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Uttarakhand

नौकरशाहों पर करम, मंत्रियों पर सितम

‘गैरों पे करम अपनों पे सितम, ऐ जान-ए-वफा ये जुल्म न कर’ प्रसिद्ध गीतकार साहिर लुधियानवी द्वारा रचित यह गीत आजकल उत्तराखण्ड की धामी सरकार में कांग्रेसी मूल के मंत्रियों पर सटीक बैठता नजर आ रहा है। सरकार में शामिल कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल, सौरभ बहुगुणा या फिर रेखा आर्य कमोबेश सभी मंत्री अपने ही मातहत विभागों में तैनात अधिकारियों की नाफरमानी से नाराज हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के समक्ष वे अपने विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली से नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। एक तरफ तो सीएम नौकरशाही पर लगाम लगाने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ वे मंत्रियों के मामले में ‘न्यूट्रल’ हो जाते हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेसी मूल के होने के चलते आज भी सरकार में भाजपा और गैर-भाजपा मंत्रियों के बीच एक तरह की खाई पैदा हो चुकी है


प्रदेश की राजनीति में सत्ताधारी भाजपा के भीतर अपने ही मंत्रियों को लेकर जिस तरह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं उससे यह तो साफ हो गया है कि भले ही भाजपा की दूसरी बार सरकार सत्ता में आई है लेकिन हालातों में कोई खास बदलाव नहीं होता दिखाई दे रहा है। जहां त्रिवेंद्र रावत सरकार के समय में सरकार के मंत्रियों की अनदेखी के आरोप लगते थे वहीं धामी सरकार के पार्ट-टू में भी वही आरोप फिर से सिर उठाने लगे हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस तरह के मामले कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए मंत्रियों के साथ ही हो रहे हैं जिसमें उनके ही विभागों के अधिकारियों द्वारा उनकी अनदेखी और मंत्रियों को बाईपास करके अहम निर्णय लिए जा रहे हैं। हालात इस कदर हो चले हैं कि विभागीय अधिकारी स्थानांतरण से लेकर प्रमोशन और पोस्टिंग तक के काम मंत्रियों को बाईपास करके कर रहे हैं जिससे सरकार और मंत्रियों की कार्यक्षमता पर सवाल खडे़ तो हो ही रहे हैं साथ ही सरकार पर अपने मंत्रियों से ज्यादा नौकरशाही पर भरोसा करने के भी आरोप लग रहे हैं।


कांग्रेस मूल के पूर्व मंत्रियों में सबसे पहले सतपाल महाराज की बात करें। महाराज 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए। सतपाल महाराज आठ वर्ष से भाजपा में होने के बावजूद वह स्थान नहीं बना पा रहे हैं जितना कांग्रेस में हुआ करता था। कांग्रेस सरकार और संगठन में महाराज की भृकुटी जरा-सी तन जाती थी तो खासी हलचल मच जाया करती थी। लेकिन आज भाजपा में बड़े-बड़े महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री होने के बावजूद उनके साथ मुख्यमंत्री और विभागीय अधिकारियों के संबंधों में खटास के कई प्रकरण सामने आ चुके हैं।


हालिया दौर में दो मामले ऐसे सामने आए हैं जिसमें सतपाल महाराज की सरकार और शासन में उनके ही विभाग में उनकी भारी अनदेखी की गई है। इसमें एक मामला लोक निर्माण विभाग के मुखिया के पद पर नियुक्ति को लेकर सामने आ चुका है। जिसमें महाराज की जानकारी के बगैर ही विभाग के मुखिया के पद पर एजाज अहमद को तैनाती दी गई है। जिस पर पूर्व में ही यौन उत्पीड़न के आरोप लग चुके हैं और स्वयं सतपाल महाराज इसके लिए जांच के आदेश तक जारी कर चुके हैं। मामला सामने आने पर पता चला कि सतपाल महाराज के फर्जी हस्ताक्षर के जरिए एजाज अहमद को लोक निर्माण विभाग का मुखिया बनाया गया है। इसके लिए सतपाल महाराज के डिजिटल हस्ताक्षर का सहारा लिया गया है। अपने हस्ताक्षरों के दुरुपयोग से महाराज खासे नाराज हुए। उनकी जानकारी के बगैर एजाज अहमद को उनके विभाग का मुखिया बनाया जाता है और महाराज को कानों-कान खबर नहीं होती। दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में सतपाल महाराज की नाराजगी के बावजूद अभी तक एजाज अहमद के प्रकरण में कोई कार्यवाही नहीं की गई है। जिससे महाराज काफी क्षुब्ध तो हैं ही साथ ही उनके समर्थकों में भी भारी नाराजगी देखी जा रही है।


