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जोशीमठ को लेकर न केवल राज्य बल्कि केंद्र सरकार भी चिंतित है। पर्यावरणविद् और विशेषज्ञ अपने-अपने स्तर से आपदा का आकलन करने में जुटे हैं। ऐसे में जोशीमठ के वे पुराने जख्म भी सामने आ रहे हैं जिनका अगर समय रहते इलाज कर दिया जाता तो आज ये जख्म स्थानीय लोगों के लिए नासूर न बनते

‘राज्य के भूकंपीय दृष्टि से बहुत अस्थिर होने के कारण विकास और निर्माण योजनाओं को नियोजित तरीके से संचालित करने के लिए ही विकास प्राधिकरण बनाए गए थे। मैं समझता हूं कि जो प्राधिकरण गठित किए गए थे, उनके पीछे यही सोच थी कि उत्तराखण्ड भूकंपीय दृष्टि से बहुत ज्यादा ‘अस्थिर’ है। यहां व्यवस्थित और नियोजित तरीके से निर्माण तथा विकास की योजनाएं संचालित हो सके, इस दृष्टि से विकास प्राधिकरण बनाए गए थे, लेकिन उन्होंने प्राधिकरण समाप्त कर दिए। तकलीफ तो होती है, कष्ट होता है।’ भाजपा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का उक्त बयान इन दिनों खासी चर्चा में है जिसने सियासी पारा चढ़ा दिया है। वायरल वीडियो में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत जोशीमठ भू-धंसाव पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह भी कहते नजर आ रहे हैं कि लोकतंत्र में सभी लोगों पर जिम्मेदारी होती है लेकिन कुछ लोग इस जिम्मेदारी को उठाने में सक्षम नहीं होते और समस्याएं पैदा हो जाती हैं। उनका सीधा इशारा पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की तरफ है। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की सरकार में जिला विकास प्राधिकरण बनाए गए थे, लेकिन त्रिवेंद्र के हटने के बाद तीरथ सरकार ने आते ही इस फैसले को पलट दिया था। त्रिवेंद्र रावत का यह दर्द ऐसे समय पर छलका है जब जोशीमठ आपदा पर लोग जिला विकास प्राधिकरण की जरूरत को शिद्दत से महसूस कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि ऐसे समय में अगर जिला विकास प्राधिकरण होता तो जोशीमठ में इस तरह अनियंत्रित भवन न बनाए जाते। जब तक जिला विकास प्राधिकरण था तब तक किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि बिना नक्शे और अपनी मर्जी से जहां-तहां भवन बना सके। लेकिन जिला विकास प्राधिकरण खत्म होते ही अनियोजित और अनियंत्रित भवनों के बनने का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ जो अभी भी बदस्तूर जारी है।

जोशीमठ नगर को देखने से साफ पता चलता है कि जोशीमठ में किसी प्रकार की नगरीय व्यवस्था और नियोजन के मानकों को पूरा नहीं किया गया या इनको माना ही नहीं गया। जबकि जोशीमठ नगर पालिका वर्षों पूर्व ही स्थापित हो चुकी थी। इसके अलावा भवन निर्माण आदी के लिए पालिका के साथ ही जिला पंचायत की भी अनुमति का प्रावधान रहा है लेकिन जिस तरह से इस नगर में बहुमंजिला इमारतों का अंबार खड़ा कर दिया गया, वह साफ बताता है कि जोशीमठ को तबाह करने के लिए एक साथ सभी संस्थानों ने अपनी जिम्मेदारी का ठीक से निर्वहन नहीं किया।

गौरतलब है कि वर्ष 2017 में तत्कालीन भाजपा की त्रिवेंद्र रावत सरकार द्वारा जिला विकास प्राधिकरण का गठन किया गया और प्रत्येक जिले में कस्बां और नगरों का विनियमितीकरण करने का काम शुरू हुआ तो इस पर भारी बवाल हुआ था। स्वयं सत्ताधारी भाजपा के नेताओं और विधायकां द्वारा इसका विरोध किया गया। कांग्रेस ने इसे जनता से लूट का सरकारी तरीका बताकर सरकार की आलोचना की। 2021 में प्रदेश में सरकार का नेतृत्व परिवर्तन के साथ ही मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जिला विकास प्राधिकरण को समाप्त कर दिया। इससे पहाड़ी क्षेत्रों में भवन निर्माण के लिए मानकां से छूट मिल गई और एक तरह से कंक्रीट की इमारतों को मन चाहे तरीके से बनाने का रास्ता आसान हो गया।

