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Uttarakhand

भारी पड़ेगा इंदिरा की विरासत को ठिकाने लगाना

प्रदेश की राजनीति में सदैव महत्त्वपूर्ण रहीं इंदिरा हृदयेश की मृत्यु पश्चात उनके राजनीतिक योगदान को ठिकाने लगाने का काम स्वयं कांग्रेस ही करती नजर आ रही है। स्व. हृदयेश की अंत्येष्टि के समय पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने सार्वजनिक तौर पर इंदिरा जी के पुत्र सुमित हृदयेश को उनका राजनीतिक वारिस घोषित किया था। लेकिन अब ये दिग्गज नेता अपनी बात से मुकरते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत का झुकाव स्व. एन.डी. तिवारी के रिश्तेदार दीपक ब्लूटिया की तरफ जाता स्पष्ट दिखने लगा है। ब्लूटिया का क्षेत्र में खास जनाधार नहीं है। ऐसे में पुराने कांग्रेसियों में आक्रोश और चिंता है कि कहीं कांग्रेस आलाकमान इस विधानसभा सीट पर सुमित हृदयेश की दावेदारी नकार दीपक ब्लूटिया को टिकट देती है तो पार्टी को एक जीती-जिताई सीट से तो हाथ धोना ही पड़ेगा, स्व. हृदयेश के प्रति भी यह गहरा अन्याय भी होगा

‘‘अगर मेहनत की जाए, काम किए जाएं, विकास किया जाए और जनता उसे मान्यता दे तो इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। आज हल्द्वानी में मेरे लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर समर्थन है। मेरी सोच समग्र विकास की है। हल्द्वानी की समस्त जनता मेरे लिए परिवार की तरह है। उसी परिवार के प्रतिनिधि के नाते हल्द्वानी की जनता मुझे अपने समर्थन से नवाज रही है।’’
-इंदिरा हृदयेश

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के समय तत्कालीन वित्त, संसदीय कार्य एवं औद्योगिक विकास मंत्री डॉ ़ इंदिरा हृदयेश ने उक्त शब्द ‘दि संडे पोस्ट’ से एक साक्षात्कार में कहे थे। उनके ये शब्द बताते थे कि विकास के प्रति उनकी सोच कितनी स्पष्ट थी और खासकर हल्द्वानी का विकास उनके एजेंडे में हमेशा ऊपर रहा, भले ही उन्हें इसके लिए अपने मुख्यमंत्रियों से क्यों न भिड़ना पड़ा हो। वो बात अलग है कि 2017 के चुनावों में हल्द्वानी ही नहीं, प्रदेश की जनता ने विकास के मुद्दों को त्याग एक लहर में बहना पसंद किया। जिस विकास के बूते वो चुनाव में एक बड़े अंतर से चुनाव जीतने की अपेक्षा कर रही थीं हल्द्वानी की जनता ने उन्हें निराश किया। उनकी जीत का अंतर महज साढ़े छह हजार रहा और उत्तराखण्ड में कांग्रेस महज ग्यारह सीटों पर सिमट गई। आज 2022 का चुनाव सिर पर है। ये चुनाव इंदिरा हृदयेश की अनुपस्थिति में लड़े जाएंगे। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद ये पहला चुनाव है जिसमें इंदिरा हृदयेश न प्रत्यक्ष रूप से चुनावी मैदान में कहीं नजर आएंगी, न प्रत्याशी के रूप में, न ही चुनाव प्रचारक या चुनाव संचालन कर्ता के रूप में। लेकिन सवाल है कि क्या उनकी छवि, विकास की विरासत और उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखण्ड की राजनीति में उनके आभामंडल को कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति वो स्थान देने को तैयार है जिसकी वो वास्तविक हकदार थीं? उत्तराखण्ड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखने वाली इंदिरा हृदयेश आज नहीं हैं लेकिन वो अपने पीछे अपनी विकास की सोच की एक लंबी रेखा खींच गई हैं जिसे मिटाना इतना आसान नहीं होगा। लोक निर्माण विभाग की मंत्री के रूप में जिस प्रकार उन्होंने पूरे उत्तराखण्ड में सड़कों का जाल बिछाया, आगे आने वाली सरकारें उनसे सीख सकती थीं लेकिन उनके 2002 से 2007 तक के समय के बाद सड़कों के काम में न वो तेजी दिखी न सरकारों ने इच्छाशक्ति दिखाई। सिर्फ अगर हल्द्वानी के संदर्भ में बात करें तो उत्तराखण्ड राज्य बनने से पहले और उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद आज के हल्द्वानी का बदला स्वरूप इंदिरा हृदयेश की परिकल्पना का ही परिणाम है। प्रदेश के विकास का बजट सिर्फ हल्द्वानी में खपा देने के आरोपों से बेपरवाह इंदिरा हृदयेश ने अपनी विधानसभा हल्द्वानी की प्रत्येक गली को पक्का करवा दिया था। 2002 से 2007 और 2012 से 2017 तक कांग्रेस की सरकार में इंदिरा हृदयेश ने हल्द्वानी के लिए बजट लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। 2007 से 2012 के मध्य का समय वो समय है जब हल्द्वानी विधानसभा से विधायक भाजपा के बंशीधर भगत थे। वो समय हल्द्वानी के विकास के लिए एक ठहराव का अंतराल था जब पुराने कार्यों को भी अपने हाल में छोड़ दिया गया। इंदिरा हृदयेश की परिकल्पनाओं में हल्द्वानी शहर का विकास राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की तर्ज पर वृहद हल्द्वानी क्षेत्र के रूप में करने का था जिसमें लालकुआं विधानसभा का गौलापार क्षेत्र भी शामिल था। जिसमें सर्किट हाऊस से लेकर, सीआरपीएफ सेंटर, उच्च शिक्षा निदेशालय, अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम, अंतरराज्यीय बस अड्डा शामिल था।

