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Uttarakhand

तीस सालों से सरकारी धन की लूट

उत्तराखण्ड राज्य गठन से लगभग 10 बरस पहले शुरू हुए एक फर्जीवाड़े का अब तक बेरोकटोक जारी रहना पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर देता है। खासकर राज्य के शिक्षा महकमे में जड़ तक जड़ें फैला चुके भ्रष्टाचार को ‘दि संडे पोस्ट’ की इस खास रपट से समझा जा सकता है। निजी विद्यालय के मैनेजमेंट और शिक्षा महकमे के अफसरों की मिली भगत के चलते पिछले तीस बरसों से कई करोड़ सरकारी ट्टान नियमों को ताक में रखकर वेतन के नाम पर जारी किया जा चुका है। हाईकोर्ट तक के निर्देश इस लूट को रोक पाने में सफल नहीं हो पाए हैं

क्या आप सोच सकते हैं कि तीस सालों सेे सरकारी खजाने से वेतन के नाम पर लाखों लूट की जा सकती है? यह असंभव प्रतीत होने वाली घटना है जिसे उत्तराखण्ड में सरकार, शासन और विभाग को जानकारी होने के बावजूद रोका तक नहीं गया है। इस मामले में इलाहाबाद-नैनीताल हाईकोर्ट ने नियमानुसार कार्यवाही करने के आदेश तक जारी किए हैं। इस बड़े घोटाले की नींव अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय में ही रखी गई थी। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी इस घोटालों को शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा पूरा संरक्षण दिया जाता रहा है। हैरानी की बात यह है कि दो-दो राज्यों से चले आ रहे इस सरकारी खजाने की लूट तीस सालों से निर्बांध चली आ रही है। एक अनुमान के मुताबिक इस लूट में अभी तक दो करोड़ से ज्यादा सरकारी खजाने से लूटा गया है। जानकारों की मानें तो उत्तराखण्ड में इस तरह के कई मामले हैं जो आज तक सामने नहीं आ पाए हैं, जबकि तकरीबन 20 से ज्यादा अशासकीय विद्यालयों  के मामले संदिग्ध बताए जा रहे हैं। उन सभी का आकलन किया जाए तो वित्तीय मान्यता के नाम पर एक बड़े घोटाले का खुलासा हो सकता है।
दरअसल, यह पूरा मामला अशासकीय विद्यालय को वित्तीय मान्यता देने के नाम पर तमाम नियमों के मानकों को ताक में रखकर वेतन देने का है। टिहरी जिले के फकोट विकास खण्ड के अंतर्गत मुनि की रेती कैलाशगेट स्थित विद्या निकेतन शिक्षा समिति के जूनियर हाईस्कूल में इसे खुल्लम-खुल्ला अंजाम दिया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक जिला शिक्षा विभाग का पूरा अमला और मंडलीय शिक्षा निदेशालय की संलिप्तता के चलते अब तक करोड़ों रुपये सरकारी खजाने से उड़ाए जा चुके हैं।

महागाथा के मुख्य किरदार
पीपी डंगवाल इस घोटाले के सूत्रधारों में विद्या निकेतन शिक्षा समिति के संस्थापक सचिव पीपी डंगवाल का नाम सबसे ऊपर है। अपने स्कूल के लिए राजनीतिक सिफारिश के दम पर मान्यता प्राप्त करके मानकों को कभी पूरा नहीं किया। जब मामला खुला और कार्यवाही का डर सताने लगा तो मानकों को पूरा करने का प्रयास किया लेकिन तब तक चोर पर मोर पड़ गया। अध्यापकों और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की संाठ-गांठ के चलते अपने ही जूनियर हाईस्कूल से बाहर कर दिए गए।

उत्तम सिंह राणा भाजपा के क्षेत्रीय नेता और मुनि की रेती नगर पंचायत के कई बार के अध्यक्ष रहे राणा ने शिक्षा विभाग और अध्यापकों के साथ मिलकर नई समिति बनाई और स्वयं प्रबंधक के पद पर काबिज हो गए, जबकि समिति का कहीं कोई पंजीकरण तक नहीं है। इसी समिति के तहत वर्षों से वेतन का भुगतान होता आ रहा है।

