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Uttarakhand

निकाय चुनाव का ‘लिट्मस टेस्ट’

बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव को लेकर भाजपा कांग्रेस के बीच जबरदस्त टक्कर होने के आसार हैं। भाजपा को जहां सहानुभूति लहर का फायदा मिलने की उम्मीद है तो वहीं कांग्रेस ‘आप’ छोड़कर आए बसंत कुमार की जमीनी छवि को भुनाने की कोशिश में जुटी है। यह चुनाव आगामी निकाय चुनाव के लिए ‘लिटमस टेस्ट’ के रूप में देखा जा रहा है। प्रत्याशी की हार-जीत इस साल के अंत में होने वाले निकाय चुनावों का भी रुख तय करेगी

 

वर्ष 1967 में अस्तित्व में आने के बाद बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के लिए ये पहला मौका है। जब उसे किसी उपचुनाव में जाना पड़ रहा है। ये उपचुनाव लगातार चार बार के विधायक और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मंत्रिमंडल में समाज कल्याण और परिवहन मंत्री रहे चंदन राम दास के निधन के चलते हो रहा है। चंदन राम दास का विगत 26 अप्रैल 2023 को निधन हो गया था। चुनाव आयोग ने 5 सितंबर 2023 बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव की तिथि तय की है। हमेशा की तरह इस बार भी मुकाबला मुख्य रूप से कांग्रेस और भारतीय जनता पाटी्र के बीच तय माना जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने स्व . चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी छोड़कर आए बसंत कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है। बहुजन समाज पार्टी और उत्तराखण्ड क्रांति दल, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी ने अपने प्रत्याशी जरूर खड़े किए हैं लेकिन उनका इतना प्रभाव नहीं है कि वो चुनाव के समीकरणों में उलटफेर की क्षमता रखते हों।

1967 में अस्तित्व में आने के बाद से बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रहा है। 1967 से उत्तराखण्ड राज्य गठन होने तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा। 1967 से 1996 तक हुए दस विधानसभा चुनावों में सात बार कांग्रेस और तीन बार भारतीय जनता पार्टी को यहां के मतदाताओं ने अवसर दिया लेकिन उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद राजनीतिक स्थिति बिलकुल उलट रही। 2002 से 2022 तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में कांग्रेस एक बार और भारतीय जनता पार्टी चार बार इस सीट को जीतने में कामयाब रही। खास बात ये रही कि 2007 में भारतीय जनता पार्टी के पहली बार प्रत्याशी बने चंदन राम दास 2007, 2012, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में ये सीट भाजपा की झोली में डालते रहे। 1967 से नजर डालें तो 1967 के विधानसभा चुनावों में गोपाल राम दस ने इस सीट का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश विधानसभा में किया जो कांग्रेस के टिकट पर चुने गये थे। 1969 और 1974 में सरस्वती टम्टा इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनी गई। 1977 में जनता पार्टी की लहर में पूरन चंद्र आर्य चुने गए।

1980, 1985 और 1989 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के गोपाल राम दास इस सीट पर विजयी रहे। 1991 के विधानसभा चुनावों से भारतीय जनता पार्टी का इस सीट पर ग्राफ बढ़ता गया। 1991 में पूरन चंद्र आर्य ने विजय हासिल की तो 1993 में रमा प्रसाद टम्टा यहां से विधायक चुने गए। जिन्हें कांग्रेस ने पहली बार विधायक का प्रत्याशी बनाया था। 1996 में भारतीय जनता पार्टी के नारायण राम दास ने विधानसभा चुनाव जीता जो 2000 में उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद बनी अंतरिम सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे। 2002 में राम प्रसाद टम्टा राज्य गठन के बाद हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विजयी रहे। 2007 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने चंदन राम दास को अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेसी पृष्ठभूमि के चंदन राम दास ने 1997 में बागश्ेवर नगर पालिका अध्यक्ष के लिए टिकट कांग्रेस से न मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। वे 2006 में भगत सिंह कोश्यारी के आग्रह पर भाजपा में शामिल हुए और 2007 से 2022 के मध्य हुए चार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लगातार जीते। कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रही बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र में अब कांग्रेस को मशक्कत करनी पड़़ रही है। पुराने कांग्रेस के नेताओं ने नये युवा नेतृत्व को उभरने नहीं दिया। शायद इसी का खामियाजा आज कांग्रेस भुगत रही है। 2017 के चुनावों में जरूर कांग्रेस ने नये चेहरे को टिकट दिया लेकिन पूर्व विधायक राम प्रसाद टम्टा ने कांग्रेस छोड़ने में देर नहीं की और भाजपा में शिमल हो गये। पूर्व विधायक व उत्तर प्रदेश के समय मंत्री रहे गोपाल राम दास के पुत्र रंजीत दास 2017 में कांग्रेस के टिकट के प्रबल दावेदार थे परंतु उस वक्त बाल किशन अपने उच्च संपर्कों के चलते टिकट ले आए थे।

