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Uttarakhand

प्रत्याशी चयन से झलकती आत्मविश्वास की कमी

उत्तराखण्ड के चुनावी समर में प्रत्याशी तय करने से पहले भाजपा ने कई दौर के सर्वे कराए। सारी विधानसभाओं में पर्यवेक्षक भेजकर कार्यकर्ताओं की राय लेने की कवायद की गई, लेकिन जिस प्रकार भाजपा के अन्दर टिकटों का बंटवारा हुआ उससे लगता नहीं कि इन सर्वेक्षणों और रायशुमारी को टिकट वितरण में कोई महत्व मिला। कई ऐसी सीटें हैं जिनमें वर्तमान विधायकों के खिलाफ पार्टी भीतर ही आक्रोश साफ दिख रहा है, मगर पार्टी इन विधायकों का टिकट काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। कुल मिलाकर भाजपा के प्रत्याशियों की सूची उसके डगमगाते आत्मविश्वास की एक बानगी है। इसमें बड़े पैमाने पर बदलाव की कोशिश कहीं दिखती नहीं है। हां, सत्ता पाने की छटपटाहट में समझौतों की झलक जरूर नजर आती है

साल में 2017 में सत्तावन सीटों का भारी-भरकम जनादेश पाने और साढ़े चार सालों में तीन मुख्यमंत्री देकर सवालों के घेरे में खड़ी भाजपा के सामने फिर से जनता के सामने जाने की लिए एक कठिन चुनौती है। सत्ता विरोधी भावना और स्थानीय स्तर पर विधायकों के कार्यों के प्रति जनता के रोष के बीच प्रत्याशियों का चुनाव आसान काम नहीं था। शायद इसी मश्क्कत में भारतीय जनता पार्टी को तीन किश्तों में अपनी सूची को अंतिम रूप देना पड़ा। पहली सूची में उनसठ, दूसरी सूची में नौ और तीसरी सूची में दो विधानसभा क्षेत्र के प्रत्याशियों की घोषणा के साथ भाजपा चुनावी मैदान में उतरी। तीन किश्तों में प्रत्याशियों की घोषणा में भाजपा कहीं डरी हुई दिखी तो कहीं कांग्रेस की सूची का इंतजार और कहीं स्थानीय समीकरणों को साधने की मजबूरी साफ नजर आई। लेकिन प्रत्याशियों की सूची जारी होने के पश्चात जिस प्रकार बगावतों का दौर शुरू हुआ और बड़े नेताओं के सम्मान के साथ समझौता कर टिकट बांटे गये उससे लगता है कि भाजपा अपने मूल स्वरूप को खोकर नये कलेवर में उतरने की ओर अग्रसर है।

भारतीय जनता पार्टी द्वारा जारी की गई प्रत्याशियों की सूची पर नजर डालें तो स्पष्ट नजर आता है कि कहीं उसने जातिगत समीकरणों का ख्याल रखा तो कहीं जातिगत समीकरणों की अनदेखी कर अपनों को उपकृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। परिवारवाद पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ी करने वाली भाजपा स्वयं कई जगहों पर परिवारवाद का शिकार हो गईं। काशीपुर से वर्तमान विधायक हरभजन सिंह चीमा के स्थान पर उनके पुत्र को टिकट मिला। वहीं खानपुर से प्रणव चैम्पियन की जगह उनकी पत्नी देवयानी टिकट पा गईं। जिस प्रकार ऐन चुनावों के वक्त उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने पार्टी छोड़ी उससे उत्तराखण्ड भाजपा टिकट बांटने में सतर्क नजर आईं। बड़ी संख्या में विधायकों के टिकट कटने की खबरों के बीच भाजपा बामुश्किल पन्द्रह प्रतिशत विधायकों के टिकट काट पाई। दलबदल कर आने वालों को भाजपा ने हाथों हाथ लिया। कांग्रेस छोड़कर आईं सरिता आर्य को नैनीताल, दुर्गेश्वर लाल को पुरोला, राजपाल सिंह को झबरेड़ा से, किशोर उपाध्याय को टिहरी से टिकट देकर भारतीय जनता पार्टी ने विरोध के बावजूद अपने मूल कार्यकर्ता की अनदेखी की। अगर भारतीय जन