हरीश रावत संग सुमित हृदयेश और सरिता आर्य (फाइल फोटो)

अंतरराष्ट्रीय बस अड्डा राजनीतिक कारणों की बलि चढ़ गया। अगर आईएसबीटी राजनीतिक दुराग्रहों का शिकार न हुआ होता आज आईएसबीटी हल्द्वानी ही नहीं संपूर्ण कुमाऊं क्षेत्र के लिए उपलब्ध होता। निर्माण कार्य शुरू होने के बाद उसको राजनीति में उलझा कर नये आईएसबीटी की मिठाई बांट लेने के बाद भारतीय जनता पार्टी के लोग अब इस पर मौनधारण कर बैठे हैं। इंदिरा हृदयेश का हल्द्वानी को एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम है जिसमें स्टेडियम कॉम्प्लेक्स के अंतर्गत विभिन्न खेलों के लिए इंडोर, आउटडोर स्टेडियम बने हैं। कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है ‘गनीमत है इंदिरा जी ने कांग्रेस सरकार के समय इसका उद्घाटन करवा लिया वरना भाजपा सरकार इसे भी लावारिस हालत में छोड़ देती।’ सड़कों के साथ 144 करोड़ की लागत से सीवरेज निस्तारण का काम जिसमें 80 करोड़ से सीवर बिछाने का काम और 60 करोड़ से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का कहीं पता नहीं है। सिंगापुर की तर्ज पर हल्द्वानी शहर को विकसित करने की परिकल्पना के चलते 800 एकड़ भूमि पर एक अंतरराष्ट्रीय चिड़ियाघर की आधारशिला रखी गई थी। लेकिन वो कार्य भी भाजपा सरकार में बाउंड्रीवॉल से ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया है। अगर ये कार्य गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ा होता तो हल्द्वानी महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थलों की श्रेणी में शामिल होता। इसी चिड़िया घर के अंदर जंगल सफारी, एक्वेरियम और मोनो रेल की सुविधा को विकसित करने का प्रस्ताव था। इंदिरा हृदयेश का मानना था कि हल्द्वानी में पहले चरण का विकास जरूर हुआ लेकिन निरंतरता की कमी के चलते वो समय लंबा हो गया। 2007 से 2012 के दौर में हुए ठहराव को वो इस देरी का जिम्मेदार मानती थीं। उनका मानना था हल्द्वानी में अब विकास के दूसरे चरण को शुरू करना है ताकि हल्द्वानी शहर विकास की नई ऊंचाइयों को छूकर विकसित महानगरों की श्रेणी में शुमार हो। वो चरणबद्ध और सुनियोजित तरीके से विकास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के पक्ष में थीं। हल्द्वानी में रिंग रोड़ की परिकल्पना इंदिरा हृदयेश की ही थी लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने पहले हल्द्वानी आगमन पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की रिंग रोड की घोषणा महज घोषणा तक ही सीमित रह गई। इंदिरा हृदयेश ने अपनी विधानसभा में भारी-भरकम बजट से विकास कार्यों का जो एक ढांचा खड़ा किया था उसके बूते पर कांग्रेस चुनावी मैदान में जाने को तैयार है लेकिन इंदिरा हृदयेश को पार्श्व में रखकर। कभी कांग्रेस की राजनीति की महत्त्वपूर्ण स्तंभ रही डॉ. इंदिरा हृदयेश के योगदान को दरकिनार करने की कोशिश कांग्रेस के अंदर से एक धड़े द्वारा शुरू कर दी गई है। हल्द्वानी की शंखनाद रैली में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत द्वारा स्व. इंदिरा हृदयेश का जिक्र तक न करना दर्शाता है कि कांग्रेस इंदिरा हृदयेश और उनकी विरासत को तेजी से भूलती जा रही है। उल्लेखनीय है कि इंदिरा जी की मृत्यु के बाद हल्द्वानी शहर में उनके लिए एक सार्वजनिक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन न होना बहुतों को खटका था। शायद ये बात हल्द्वानी वासियों को अल्मोड़ा के लोगों से जरूर सीखनी चाहिए जहां ऐसे अवसरों पर सब राजनीतिक मतभेद भुला एक मंच पर इकट्ठा दिखाई देते हैं। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की यही टकराहट कांग्रेस के मजबूत किले में दरार दिखाती है। कहा जाता है कि जो नस्लंे अपनी विरासतों को दरकिनार करती हैं वो स्वयं भी गुमनाम हो जाती हैं। छह माह के छोटे से अंतराल के अंदर जिस प्रकार इंदिरा हृदयेश की स्मृतियों को दरकिनार करने के प्रयास कांग्रेस के अंदर से शुरू हो गये हैं उससे लगता है कि कांग्रेस अपने अतीत से सबक लेने को तैयार नहीं है।

