो बार विधायक रहे हैं। वह हरीश रावत के कहने पर बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। वह 2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व ही कांग्रेस ज्वाइन कर चुके थे। तब उन्होंने रुद्रपुर से कांग्रेस का टिकट मांगा था। लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट न देकर तिलकराज बेहड़ को अपना प्रत्याशी बनाया था। इसके बाद वह फिर से बसपा की शरण में चले गए थे। जहां बसपा से वह रुद्रपुर से 2017 का विधानसभा चुनाव लड़े। रुद्रपुर में प्रेमानंद महाजन तीसरे नंबर पर रहे। यहां से भाजपा के राजकुमार ठुकराल ने चुनाव जीता, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के तिलकराज बेहड़ रहे थे। एक बार फिर वह अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र गदरपुर से टिकट के लिए जोर-आजमाइश कर रहे हैं। दिनेशपुर के करीब 23000 बंगाली वोटर पर उनकी अच्छी पकड़ बताई जाती है। हालांकि कांग्रेस से ही बंगाली वोटों पर ममता हलदर के अलावा किशोर कुमार भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। किशोर यशपाल आर्य के समय में ऊधमसिंह नगर जिले की आईटी सेल के प्रभारी रह चुके हैं। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की तरफ से उन्हें एक बार मध्य प्रदेश के दतिया में पर्यवेक्षक बनाकर भी भेजा गया था। युवा कांग्रेस के वह कुमाऊं मंडल अध्यक्ष रह चुके हैं, तो पार्टी के प्रदेश सचिव भी। छतरपुर में किशोर कुमार ने 17 दिन लगातार अनशन किया था। यह अनशन उन्होंने छतरपुर में फ्लाईओवर की मांग को लेकर किया। फिलहाल किशोर कुमार आम आदमी पार्टी के चर्चित नेता त्रिनाथ विश्वास की जिला पंचायत सदस्यता खत्म कराने को लेकर चर्चाओं में हैं। पिछले दिनों किशोर कुमार की शिकायत पर प्रशासन ने जिला पंचायत सदस्य त्रिनाथ विश्वास के उन प्रमाण पत्रों की जांच की थी जिन्हें उन्होंने चुनाव लड़ते समय लगाया था। जिसमें त्रिनाथ विश्वास की दसवीं की मार्कशीट फर्जी पाई गई। आम आदमी पार्टी के नेता त्रिनाथ विश्वास जेल चले गए थे। हालांकि फिलहाल वह जमानत पर आ गए हैं। किशोर कुमार त्रिनाथ विश्वास के सामने जिला पंचायत का चुनाव लड़े थे तब वह दूसरे नंबर पर आए थे।

