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Uttarakhand

त्रिकोणीय मुकाबले की ओर जसपुर

मुस्लिम बाहुल्य जसपुर विधानसभा सीट पर राज्य गठन के बाद से ही कांग्रेस काबिज रही है। यहां से वर्तमान विधायक आदेश चौहान पहले भाजपा में हुआ करते थे। उनको इस बार यहां भारी जनविरोध का सामना करना पड़ रहा है। कारण है विकास कार्यों का न होना और जनता से दूरी बनाकर रखना। भाजपा नेता शैलेंद्र मोहन सिंघल यहां से तीन बार के विधायक रह चुके हैं। तीनों ही चुनाव उन्होंने बतौर कांग्रेस कैंडिडेट जीते थे। उनकी स्थिति भी खास अच्छी नहीं है। भाजपा भीतर ही उनका जमकर विरोध हो रहा है। दोनों मुख्य दलों के भीतर चल रही रार का लाभ उठाने के लिए आम आदमी पार्टी यहां खासी सक्रिय हो चली है

उत्तराखण्ड के ऊधम सिंह नगर जिले में स्थापित जसपुर नगर की स्थापना चंद्रवंश के सेनापति यशोधर सिंह अधिकारी द्वारा की गई थी। तब इसका नाम यशपुर था। कालांतर में इसका नाम जसपुर पड़ गया। इतिहास के पन्नों में यह भी दर्ज है कि 1856 में अकबर के शासन काल में जसपुर का नाम शाहगीर था। 18 नवंबर 1851 को देश में पहली बार नगर निकाय का गठन किया गया। इसके बाद 1856 में टाउन एक्ट लागू हुआ जिसके बाद जसपुर को नगर का दर्जा दिया गया। बताया जाता है कि 1962 से यहां लकड़ी का आयात-निर्यात काफी तेजी से होने लगा था। जिसके चलते इसे एशिया की सबसे बड़ी लकड़ी मंडी कहा जाने लगा था।

अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान जसपुर विधानसभा सीट काशीपुर विधानसभा का हिस्सा हुआ करती थी। वर्ष 2002 में जब उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ तो जसपुर विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। इसके बाद हुए चारों विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का ही आधिपत्य रहा। डॉक्टर शैलेंद्र मोहन सिंघल यहां से तीन बार विधायक रहे तथा चौथी बार आदेश चौहान विधायक बने। डॉक्टर शैलेंद्र मोहन सिंघल एक बार निर्दलीय तो दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते। 2017 में सिंघल 9 विधायकों के साथ पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए। दूसरी तरफ भाजपा नेता आदेश चौहान भी पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए। जैसे सिंघल को कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने पर पार्टी का टिकट मिला उसी तरह चौहान को भी भाजपा छोड़ कांग्रेस में आने पर पार्टी का टिकट मिला। एक तरह से कहा जाए तो डॉक्टर सिंघल का पाला बदलना जनता को रास नहीं आया और उन्होंने उन्हें पटखनी दे दी। 2017 के विधानसभा चुनाव में आदेश चौहान को 42551 वोट मिले तो वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर शैलेंद्र मोहन सिंघल को 38347 वोट मिले। इस तरह 4100 वोटों से सिंघल जीत दर्ज कराने से वंचित रह गए।

डॉक्टर शैलेंद्र मोहन सिंघल के बारे में कहा गया कि वह ओवर कॉन्फिडेंस के चलते चुनाव हारे। यही नहीं बल्कि उन पर 2017 के चुनाव हारते समय यह भी आरोप लगा कि उन्होंने भाजपा के पुराने संगठन को तरजीह नहीं दी। हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि शैलेंद्र मोहन सिंघल के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने पर भाजपा जसपुर में मजबूत जरूर हुई क्योंकि भाजपा में सिंघल जैसे बड़े कद का नेता नहीं था। यहां यह बताना भी जरूरी है कि आदेश चौहान के राजनीतिक गुरु पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी है। कहा तो यह भी जाता है कि आदेश चौहान को जब शैलेंद्र मोहन सिंघल की वजह से भाजपा में टिकट नहीं मिला तो चौहान को कांग्रेस में जाने की सलाह भी उनके राजनीतिक गुरु कोश्यारी द्वारा दी गई। चौहान को इस सलाह का फायदा भी मिला और वह कांग्रेस में जाकर विधानसभा चुनाव जीत गए। जसपुर में जहां पूर्व में भगत सिंह कोश्यारी के शिष्य आदेश चौहान विधायक बन गए तो वहीं उनके दूसरे शिष्य भी इस डगर पर चल रहे हैं। वह है शीतल जोशी। शीतल जोशी को भी भगत सिंह कोश्यारी का खास बताया जाता है। फिलहाल भगत सिंह कोश्यारी पुराने चेलों को आगे बढ़ा कर एक तीर से दो निशाने साधने की तैयारी में है।

