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राज्य की आर्थिक बदहाली के बावजूद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बंपर दायित्व बांटे। लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी नेताओं के असंतोष को दबाने के लिए उन्हें एक यही तरीका सूझा। लेकिन इससे भी उनकी दिक्कतें दूर नहीं होने वाली। दायित्व से वंचित नेताओं के आक्रोश की आग अंदर ही अंदर सुलग रही है। जो लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है

लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के दर्जनों नेताओं को सरकार में एडजस्ट कर दिया गया है। 58 नेताओं को दयित्व देकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पार्टी के भीतर पनप रहे असंतोष को कम करने का प्रयास किया है। इन दायित्वधारियों में से दो को कैबिनेट स्तर और 23 को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। शेष को विभिन्न आयोगों, निगमों और परिषदों में सदस्य के तौर पर स्थान दिया गया है। इससे पूर्व दिसंबर माह में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा अपने जन्म दिन के अवसर पर 14 भाजपा नेताओं को दायित्व दिए गए थे। इस तरह अब तक तकरीबन 75 नेताओं को सरकार में एडजस्ट किया जा चुका है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बम्पर दायित्वों का बंटवारा करके एक साथ कई समीकरणों को साधने का काम किया है। लेकिन इसके बावजूद उनकी दिक्कतें कम नहीं होंगी। लोकसभा चुनाव में वे नेता उदासीन रहेंगे जो दायित्व की उम्मीदें पाले हुए थे।

मुख्यमंत्री ने भाजपा के तकरीबन 80 नेताओं को किसी न किसी तरह से दायित्व देकर पार्टी में बढ़ रहे असंतोष को दबाने का प्रयास किया है। लेकिन थोक के भाव में आठ कैबिनेट और 23 नेताओं को राज्यमंत्री का दर्जा देने से सरकारी खजाने को बड़ी चपत लगनी तय माना जा रहा है। इन महानुभावों को कार्यालय, वाहन तथा चालक के अलावा दो स्टाफ के खर्च के अलावा भत्ते आदि दिए जाने का प्रावधान भी किया गया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रतिवर्ष लाखों रुपया सरकार के बजट से इन महानुभावों को दिया जाएगा। हाल ही में संपन्न हुए बजट सत्र में यह साफ तौर पर निकल कर आया है कि सरकार का वित्तीय अनुशासन पूरी तरह से लड़खड़ा चुका है। बावजूद इसके दायित्वधारियों को कैबिनेट और राज्य स्तरीय दर्जा दिए जाने के पीछे महज भाजपा की अंदरूनी राजनीति को ही माना जा रहा है। राज्य का जागरूक मतदाता इससे चिंतित है और लोकसभा चुनाव में इसका भाजपा को नुकसान हो सकता है।

फिलहाल भाजपा के भीतर दयित्वों के बंटवारे के बाद विरोध के कोई खास स्वर सामने नहीं आए हैं। लेकिन नए-नए भाजपा में शामिल नेताओं के सीधे सरकार में एडजस्ट होने को पार्टी कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं। इस बात से कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं में रोष बना हुआ है। जबकि कई वरिष्ठ और पुराने भाजपा नेता दायित्व की उम्मीद में बैठे हुए हैं। ऐसे नेताओं की उपेक्षा आने वाले समय में भाजपा के भीतर बड़ी राजनीतिक हलचल मचा सकती है। पूर्व में कई भाजपा नेताओं की अनदेखी प्रदेश भाजपा संगठन के साथ साथ सरकार में भी देखी जा रही थी। इसका ही बड़ा असर रहा कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के कुर्सी संभालने के कुछ ही माह बाद ही राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं बड़ी तेजी से उठने लगी।

माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने दायित्वों में प्रदेश संगठन का भी मान रखा है, लेकिन बड़े और महत्पूवर्ण दायित्वों में अपने खास समर्थकों का ज्यादा ध्यान रखा है। पूर्व में भाजपा की सरकारों में दायित्वधारी रहे कुछ नेताओं को भी दायित्व मिले हैं। प्रदेश महामंत्री नरेश बंसल, ज्ञान सिंह नेगी, ज्योति प्रसाद गैरोला, बलराज पासी और पूर्व कैबिनेट मंत्री विजया बड़थ्वाल को कैबिनेट मंत्री स्तर का दर्जा दिया गया है। पूर्व में अपने जन्मदिन के अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने 14 नेताओं को दायित्व दिए थे। तब ‘दि संडे पोस्ट’ ने दायित्व पाने वाले संभावित नेताओं के नाम पाठकों के सामने रखे थे। उनमें से पांच नेताओं ज्योति गैरोला, कर्नल सीएम नैटियाल, रामकøष्ण रावत, रिपुदमन सिंह, बलराज पासी को दयित्व दिए गए हैं।