कुछ इसी तरह का एक मामला भी हाल ही के दिनों में सामने आया है। विख्यात होटल में पर्यटन विभाग का एक कॉनक्लेब का आयोजन किया गया। जिसमें पर्यटन से संबंधित बड़े-बड़े होटलियर्स और निवेशकों को आंमत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वयं मुख्यमंत्री धामी ने की। लेकिन हैरत की बात यह है कि पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज इस कार्यक्रम में नहीं थे। मीडिया ने जब महाराज से कार्यक्रम में नहीं होने पर सवाल पूछा तो महाराज का कहना था कि उनको इस कार्यक्रम की नाजकारी ही नहीं थी। यानी महाराज को उनके ही विभाग के कार्यक्रम में नहीं बुलाया गया। ऐसा नहीं है कि सतपाल महाराज के साथ इस तरह का व्यवहार पहली बार हुआ है। भाजपा में शामिल होने के बाद से ही महाराज के खिलाफ इस तरह के मामले कई बार सामने आ चुके हैं।


कुछ इसी तरह तीरथ सिंह रावत सरकार में भी सतपाल महाराज हरिद्वार में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए जमीन तलाशने और इसके निर्माण के लिए कमेटी बनाए जाने की बात कही। जिस पर सरकार के प्रवक्ता और मंत्री सुबोध उनियाल ने बयान जारी कर साफ कर दिया कि सरकार का ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। उनियाल ने तो यहां तक कह दिया कि हरिद्वार में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा सतपाल महाराज की कल्पनाओं में हो गया, सरकार के पास ऐसी कोई सूचना नहीं है। जबकि महाराज ने साफ कर दिया था कि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का मामला स्वयं मुख्यमंत्री के संज्ञान में है और इसके बारे में मुख्यमंत्री सहित केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी से भी वार्ता हो चुकी है। अब यहां पर यह भी देखने वाली बात है कि इस मामले के बाद धामी सरकार अपना पहला कार्यकाल पूरा करके दूसरे कार्यकाल का सौ दिनां का कार्यकाल पुरा कर चुकी है लेकिन अभी तक हरिद्वार के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा के निर्माण का कोई अता-पता नहीं है।


नौकरशाही से भी महाराज की नाराजगी कई बार सामने आ चुकी है। केदारनाथ दौरे के समय महाराज को हेलीकॉप्टर की सुविधा न दिए जाने का ममला हो या फिर हालिया दिनों में लोक निर्माण विभाग में मुखिया की तैनाती का मामला हो या फिर पर्यटन विभाग के कार्यक्रमों का मामला हो, हर मामले में महाराज की अपने ही विभागों के अधिकारियों के द्वारा अनदेखी के मामले देखे जाते रहे हैं। इस अनदेखी के चलते महाराज को कई बार असहज भी होना पड़ा है, जिसमें सिंचाई विभाग में प्रमोशन, पेंशन आदी को लेकर विभाग को हाईकोर्ट से फटकार तक मिली। जबकि इन मामलों में सतपाल महाराज अपने आदेश जारी कर चुके थे लेकिन विभागीय अधिकारी फाइल दबाकर बैठे रहे। कई बार सतपाल महाराज अपने विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली से नाराज हो कर मुख्यमंत्री तक अपनी शिकायत करते रहे लेकिन उनकी बातों को कोई खास तवज्जो नहीं दी गई। यहां तक कि महाराज ही पहले ऐसे मंत्री थे जिन्होंने विभागीय सचिवों की सीआर मंत्री द्वारा लिखे जाने की बात कही।