अगर ऐसा हुआ तो जसपुर की सियासत का यह खेल फिर से रोमांचकारी साबित होगा। इसमें आदेश चौहान एक बार फिर जीत का पताका फहरा सकते हैं। आदेश चौहान और शीतल जोशी की तुलना की जाए तो जोशी पर चौहान भारी पड़ते हैं। उसका एक कारण यह है कि जसपुर में चौहान मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। साथ ही आदेश चौहान की राजनीति सिर्फ चौहानों तक सीमित नहीं है बल्कि वह अल्पसंख्यक समुदाय में भी लोकप्रिय बताए जाते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव से पूर्व जब आदेश चौहान को भाजपा में टिकट नहीं मिला तो उन्हें कांग्रेस में लाने वाले हरीश रावत ही थे। वह विधायक भी बने तो हरीश रावत की मेहनत और रणनीति की बदौलत। लेकिन आज आदेश चौहान हरीश रावत के बजाय प्रीतम सिंह खेमे के नेताओं में जाने जाते हैं। चुनाव जीतने के कुछ दिनों बाद से ही आदेश चौहान का हरीश रावत के प्रति मोहभंग हो गया और वह प्रीतम सिंह खेमे में जा मिले। हालांकि ऐसा नहीं है कि आदेश चौहान की हरीश रावत के प्रति एकतरफा नाराजगी रही हो, बल्कि हरीश रावत की तरफ से भी उनके प्रति नाराजगी सामने आती रही है। इसका उदाहरण उन दिनों सामने आया था जब हरीश रावत को कांग्रेस का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया था। तब हरीश रावत के प्रदेश में हर शहर में स्वागत समारोह हो रहे थे। वह तब हर जगह जा रहे थे। लेकिन जसपुर ऐसा शहर था जहां हरीश रावत का स्वागत समारोह नहीं हुआ।

पिछले दिनों जब कांग्रेस के प्रदेश संगठन में नई नियुक्तियां हुई और गणेश गोदियाल प्रदेश अध्यक्ष बने तो एक बार फिर जसपुर विधायक आदेश चौहान की खेमेबंदी सामने आई थी। तब देहरादून में हुए गणेश गोदियाल के स्वागत समारोह में विधायक आदेश चौहान प्रीतम सिंह के साथ मंच पर पहुंचे थे। फिलहाल पार्टी में अपनी पकड़ बनाए रखने और अपने समर्थक को आगे रखने की रणनीति के तहत हरीश रावत ने जसपुर में नया तुरूप का पत्ता चला है। यह तुरूप का पत्ता रवि डोगरा के रूप में सामने आया है। रवि डोगरा पूर्व में ब्लॉक प्रमुख रह चुके हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो हरीश रावत जसपुर में आदेश चौहान के सापेक्ष रवि डोगरा को मजबूत बनाने में जुटे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि हरीश रावत डोगरा को पार्टी प्रत्याशी के तौर पर तैयार कर रहे हैं।

रवि डोगरा राजनीति के क्षेत्र में एक साफ- सुथरा चेहरा है। जसपुर विधानसभा क्षेत्र मुख्य तौर पर दो भागों में विभाजित है। जिसमें एक जसपुर शहर का हिस्सा है तो दूसरा ग्रामीण एरिया। इस ग्रामीण एरिया में कुंडा क्षेत्र शामिल है। कुंडा क्षेत्र में रवि डोगरा की मजबूत पकड़ बताई जाती है। पूर्व ब्लॉक प्रमुख रवि डोगरा की जन शक्ति का एहसास उस समय हुआ जब कांग्रेस ने परिवर्तन यात्रा निकाली थी। परिवर्तन यात्रा के जसपुर में दो सेंटर बनाए गए थे। जिसमें एक जसपुर शहर में तो दूसरा कुंडा में बनाया गया था। बताते हैं कि कुंडा में परिवर्तन यात्रा का पड़ाव बनाने का यह सुझाव रवि डोगरा को हरीश रावत की तरफ से दिया गया था। जिसमें डोगरा को अपनी जनशक्ति दिखाने का मौका मिला था। हालांकि जसपुर के परिवर्तन यात्रा कार्यक्रम में हरीश रावत नहीं पहुंचे थे। जबकि पूर्व ब्लॉक प्रमुख रवि डोगरा के कुंडा में हुए कार्यक्रम में हरीश रावत के पुत्र आनंद रावत मौजूद थे। आदेश चौहान के बारे में जो राजनीतिक फीडबैक आ रहा है, वह पिछले 5 वर्ष की एंटी इंकम्बेंसी को मुख्य रूप से सामने रख रहा है। कांग्रेस संगठन में भी आदेश चौहान के खिलाफ नाराजगी ज्यादा देखी जा रही है। संगठन के नाराज नेताओं का आदेश चौहान की बजाए रवि डोगरा को समर्थन मिल रहा है।