गदरपुर से कांग्रेस के टिकटार्थियों में शिल्पी अरोड़ा भी शामिल हैं। शिल्पी अरोड़ा फिलहाल प्रदेश कांग्रेस में सोशल मीडिया सेल की अध्यक्ष हैं। एनजीओ ‘वाटर’ की अध्यक्ष होने के साथ ही वह उत्तरांचल पंजाबी महिला महासभा की प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। राजीव गांधी  एक्सीलेंस अवार्ड 2014 से नवाजी जा चुकी हैं। 2011 में शिल्पी अरोड़ा को उत्तराखण्ड पंजाबी रत्न अवार्ड भी मिल चुका है। 2012 से लेकर 2015 तक वह कांग्रेस की प्रवक्ता रह चुकी हैं। इससे पहले वह 2012 के विधानसभा चुनाव की प्रभारी तथा पब्लिकेशन कमेटी में भी रह चुकी हैं। 2012 से 2015 तक शिल्पी को एआईसीसी सेल में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पैनलिस्ट भी बनाया गया। 2015 से 2020 तक शिल्पी प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महामंत्री पद पर रह चुकी हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में शिल्पी ने अपनी ही पार्टी के किच्छा उम्मीदवार हरीश रावत के समक्ष निर्दलीय पर्चा भरकर दावेदारी ठोक दी थी। लेकिन बाद में उन्होंने हरीश रावत के कहने पर पर्चा वापस ले लिया था। राजेंद्र पाल सिंह ‘राजू’ कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवारों में शामिल हैं। वह पूर्व में दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। राजेंद्र पाल सिंह पूर्व में कुमाऊं मंडल किसान कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं। वर्ष 1996 से वह पीसीसी सदस्य हैं, जबकि वर्ष 2000 से एआईसीसी सदस्य हैं। रीना कपूर भी कांग्रेस के उन नेताओं में शामिल हैं जो गदरपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं। वर्ष 2010 से रीना कपूर महिला कांग्रेस की ऊधमसिंह नगर की जिला अध्यक्ष हैं। इसके अलावा वह पीसीसी सदस्य भी हैं। पीसीसी सदस्य का उनका यह दूसरा कार्यकाल है। रीना कपूर फिलहाल बाजपुर में रह रही हैं। प्रीत ग्रोवर ने भी कांग्रेस के टिकट पर अपना दावा किया है। वह 1996 से कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। तब वह पहली बार युवक कांग्रेस के जिला सचिव बनाए गए थे। 2003 में वह बलरामनगर के ग्राम प्रधान बने। इसी के साथ ही वह गदरपुर ब्लॉक के प्रधान संघ के अध्यक्ष रहे। 2002 में उन्हें युवा कांग्रेस का प्रदेश महासचिव बनाया गया। इनकी पत्नी ज्योति ग्रोवर भी महिला कांग्रेस की जिला ऊधमसिंह नगर की सचिव हैं। साथ ही वह क्षेत्र पंचायत सदस्य भी रह चुकी हैं। प्रीत ग्रोवर के भाई राजीव ग्रोवर भी किसान कांग्रेस कमेटी के प्रदेश महासचिव रह चुके हैं। 2011 में प्रीत ग्रोवर चुनाव प्रचार कमेटी के सदस्य रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के प्रभारी बनाए गए। इसके इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव भी रह चुके हैं। 2016 से 2018 तक कृषि मंडी समिति गदरपुर के अध्यक्ष रहे हैं। फिलहाल प्रीत ग्रोवर पंजाबी महासभा के जिला महामंत्री के साथ ही ऊधमसिंह नगर कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी हैं। सुमित्र भुल्लर भी आजकल हल्द्वानी छोड़कर गदरपुर विधानसभा क्षेत्र की गलियों में विचरण करते देखे जा रहे हैं। वह पूर्व में एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।

पिछले 26 साल से मैं कांग्रेस का समर्पित सिपाही हूं। दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुका हूं। लगातार
एआईसीसी और पीसीसी का मेम्बर रहा हूं। मेरी सामाजिक सक्रियता और गदरपुर विधानसभा में हर समय जनता के साथ खड़े रहना ही मेरी विशेषता है। मुझे इससे ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है।
राजेंद्र पाल सिंह, सदस्य एआईसीसी

 

 

मेरे परिवार का कोई सदस्य ऐसा नहीं है जिसने कांग्रेस की सेवा न की हो। परिवार के सभी सदस्य विभिन्न पदों पर रहते हुए समाज के हर सुख-दुख में शामिल रहे हैं। मुझे भी पार्टी मौका देगी ऐसा मुझे विश्वास है।
सुरेशी शर्मा, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता

 

बंगाली समाज कांग्रेस का वोट बैंक रहा है। इस वोट बैंक को हमने सदा ही बढ़ाने का काम किया है। आगे भी हम पार्टी का जनाधार बढ़ाते रहेंगे। पार्टी हमें इसका इनाम जरूर देगी।
ममता हलदर, कांग्रेस नेता

 

हम पिछले कई बार से पार्टी के िटकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। 2012, 2017 में हम पार्टी के प्रबल दावेदार रह चुके हैं। इस बार भी हमारी दावेदारी है। जनता से सीधा जुड़ाव हमारा प्लस प्वाइंट रहा है।
रीना कपूर, कांग्रेस नेता

 

 

