नई दिल्ली। उत्तराखण्ड का प्रमुख पर्व हरेला प्रवास में भी लोकप्रिय है। इस पर्व पर्व पर महानगरों में भी कार्यक्रम हो रहे हैं। नई दिल्ली में सामाजिक संस्था कृषि चौपाल, गेल इंडिया, साहित्य कला परिषद और उत्तराखण्ड क्लब की ओर से ‘साहित्य एवं संस्कøति की जुगलबंदी’ नामक कार्यक्रम आयोजित किया गया। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हरेला लोकपर्व हमारी पर्यावरण और हरियाली के प्रति संवेदना को प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि पहाड़ों में हजारों साल से हरेले के दिन एक पेड़ लगाने की जो परंपरा रही उसका सीधा अर्थ यही है कि हमारे पूर्वज हमारी पारिस्थतिकी को लेकर हमेशा सजग रहे। यह समय की मांग है कि हम हरियाली और पर्यावरण को बचाने के लिए सजग हो जाएं।
कार्यक्रम का पहला खंड हिंदी छायावादी साहित्य के पुरोधा प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत और दूसरा खंड उत्तराखण्ड के अमर लोकगायक स्व गोपाल बाबू गोस्वामी को समर्पित रहा। पहले चरण की अध्यक्षता प्रख्यात भाषा विज्ञानी और मेरठ यूनिवर्सिटी से संबद्ध रहे प्रो सुरेश चंद्र पंत ने की। छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत स्मारक व्याख्यान के मुख्य वक्ता और वर्तमान हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर कवि मंगलेश डबराल ने पंत के रचना कर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत माता ग्रामवासिनी जैसी कविताओं के रचयिता पंत को एकमात्र प्रकृति का कवि कहना उनके साथ नाइंसाफी होगी। उन्होंने कहा कि पंत को आज भी समग्रता में देखे जाने की जरूरत है।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र पाण्डेय ने कहा कि एक छोटे से राज्य उत्तराखण्ड ने भारत को सैकड़ों विलक्षण प्रतिभाएं दी हैं। उन्होंने इलाचंद जोशी से लेकर प्रसून जोशी का जिक्र करते हुए कहा कि पलायन का दंश उत्तराखण्ड को खोखला कर रहा है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भाषाविद् प्रो सुरेश चंद्र पंत ने कहा कि पंत जी ने आलोचनाओं की कभी परवाह नहीं की जबकि आलोचकों ने उन पर स्वैण होने तक के आरोप लगाए। कार्यक्रम के दूसरे चरण के आकर्षण उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध गायक स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी के सुपुत्र रमेश बाबू गोस्वामी रहे। उन्होंने अपने पिता की तरह हाई पिच पर गाते हुए श्रोताओं को यह आभास दिला दिया कि उनके पिता यहीं मौजूद हैं। कार्यक्रम का संयोजन नीरज जोशी और आभार कøषि चौपाल के महासचिव महेंद्र बोरा ने व्यक्त किया।