2011 में खंडूड़ी सरकार द्वारा भवन निर्माण एवं विकास विनियम अधिनियम लागू किया गया था जिसमें पर्वतीय क्षेत्रां में 12 मीटर यानी तीन मंजिल से ज्यादा भवनों के निर्माण पर रोक लगा दी गई। लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया गया और सक्षम लोग प्रिधकृत नगर पालिका से मिलीभगत करके मनचाहे बहुमंजिला भवनां का निर्माण करते रहे। 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद फिर से राज्य सरकार को अपने बिल्डिंग बायलॉज को लागू करने का अवसर मिला तो इसमें नियम सख्त किए गए।

इस सख्ती का कितना असर पड़ा हो यह जोशीमठ को देख कर पता चल जाता है। जोशीमठ में 7 मंजिला होटल और भवनों का निर्माण होने दिया गया। हैरानी इस बात की है कि ऐसे भवनों का कुल क्षेत्रफल एक नाली यानी दो सवा दो सौ वर्ग मीटर से ज्यादा नहीं है। बावजूद इसके ऐसे बहुमंजिला भवन बनते चले गए। आज जो दो सबसे बड़े होटल ‘मलारी इन’ और होटल ‘माउंट व्यू’ सबसे चर्चित हैं। उनका कुल क्षेत्रफल भी भवन की मंजिल के अनुपात में नहीं है।

बाईपास निर्माण पर सवाल
जोशीमठ में होटल और रिसोर्ट लॉबी बेहद मजबूत है। वह अपने हित के लिए सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार पर भी दबाव बनाने में इतनी सक्षम है कि सरकारी परियोजनाओं को बदलने की ताकत रखती है। इसकी सबसे बड़ी बानगी ऑल वेदर रोड और जोशीमठ बाईपास परियोजना को देखकर समझा जा सकता है।

जोशीमठ में अत्यधिक यातायात के दबाव के चलते केंद्र सरकार द्वारा ऑल वेदर रोड योजना के तहत जोशीमठ बाईपास योजना को स्वीकृति दी थी। इस बाईपास से बदरीनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों का 30 किमी . का सफर महज 3 किमी . का ही रह जाता है। यह मार्ग जोशीमठ नगर से हटकर सीधे बाहरी क्षेत्र से होते हुए विष्णुप्रयाग में जुड़ना था जिसमें एक टनल का भी निर्माण होना था। लेकिन जोशीमठ के व्यापारी और होटल कारोबारियों की बड़ी लॉबी ने इसका घोर विरोध किया। तब जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के नाम पर बड़ा आंदोलन किया गया। जिसमें स्थानीय विधायक के साथ-साथ वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र प्रसाद भट्ट के अलावा कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता जिनमें हरीश रावत भी थे ‘जोशीमठ बचाओ आंदोलन’ के साथ खड़े रहे। आखिरकार जन दबाव के चलते केंद्र सरकार द्वारा बाईपास मार्ग को जोशीमठ को जोड़ने के लिए फिर से योजना बनानी पड़ी।

गौर करने वाली बात यह हे कि तत्कालीन शंकराचार्य स्वरूपानंद के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जो कि वर्तमान में ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य हैं, के ही एक शिष्य स्वामी मुकुन्दानंद सरस्वती के मुंह पर कालिख पोत कर शंकराचार्य को विकास विरोधी बताकर उनके पुतले तक फूंके गए। शंकराचार्य बाईपास मार्ग को जोशीमठ से जोड़ने का विरोध कर रहे थे। उनका मानना था कि जोशीमठ पर पहले ही भारी दबाव है और बाईपास को नगर से जोड़ दिया गया तो नगर में भू-धंसाव होने की संभावना बढ़ जाएगी। स्थानीय मीडिया भी तब जोशीमठ के व्यापारियों और होटल कारोबारियों के ही पक्ष में दिखाई देता रहा और जोशीमठ के करोबार को तबाह होने की खबरों को जमकर सामने लाता रहा। ऐसे में जब जोशीमठ तबाह होने की कगार पर है तो अब यही तत्व फिर से जोशीमठ की तबाही के लिए सरकार और प्रशासन को जिम्मेदार मानकर आंदोलन कर रहे हैं। इसके लिए सबसे बड़ा दोष अगर किसी का है तो उन्हीं लोगों का है जिन्होंने तमाम नियम-कानून को ताक पर रखकर प्रशासन से मिलीभगत कर बहुमंजिला इमारतें जोशीमठ के सीने पर खड़ी कर दी और इस छोटे से पहाड़ी कस्बे को एक बड़े शहरी नगर में तब्दील कर दिया गया। आज जो भी भूमि जोशीमठ में खाली है वह सिर्फ इसलिए बची रह गई है कि उसमें जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है इसलिए उन पर भवन नहीं बनाए जा सके हैं।