शर्मा फैमिली का राजनीतिक दबदबा

परिवर्तन रैली में सुरेशी शर्मा

कांग्रेस के टिकट दावेदारों की बात करें तो शर्मा फैमिली की सुरेशी शर्मा का पलड़ा फिलहाल भारी दिखता है। इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में जनकराज शर्मा से लेकर सुभाष शर्मा, जनकराज शर्मा की पत्नी कैलाश रानी, रेखा शर्मा, जितेंद्र उर्फ सोनू शर्मा कांग्रेस के समर्पित सिपाही कहे जाते हैं। सुरेशी शर्मा के भतीजे जितेंद्र उर्फ सोनू शर्मा 2008 से 2014 तक ऊधमसिंह नगर से जिला पंचायत के उपाध्यक्ष रहे। 2014 से 2017 तक हरीश रावत सरकार में दर्जा राज्यमंत्री रहे। फिलहाल वह ऊधमसिंह नगर कांग्रेस कमेटी के जिला अध्यक्ष हैं। सोनू शर्मा ने अपनी चाची यानी सुरेशी शर्मा को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट दावेदारी में अपना पूर्ण समर्थन दे दिया है। इनके ज्येष्ठ सुभाष शर्मा केशोवाला के ग्राम प्रधान से लेकर डिस्ट्रिक को-ऑपरेटिव बैंक के डायरेक्टर और उपाध्यक्ष रहे। स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक के चेयरमैन तथा उत्तराखण्ड किसान कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष भी रहे। यूथ कांग्रेस में भी वह कई पदों पर बने रहे। इसी के साथ सुभाष शर्मा की पत्नी रेखा शर्मा 2003 से 2008 तक बाजपुर विकास खंड की ब्लॉक प्रमुख भी रही हैं। जबकि ज्येष्ठ जनकराज शर्मा ऊधमसिंह नगर जनपद के प्रथम जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं। जिला पंचायत के अलावा वह उत्तराखण्ड में दर्जा मंत्री भी रहे। बाजपुर और गदरपुर की ट्रक एवं बस यूनियन पर जनकराज शर्मा का दशकों तक एकछत्र राज रहा। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के अध्यक्ष रहे जनकराज शर्मा पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने 2007 के विधानसभा चुनाव में बाजपुर से कांग्रेस के टिकट पर जोरदार चुनावी शंखनाद किया था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनकी एक चुनावी सभा को संबोधित करने बाजपुर पहुंचे थे। दावा किया जा रहा था कि 2007 के विधानसभा चुनाव को जनकराज शर्मा जीत रहे थे, लेकिन नियति को शायद यह मंजूर नहीं था। जब एक चुनावी सभा से वह लौट रहे थे तो एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के बाद उनकी पत्नी कैलाश रानी ने कांग्रेस के टिकट पर बाजपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वह भाजपा प्रत्याशी अरविंद पाण्डेय से मात्र 3200 वोटों से हार गईं। बाद में कैलाश रानी कृषि उत्पादन मंडी समिति बाजपुर की निर्विरोध उपाध्यक्ष बनीं। सुरेशी शर्मा के ससुर गुरुवचन लाल शर्मा बाजपुर और चकरपुर के प्रधान होने के साथ ही सहकारी गन्ना विकास समिति के अध्यक्ष रहे। इसके अलावा वह नामित जिला पंचायत सदस्य और जिला को-ऑपरेटिव बैंक नैनीताल के डायरेक्टर भी रहे। गुरुवचन लाल शर्मा को शेर-ए-तराई भी कहा जाता था। सुरेशी शर्मा के पति अविनाश शर्मा नैनीताल सहकारी बैंक के अध्यक्ष से लेकर को-ऑपरेटिव सोसायटी बाजपुर के डायरेक्टर तथा हल्द्वानी, बाजपुर, काशीपुर, बस यूनियन के अध्यक्ष रह चुके हैं। 2011 में उन्हें कांग्रेस का गदरपुर से प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया। वह केसी सिंह बाबा के संसदीय चुनाव में बाजपुर से कांग्रेस प्रभारी बनाए गए थे तब यहां से उन्हें सबसे ज्यादा मत मिले थे। व्यापार मंडल चुनाव में उनका हस्तक्षेप रहता है। साथ ही वह ब्राह्मण सभा के संरक्षक भी हैं। वर्तमान में वह बाजपुर इंटर कॉलेज के निर्वाचित अध्यक्ष हैं। वह 2007 में कांग्रेस के प्रदेश सचिव भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी और कांग्रेस से प्रबल उम्मीदवार सुरेशी शर्मा की बात करें तो कांग्रेस की गदरपुर विधानसभा क्षेत्र से ब्लॉक कोषाध्यक्ष रह चुकी हैं। वर्तमान में वह कांग्रेस की महिला मोर्चा की प्रदेश सचिव हैं। वह कांग्रेस की सक्रिय सदस्यों में गिनी जाती हैं। पुरानी राजनीतिक पृष्ठभूमि के साथ लंबे समय तक सामाजिक कार्यों से जुड़कर जनसेवा करने में सुरेशी शर्मा आगे हैं।