2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने रंजीत दास को अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में रंजीत दास भाजपा के चंदन राम दास से 12141 मतों से पराजित हो गये थे। गौर करने वाली बात ये है कि बसंत कुमार जिन्हें इस बार कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है। 2022 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी थे और 16109 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। 2022 के कांग्रेस प्रत्याशी और आम आदमी प्रत्याशी के मतों को जोड़ दें तो ये भाजपा प्रत्याशी के मतों से ज्यादा होते हैं। बसंत कुमार के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने की चर्चा काफी समय से चल रही थी। शायद इसकी भनक रंजीत दास को हो गई थी तभी एन वक्त पर उन्होंने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। रंजीत दास भले ही अपने पिता गोपाल राम दास की विरासत के आधार पर राजनीतिक आधार का दावा करें लेकिन वो जमीन पर अपनी पैठ नहीं बना सके। हालांकि हरीश रावत ने उन्हें मुख्यमंत्री रहते अपना विशेष कार्याधिकारी बनाया था। जहां तक बसंत कुमार का प्रश्न है जब वो 2017 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े थे तो लगभग 11 हजार वोट लाए थे तथा 2022 में आम आदमी के टिकट पर लड़कर 16 हजार के करीब वोट लाए थे। 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने लगभग 16 प्रतिशत वोट पाकर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है उसे पार्वती दास के पक्ष में सहानुभूति का पूरा लाभ मिलने का भरोसा है। साथ ही पार्टी का मजबूत जमीनी संगठन भाजपा प्रत्याशी की ताकत है। चंदन राम दास के लिए विकास कार्य और उनका सहज व्यवहार पार्टी प्रत्याशी के लिए सकारात्मक पक्ष है।

भाजपा फिलहाल इस सीट को अपने पाले में मानकर चल रही है। इसके पीछे इमोशनल कार्ड भी एक कारण माना जा रहा है। प्रदेश का राजनीतिक इतिहास देखें तो अब से पहले विधायक या मंत्री रहते जिस भी राजनेता की मौत हुई है उसके बाद हुए उपचुनाव में उनके परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया जाता रहा है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि राजनेता की मौत के बाद अधिकतर उनके परिवार के सदस्य चुनाव लड़ते हैं तो वे सहानुभूति लहर के बलबूते चुनाव जीत जाते हैं। भाजपा बागेश्वर उपचुनाव को लेकर इतना ओवर कॉन्फिडेंस में दिख रही है कि पार्टी के मुखिया ने तो इस सीट को लेकर यहां तक कह डाला है कि यहां वह निर्विरोध चुनाव जीत जाएंगे। हालांकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट का बागेश्वर उपचुनाव को निर्विरोध जिताने का दावा लोगों के गले नहीं उतर रहा है। बागेश्वर विधानसभा का उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती है। जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए सीट बचाने की चुनौती है वहीं कांग्रेस 2022 के विधानसभा चुनावों की हार से उबर कर लोकसभा चुनावों से पूर्व एक संजीवनी की तलाश में है। भारतीय जनता पार्टी को सरकार के साथ मजबूत संगठन का लाभ है वहीं सहानुभूति का सहारा भी है।

कांग्रेस के सामने अपने बिखरे जनाधार को समेटने के साथ सभी नेताओं को एक साथ लेकर चलने की चुनौती भी है। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने इस उपचुनाव को एक चुनौती के रूप में लिया है। जिसके चलते उन्होंने प्रत्याशी चयन में रंजीत दास की नाराजगी को दरकिनार कर दिया। एक लंबे समय बाद इस उपचुनाव में कांग्रेस को एक उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। उत्तराखण्ड में उपचुनावों का इतिहास देखें तो पिथौरागढ़ और पुरोला के उपचुनावों में सहानुभूति की लहर के बावजूद भाजपा प्रत्याशियों की जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं था और कांग्रेस भी अंदरूनी राजनीति का शिकार थी। इस बार कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व उन गलतियों को नहीं दोहराना चाहता। हालांकि उत्तराखण्ड के उपचुनावों में बहुत ज्यादा उलटफेर देखने को नहीं मिलता है। देखना होगा कि बागेश्वर विधानसभा क्षेत्र की जनता उसी कवायद को बरकरार रखती है या फिर नई इबारत लिखती है।

इस बार हम बागेश्वर उपचुनाव जीत रहे हैं। हमारी पार्टी के सभी नेता और कार्यकर्ता एकजुट हैं। प्रदेश में भाजपा के प्रति लोगों में काफी रोष है। महंगाई से लेकर भ्रष्टाचार तक हर तरफ से जनता आजित आ चुकी है। इसकी परिणति चुनाव में हार के रूप में सामने आएगी।
करण माहरा, अध्यक्ष प्रदेश कांग्रेस

 

भाजपा फिलहाल इस सीट को अपने पाले में मानकर चल रही है। इसके पीछे इमोशनल कार्ड भी एक कारण माना जा रहा है। प्रदेश का राजनीतिक इतिहास देखें तो अब से पहले विधायक या मंत्री रहते जिस भी राजनेता की मौत हुई है उसके बाद हुए उपचुनाव में उनके परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट दिया जाता रहा है। इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि राजनेता की मौत के बाद अधिकतर उनके परिवार के सदस्य चुनाव लड़ते हैं तो वे सहानुभूति लहर के बलबूते चुनाव जीत जाते हैं। भाजपा बागेश्वर उपचुनाव को लेकर इतना ओवर कॉन्फिडेंस में दिख रही है कि पार्टी के मुखिया ने तो इस सीट को लेकर यहां तक कह डाला है कि यहां वह निर्विरोध चुनाव जीत जाएंगे।

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