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Uttarakhand

लाडलो की लहू से लाल हुआ गरुड़, मदद की जगह मिले मुकदमे…

 (संजय स्वार)
रंजीत रावत, पुष्पा कोरंगा, बलवंत सिंह(बबलू नेगी),महेश भण्डारी, रमेश भंडारी, प्रकाश कोहली, लक्ष्मण राम, धरम सिंह रावत, भुवन पाठक, हेम पंत जितेंद्र मेहता, भूपेंद्र गड़िया, धरम सिंह परिहार। ये वो नाम हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र के बच्चों को बाघ के खूनी पंजों से बचाने की मांग को लेकर आवाज उठाई थी, आंदोलन किया। लेकिन तंत्र तानाशाहियत भरा मजाक देखिए। इन लोगों के खिलाफ पुलिस ने मुकदमे दर्ज किए हैं। ग्रामीणों के घरों में कोर्ट के समन पहुंचे तो आक्रोश बढ़ना स्वाभाविक था। क्षेत्र के लोगों ने इस संदर्भ में पुलिस अधीक्षक के समक्ष पूरी मजबूती के साथ अपना पक्ष रखा। भला जिस परिवार व गांव के बच्चे बाघ का निवाला बने होंगें, उनका गुस्सा जाहिर सी बात है। लेकिन यह बात इन सत्ताधीशों की समझ में आए तब ना।
बता दे कि पिछले वर्ष अगस्त माह में गरूड़ क्षेत्र में बाघ ने जो आतंक फैलाया उसे लंबे समय तक नहीं भुलाया जा सकेगा। करीब एक माह के अंतराल में ही गांव के तीन बच्चों का बाघ ने निवाला बना दिया। और बताया यह भी जा रहा है कि इसी साल छह महीनों के अंतराल में नौ बच्चे बाघ के खूनी पंजो का शिकार बने। तब इस क्षेत्र के हालातों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
बाघ के आतंक से निजात दिलाने की ग्रामीणों की मांग मानो नक्कारखाने की तूती होती रही। कई गोद सूनी होने पर भी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। तो अपनी बात पहुंचाने के लिए लोग सड़कों पर उतर आए। धरना प्रदर्शन, नारेबाजी कर सडकों पर आवाजाही भी बाधित हुई। कुछ समय बाद ग्रामीणों का गुस्सा कुछ सामान्य तो हुआ लेकिन खूनी पंजों का डर अपनी जगह बरकरार रहा। जो आज भी है।
खराब हालातों में जैसे तैसे बसर होती जिंदगी में गत दिवस आाए अदालत के समन ने लोगों को फिर से आक्रोशित कर दिया है। करीब एक दर्जन ग्रामीणों के खिलाफ तब मुकदमे दर्ज हुए अब अदालत के आदेश घर पहुंच गए हैं। पहले तो लोगों की समझ में नहीं आया कि आखिर यह मामला क्या है। लेकिन बाद में पता चला कि यह गुलदार के खूनी पंजों से अपने बच्चों को बचाने की जहमत का नतीजा है। ग्रामीणों का कहना है कि मानव और बाघ के इस संघर्ष में सरकार कुछ मदद तो नहीं कर पाई। लेकिन पाल्यों को बचाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ मुकदमें जरूर दर्ज करा गईं। आखिरी जब क्षेत्र के गांवों में पग पग पर जान का खतरा बना हुआ था तो बच्चों की खातिर आवाज उठनी ही थी। तो यह आवाज भला गुनाह कहां से हो गया।
पूर्व विधायक ललित फर्शवाण कहते हैं कि इस तरह की कार्रवाई तो आमजन की आवाज दबाने का घृणित कार्य है। जिनके बच्चों को बाघ ने निवाला बनाया उनके दिलों पर क्या बीती होगी यह कोई नहीं जान सकता। सुरक्षा की मांग करना भी गुनाह हो गया है। अपने हितों के लिए सभी लोग एकजुट हैं।
क्षेत्र पंचायत सदस्य रंजीत रावत कहते हैं कि यह दुराग्रह है। सत्ता में बैठी गूंगी बहरी सरकार को जगाने के लिए आम जन तो आवाज उठायेंगे ही। शांतिपूर्वक आंदोलन करने वालों के खिलाफ ऐसे मुकदमें किस आधार पर दर्ज हुई इसकी भी जांच होनी चाहिए। विवेचना अधिकारी की भी जांच हो। प्रशासन की इस कार्रवाई पर पूरे क्षेत्र में गुस्सा है। यही हाल रहा तो ग्रामीण अब फिर से सड़कों पर उतरने को मजबूर हो जायेंगे।

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