मैं इस विधानसभा के एक मात्र स्थानीय और स्वाभाविक प्रत्याशी हूं। 1996 से गदरपुर क्षेत्र में सक्रिय तथा 2007 का चुनाव हारने के बाद भी लगातार क्षेत्र में रहकर क्षेत्र की समस्याओं के लिए संघर्षरत हूं। जातिगत समीकरण भी हमारे पक्ष में होने के बावजूद सभी वर्गों के लोग हमारे पक्ष में हैं। पार्टी ने अगर मुझे प्रत्याशी बनाया तो निश्चित रूप से सीट जीत कर भाजपा की झोली में डालेंगे।
रविंद्र बजाज, पूर्व भाजपा प्रत्याशी

मुझे लगता है कांग्रेस में मेरी दावेदारी एक महिला के रूप में, एक समाज सेवी के रूप में, एक बेटी के रूप में और एक युवा के रूप में बहुत सशक्त है। साथ ही मैं विधानसभा क्षेत्र के विकास के लिए विजन भी रखती हूं। किसान आंदोलन में भी मेरा योगदान रहा है। मैं पार्टी से मांग करती हूं कि महिलाओं को 50 प्रतिशत टिकट दिया जाना चाहिए।
शिल्पी अरोड़ा, कांग्रेस प्रवक्ता

 

 

कांग्रेस से दो बार जीत चुका हूं। बंगाली और अनुसूचित जाति जनजाति के वोटर हमारे साथ हैं। यह वोट बैंक कांग्रेस को जीत दिलाने के लिए मुख्य फै क्टर बनेगा। इसके आधार पर ही एक बार फिर पार्टी मुझ पर ही विश्वास जताएगी, ऐसा मेरा ही नहीं जनता का भी विश्वास है।
प्रेमानंद महाजन, पूर्व विधायक

 

कांग्रेस से टिकट मिलने पर गदरपुर विधानसभा की जनता का आशीर्वाद मिलता है तो मेरा एक ही उद्देश्य होगा कि पूरे प्रदेश और पूरे देश में गदरपुर की एक विशेष पहचान बने और मेरा क्षेत्र भी अन्य विकसित क्षेत्रों की तरह विकास के मार्ग पर अग्रसर हो।
प्रीत ग्रोवर, कांग्रेस नेता

 

यदि पार्टी मौका देती है तो गदरपुर विधानसभा क्षेत्र में सेवा-भाव से 2022 में होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी से विधानसभा में पहुंचकर जनता की आवाज बनना चाहता हूं।
किशोर कुमार, कांग्रेस नेता

 

 