कई ऐसे नेताओं को भी सरकार में एडजस्ट किया गया है जिनके बारे में स्वयं भाजपा नेताओं को भी मालूम नहीं था कि वे कभी भाजपा के नेता रहे हैं। जैसा कि कथा वाचक शिव प्रसाद ममगांई को राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। इसी तरह ऋषिकेश निवासी भगतराम कोठारी को भी राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है, जबकि कोठारी भाजपा में महज दो वर्ष पूर्व शामिल हुए हैं। इसके बावजूद कोठारी को कई वरिष्ठ और समर्पित भाजपा नेताओं को दरकिनार करके मुख्यमंत्री द्वारा सीधे राज्यमंत्री का दर्जा देकर नई परंपरा की शुरूआत कर दी गई है। गोर करने वाली बात यह है कि भगत राम कोठारी कांग्रेसी रहे हैं। नगर पालिका ऋषिकेश के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार भी रह चुके हैं। इसी तरह भाजपा में दो वर्ष पूर्व शामिल हुए रुद्रप्रयाग के बड़े कांग्रेसी नेता विरेंद्र बिष्ट को भी राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है। बिष्ट भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हैं। पूर्व में भी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपनी टीम में कई ऐसे चेहरों को शमिल किया जो शायद ही भाजपा से कभी जुड़े थे जिसमें औद्योगिक सलाहकार कुंवर सिंह पंवार और स्वास्थ्य सलाहकार नवीन बलूनी को सरकार में एडजस्ट किया गया। इन दोनों के बारे में कहा जाता है कि ये दोनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के नजदीकी और खास मित्र रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस सरकार में राज्यमंत्री के पद पर रहीं उषा नेगी को बाल संरक्षण आयोग का उपाध्यक्ष बनाकर मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया था कि सरकार में वही एडजस्ट होगा जिसे वे चाहेंगे।

माना जाता है कि प्रदेश भाजपा संगठन में इसको लेकर खासा बवाल भी मचा और भाजपा नेताओं ने गैर भाजपा पृष्ठभूमि के नेताओं को सरकार में एडजस्ट करने पर विरोध भी किया। लेकिन मुख्यमंत्री ने सभी विरोधों को दरकिनार कर अपनी टीम में चाहे वह शासन स्तर की रही हो या राजनीतिक स्तर की न तो भाजपा नेताओं की मानी और न ही प्रदेश भाजपा संगठन को तवज्जो दी। तकरीबन चालीस ओएसडी, मीडिया समन्वयक और निजी सचिव के अलावा कई पदों को मुख्यमंत्री की टीम में शामिल करके पद नवाजा। हालांकि ये सभी पद मुख्यमंत्री कार्यालय टीम के हैं, किंतु इन पदों के लिए भी भाजपा के कई नेताओं ने अपने-अपने चहेतों को मुख्यमंत्री कार्यालय में एडजस्ट करने के लिए जी-जान लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन किसी को भाव नहीं दिया गया।

राजनीतिक तौर पर माना जा रहा है कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री ने दायित्व बांटकर भाजपा में पनप रहे अंसतोष को दबाने के प्रयास किए हैं। लेकिन ऐसे नेताओं में खासा रोष देखने को मिल रहा है जिनको आज तक भाजपा सरकार या संगठन में कोई दायित्व नहीं दिया गया है। कई ऐसे नेता भी हैं जो प्रदेश भाजपा संगठन में पदों पर तो हैं, लेकिन उनके कामकाज को सरकार में एडजस्ट करने के लायक ही नहीं समझा गया है। ऐसे नेताओं का अंसतोष लोकसभा चुनाव में क्या रंग लाता है, यह देखने वाली बात होगी। साथ ही भाजपा के बड़े नेताओं निंशक, खण्डूड़ी और कोश्यारी समर्थकों को सरकार में एडजस्ट न करने से भी पार्टी के भीतर रोष बना हुआ है, जबकि माना जा रहा है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में सांसदों में कोई बड़ा फेरबदल नहीं कर रही है।

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