उत्तराखण्ड के लोगों को 300 यूनिट बिजली देने का जो दांव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चला है, वह कांग्रेस और भाजपा के लिए एक चुनौती तो बन ही गया है। अब देखना है कि दोनों पार्टियां बिजली के मुद्दे पर क्या रणनीति अपनाती हैं
आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर प्रदेश की राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है। सरकार के साढ़े चार वर्षों के कार्यकाल और केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ कांग्रेस लंबे अर्से के बाद सड़कांे पर उतरकर आंदोलन में जुट गई है, तो वहीं आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अपना शंखनाद कर दिया है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सरकार बनने पर प्रदेश की जनता को तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा के साथ ही उत्तराखण्ड की राजनीति में बड़ी हलचल पैदा हो गई है। मजेदार बात यह है कि सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियां केजरीवाल के इस चुनावी दांव की धार को कुंद करने के लिए अपने-अपने स्तर पर रणनीति बनाने में जुट गई हैं, परंतु दोनों ही दलों के भीतर मुफ्त बिजली देने के मामले में ऊहापोह साफ दिखाई दे रहा है।
दरअसल, नए-नवेले ऊर्जा मंत्री हरक सिंह रावत का एक बयान प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा गया। हरक सिंह रावत ने बयान दिया कि सरकार जल्द ही प्रदेश की जनता को 100 यूनिट बिजली मुफ्त देगी और 200 यूनिट बिजली खर्च करने पर 50 फीसदी सब्सिडी देगी। यह घोषणा हरक सिंह रावत ने ऊर्जा विभाग की बैठक में की और इसका बड़ा असर देखने को मिला। माना जाता है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के राज्य की जनता को मुफ्त बिजली देने के बयान के बाद हरक सिंह रावत ने यह घोषणा की है, लेकिन इसका असर यह हुआ कि केजरीवाल ने 300 यूनिट बिजली देने की घोषणा की। इसके बाद अब प्रदेश की राजनीति में बिजली का कंरट दौड़ने लगा। कांग्रेस भी अब मुफ्त बिजली देने की बात कहकर जनता में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास कर रही है।
मुफ्त बिजली के मामले में सत्ताधारी भाजपा में बुरी तरह से घिर चुकी है। स्वयं मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि मुफ्त बिजली देने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है। माना जाता है कि हरक सिंह रावत की मुफ्त बिजली देने की घोषणा के बाद भाजपा में बड़ी नाराजगी देखने को मिली है। भाजपा संगठन और बड़े नेता यहां तक कि मुख्यमंत्री की जानकारी के बगैर इस तरह की घोषणा करने से संगठन और सरकार बड़ी अजीब स्थिति में आ गए हैं। हरक सिंह रावत भी अब अपनी बात से मुकरते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने कोई घोषणा नहीं, बल्कि विभाग को इसका प्रस्ताव बनाने की बात कही थी। इस प्रस्ताव को कैबिनेट में रखा जाएगा और कैबिनेट जो भी निर्णय लेगी उसी के अनुसार किया जाएा।
हरक सिंह रावत के इस नए बयान के बाद भी भाजपा में हलचल मची हुई है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय भाजपा हाईकमान भी चुनाव में लोक-लुभावनी घोषणा किए जाने को लेकर नाराज बताया जा रहा है जिसके चलते भाजपा अब इस मामले में बचाव में आ गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने बयान में साफ कर दिया कि प्रदेशवासियों को चौबीस घंटे सस्ती और गुणवत्ता वाली बिजली देना उनकी सरकार की प्राथमिकता में है। इससे साफ है कि मुख्यमंत्री ने मुफ्त बिजली देने की कोई बात नहीं की है। कांग्रेस की बात करें तो पार्टी के भीतर भी केजरीवाल के मुफ्त बिजली देने के नए सियासी दांव को लेकर खासी गहमा- गहमी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केजरीवाल के इस दांव की काट के लिए बयान जारी करके कहा है कि कांग्रेस सत्ता में आती है तो पहले वर्ष 100 यूनिट और दूसरे वर्ष 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी।
हालांकि हरीश रावत ने दिल्ली सरकार के बजट और उत्तराखण्ड के बजट की तुलना करते हुए कहा है कि अगर उत्तराखण्ड का बजट भी दिल्ली के बराबर हो जाए तो उत्तराखण्ड में कांग्रेस 400 यूनिट तक बिजली के बिल माफ कर सकती है, जबकि हरीश रावत के विपरीत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि कांग्रेस क्या देगी यह घोषणा पत्र में ही बताया जाएगा। अब देखना दिलचस्प होगा कि केजरीवाल ने मुफ्त बिजली का जो सियास करंट दौड़ाया है, उसकी काट सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस किस तरह से करती हैं। लेकिन इतना तो तय है कि चाहे-अनचाहे ही प्रदेश की राजनीति में मुफ्त की बिजली एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है और अगर जनता इस मुद्दे पर प्रभावित होती है तो आम आदमी पार्टी भाजपा-कांग्रेस से आगे नजर आ रही है।