सपा-बसपा के बाद ‘आप’ खेलेगी काली पर दांव

आम आदमी पार्टी ज्वाइन करते जरनैल सिंह काली

जरनैल सिंह काली वह नाम है जो पिछले कई विधानसभा चुनावों में अपनी दावेदारी कांग्रेस से करते आ रहे थे। लेकिन जब कांग्रेस में उन्हें टिकट नहीं मिलता है तो वह ऐन वक्त पर पाला बदल कर दूसरी पार्टी में चले जाते हैं और वहां से टिकट लेकर चुनाव लड़ जाते हैं। ऐसा पहली बार 2007 के चुनाव में हुआ जब वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर गदरपुर से चुनाव लड़े और 11,400 मत प्राप्त किए थे। 2012 में कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के भतीजे मनीषी तिवारी को टिकट मिल गया। जिसके बाद काली निर्दलीय ही चुनाव मैदान में कूद पड़े। तब काली को 22827 मत प्राप्त हुए। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनका टिकट फिर से काट दिया और राजेंद्र पाल सिंह को दे दिया। तब एक बार फिर काली दूसरी पार्टी का दामन थामने को मजबूर हुए। इस बार उन्होंने बसपा से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में काली को 26,000 वोट मिले। इन चुनावों में काली पर अरविंद पाण्डेय को अंदरखाने समर्थन देकर जिताने के आरोप भी लगे। इस बार फिर से 2022 की तैयारियों में जुट गए हैं। इस बार कांग्रेस में उम्मीद छोड़ काली ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया है। हालंाकि इस बाबत पूछने पर वह कहते हैं कि वह अभी आप से उम्मीदवार नहीं हैं, बल्कि पार्टी के कार्यकर्ता मात्र हैं। लेकिन जिस तरह से आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता गदरपुर के अपने उन नेताओं को समझाने में जुटे हैं जो काली का विरोध कर रहे हैं, उससे ऐसा लगता है कि पार्टी अभी से उनकी चुनावी फील्डिंग जमा रही है। दिनेशपुर के रवि कुमार पिछले विधानसभा चुनाव में काली के मुख्य चुनाव संयोजक रहे थे, वह तब भी आम आदमी पार्टी के सक्रिय नेता थे। रवि कुमार क्षेत्र के प्रमुख सामाजिक आंदोलनकारी मास्टर प्रताप सिंह के पुत्र हैं तथा छात्र नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं। वह भी आप से दावेदारों में शामिल हैं। इसके अलावा जिला पंचायत चुनावों में फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर जिला पंचायत सदस्य बन जाने और बाद में इस आरोप में जेल जो वाले त्रिनाथ विश्वास भी आप से चुनाव की तैयारी कर रहे थे। फिलहाल वह विधानसभा चुनाव लड़ाने के लिए अपनी पत्नी मीना विश्वास को आगे कर रहे हैं। इसके अलावा अमरजीत सिंह विर्क, सुभाष व्यापारी और सुरेंद्र काम्बोज भी आप से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं।

पिछले आठ सालों से मैं ‘आप’ के सक्रिय सदस्यों में शामिल रहा हूं। मैंने कई युवाओं को छात्र नेता का चुनाव लड़ाकर जिताया है। मैं खुद छात्र नेता रहा हूं। एक आंदोलनकारी पिता का पुत्र होने के चलते हर एक आंदोलन का हिस्सा रहा हूं चाहे वह रोड का मामला हो या भ्रष्टाचार का। 2017 में हमारी पार्टी चुनाव नहीं लड़ी तब हमने जरनैल सिंह काली को मजबूती से चुनाव लड़ाया था अब ‘आप’ का आशीर्वाद मुझे ही मिलेगा।
रवि कुमार, नेता आम आदमी पार्टी

त्रिनाथ विश्वास जी का कसूर यह था कि वह जनता के दुख-दर्द में बराबर शरीक हो रहे थे। वह गरीब कन्याओं की शादी अपने खर्चे से करा रहे थे और कोविड के दौरान मरीजों की सेवा कर रहे थे। उनकी प्रसिद्धि यहां के मंत्री को खल रही थी। फर्जी डाक्यूमेंट का आरोप लगाकर उन्हें जेल भिजवा दिया गया। लेकिन हम विधानसभा चुनाव जरूर लड़ेंगे चाहे हमें आम आदमी पार्टी टिकट दे या न दे।
मीना विश्वास, पत्नी त्रिनाथ विश्वास

 

हम बाहरी नहीं हैं। दिनेशपुर में हमारी जमीन है। हम पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद की बड़ी जिम्मेदारी पार्टी ने हमें दे रखी है। पार्टी जैसा आदेश देगी हम वैसा काम करेंगे।
सुमित भुल्लर, अध्यक्ष युवा कांग्रेस (कार्यकारी)  

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