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  •       संजय कुंवर

 

 

देवभूमि उत्तराखण्ड में जहां कई गांव और शहर बांधों के चलते डुबाए जा चुके हैं, वहीं अब एक पौराणिक शहर जोशीमठ के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। स्थानीय लोगों में भय का माहौल इतना व्याप्त है कि उन्होंने अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेनी शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भू-धंसाव की वजह से असुरक्षित हो गए परिवारों को चिन्हित करते हुए उनका सुरक्षित स्थानों पर पुनर्वास के लिए प्रस्ताव बनाने के निर्देश दे दिए हैं

आदिगुरु शंकराचार्य की तपस्थली एवं सांस्कृतिक एवं पर्यटन नगरी सीमांत जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धंसाव के चलते शहर का अस्तित्व खतरे में बना हुआ है। नगर वार्ड के सैकड़ों घरों में दरारें पड़ने से लोगों ने घर छोड़कर रिश्तेदारों के यहां शरण ली है। प्रशासन द्वारा अभी तक किसी तरह की व्यवस्था न करने से मनोहरबाग के लोगों ने कड़ाके की ठंड के बीच रतजगा किया। इसको देखते हुए प्रशासन ने भी कई घरों से किरायेदारों को खाली करने के निर्देश दिए हैं। वहीं जोशीमठ के अस्तित्व को बचाने के लिए नगरवासियों द्वारा बाजार बंद कर विशाल आक्रोश रैली निकाल कर सीएम को ज्ञापन भेजा गया। शंकाराचार्य द्वारा भी ज्योतिर्मठ के अस्तित्व को बचाने के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखा गया है। नगर के जनप्रतिनिधियों का एक शिष्टमंडल ने भू-धंसाव को लेकर नए मुख्यमंत्री से मुलाकात कर विस्थापन एवं पुनर्वास की मांग की। मुख्यमंत्री ने जोशीमठ क्षेत्र को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया है। लेकिन जनप्रतिनिधि सीएम धामी के आश्वासन से नाखुश देखाई दे रहे हैं।

नगर के विभिन्न वार्डों में पिछले एक साल से हो रहे भू-धंसाव से लोग भयभीत हैं। नगर के सिंहधार, सुनील, रविवार ग्राम, मनोहरबाग, गांधीनगर, नृसिंह मंदिर, जीयो बैंड एवं टीसीपी सहित अन्य जगहों पर लगातार हो रहे भू-धंसाव से मकानों में दरारें पड़ने लगी हैं। नगर पालिका परिषद जोशीमठ के सर्वे अनुसार 576 से अधिक घरों में दरारें आ गई हैं। जिनमें रहना अब सुरक्षित नहीं है। भू-धंसाव का आकार लगातार बढ़ने से जोशीमठ के करीब तीन हजार वाशिंदों की सांसें अटकी हुई हैं। ऐसे में समय रहते सुरक्षात्मक कदम नहीं उठाया गया तो किसी बड़ी अनहोनी से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। शासन-प्रशासन द्वारा लोगों को सुरक्षित जगहों पर विस्थापन के लिए अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। लोगों में आक्रोश है कि शासन-प्रशासन द्वारा लोगों की कोई सुध न लेने से सीमांत नगरी में बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गई है।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती के अनुसार ग्रामीण कड़ाके की ठंड में पहरा देने को मजबूर हैं। जिला अधिकारी चमोली ने दिसंबर के अंतिम सप्ताह में जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्रों का निरीक्षण किया था। उन्होंने सिंचाई विभाग को जोशीमठ के ड्रेनेज प्लान के लिए शीघ्र डीपीआर तैयार कर सुरक्षात्मक कार्य के आदेश दिए। साथ ही मारवाड़ी पुल से विष्णुप्रयाग तक करीब 1.5 किमी नदी क्षेत्र में हो रहे भूकटाव की रोकथाम के लिए सुरक्षा दीवार निर्माण के लिए आपदा न्यूनीकरण में प्रस्ताव उपलब्ध कराने को कहा गया।