पूर्व विधायक शैलेंद्र मोहन सिंघल के बारे में कहा जाता है कि वह जब कांग्रेस में थे तब भी भाजपा में ज्यादा पकड़ रखते थे। शायद यही वजह है कि बतौर कांग्रेस प्रत्याशी सिंघल ने भाजपा के नेताओं से सेटिंग करके ज्यादातर डमी कैंडिडेट ही उतरवाए। यह सिंघल की रणनीति का ही हिस्सा था कि भाजपा ने जब भी अपनी पार्टी के किसी नेता को यहां से टिकट दिया तो वह ऐसे को दिया जिसको जनता जानती भी नहीं थी। यही वजह थी कि सिंघल जसपुर से लगातार तीन बार चुनाव जीते।
भाजपा से इस बार टिकट मांगने वालों में सबसे पहले पूर्व विधायक शैलेंद्र मोहन सिंघल का ही नाम है। जबकि दूसरे नंबर पर विनय कुमार रुहेला हैं। रुहेला वैसे तो रूड़की के निवासी हैं लेकिन वर्षों से राजनीति जसपुर की ही करते हैं। विनय कुमार रुहेला 2017 में भी भाजपा से टिकट मांग रहे थे। तब उनका टिकट होते-होते रह गया। इसका कारण बने शैलेंद्र मोहन सिंघल। शैलेंद्र मोहन सिंघल को कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने पर बीजेपी ने टिकट दे दिया था। उस समय रुहेला ने सिंघल के सामने निर्दलीय ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी। प्रदेश के पार्टी प्रभारी श्याम जाजू ने रुहेला को मनाया और वह चुनाव मैदान से हटे। सिंघल और रुहेला के अलावा मनोज पाल भी भाजपा से टिकट मांग रहे हैं। मनोज पाल भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश महामंत्री हैं।

जसपुर में इस बार आम आदमी पार्टी के टिकट पर जबरदस्त सरगर्मी देखने में आ रही है। पिछले 40 सालों का नाता भाजपा से तोड़कर अजय अग्रवाल आम आदमी पार्टी में आ गए हैं। अजय अग्रवाल के परिवार का पिछले कई दशकों से भाजपा से संबंध रहा है। खुद अजय अग्रवाल पिछले कई सालों से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन आखिर में उन्हें भाजपा में यह उम्मीद नहीं दिखी तो वह आम आदमी पार्टी में आ गए। अजय अग्रवाल के अलावा आम आदमी पार्टी में कांग्रेस छोड़कर आए डॉक्टर यूनुस चौधरी भी दावेदार हैं। यूनुस चौधरी के पिता नारायण दत्त तिवारी सरकार में दर्जाधारी राज्य मंत्री रहे थे। इसके बाद डॉक्टर यूनुस चौधरी कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में रहे। आम आदमी पार्टी ने डॉक्टर यूनुस चौधरी को अल्पसंख्यक मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया हुआ है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी से एक प्रत्याशी और है जिनका नाम सरदार सुबा सिंह है। सरदार सुबा सिंह वह शख्स है जिनका नाम पूर्व में मुर्दों का बीमा करा कर धन हड़पने के मामले में सामने आया था। मृत लोगों को जिंदा दिखाकर उनके नाम पर बीमा हड़पने वाले ऐसे सरदार सुबा सिंह इस बार आम आदमी पार्टी से टिकट मांग रहे हैं। हालांकि तीनों प्रत्याशियों में अजय अग्रवाल सब पर भारी पड़ते नजर आ रहे हैं। अगर आम आदमी पार्टी ने अल्पसंख्यक वोटों का कार्ड खेला तो वह डॉक्टर यूनुस चौधरी को यहां से प्रत्याशी बना सकती है।