इंदिरा हृदयेश ने अपनी विट्टाानसभा में भारी- भरकम बजट से विकास कार्यों का जो एक ढांचा खड़ा किया था उसके बूते पर कांग्रेस चुनावी मैदान में जाने को तैयार है लेकिन इंदिरा हृदयेश को पार्श्व में रखकर। कभी कांग्रेस की राजनीति की महत्वपूर्ण स्तंभ रही डॉ. इंदिरा हृदयेश के योगदान कोदरकिनार करने की कोशिश कांग्रेस के अंदर से एक ट्टाड़े द्वारा शुरू कर दी गई है। हल्द्वानी की शंखनाद रैली में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हरीश रावत द्वारा स्व. इंदिरा हृदयेश का जिक्र तक न करना दर्शाता है कि कांग्रेस इंदिरा हृदयेश और उनकी विरासत को तेजी से भूलती जा रही है। उल्लेखनीय है कि इंदिरा जी की मृत्यु के बाद हल्द्वानी शहर में उनके लिए एक सार्वजनिक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन न होना बहुतों को खटका था। शायद ये बात हल्द्वानी वासियों को अल्मोड़ा के लोगों से जरूर सीखनी चाहिए जहां ऐसे अवसरों पर सब राजनीतिक मतभेद भुला एक मंच पर इकट्ठा दिखाई देते हैं। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति की यही टकराहट कांग्रेस के मजबूत किले में दरार दिखाती है। कहा जाता है कि जो नस्लंे अपनी विरासतों को दरकिनार करती हैं वो स्वयं भी गुमनाम हो जाती हैं। छह माह के छोटे से अंतराल के अंदर जिस प्रकार इंदिरा हृदयेश की स्मृतियों को दरकिनार करने के प्रयास कांग्रेस के अंदर से शुरू हो गए हैं उससे लगता है कि कांग्रेस अपने अतीत से सबक लेने को तैयार नहीं है