सीमा जौनसारी, तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी (वर्तमान बेसिक शिक्षा निदेशक) सीमा जौनसारी के कार्यकाल में भी इस मामले का विवाद सामने आया। इनके कार्यकाल में स्वीकृत पदों के सापेक्ष में ज्यादा पदों का वेतन दिया जाता रहा। इनके कार्यकाल के समय में ही वित्तीय मान्यता फिर से बहाल हुई, जबकि मानकों का पूरा न होने के बावजूद कार्यवाही करने के बजाय हाईकोर्ट के आदेश के एक भाग के तहत वेतन जारी किए जाने के आदेश जारी किए गए।

आईपी जोशी, तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी इसके कार्यकाल में विद्यालय की कई जांच हुई जिसमें मानकों को पूरा नहीं पाया गया लेकिन कार्यवाही करने के बजाय अध्यापकों के साथ मिलीभगत करके वेतन आदि का भुगतान किया जाता रहा है।

शंभु सिंह रावत, तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी इनके कार्यकाल में हाईकोर्ट के आदेश पर समिति के चुनाव में मानकों का घोर उल्लंघन कर समिति का गठन किए जाने के आरोप लगे। उप जिलाधिकारी नरेंद्रनगर ने अपनी जांच में मानी है कि बड़ी चूक की गई है।

नारायण लाल, तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी टिहरी
संचालक समिति द्वारा आरोप लगाया गया कि इनके कार्यकाल में स्कूल में इनकी एक रिश्तेदार को लिपिक के पद पर नियुक्ति दी गई थी जिसके चलते इन्होंने कार्यवाही करने के बजाय मामले को चलने दिया। इनके अलावा वर्ष 1991 से लेकर वर्तमान तक जितने भी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी और मंडलीय निदेशक शिक्षा पद पर रहे हैं, सभी ने इस मामले में कार्यवाही करने का प्रयास तक नहीं किया। इसी वजह से यह मामला तीस सालों से चला आ रहा है।

पटकथा 26 फरवरी 1970 को विद्या निकेतन शिक्षा समिति पंजीकरण किया गया और एक प्राथमिक विद्यालय आरंभ किया गया। कुछ समय के बाद विद्यालय को जूनियर हाई स्कूल बनाया गया। संस्था द्वारा जूनियर हाईस्कूूल बनाने के बाद से ही संस्था को आर्थिक तौर पर समस्याएं आने लगी तो समिति के संस्थापक सचिव पीपी डंगवाल द्वारा वर्ष 1989 में तत्कालीन उत्तरांचल विकास मंत्री बफिर्यालाल ज्वांठा से अपने स्कूल को शासकीय मान्यता के लिए अनुरोध किया। इस अनुरोध को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मान लिया गया और तत्कालीन मंडलीय सहायक शिक्षा निदेशक नंदन पांडे ने 2 अगस्त 1989 को को विद्या निकेतन शिक्षा समिति को मान्यता जारी कर दी। आदेश में सभी नियमों और मानकों का पालन करने और उनकी अवहेलना होने पर मान्यता रद्द किए जाने का उल्लेख किया गया था। साथ ही अनुदान सूची में लिए जाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किए जाने से पूर्व शिक्षण और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के पद सृजन की स्वीकृति प्राप्त कर नियमानुसार निहित प्रक्रिया के अनुसार नियुक्तियां किए जाने तथा विद्यालय के नाम भूमि और भवन की रजिस्ट्री होने का भी शर्त रखी गई। यहां पर गौर करने वाली बात यह हेै कि विद्या निकेतन शिक्षा समिति मुनि की रेती टिहरी गढ़वाल के द्वारा जूनियर हाईस्कूल को पृथक स्थापित किया गया था और इस जूनियर हाईस्कूल की संचालक मूल संस्था विद्या निकेतन शिक्षा समिति मुनि की रेती टिहरी गढ़वाल ही थी। जूनियर हाईस्कूल के लिए कोई अन्य संचालन समिति का गठन नहीं किया गया था। यही समिति टिहरी जिले के अन्य स्थानों पर स्कूल और अन्य कार्यक्रम चलाती रही है।

