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Uttarakhand

विकास से कोसों दूर है खटीमा

राज्य के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ट्टाामी के विट्टाानसभा क्षेत्र का हाल बेहद खराब है। स्वास्थ्य सेवाएं हों या फिर क्षेत्र का इन्फ्रास्ट्रक्चर, चैतरफा बदहाली का आलम है। सीएम बनते ही ट्टाामी ने यहां के एकमात्र सरकारी चिकित्सालय को सौ से तीन सौ बेड में तब्दील करने की घोषणा तो कर दी, लेकिन अभी तक उसका शासनादेश जारी नहीं हो पाया है। डाॅक्टरों के कुल 150 पदों में से मात्र 74 पद ही भरे हैं। सर्जन हैं नहीं, नेत्र चिकित्सक तक नहीं हैं। बच्चों का डाॅक्टर, रेडियोलाजिस्ट, गाइनाकोलाॅजिस्ट आदि का न होना और 2018 में बने ब्लड बैंक का आट्टाा-अट्टाूरा रहना डबल इंजन की सरकार पर बड़ा सवाल खड़ा करता नजर आता है। सीएम के क्षेत्र में सड़कें लापता हैं तो 19 बरस पहले बनी पानी की टंकी बगैर पानी अनाथ खड़ी है। हां, खटीमा शहर में अनोखा वास्तुदर्शन जरूर देखने को मिलता है। यहां नालों के ऊपर इंटरलाॅकिंग टाईल्स लगाई गई हैं जो रहनुमाओं की समझ का आदर्श उदाहरण नजर आती हैं

 

वर्ष 1977 में खटीमा विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। तब खटीमा क्षेत्र अविभाजित राज्य उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था। ऐसा नहीं है कि इस विधानसभा क्षेत्र को पुष्कर धामी के मुख्यमंत्री बनने पर पहली बार वीआईपी का दर्जा मिला हो, बल्कि इससे पहले भी यहां के विधायक श्रीश चंद उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने थे। इसके बाद यहां से विधायक रहे सुरेश चंद्र आर्या भी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे थे। यहां के लोगों ने गोपाल सिंह राणा और यशपाल आर्य को भी विधायक बनाया। लेकिन मूलभूत सुविधाओं से पिछड़े इस विधानसभा क्षेत्र में कभी विकास की गंगा नहीं बह पाई। लंबे समय से खटीमा विधानसभा क्षेत्र सियासी फलक पर आने के लिए तरस रहा था। तीन जुलाई 2021 को खटीमा के बाशिंदों की यह तमन्ना भी पूरी हो गई। आखिर 44 साल के लंबे इंतजार के बाद इस विधानसभा क्षेत्र के विधायक प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

इस दिन खटीमा में लागों ने दीवाली का दिन न होने के बावजूद दीपावली मनाई। यहां के बाशिंदों को लगा कि उनकी तकदीर जाग गई है। साथ ही उन्हें लगा कि अब उनकी ओर उनके क्षेत्र की किस्मत बदल जाएगी।

23 जुलाई 2021 को जब पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार अपने-अपने गृह क्षेत्र खटीमा पहुंचे तो उन्होंने एक अरब की योजनाओं का शिलान्यास किया। साथ ही धामी ने खटीमा को विकसित करने और इसे राज्य का नंबर वन विधानसभा क्षेत्र बनाने का वादा किया। मुख्यमंत्री जनता को आश्वस्त कर रहे हैं, लेकिन 10 बरसों से यहां के विधायक धामी की बात पर उनके वोटर यकीन नहीं करते नजर आ रहे हैं, तो इसका कारण पूर्व में भी धामी द्वारा किए गए ऐसे ही वायदे हैं जो धतराल पर नहीं उतर पाए हैं। निःसंदेह राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों को नजदीक से समझने वाले धामी को क्षेत्रीय समस्याओं की समझ है। इसके चलते ही वह खटीमा की आधी आबादी की जमीन संबंधी समस्या को सदन में जोर-शोर से उठा चुके हैं। यही नहीं बल्कि जब वह विधायक नहीं थे तब भी तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में स्थानीय उद्योगों में 70 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित कराने के मुद्दे पर विधानसभा का घेराव कर चुके हैं। तत्पश्चात उद्योग धंधों में स्थानीय बेरोजगारों को 70 प्रतिशत रोजगार दिलाने की व्यवस्था की गई थी।