बहुजन समाज पार्टी जसपुर में कहीं भी फाइट में नहीं दिखाई देती है। इसका कारण है कि यहां इस पार्टी का संगठन बेहद कमजोर है। आज तक जसपुर विधानसभा चुनाव में कभी भी बसपा मजबूत कैंडिडेट नहीं दे पाई। अधिकतर यहां गैर-राजनीतिक लोग ही टिकट पाते रहे। फिलहाल, काशीपुर के रहने वाले मोहम्मद आसिफ की बसपा से मजबूत दावेदारी है। जिस तरह से राजनीतिक गलियारों में चर्चा है उससे लग रहा है कि बसपा मोहम्मद आसिम पर ही दांव लगाने जा रही है। मोहम्मद आसिफ एक प्रॉपर्टी डीलर है। फिलहाल, वह धनबल के चलते बसपा से टिकट तो हासिल कर सकते हैं लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि जसपुर के मतदाता उन्हें अच्छे से जानते भी नहीं हैं। ऐसे में जसपुर में अगर मोहम्मद आसिफ को बसपा से टिकट मिलता है तो एक बार फिर कांग्रेस को वॉकओवर मिलना तय है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा ने जसपुर से कमजोर प्रत्याशी उतारा था जिसका लाभ कांग्रेस के प्रत्याशी आदेश चौहान को मिला था। अगर देखा जाए तो बसपा यहां कभी मजबूत स्थिति में रही। 2012 के विधानसभा चुनाव को लें तो बसपा यहां दूसरे नंबर पर थी। तब मोहम्मद उमर चुनाव लड़े थे और 22 हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर रहे हैं। वह जसपुर के तत्कालीन नगर पालिका चेयरमैन रहे हैं। बताया जाता है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी वह मजबूत दावेदार थे। लेकिन बसपा ने एन वक्त पर मोहम्मद उमर का टिकट काटकर असद अली को टिकट दे दिया था। बसपा में टिकट की अदला बदली उसकी हार का मुख्य कारण रही है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा मोहम्मद उमर को टिकट देती तो शायद बसपा मजबूती से चुनावी मुकाबले में रहती।

जसपुर में कुल 1 लाख 17,000 मतदाता हैं। यह विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य है। इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 42,000 है। पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों के 42,000 वोटों में 36,000 वोट पड़े थे जिनमें अकेले कांग्रेस प्रत्याशी आदेश चौहान को ही 30 हजार के करीब वोट मिले थे। इसके अलावा यहां अनुसूचित जाति के मतदाता दूसरे नंबर पर हैं, उनकी संख्या 16 हजार है। तीसरे नंबर पर चौहान है। चौहान मतदाताओं की संख्या 12000 हैं, जबकि इसके अलावा करीब 11000 पंजाबी मतदाता हैं। जसपुर विधानसभा क्षेत्र में समस्याओं की बात करें तो डैम क्षेत्र की समस्या प्रमुख है। डैम क्षेत्र के किनारे बसे हजारों लोग पिछले काफी समय से किसी ग्रामसभा में शामिल होने या नई ग्रामसभा बनाने की मांग करते चले आ रहे हैं। डैम क्षेत्र के लोग लोकसभा, विधानसभा में अपने मतों का प्रयोग करते हैं, लेकिन पंचायत चुनाव में वह मतदान से वंचित रह जाते हैं। इसके चलते वह सरकार की कई योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। भोगपुर के प्रधान सुखदेव सिंह कहते हैं कि भोगपुर क्षेत्र की सड़कों की हालत बहुत दयनीय है जिसकी मांग स्थानीय सांसद अजय भट्ट से भी की गई थी, लेकिन सिर्फ झूठे आश्वासन ही मिलते हैं।

जसपुर में बस अड्डा आज तक नहीं बन पाया है। बावजूद इसके कि 17 नवंबर 2014 को जसपुर में बस अड्डा बनाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा शिलान्यास किया गया था। इसका एक शासनादेश जारी हुआ था, जो खाता संख्या 101 नेशनल हाईवे के ऊपर स्थित है। उससे पूर्व में 2011 में कुछ अन्य नंबरों पर शासनादेश हुआ था। लेकिन वह जमीनें पीछे गड्ढों में थी जिस पर बस अड्डा नहीं बन सकता है। जिसके बाद नई भूमि की व्यवस्था की गई। उस शासनादेश पर कुछ लोग हाईकोर्ट से स्टे ले आये थे, जो आज भी प्रभावी है।