घोटाले की बुनियाद
बहरहाल विद्या निकेतन शिक्षा समिति मुनि की रेती टिहरी गढ़वाल के जूनियर हाईस्कूल को उत्तर प्रदेश सरकार से मान्यता प्राप्त हो गई। इसके बाद वित्तीय मान्यता के लिए शासन द्वारा जारी नियमों और कानूनों के तहत कार्यवाही आरंभ की गई। इसमें समिति के संचालकों से मिलीभगत कर जूनियर हाईस्कूल में पूर्व से ही तैनात शिक्षकों को जूनियर हाईस्कूल के नाम से शासन को भेजा गया जिसमें बताया गया कि सभी नियमों को पूरा कर लिया गया है और इन सभी शिक्षकों को नियमानुसार नियुक्तियां दी गई है। इसके बाद शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों द्वारा समिति का पूरा संरक्षण दिया गया और सभी शिक्षकों को वेतन आदि दिया जाना आरंभ कर दिया गया। विभाग द्वारा 7 पदों की स्वीकृति दी गई थी लेकिन तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा 10 पदों के लिए वेतन जारी कर दिया गया जो कि निरंतर दिया जाता रहा।

इस मामले में नियमों और शर्तों का भारी उल्लंघन होने पर स्थानीय समाज सेवी कोठारी द्वारा शिकायत की गई जिस पर समिति को नोटिस जारी किया गया और वेतन आदि को रोक दिया गया। साथ ही समिति को स्पष्ट आदेश देते हुए तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा समिति को 7 पदों पर नियुक्ति करने और नियुक्तियों का विवरण समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित करने का आदेश दिया।

इस चयन प्रक्रिया के आरंभ होने से पूर्व विद्यालय के अध्यापक सोहन लाल नौटियाल और अन्य अध्यापकों द्वारा हाईकोर्ट इलाहबाद में रिट याचिका संख्या शून्य/1991 दायर की गई। जिस पर 19 जुलाई 1991 में नियुक्तिों पर रोक लगा दी गई। इसके बाद अध्यापकों द्वारा वेतन भुगतान के लिए एक बार फिर से हाईकोर्ट इलाहबाद में रिट याचिका संख्या 19902/91 दायर की गई जिसमें हाईकोर्ट ने वेतन भुगतान के आदेश जारी कर दिए।
अब शिक्षा विभाग द्वारा समिति को 8 पदों के लिए वेतन बिल प्रस्तुत करने का पत्र जारी किया गया। इसमें गौर करने वाली बात यह हेै कि स्वयं शिक्षा विभाग ने 7 पद स्वीकृत किए थे लेकिन वेतन 10 पदों का जारी किया गया। जबकि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट लिखा था कि या तो वेतन न देने का कारण बताए या फिर वेतन जारी करें, जबकि वित्तीय मान्यता के अनुसार किसी भी नियम का पालन तक नहीं किया गया था और न ही नई नियुक्तियां और न ही साक्षातकार लिया गया। यहां तक कि विद्यालय का अपना भवन भूमि तक नहीं थी जिसको विभाग पहले ही अपनी जांच में स्वीकार कर चुका था जिसके आधार पर वित्तीय मान्यता रोकी गई थी। बावजूद इसके विद्यालय में पूर्व से नियुक्त अध्यापकों को विभाग वेतन देता रहा और हाईकोर्ट के नोटिस के बाद 8 पदों के लिए वेतन बिल प्रस्तुत करने के लिए पत्र जारी किया।

समिति के संचालक पीपी डंगवाल द्वारा विभाग को पत्र लिखा गया जिसमें कहा गया कि विद्यालय में पूर्व में 10 पदों को वेतन दिया जाता रहा है तो 8 पदों को ही वेतन क्यों दिया जा रहा है, अन्य दो कर्मचारियों को भी वेतन निर्गत किया जाए।

शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों की संलिप्ता शिक्षा विभाग अध्यपकों को वेतन देने के लिए कितना तत्पर था इसका प्रमाण इस बात से ही समाने आ जाता हैे कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने समिति को लिए गए पत्र में स्पष्ट किया कि शीघ्र ही वेतन बिल को हस्ताक्षरित करके पत्र वाहक को उपलब्ध करवाए जिससे हाईकोर्ट के 26/11/1991 के आदेश का अनुपालन सुनश्चित हो सके। हैरानी इस बात की है कि हाईकोर्ट ने विभाग को सभी नियमों और मानकों के अनुसार कार्यवाही करने की बात अपने आदेश में स्पष्ट की थी जिसके आधार पर सभी अध्यापकों की नियुक्तियां ही अवैध मानी जानी चाहिए थी लेकिन शिक्षा विभाग हर हालत में अध्यापकों को वेतन देने के काम में जुटा हुआ था। जबकि विभाग आसानी से हाईकोर्ट को बता सकता था कि मानकों और नियमों का पालन नहीं होने पर वेतन रोका गया है। समिति के संचालक द्वारा वेतन बिलों पर अपने हस्ताक्षर कर विभाग को नहीं भेजे तो मंडलीय शिक्षा निदेशक पोैड़ी द्वारा उप बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी को 12 मार्च 99 को पत्र लिखकर 6 माह के लिए नियंत्रक नियुक्त कर दिया ताकि 6 माह के भीतर विद्यालय में प्रबंध तंत्र को गठन किया जाए।

विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत का दूसरा प्रमाण भी तब तक सामने आया कि जब पूर्व में दस अध्यापकों औेर कर्मचारियों जिनको विभाग वेतन निर्गत करता रहा, में शामिल लिपिक जेपी रणाकोटी और चपरासी पीडी जोशी भी हाईकोर्ट इलाहाबाद 26-11-91 के आदेश के अनुरूप अपने लिए भी शौकौज नोटिस लेकर आ गए। इस नोटिस के जवाब में तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आईपी जोशी ने हाईकोर्ट को रिट पीटीशन संख्या 11119/1992 में दायर प्रति शपथ पत्र में कहा कि लिपिक लिपिक जेपी रणाकोटी और चपरासी पीडी जोशी की नियुक्ति नहीं की गई थी। जबकि 27/7/91 के साक्षात्कार में यह दोनों ही शामिल थे और लिपिक पद पर हाईकोर्ट द्वारा स्थगन आदेश नहीं था। गौर करने वाली बात यह है कि जिन 8 पदों का वेतन देने के लिए विभाग लालायित था उनकी भी नियुक्तियां नहीं हुई थी और वे भी लिपिक और चपरासी के संग विद्यालय में कार्यरत थे।

बात यहीं तक सीमित नहीं रही। बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी द्वारा 8 अध्यापकों और कर्मचारियों को वेतन का भुगतान कर दिया गया। जबकि हाईकोर्ट ने आदेश में स्पष्ट तौर पर अंकित किया था कि प्रबंध समिति को विश्वास में लेकर नियमानुकूल कार्यवाही की जाए और वेतन आदि का भुगतान प्रबंध समिति के माध्यम से किया जाए।

तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी सीमा जौनसारी जो वर्तमान में माध्यमिक शिक्षा निदेशक हैं, की भूमिका पर इसके चलते गंभीर सवाल खड़े होते हैं। 1 मार्च 1995 को आदेश जारी कर के सीमा जोैनसारी ने 7 पदों के स्थान पर 9 पदों को वैध मानते हुए वित्तीय अनुदान पर लगी रोक को हटा दिया और समिति को इसकी सूचना पत्र द्वारा देकर विभाग द्वारा जारी वेतन बिलों पर हस्ताक्षर करने का आदेश दे दिया। जब समिति के संचालक द्वारा हस्ताक्षर नहीं किए तब सीमा जौनसारी के आदेश पर विभाग ने स्वयं ही 8 लोगों को वेतन निर्गत कर दिया।