फिलहाल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने एक तरफ जहां मिशन 2022 का चुनावी एजेंडा है तो वहीं दूसरी तरफ उनके कंधों पर अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने का अतिरिक्त दबाव भी है खासकर स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाना महत्वपूर्ण है। उनके विधानसभा क्षेत्र का नागरिक चिकित्सालय चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। यह स्वास्थ्य सेवाओं में बहुत पिछड़ा हुआ है। धामी के विधानसभा क्षेत्र को देख स्पष्ट समझ आता है कि वे पिछले एक दशक से खटीमा को विकास की पटरी पर लाने में नाकाम रहे हैं। दशकों पूर्व कई विकास की योजनाएं शुरू तो हुई लेकिन मुकाम तक नहीं पहुंच पाई हैं। उनके दो बार विधायक बनने के बावजूद भी समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं।

विधायक पुष्कर सिंह धामी का ड्रीम प्रोजेक्ट नागरिक चिकित्सालय है। पहले यह चिकित्सालय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के तौर पर स्थापित था जिसे नवंबर 2019 में नागरिक चिकित्सालय में परिवर्तित किया गया और इसे 100 बेड का अस्पताल बनाया गया। पुष्कर सिंह धामी प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार जब खटीमा आए थे तो उन्होंने नागरिक चिकित्सालय को 100 बेड से 300 बेड में उच्चीकरण करने के आदेश दे डाले। लेकिन इस घोषणा के एक माह बाद तक भी
चिकित्सालय की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सुषमा नेगी के पास ऐसा कोई शासनादेश नहीं पहुंचा है जिससे 300 बेड के अस्पताल का कार्य शुरू हो सके। इस अस्पताल में फिलहाल डाॅक्टरों की कमी देखने को मिल रही है। यहां कुल 150 पद, स्वीकृत हैं। जिसके सापेक्ष सिर्फ 74 पदों पर ही डाॅक्टर या स्टाफ कार्यरत हैं। जबकि 76 पद रिक्त है। जिनमें अस्थिरोग विशेषज्ञ के अलावा सर्जन और फिजिशियन नहीं है। जबकि यहां 2 सर्जन और 2 फिजिशयन के पद स्वीकृत है। इसी तरह नेत्र सर्जन भी नहीं है। स्त्री रोग विशेषज्ञ के दो पद स्वीकृत हंै। जिनमें से एक ही कार्यरत है। इसके अलावा रेडियोलाॅजिस्ट और एनेस्थीसिस्ट नहीं है। बाल रोग विशेषषज्ञ के दो पद स्वीकृत हैं, दोनों ही रिक्त हैं। चर्म रोग विशेषज्ञ के साथ ही ईएनटी सर्जन भी नहीं है। पैथोलिजिस्ट, पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञ और मनोरोग विशेषज्ञ भी नहीं है। यही नहीं बल्कि चिकित्साधिकारी के 9 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 6 पद खाली हैं। 2 चीफ फार्मासिस्ट और 5 फार्मासिस्ट तथा 6 नर्स के पद स्वीकृत हैं जिनमें से एक भी पद पर तैनाती नहीं है। 24 उपचारिका के सापेक्ष सिर्फ 6 पदों पर कार्यरत हैं जबकि 18 पद रिक्त हैं। डेंटल हाईजिनिस्ट, ईसीजी टेक्निशियन, आईसीसी संगणक के पद खाली हंै। 4 पुरुष पर्यवेक्षक के सापेक्ष 3 पदों पर कार्यरत हंै। जबकि एक रिक्त है। 10 पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता के पद खाली हंै, जबकि 4 में से 3 महिला स्वास्थ्य पर्यवेक्षक के पद रिक्त हंै। यहां महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता के 38 पद स्वीकृत हैं। जिनमें से 25 पदों पर कार्यरत हैं जबकि 13 पद रिक्त हंै। इस तरह देखा जाए तो स्वीकृत पदों से आधे पर ही स्वास्थ्यकर्मी कार्य कर रहे हैं जबकि आधे पद खाली हंै।