ता पार्टी की सूची पर गौर करें तो इस वक्त टिकट पाए लोगों में सौरभ बहुगुणा, देवयानी, शैलेन्द्र मोहन सिंघल, उमेश शर्मा काऊ, सुबोध उनियाल, प्रदीप बत्रा, रेखा आर्य, राजपाल सिंह, दुर्गेश्वर लाल, मोहन सिंह महरा, किशोर उपाध्याय, सरिता आर्य, राम सिंह कैड़ा, शैला रानी रावत सहित कई नेता कांग्रेसी पृष्ठभूमि के हैं। कुमाऊं की बात करें तो भाजपा ने पिथौरागढ़ जिले में पिथौरागढ़ और डीडीहाट सीट पर पुराने विधायकों चन्द्रा पन्त और बिशन सिंह चुफाल पर विश्वास जताया है। धारचूला में धन सिंह धामी और गंगोलीहाट में विधायक मीना गंगोला का टिकट काट कर फकीर राम टम्टा को प्रत्याशी बनाया गया है। चम्पावत जिले की चम्पावत और लोहाघाट सीट पर वर्तमान विधायकों के पार्टी के अन्दर विरोध के बावजूद केलाश गहतोड़ी और पूरन सिंह फर्त्याल का टिकट काटने की हिम्मत पार्टी नहीं जुटा पाई। बागेश्वर जिले की बागेश्वर सीट से चन्दनराम दास और कपकोट सीट से भगत सिंह कोश्यारी के जनसंपर्क अधिकारी रहे सुरेश गड़िया को प्रत्याशी बनाया है। पूर्व में विधायक रहे शेर सिंह गड़िया एवं भाजपा का एक बड़ा तबका सुरेश गड़िया के विरोध में उतर आया है। सबसे दिलचस्प स्थिति अल्मोड़ा जिले में है। यहां वर्तमान विधायक रघुनाथ सिंह चौहान का टिकट काट पूर्व विधायक कैलाश शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। कैलाश शर्मा को प्रत्याशी बनाए जाने का विरोध करते हुए रघुनाथ सिंह चौहान और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष ललित लटवाल ने अपने समर्थकों के साथ त्याग पत्र दे डाला है। रघुनाथ सिंह चौहान को निर्दलीय लड़ाने की घोषणा भाजपा के बागी गुट ने कर डाली है। देखना होगा कि रघुनाथ सिंह चौहान किस हद तक आगे जाते है। जागेश्वर सीट पर पूर्व कांग्रेसी मोहन सिंह माहरा को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने गोविंद सिंह कुंजवाल के सामने कठिन चुनौती पेश कर दी है। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रहे मोहन सिंह माहरा कभी गोविंद सिंह कुंजवाल के निकट सहयोगी हुआ करते थे। भाजपा ने इस बार पिछले बार प्रत्याशी रहे सुभाष पाण्डे का टिकट काट कर मोहन सिंह माहरा को अपना प्रत्याशी बना कर कुंजवाल की राह कठिन जरूर कर दी है। द्वाराहाट सीट पर पिछले दिनों विवादों में रहे महेश नेगी को इस बार भाजपा ने टिकट न देकर युवा अनिल शाही पर भरोसा जताया है। सल्ट सीट पर वर्तमान विधायक महेश जीना को इस बार रणजीत रावत की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। सबसे दिलचस्प टिकट का बंटवारा रानीखेत विधानसभा में हुआ जहां सांसद अजय टम्टा केन्द्रीय मंत्री अजय भट्ट पर भारी पड़े हैं। यहां अजय भट्ट के विरोध के बावजूद पार्टी के एक निष्कासित नेता प्रमोद नैनवाल टिकट पा गये। बताया जाता है कि अजय भट्ट और भगत सिंह कोश्यारी का दबाव महेंद्र सिंह अधिकारी के लिए था जबकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कैलाश पन्त के पक्ष में थे। भारतीय जनता पार्टी के सदस्य न होने के बावजूद जिस प्रकार प्रमोद नैनवाल को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है उससे पता चलता है कि अजय टम्टा और संघ का दबाव नैनवाल के लिए निर्णायक साबित हुआ। 2017 के चुनाव में अजय भट्ट की हार में निर्णायक भूमिका निभाने वाले प्रमोद नैनवाल को रानीखेत विधानसभा में भाजपा के कार्यकर्ता किस प्रकार पचा पाते हैं ये देखना होगा क्योंकि भाजपा का स्थानीय संगठन प्रमोद नैनवाल की उम्मीदवारी के सख्त खिलाफ है। अगर इस सीट पर परिणाम अनुकूल नहीं आते है तो सांसद अजय टम्टा की फजीहत तय है। यह उनके लिए 2024 के लोकसभा चुनावों में घातक साबित हो सकती है। देखना होगा यहां पर अजय भट्ट का रुख क्या रहता है। नैनीताल जिले में भारतीय जनता पार्टी ने रामनगर, कालाढूंगी हल्द्वानी सीटों पर 2017 के प्रत्याश्यिं को दोहराया है। नैनीताल में सभी दावेदारों को दरकिनार कर कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुईं सरिता आर्य पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस के संजीव आर्या के मुकाबलें भाजपा के पास कोई मजबूत प्रत्याशी था भी नहीं। रामनगर से दीवान सिंह बिष्ट, कालाढूंगी से बंशीधर भगत और हल्द्वानी से जोगेन्द्र रौतेला फिर से प्रत्याशी है। जातिगत समीकरणों को दर किनार कर लालकुआं सीट से ठाकुर प्रत्याशी को प्राथमिकता देते हुए मोहन सिंह बिष्ट को प्रत्याशी बनाया है। इस सीट से भगत सिंह कोश्यारी की पसंद दीप कोश्यारी थे जबकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मोहन सिंह बिष्ट के पक्ष में थे। देखना होगा मोहन सिंह बिष्ट कैसे कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का मुकाबला कर पाते हैं। भीमताल सीट पर पिछले बार निर्दलीय चुनाव जीते राम सिंह कैड़ा इस बार भाजपा से प्रत्याशी हैं लेकिन मूल भाजपा के व्यक्ति को टिकट के नाम पार्टी का एक बड़ा तबका उनकी उम्मीदवारी से नाराज हैं। हल्द्वानी मंडी समिति के सभापति मनोज साह ने भाजपा से त्याग पत्र दे निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। ऊधमसिंह नगर जिले में काशीपुर और रूद्रपुर को छोड़कर वर्तमान में विधायक टिकट पा गये हैं। काशीपुर में हरभजन सिंह चीमा के पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा और रूद्रपुर में शिव अरोरा भाजपा के टिकट पर लड़ेंगे। लेकिन गदरपुर में अरविन्द पाण्डे, काशीपुर में त्रिलोक सिंह और किच्छा में राजेश शुक्ला का जिस प्रकार विरोध हो रहा है, वह भाजपा के लिए खतरे की घंटी के समान है।