इसके अलावा यहां स्टेडियम का निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हो सका है। स्टेडियम के निर्माण कार्य को पूरा कराने के लिए कई बार स्थानीय लोग मांग उठा चुके हैं। जसपुर के नगर पालिका कार्यालय का भवन आज भी जर्जर हालत में है जिससे कभी भी हादसा होने की संभावना बनी रहती है। नगर पालिका कार्यालय को अन्यत्र स्थापित करने की मांग भी बरसों से होती रही है। इसके अलावा कासमपुर-देवीपुरा और देवीपुरा-मुरलीवाला सड़क मार्ग बेहद खस्ता हालत में है। यहां से गुजरना किसी युद्ध जीतने के बराबर है। कासमपुर की प्रधान सुषमा सैनी की मानें तो वह कई बार सड़कों के सुधारीकरण की मांग कर चुकी हैं। लेकिन जनप्रतिनिधि कोई सुनवाई नहीं करते हैं।

 

मेरा लक्ष्य सेवा है। मैं 40 वर्षों से भाजपा के लिए काम किया था। कोरोना काल में कई लोगों को मदद पहुंचाई। कोरोना काल में कई घोटाले हुए। उनकी मैंने वीडियो बनाई। जिसकी वजह से 6 मुकदमें हुए। 21 वर्षों में अब तक क्षेत्र में कोई बस अड्डा नहीं है। अब तक कोई स्टेडियम नहीं बना है। सड़कें टूटी हुई हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही मिलकर उत्तराखण्ड को लूट रहे हैं। मुझे आप से टिकट मिलता है तो ठीकए नहीं तो मैं निर्दलीय लडूंगा।
अजय अग्रवालए नेता, आप

 

दिल्ली की तर्ज पर मिलकर काम करेंगे। जो कार्य अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में किए उन्हीं मुद्दों को लेकर हम जनता बीच जा रहे हैं। हमारी विधानसभा क्षेत्र में टूटी.फूटी सड़कें हैंए न कोई रोडवेज बस अड्डा है और न ही स्टेडियमए न कोई अच्छे अस्पताल हैं। जो अस्पताल है उसकी हालात खराब है। स्कूल की हालात खस्ताहाल है। हमारी सरकार बनी तो उत्तराखण्ड का सर्वांगीण विकास किया जाएगा।
सरदार सुबा सिंहए नेता, आप

 

पूरे पांच वर्ष में कोई भी कार्य नहीं किया। यहां तक की अपनी विधायक निधि भी आदेश चौहान ढंग से खर्च नहीं कर पाए। यदि मुझे टिकट मिलता है तो बस स्टैंडए स्टेडियमए अच्छे अस्पतालों आदि के लिए काम करूंगा।
शीतल जोशी नेता, भाजपा

 

जसपुर विधानसभा क्षेत्र में कोई भी कार्य नहीं हुए हैं। जनता इनसे खुश नहीं है। इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना है।
रवि डोगराए नेता, भाजपा

 

 

जसपुर विधानसभा में अभी तक किसी ने शहीदों के लिए कोई काम नहीं किया। मैंने शहीद द्वार बनवाए, डिग्री कॉलेज की स्थापना हुई। सड़कें बनवाने के लिए कई बार प्रस्ताव शासन को भेजें सरकर विपक्षी विधायकों के प्रस्तावों पर एक्शन नहीं लेती। जिसकी वजह से सड़कें नहीं बन पाई। गांवों में खड़ंजे का निर्माण अपनी विधायक निधि से करवाया है। मेरे ही द्वारा ‘आशा बहनों’ के लिए भत्ते बढ़ाने का प्रश्न विधानसभा में उठाया गया था। तब ‘आशा बहनों’ के भत्ते बढ़ाए गए। जब कांग्रेस की सरकार थी, तो बस स्टेंड बनाने का भूमि पूजन किया गया था। लेकिन भाजपा ने एक भी पैसा आज तक आवंटित नहीं किया। स्टेडियम की शुरुआत कांग्रेस ने की थी। उसे भाजपा ने निरस्त तो कर डाला।
आदेश चौहान, विधायक, जसपुर

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