शिक्षा विभाग के इस कारनामे की पोल जब शासन और प्रशासन तक पहंुची तो विभाग द्वारा मूल समिति के खिलाफ कई रिपोर्ट तैयार करवाई गई और उप शिक्षा निदेशक पौड़ी के आदेश पर एक नई समिति के गठन किए जाने के आदेश जारी किए गए 16/8/1999 को एक नई प्रबंध समिति का गठन किया गया जिसका अध्यक्ष मुनि की रेती के राजनीतिक व्यक्ति उत्तम सिंह राणा को बनवा दिया गया। राणा भाजपा से लंबे समय से जुड़े रहे हैं। और नगर पंचायत मुनि की रेती के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। अनुमोदन स्वयं तत्कालीन जिला टिहरी के बेसिक शिक्षा अधिकारी नारायण लाल ने अनुमोदन के लिए नियंत्रक को भेजा।

समिति का आरोप है कि तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी नारायण लाल ने अपनी एक रिश्तेदार को इस स्कूल में लिपिक के पद पर नियुक्ति देने पर ही नई समिति जो कि पूरी तरह से अवैध थी, का अनुमोदन करवाया था। नारायण लाल की रिश्तेदार कुछ महीनों तक स्कूल में कार्य भी करती रही। मजेदार बात यह हैे कि सोसायटी रजिस्ट्रार में भी मूल समिति को ही पंजीकृत समिति माना है और उत्तम सिंह राणा की समिति को मान्यता नहीं दी है। इससे यह भी साफ हो गया कि जिला शिक्षा अधिकारी ने फर्जी समिति का अनुमोदन करवाया। नई समिति का चुनाव और गठन भी अवेैध तरीके से किया गया है। इन सब के बावजूद शिक्षा विभाग वेतन आदि का भुगतान लगातार कर रहा है।

हाईकोर्ट तक को किया गुमराह
बहरहाल पीपी डंगवाल द्वारा उनकी मूल वैध समिति को हटाकर अवैध समिति के गठन को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। तब जिला शिक्षा अधिकारी शंभुनाथ सिंह रावत ने फिर से एक कमेटी बनाकर 7 जनवरी 2015 को नई सूची बनाकर उस सूची में पीपी डंगवाल का भी नाम जोड़ दिया और इस सूची को अनुमोदित भी कर दिया। इस मामले की शिकायत जिलाधिकारी से की गई तो उनके आदेश पर समिति के चुनाव पर रोक लगा दी गई। साथ ही पूरे मामले में जिलाधिकरी नरेंद्रनगर को जांच करने के आदेश दिए। दोनांे समिति के सदस्यों को उप जिलाधिकारी नरेंद्रनगर के सामने प्रस्तुत होकर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया गया लेकिन नई समिति इस कमेटी के सामने प्रस्तुत ही नहीं हुई। यहां तक कि जिला शिक्षा अधिकारी शंभुनाथ सिंह रावत भी नहीं आए। अध्यापकों ने अपने बयान जरूर दर्ज करवाएं जो कि समिति के सदस्य भी नहीं थे।

प्रशासन की जांच रिपोर्ट में भी घोटाले की पुष्टि
जिलाधिकारी टिहरी द्वारा उप जिलाधिकारी नरेंद्रनगर को जब समिति के चुनाव और विवाद की जांच करने का आदेश दिया तो उप जिलाधिकारी नरेंद्रनगर ने समिति के चुनाव में जिला शिक्षा अधिकारी स्तर से चूक होने की बात अपनी रिपोर्ट में लिखी थी। बावजूद इसके विभाग द्वारा नई प्रबंध समिति को ही मान्यता दी जाती रही, जबकि नई प्रबंध समिति पंजीकृत तक नहीं हो पाई है। इसके अलावा उप जिलाधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में विद्या निकेतन शिक्षा समिति पर लग रहे आरोपों की जांच में भी पाया कि समिति के पास अपना कोई भवन नहीं है और न ही रजिस्ट्री की भूमि है। महज किराए के पांच कमरांे में प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूल समांतर चलाए जा रहे हैं।