गढ़वाल और हरिद्वार में भी भाजपा बहुत ज्यादा विधायकों के टिकट काटने का साहस नहीं दिखाया। यमकेश्वर से ऋतु खण्डूड़ी का टिकट काट उन्हें अंतिम क्षणों में कोटद्वार से प्रत्याशी बना तो दिया लेकिन वो वहां असहज महसूस कर रही हैं। पिछली बार कांग्रेस से चुनाव लड़ी रेनू बिष्ट इस बार यमकेश्वर से भाजपा प्रत्याशी हैं। सबसे ज्यादा नुकसान में रहे पिछली बार भाजपा छोड़ कांग्रेस से पुरोला से विधायक बने राजकुमार। इन्हें भाजपा ने गच्चा देकर ऐन वक्त पर कांग्रेस छोड़कर आए दुर्गेश्वर लाल को टिकट दे दिया। इसी प्रकार विरोध के बावजूद झबरेड़ा में चन्द घंटों पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए राजपाल सिंह को प्रत्याशी बना दिया। थराली से वर्तमान विधायक मुन्नी देवी शाह का टिकट काट कांग्रेस से भाजपा में आए भूपाल राम टम्टा को टिकट देने का विरोध शुरू हो गया है।

उत्तराखण्ड के चुनावी समर में प्रत्याशी तय करने से पहले भाजपा ने कई दौर के सर्वे कराए। सारी विधानसभाओं में पर्यवेक्षक भेजकर कार्यकर्ताओं की राय लेने की कवायद की। लेकिन जिस प्रकार भाजपा के अन्दर टिकटों का बंटवारा हुआ, उससे लगता नहीं कि इन सर्वेक्षणों और रायशुमारी को टिकट वितरण में कोई महत्व मिला हो। कई ऐसी सीटें हैं जिनमें वर्तमान विधायकों के खिलाफ पार्टी के भीतर ही आक्रोश साफ देख रहा है लेकिन पार्टी इन विधायकों का टिकट काटने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। हां, कई जगह चेहरों को बदलकर सत्ता विरोधी हवा से बचने की कवायद जरूर की गई। लेकिन जिस प्रकार नयापन लाने के लिए युवा नेतृत्व की दुहाई दी गई उसकी छाप घोषित प्रत्याशियों की सूची में तो कहीं दिखाई नहीं देती। विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का दावा करने वाली भाजपा के प्रत्याशी में यदि बहुतायत में प्रत्याशी कांग्रेसी या अन्य राजनीतिक पृष्ठभूमि के हों तो समझा जा सकता है कि भाजपा के अन्दर अपने पार्टी कार्यकर्ता के दम पर सत्ता पाने का विश्वास डगमगाया है। कुल मिलाकर भाजपा के प्रत्याशियों की सूची उसके डगमगाते आत्मविश्वास की एक बानगी है, जिसमें बड़े पैमाने पर बदलाव की कोशिश कहीं दिखती नहीं है। हां, सत्ता पाने की छटपटाहट में समझौतों की झलक जरूर नजर आती है।

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