कोरोनाकाल में यहां आक्सीजन प्लांट लगाया गया था। फिलहाल 1000 एलपीएम का आक्सीजन प्लांट चालू है। इसके अलावा 10 वेंटीलेंटर लगाए गए जो चालू हालत में हंै। अल्ट्रासाउंड चल रहा है, लेकिन सिटी स्केन नहीं है। यहां चांैकाने वाली बात यह देखने को मिली कि आईसीयू तो बना है, लेकिन उस पर ताला लटका हुआ है। पाॅलीपेक्स कंपनी के सहयोग से यह आईसीयू 6 माह पूर्व ही बनकर तैयार हो चुका है। अभी तक आईसीयू के लिए नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति भी नहीं हुई है। यहां आॅक्सीजन कन्सेनट्रेटर तो हैं लेकिन उनकी बेकद्री देखने को मिली। वह बाहर ही हाल में रखे हुए देखे जा सकते हैं। यहां 2017 में ब्लड बैंक बना था जिसका 2018 में लोकार्पण हो चुका है। लेकिन इस ब्लड बैंक में ब्लड सिर्फ स्टोरेज ही हो सकता है। जबकि ब्लड बैंक का पूर्ण कार्य अभी तक शुरू नहीं हुआ है। फिलहाल ब्लड बैंक में कोविड-19 का टीकाकरण करने वाले कर्मियों ने अपना डेरा डाला हुआ है। एक महिला पुलिसकर्मी भी यहां टीकाकरण अभियान में एंट्री करती हुई दिखी जबकि पुलिस प्रत्येक टीकाकरण केंद्र पर सिर्फ सुरक्षा और व्यवस्था बनाने का जिम्मा निभाने का दायित्व निभा सकती है।


खटीमा स्थित ब्लड बैंक को बनाया गया कोविड टीका केंद्र

जनप्रतिनिधियों के द्वारा किस तरह विपक्षी मतदाताओं को विकास कार्यों से अछूता रखा जाता है इसका भी खटीमा विधानसभा क्षेत्र में एक उदाहरण सुनपहर गांव में देखने को मिला। छह हजार की आबादी वाले इस गांव में पेयजल आपूर्ति के लिए 2002 में तत्कालीन विधायक गोपाल सिंह राणा द्वारा ओवर हैड टैंक का निर्माण कराया गया। लाखों रुपये की लागत से यह टंकी तो बनाकर खड़ी कर दी गई। इतना ही नहीं बल्कि यहां ट्यूबवेल भी लगा दी गई। लेकिन 19 साल बाद भी इस टंकी से पानी की एक बूंद गांव वालों की प्यास बुझाने में काम नहीं आ सकी है। सुनपहर के निवासी कुलदीप सिंह चीमा इसके पीछे का कारण पाॅलिटिक्स बताते हैं। वह कहते हैं कि इस गांव के अधिकतर लोग कांग्रेस को वोट करते हैं इसलिए भाजपा विधायक ने उनकी पानी की टंकी को अभी तक सुचारू नहीं कराया है। मजे की बात यह है कि 19 साल से सफेद हाथी बनी खड़ी इस टंकी से सुनपहर गांव वालों को पानी तो नहीं मिला लेकिन गांव के एक व्यक्ति को सरकार पानी की टंकी की रखवाली की एवज में हर माह हजारों रुपये पगार जरूर देती है। मंझोला-सितारगंज सड़क मार्ग से सुनपहर गांव के लिए बना संपर्क मार्ग भी टूटी- फूटी हालत में है। गांव वाले कहते हैं कि शहीदों की याद में यह सड़क कभी सन् 1947 में बनी थी। तब से लेकर आज तक इस सड़क की सुध किसी भी जनप्रतिनिधि ने नहीं ली।

 