कांग्रेसी मूल के दूसरे मंत्री सुबोध उनियाल हैं। त्रिवेंद्र रावत सरकार में सुबोध उनियाल के पास बड़े अहम विभाग दिए गए थे जिनमें कृषि, कृषि शिक्षा, रेशम, फल प्रसंस्करण के अलावा उद्यान विभाग जैसे अहम मंत्रालय थे। सुबोध उनियाल के सभी मंत्रालय तीरथ सरकार और धामी सरकार के पहले कार्यकाल में यथावत रखे गए थे लेकिन धामी पार्ट-टू में सुबोध उनियाल के पास वन, भाषा, निर्वाचन एवं तकनीकी शिक्षा जैसे ही विभाग दिए गए हैं। वन मंत्रालय का सबसे अहम विभाग पर्यावरण उनियाल के खाते मे नहीं देकर कमजोर विभाग मिलने से यह तो साफ हो गया कि धामी पार्ट-टू में अब सुबोध उनियाल की हैसियत पहले जैसे नहीं रह गई है। सूत्रों की मानें तो सुबोध उनियाल अपने मंत्रालय की कटौती को लेकर नाराज है। साथ ही अपने विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली से भी उनकी नाराजगी हैं। हालांकि उन्होंने कभी अपनी नाराजगी को सार्वजनिक तौर पर नहीं रखा है लेकिन अधिकारियों की सीआर लिखने का अधिकार मंत्री के पास होने की बात का उनियाल सबसे ज्यादा समर्थक रहे हैं।


अपने विभागों के अधिकारियों द्वारा अनदेखी किए जाने और उनकी बातों को महत्व नहीं देने के आरोप लगाने वाले तीसरे कांग्रेसी मूल के मंत्री सौरभ बहुगुणा हैं। बहुगुणा के पास दुग्ध विकास, पशुपालन, मत्स्य पालन, गन्ना एवं चीनी उद्योग,
प्रोटोकॉल तथा कौशल विकास जैसे अहम विभाग है। उन्होंने अल्प कार्यकाल में ही अपनी क्षमता को साबित कर चुके हैं। लेकिन वे भी अधिकारियों की कार्यशैली से नाराज बताए जा रहे हैं। राज्य के सभी जिलों में आंचल डेयरी के 8 बाई 10 के
आउटलेट के स्थान चिन्हित करने के आदेश जिलाधिकारियों को दिए थे। जिससे प्रदेश के अनेक भागों में आंचल डेयरी के
आउटलेट खोले जाने थे। इस योजना से राज्य के दुग्ध और पशुपालन उद्योग से जुड़े लोगों को लाभ मिलना निश्चित है लेकिन एक माह से ज्यादा समय होने के बावजूद इस पर कोई काम नहीं हो पाया है। इससे सौरभ बहुगुणा भी नाराज बताए जा रहे हैं। अपनी नाराजगी को वे सार्वजनिक भी कर चुके हैं। एक कार्यक्रम में उन्होंने इस बात को भी सामने रखा है।


कांग्रेसी मूल की चौथी मंत्री रेखा आर्य हैं जो इस बात पर हमेशा से चर्चाओं में रही हैं कि उनके विभागों के अधिकारियों के साथ कभी नहीं बनी। हाल ही में खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के सचिव संग उनकी स्थानांतरण को लेकर तनातनी की खबरें खूब चर्चाओं में हैं। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक साथ 50 आईएएस और पीसीएस अधिकारियों के तबादले किए हैं जिससे मंत्रियों के विभागों के अधिकारी बदले हैं। सतपाल महाराज के विभाग पर्यटन से दिलीप जावलकर की विदाई कर सचिन कुर्वे जैसे कड़क अधिकारी को तैनात कर सीएम धामी ने संकेत दे दिए हैं कि कड़क छवि के कुर्वे को रेखा आर्य के साथ-साथ सतपाल महाराज के महकमे का सचिव बनाना उनकी उस रणनीति का हिस्सा है जिसके जरिए वे असंतुष्ट मंत्रियों को ऐसे नौकरशाहों के को आगे कर काबू में रखना चाह रहे हैं।

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