जमीन और दीवारों में ऐसे पड़ी हैं दरारें

जोशीमठ के भविष्य को खतरे में देख जोशीमठ संघर्ष समिति ने 24 दिसंबर को बाजार बंद कर विशाल जन आक्रोश रैली निकाली थी। जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती के अनुसार जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर हुए विभिन्न वैज्ञानिक भूगर्भीय अध्ययनों और उनकी रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए तत्काल ट्रीटमेंट कार्य शुरू किया जाना जरूरी है। उन्होंने एनटीपीसी के तपोवन जल विद्युत परियोजना की सुरंग को भू-धंसाव का कारण बताते हुए प्रभावित परिवारों को नुकसान की भरपाई की भी मांग की। साथ ही उनके पुनर्वास के लिए उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने की भी आवाज उठाई। कमेटी ने सरकार की वर्तमान विस्थापन एवं पुनर्वास नीति में संशोधन की भी मांग उठाई है।

पैनखंडा ज्योतिर्मठ जनकल्याण समिति ने जोशीमठ क्षेत्र में विद्युत परियोजनाओं पर रोक लगाने तथा जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री को पत्र भेजा है। समिति के नरेशानंद नौटियाल के अनुसार जोशीमठ में लगातार भू-धंसाव विकास के नाम पर बन रही विभिन्न परियोजनाओं के कारण हो रहा है जिससे भवन और भूमि में दरारें आ रही हैं। ऐसे में जल विद्युत परियोजना और मारवाड़ी हेलंग बाईपास परियोजना पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए।

क्या है भू-धंसाव की वजह
वैसे तो जोशीमठ धंसना शुरू कई साल पहले हो चुका था, लेकिन 2020 के बाद से समस्या ज्यादा गंभीर होती जा रही है। ऐसा माना जाता है कि भूस्खलन के मामले में यह क्षेत्र ज्यादा संवेदनशील है। फरवरी 2021 में जब बरसात आई तो उसके बाद आई बाढ़ से सैकड़ों मकानों में दरार आ गई। 2022 सितंबर में उत्तराखण्ड के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से विशेषज्ञों की टीम ने सर्वे यहां सर्वे भी किया। जिसमें भू-धसाव का कारण खराब सीवरेज, वर्षा जल और घरेलू अपशिष्ट जल के जमीन में रिसने से मिट्टी में उच्च छिद्र-दबाव की स्थिति पैदा होने की बात सामने आई थी। इसके अलावा अलकनंदा के बाएं किनारे की और आए कटाव को शहर पर हुए प्रतिकूल प्रभाव का कारण माना जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जोशीमठ शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। इसके अलावा यह शहर ग्लेशियर के रोमैटेरियल पर बसा है। ग्लेशियर या सीवेज के पानी का जमीन में जाकर मिट्टी को हटाना, जिससे चट्टानों का हिलना आदि ऐसे कई कारण है। सबसे महत्वपूर्ण ड्रेनेज सिस्टम को माना जा रहा है जिसके नहीं होने से जोशीमठ का धंसाव बढ़ा है। हालांकि स्थानीय लोगों का कहना हैं कि जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे सुरंग से निकाली जा रही एनटीपीसी की निर्माणाधीन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना इसकी जिम्मेदार हैं। इसके अलावा हेलांग विष्णुप्रयाग बाईपास की खुदाई को भी समस्या का कारण माना जा रहा है। इसके अलावा यहां पर्यटकों की लगातार बढ़ रही संख्या और अनियोजित विकास भी एक समस्या बनता जा रहा है। पर्यटकों की सुविधाओं के लिए यहां तेजी से व्यावसायिक निर्माण हो रहे है। यहां कई ऐसे होटल हैं, जो 5 से 7 मंजिल तक बनाए गए है। जिनसे अनियोजित विकास होता जा रहा है। खास बात यह है कि पांच साल पहले चेतावनी मिलने के बावजूद सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। जिसका नतीजा यहां रह रहे लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