‘दि संडे पोस्ट’ टीम जब खटीमा स्थित डिग्री काॅलेज का हाल जानने निकली तो गाड़ी को बीच रास्ते से ही वापस करना पड़ा। पीलीभीत मार्ग पर बने पेट्रोल पंप से जब डिग्री काॅलेज रास्ते पर जाया गया तो रास्ता कीचड़ से भरा था। थोड़ी दूर चलने पर सड़क पर पानी भरा था। थोड़ा आगे चलते ही सड़क के बीचोंबीच अवरोधक दीवार लगाकर रास्ता बंद किया हुआ था। जिससे कूद-कूदकर छात्र छात्राएं आवागमन कर रहे थे। पानी से बचने के लिए लाईन बनाकर चल रही छात्राएं किसी तरह घर पहुंचती हैं।

सड़क के बीचोंबीच अवरोधक दीवार लगाकर रास्ता बंद। कूद-कूदकर छात्र छात्राएं आवागमन

खटीमा शहर का मुख्य मार्ग के चैड़ीकरण और सौन्दर्यीकरण किया गया। जिसे विधायक पुष्कर सिंह धामी अपनी महत्वपूर्ण विकास योजना बताते हैं। लेकिन इस विकास कार्य में एक अनोखा वास्तु दर्शन का नजारा सामने आया। जहां ड्रेन कवर (नाला) के ऊपर सौन्दर्यकरण के नाम पर इंटरलाकिंग टाईल्स लगी हुई है। ऐसा अनोखा कार्य आपको शायद ही किसी शहर में देखने को मिले। कारण यह है कि किसी नाले को साफ किया जाता है तो इसके मद्देनजर ऊपर लोहे की जाली लगाई जाती है। जिससे नाले को साफ किया जा सके। लेकिन खटीमा शहर के मुख्य मार्ग के नाले के ऊपर फुटपाथ बनाकर उस पर लोहे की जाली नहीं बल्कि इंटरलाकिंग टाईल्स लगा दी गई हैं।

वह भी कई जगह से टूट चुकी हैं। यह टाईल्स सौन्दर्यकरण के लिहाज से सही हो सकती हैं लेकिन अगर वित्तीय अनियमितता को देखें तो यह पैसे की बर्बादी कहलाया जाएगा। शहर के लोग इसे एक तरह से सरकारी धन का दुरुपयोग कहते हैं। शहर के बाशिंदे इस बाबत दबी जुबान से विरोध करते देखे गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के गांव नंगला तराई को दो सड़कें जाती हैं। एक सड़क औद्योगिक एरिया से गुजरती हुई जाती है जबकि दूसरी सड़क सनकईया थाने से दमगड़ा इलाके से गुजरती है। यह सड़क शारदा नहर के किनारे मुख्यमंत्री के गांव नंगला तराई को जाते हुए सीधी बनबसा बाॅर्डर तक जाती है। करीब चार किलोमीटर लंबे इस रास्ते को कालापुल मार्ग भी कहते हैं। इस रास्ते की हालत बेहद खस्ता है। रास्ता जगह- जगह से टूटा हुआ है। सड़क में गड्ढे ही गड्ढे हंै। हालांकि स्थानीय गांव के लोगों को अब पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनने से बाद इस सड़क की सुध लिए जाने की उम्मीद जगी है।

 

बात अपनी-अपनी

आने वाले दिनों में डाॅक्टरों की कमी को पूरा कर दिया जाएगा। इसके साथ ही जल्द ही आईसीयू को सुचारू कर दिया जाएगा।
सुषमा नेगी, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक

पुष्कर धामी को विधायक बने साढ़े नौ साल हो गए हैं, लेकिन अभी तक वह इस गांव में नहीं आए हंै। यह पूछने पर कि विधानसभा चुनावों में वोट मांगने तो आए होंगे, इस पर वह कहते हैं कि गांव के लोगों का कांग्रेस समर्थक होना ही शायद इसकी वजह है कि वह चुनावों में भी नहीं आते हैं।
कुलदीप सिंह चीमा, सुनपहर गांव

काफी दिनों से इस कीचड़ भरे रास्ते से गुजरकर स्कूल जाती हूं। बारिश में तो यह रास्ता पानी से लबालब भर जाता है। लेकिन अब हमारे विधायक मुख्यमंत्री बन गए हैं तो हमें उम्मीद है कि स्कूल आने-जाने के लिए कीचड़ भरे रास्ते से नहीं गुजरना पड़ेगा।
विनिता कुमारी, कक्षा 12 की छात्रा

 

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