अब राज्य सरकार के लिए जोशीमठ एक बड़ी चुनौती बन चुका है। सरकार सभी प्रकार की जांच कमेटियों और विशेषज्ञों की राय के बाद ही निर्णय लेगी कि जोशीमठ का भू-धंसाव क्षेत्र को बगैर किसी निर्माण के रखा जाए या फिर से इस हिस्से का पुनर्निर्माण किया जाए। तकनीकी तौर पर जोशीमठ का भू-धंसाव वाला क्षेत्र लगातार धंस रहा है। इसरो की रिपोर्ट भी निरंतर धंसाव होने की बात कर रही है। साथ ही सभी भूगर्भीय रिपोर्ट भी जोशीमठ को भूस्खलन से पैदा हुई भूमि पर स्थापित बताती रही है। सरकार के सामने एक साथ अनेक बड़ी चुनौतियां बन चुकी हैं जिनसे पार पाने के लिए सरकार को कई मोर्चों पर जूझना निश्चित है। अगर सरकार पहाड़ी क्षेत्रों में बिल्डिंग बायलॉज के नियमों को सख्ती से पालन करवाती है तो तकरीबन दो तिहाई जोशीमठ को ध्वस्त करना पड़ सकता है और अगर इसमें छूट देती है तो फिर से आपदा की संभावना बनी हुई है।

खराब ड्रेनेज सिस्टम
प्रदेश का नगरीय प्रशासन और राज्य सरकार किस तरह से जोशीमठ के प्रति उदासीन रही है। केंद्र की यूपीए सरकार के समय गंगा एक्शन प्लान के तहत बदरीनाथ, जोशीमठ, कर्णप्रयाग, श्रीनगर, देवप्रयाग, रूद्रप्रयाग और लक्ष्मण झूला र्स्वाश्रम जैसे गंगा नदी के तट पर स्थित नगरों में सीवरेज सिस्टम को बनाने के लिए योजना बनाई गई थी। 1976 में बनी मिश्रा कमेटी ने भी जोशीमठ के लिए सीवरेज सिस्टम को बेहद जरूरी बताया था। गंगा एक्शन प्लान के तहत भी सिवरेज सिस्टम को जरूरी बताया गया था। लेकिन जोशीमठ 46 सालों से सिवरेज सिस्टम का इंतजार ही करता रहा है। राज्य सरकार भी इसके लिए घोर उदासीनता ही बरतती रही जबकि 2010 में एमपीएस बिष्ट और 2020 में वैज्ञानिक और हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आपदा प्रबंधन सचिव पीयूष रौतेला ने भी सरकार को अपनी रिपोर्ट सांपी थी जिसमें जोशीमठ के लिए सीवरेज सिस्टम को बनाने की बात प्रमुखता से बताई गई थी।

नगर में सीवर के लिए पिट व्यवस्था चली आ रही है जिसमें हजारां भवनों यहां तक कि सैन्य क्षेत्र में भी सीवर पिट व्यवस्था है जिसके जल की निकासी सीधे भूमि में रिसाव से ही होती है। बरसाती पानी भी भूमि में समा जाता है यहां ड्रेनेज व्यवस्था नगर के विस्तार के हिसाब से नहीं है। पेयजल लाइनों में जगह-जगह रिसाव होता रहता है। यह रिसाव भी भूमि में ही समा रहा है जिससे जोशीमठ के नीचे की भूमि के दलदली होने की आशंका बन गई है। जैसे-जैसे पर्यटन फलता-फूलता गया और बड़े पैमाने पर निर्माण होता गया उससे हालात यह पैदा हो गए हैं कि पानी के प्राकृतिक प्रवाह को घरों और अन्य संरचनाओं ने रोक दिया। जोशीमठ शहर में सैकड़ों घर अब गिरने के कगार पर हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकार एक मजबूत जल निकासी योजना बनाने की अब बात कर रही हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने निर्देश दिया है कि इस शहर के लिए एक जल निकासी योजना तैयार की जाए, जिस पर वह बिना किसी औपचारिकता के हस्ताक्षर करेंगे।

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