[gtranslate]
Uttarakhand

नेताओं को फिर याद आया सख्त भू-कानून

उत्तराखण्ड राज्य विधानसभा के चुनाव में मात्र छह माह रह गए हैं। ऐसे में राज्य के नेताओं को यकायक ही प्रदेश में सख्त भूमि कानून बनाने की याद हो आई है। पिछले बीस बरसों से राज्य में जब-जब चुनाव आते हैं राजनीतिक दल पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन, दुर्गम इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं, बढ़ती बेरोजगारी आदि घिसे-पिटे मुद्दों को उठाने लगते हैं। इस बार लेकिन इन मुद्दों से इतर एक ऐसा मुद्दा जोर पकड़ने लगा है जिससे बचने का प्रयास प्रदेश के दोनों बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा करती रही हैं। इस बार लेकिन इसे ही सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बनते देख मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी इसके पक्ष में उतरती नजर आने लगी है तो सत्तारूढ़ भाजपा डिफेंसिव मोड में है। दरअसल इस मुद्दे को आग देने का काम राज्य के एक बड़े भाजपा नेता और सरकार में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के एक ट्वीट ने कर डाला। गत! 25 जून को सतपाल महाराज ने सिने कलाकार मनोज वाजपेयी संग अपनी एक तस्वीर ट्वीट करते हुए लिखा ‘हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध कलाकार मनोज वाजपेयी लमगड़ा के कपकोट में खरीदी जमीन की रजिस्ट्री के लिए अल्मोड़ा पहुंचे। उन्होंने मुझसे मुलाकात की और बताया कि अल्मोड़ा में पर्यटन विकास के लिए उनसे जो भी सहयोग होगा, वह करेंगे। इस ट्वीट के बाद से ही उत्तराखण्ड मांगे भूकानून सोशल मीडिया में छाने लगा जो अब आभासी दुनिया से निकल कर सड़कों तक जा पहुंचा है।

राज्य में कठोर भू-कानून की मांग बहुत पुरानी है। वर्ष 2000 में राज्य गठन के साथ ही हिमांचल प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखण्ड में भी राज्य से बाहर के लोगों द्वारा अनाप-शनाप जमीन खरीदने से रोकने के लिए कानून बनाने की बात उठाने लगी थी। पहली निर्वाचित सरकार के मुखिया एनडी तिवारी इसके पक्षधर नहीं थे लेकिन जनदबाव के चलते उन्होंने वर्ष 2003 में राज्य का पहला भू-कानून आधे-अधूरे प्रावधानों वाला बना डाला। इस कानून में व्यवस्था थी कि कोई भी गैर उत्तराखण्डी व्यक्ति 500 मीटर से ज्यादा कृषि भूमि नहीं खरीद सकता। तिवारी सरकार ने गैर कृषि भूमि को इस दायरे से बाहर रखा। 2007 में भाजपा सत्ता में आई तो नए मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने 500 मीटर गैर कृषि भूमि की खरीद को घटा कर 250 मीटर कर दिया लेकिन इस कानून में भी जानबूझ कर कई खामियां रहने दी गई। खण्डूड़ी सरकार ने 500 मीटर कृषि योग्य भूमि की खरीद को 250 मीटर तक सीमित तो करा किंतु यह सीमा केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए रखी, शहरी क्षेत्रों में इसे लागू नहीं किया गया। नतीजा यह रहा कि सरकारें पिछले 20 बरसों के दौरान शहरी क्षेत्रों का पहले विस्तार करतीं फिर कोई भी गैर उत्तराखण्डी यहां जितनी चाहे उतनी जमीन खरीदने के लिए स्वतंत्रत हो जाता। इतना ही नहीं सरकारों ने कानून को इस कदर लचीला रखा कि शासन से अनुमति लेकर कोई भी व्यक्ति कृषि योग्य भूमि तक को खरीद वहां रियल स्टेट इत्यादि का बिजनेस करने के लिए स्वतंत्र रहा। 2012 में कांग्रेस सरकार बनी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण को भविष्य में राज्य की राजधानी बनाए जाने की संभावना को देखते हुए वहां जमीन खरीद-फरोख्त को प्रतिबंधित कर दिया था जिसे 2017 में भाजपा ने सत्ता में आते ही हटा डाला। वर्तमान भाजपा सरकार पर एक बड़ा आरोप पूंजी निवेश के नाम पर पहले से ही कमजोर भू-कानून को बेहद कमजोर करने का है।