उपसंहार
उत्तराखण्ड में वित्तीय मान्यता के नाम पर चल रहे बड़े घोटाले की यह मामला केवल एक बानगी है। माना जाता हैे कि प्रदेश में 20 से भी ज्यादा स्कूलों में इस तरह के मामले हैं जिनको शिक्षा विभाग द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है। जबकि शासन द्वारा इस मामले में जांच किए जाने के आदेश भी दिए गए थे। लेकिन उन मामलों का क्या हुआ यह किसी को पता नहीं है। विद्या निकेतन शिक्षा समिति का मामला तो सबसे हैरान करने वाली है। अविभाजित उत्तर प्रदेश से आरंभ हुए इस मामले को उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद भी निरंतर किया जाता रहा है। कई जांच में यह साफ हो गया कि स्कूल के मानकांे और नियम पूरे नहीं है। वाबजूद इसके वित्तीय मान्यता बंद होने के बाद फिर से शुरू कर दी जाती है। दो दर्जन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों और मंडलीय शिक्षा निदेशकों की आंखों के सामने यह मामला गुजरता रहा लेकिन कार्यवाही करने के बजाय आंखें बंदकर ली गई और घोटाला होने दिया गया।

बात अपनी-अपनी
मैं 2017 में इस पद पर आया हूं। सात पदों पर वेतन दिया है। वर्तमान में केवल 4 पदों पर ही वेतन दिया जा रहा है। मामला मेरे समय का नहीं है लेकिन मैं पूरी तरह से श्योर हूं कि स्कूल को वित्तीय मान्यता मानकों पर ही दी गई है। प्रबंधकीय कमेटी भी रजिस्टर्ड है और पूरी तरह से वैध है।
सुदर्शन सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी

जो मामला आप बता रहे हैं वह मेरे कार्यकाल का नहीं है। पहले का होगा तो मैं कह नहीं सकता। अगर ऐसा मामला है तो मैं इसकी जांच करूंगा।
शिव प्रसाद सेमवाल, उन शिक्षा अधिकारी नरेंद्र नगर

पहले मैं इस मामले की फाइलों को देखूंगी तब निश्चित ही आप को अपना बयान दूंगी।
सीमा जौनसारी, निदेशक बेसिक शिक्षा उत्तराखण्ड

हमारी समिति आज भी काम कर रही है और रजिस्टर्ड समिति है। हाईकोर्ट ने भी कहा था कि मूल समिति को विश्वास में लेकर प्रबंधक कमेटी का गठन किया जाए लेकिन विभाग और अध्यापकों ने मिलीभगत कर एक फर्जी कमेटी बनाकर लाखों का वेतन जारी किया हैे और किया जा रहा है। स्कूल हमारा है और हमें ही स्कूल से बाहर किया गया है। हाईकोर्ट को भी शिक्षा विभाग ने गुमराह किया है ओैर हाईकोर्ट की अवमानना भी की है। यह मामला शिक्षा विभाग औेर शासन के संज्ञान मंे है। मुख्यमंत्री और सचिव शिक्षा को भी इस बड़े खेल की पूरी जानकारी है। लेकिन इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है। हमने अपराध किया है तो हमें तो बाहर कर दिया लेकिन इस अपराध से जिनको आज तक फायदा होता आ रहा है उनको कोई सजा नहीं दी गई है।
पी.पी. डंगवाल, सचिव विद्या निकेतन शिक्षा समिति मुनि की रेती

प्रबंध कमेटी हाईकोर्ट के आदेश पर बनी है। समिति रजिस्टर्ड है। मैं वेतन नहीं निकालता हूं। आपको इस बारे में जो भी बात करनी है वह जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी टिहरी से करें।
उत्तम सिंह राणा, प्रबंधक विद्या निकेतन स्कूल प्रबंध समिति

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