रिश्तेदारों के घर शरण लेने को मजबूर जोशीमठवासी

प्रशासन की तैयारी
जोश्ीमठ में हो रहे भू-धंसाव के मद्देनजर जिला प्रशासन ने एक सर्वे किया है जिसके अनुसार गांधीनगर में 127 भवनों में दरार आ चुकी है। इसी तरह मारवाड़ी में 28, लोअर, बाजार में 24, सिंहधार में 52, मनोहरबाग में 71, अपर बाजार में 29, सुनील में 27, परसारी में 50, रविग्राम में 153 घरों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। इसके अलावा दो होटल ऐसे हैं जिन्हें बंद करा दिया गया है। इनमें माउंट व्यू तथा मलारी इन शामिल है। इसके साथ ही प्रशासन ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत अग्रिम आदेशों तक होटल संचालन प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। प्रशासन ने सुरक्षा के मद्देजन करीब 29 परिवारों को अस्थाई रूप से विस्थापित कर दिया है। जिनमें 14 परिवारों को नगर पालिका जोशीमठ में तथा 3 परिवारों को प्राथमिक विद्यालय में, एक परिवार मिलन केंद्र में, 3 परिवार गुरुद्वारा तथा आठ परिवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने रिश्तेदारों के यहां शरण ली है। इसके अलावा प्रशासन ने 385 लोगों की क्षमता वाले 70 कमरे, 7 हॉल और एक ऑडिटोरियम को चिÐत किया है। ये भवन ऐसे हैं जहां दरार प्रभावित घरों से निकले लोगों को ठहराए जाने की व्यवस्था की गई है।

 

 

बात अपनी-अपनी
तीर्थाटन व पर्यटन नगरी जोशीमठ भू-धंसाव से खतरे की जद में है। तत्काल जोशीमठ के पुनर्वास व मुआवजा की व्यवस्था होनी चाहिए
राजेन्द्र भंडारी, विधायक बदरीनाथ

मैं जोशीमठ में नहीं हूं, छुट्टी पर हूं। वहां के प्रभारी एसडीएम से बात कर लीजिए।
कुमकुम जोशी, एसडीएम जोशीमठ

जोशीमठ का अस्तित्व भू-धंसाव से खतरे में बना हुआ है। नगर के विभिन्न वार्डों में लगभग 576 से अधिक मकानों में दरारें पड़ गई हैं। जिससे इनमें रहना अब सुरक्षित नहीं है। शासन -प्रशासन द्वारा त्वरित कार्रवाई करते हुए प्रभावितों का पुनर्वास और विस्थापन किया जाए।
शैलेंद्र पंवार, संघर्ष समिति अध्यक्ष व पालिका अध्यक्ष जोशीमठ

इसमें कोई संदेह नहीं कि एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड परियोजना की सुरंग ही जोशीमठ की तबाही के लिए जिम्मेदार है। जो आशंका हमने दिसम्बर 2003 के अपने राष्ट्रपति को भेजे पहले ज्ञापन में जाहिर की थी वह सच हो रही है। मारवाड़ी में निकले मटमैले पानी ने यह साबित कर दिया है कि यह वही पानी है जो 7 फरवरी की आपदा के समय सुरंग में गया था और वहां जमा था। इसमें वही गंध है। जेपी कंपनी के आवास कॉलोनी में जगह-जगह से पानी फूट रहा है। पूरी कॉलोनी धंस गई है। इसके लिए अब और कोई अन्य प्रमाण की जरूरत नहीं है। सरकार एनटीपीसी को जोशीमठ को तबाह करने का जिम्मेदार ठहराए जाए या नहीं, परंतु 100 फीसद जनता के सामने यह आ गया है। जोशीमठ नगर उजड़ रहा है और सरकार क्या कर रही है?
अतुल सती, संयोजक, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति

 

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