त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून को लचर बनाते हुए प्रावधान कर डाला कि उद्योग स्थापित करने के लिए कृषि योग्य भूमि का भू-उपयोग स्वतः ही सात दिनों में गैर कृषि योग्य मान लिया जाएगा। इतना ही नहीं इस सरकार ने अधिकतम भूमि खरीद पर लगी रोक जिसे सीलिंग लिमिट कहा जाता है, उससे संबंधित कानूनी धारा 154 भी बदल डाली।  आजादी के बाद केंद्र सरकार के जमींनदारी उन्नमूलन कानून(1950) व लैंड सिलिंग एक्ट के जरिए एक परिवार के पास अधिकतम जमीन का मालिकाना अधिकार 12 ़5 एकड़ कर दिया था। उत्तराखण्ड की त्रिवेंद्र सरकार ने राज्य में औद्योगिक पूंजी निवेश को बढ़ावा देने के नाम पर इस सिलिंग को पूरी तरह समाप्त कर डाला। भू-कानून में इतना बड़ा परिवर्तन लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस, उत्तराखण्ड क्रांति दल समेत किसी के लिए भी चिंता का कारण बनता नजर नहीं आया। 2016 में हरीश रावत के मुख्यमंत्री रहते अल्मोड़ा जनपद के नैनीसार में कई सौ नाली जमीन दिल्ली के एक उद्योगपति को अंतरराष्ट्रीय स्कूल निर्माण के लिए दी गई थी। स्थानीय निवासियों, विशेषकर उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के नेता पीसी तिवारी ने इसका भारी विरोध किया था। रावत सरकार लेकिन अपने निर्णय से पीछे नहीं हटी, आंदोलनकारियों पर जरूर गैर जमानती धाराओं में मुकदमें दर्ज कर लिए गए थे। 2017 में सत्ता से बाहर होने के बाद भी कांग्रेस का रुख सख्त भू-कानूनों को लेकर उदासीन बना रहा। यहां तक कि त्रिवेंद्र सरकार द्वारा सिलिंग एक्ट समाप्त किए जाने को भी कांग्रेस ने मुद्दा नहीं बनाया। अब लेकिन चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस नेतृत्व कड़े भू-कानूनों के पक्ष में आ खड़ा हुआ है। भाजपा सरकार पूरी तरह डिफेंसिव मोड में आ चुकी है। सरकार तर्क दे रही है कि विकासशील राज्य होने के नाते औद्योगिक के लिए कड़ा भू-कानून बनाना राज्य के हितों संग कुठाराघात करना होता तो कांग्रेस अब वक्त की नजाकत को भांपते हुए कड़े भू-कानून की वकातल करती नजर आ रही है। कांग्रेस नेता इसके पक्ष में तर्क देते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल उठाने लगे हैं। उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे राज्य में जमीनों की खुली खरीद-फरोख्त राष्ट्र के लिए गंभीर खतरा बन सकती है क्योंकि औद्योगिक पूंजी निवेश के नाम पर चीन अथवा पाकिस्तान की डमी कंपनिया सीमावर्ती इलाकों में जमीन खरीद हमारी ह्यूमन इंटेलिजेंस तंत्र को ध्वस्त कर सकते हैं।

राजनीतिक दलों के सख्त भू-कानून को लेकर उमड़े प्रेम को प्रदेश की जनता किस तरह देखती है यह अनुमान लगाना फिलहाल आसान नहीं। हां इतना अवश्य है कि स्वयं प्रदेश की जनता में इस बाबत खास जागरूकता के न होने के चलते पिछले बीस बरसों के दौरान राज्य में जमकर गैर उत्तराखण्डियों द्वारा भूमि खरीदी गई है और यह सिलसिला आज भी प्रदेश में कुकरमुत्ते की तरह पनप आए उत्तराखण्डी भू-बिचौलियों की मार्फत जारी है।

You may also like

MERA DDDD DDD DD