इंदिरा हृदयेश की विरासत पर कांग्रेस के अंदर चल रही राजनीति ने हल्द्वानी सरीखी सीट पर कांग्रेस को बैकफुट पर ला खड़ा किया है। खास बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जिनको कांग्रेस उनके अंतिम समय में सहेज नहीं पाई, अब उनकी विरासत की दुहाई देकर हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र में इंदिरा हृदयेश की विरासत के समानांतर नारायण दत्त तिवारी की विरासत की एक नई धारा बहाने की कोशिश की जा रही है। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का झुकाव तिवारी जी के रिश्तेदार दीपक ब्लूटिया की तरफ है। दीपक वर्तमान में पार्टी के प्रवक्ता हैं। नारायण दत्त तिवारी ने तो अपने अंतिम समय में पुत्र स्वीकार किए गए रोहित शेखर तिवारी को अपना राजनीतिक वारिस घोषित किया था लेकिन उनके जीते जी कांग्रेस के किसी भी नेता ने रोहित शेखर को तिवारी जी का राजनीतिक वारिस मानने में कोई रुचि नहीं दिखाई। नारायण दत्त तिवारी को अपने जीवन के अंतिम दिनों में उस भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना पड़ा जिसकी विचारधारा उनके विचारों से कभी मेल नहीं खाती थी। जिस नारायण दत्त तिवारी की अंतिम इच्छा को कांग्रेस में ही मान नहीं मिला उन नारायण दत्त तिवारी की विरासत को अब याद किया जाना कांग्रेस के अंदर चर्चा उन शंकाओं को जन्म देता है जिसके कयास कई समय से लगाए जा रहे थे। कांग्रेस के भीतर चर्चाएं हैं कि अचानक नारायण दत्त तिवारी की याद, खासकर हल्द्वानी की विधानसभा के अंदर चर्चा, शायद इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक विरासत को विराम देने का प्रयास है। चर्चा को कुछ हवा दी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के एक बयान ने जिसमें उन्होंने हल्द्वानी विधानसभा से प्रत्याशी और इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक विरासत के संबंध में पूछे गए प्रश्न के जवाब में कहा कि हल्द्वानी में पार्टी जीतने वाले व्यक्ति को प्रत्याशी बनाएगी और सुमित हृदयेश के इंदिरा जी के वारिस से उनका आशय था कि सुमित उनके सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाएंगे। गौरतलब है कि इंदिरा हृदयेश की अंत्येष्टि में शामिल होने आए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उनका आशीर्वाद हमेशा सुमित के साथ रहेगा। उस वक्त सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाने जैसा कोई वक्तव्य हरीश रावत की ओर से नहीं आया था। हरीश रावत की इन्हीं बातों को आगे बढ़ाते हुए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व जागेश्वर से विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘सुमित ही इंदिरा जी की राजनीतिक विरासत के हकदार हैं इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए और विधानसभा चुनावों में सुमित हृदयेश ही हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।’ इसके अलावा उत्तराखण्ड प्रभारी देवेंद्र यादव और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष भी इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक विरासत पर सुमित की दावेदारी के लिए स्पष्ट थे। कभी-कभी अपने बयानों से राजनेताओं का विचलन ही उनकी विश्वसनीयता को संदिग्ध बना देता है। इंदिरा हृदयेश की मृत्यु के बाद कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में भले ही बदलाव आया हो लेकिन हल्द्वानी की राजनीति में बहुत बदलाव आया हो ऐसा लगता नहीं है। इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक विरासत के विषय में हल्द्वानी में कोई सोच बदली हो ऐसा कहीं नजर नहीं आता। इंदिरा हृदयेश ने ‘दि संडे पोस्ट’ के साथ साक्षात्कार में स्वयं इच्छा जाहिर की थी कि ‘सुमित आगे आकर राजनीति में कांग्रेस की बागडोर संभालें।’ कांग्रेस के अंदर ये पहली बार नहीं है कि किसी नेता की विरासत उनके परिजनों ने संभाली हो। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी पारिवारिक विरासत को ही आगे बढ़ा रहे हैं। उत्तराखण्ड प्रदेश के अंदर ही देखें तो नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह अपने स्व. पिता गुलाब सिंह, उपनेता प्रतिपक्ष करन माहरा अपने स्व. पिता गोविंद सिंह माहरा और भाई स्व. पूरन सिंह माहरा, यशपाल आर्या के पुत्र संजीव आर्या, रणजीत रावत के पुत्र विक्रम रावत, हरीश रावत के पुत्र आनंद रावत, वीरेंद्र रावत और पुत्री अनुपमा रावत, काजी निजामुद्दीन सहित कई अन्य नेता राजनीतिक विरासतों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं।

आज जब इंदिरा हृदयेश नहीं हैं और उनकी राजनीतिक विरासत को भूलना आने वाले चुनावों में कांग्रेस की संभावनाओं पर असर डाल सकता है। नेता जरूर निष्ठुर हो सकते हैं लेकिन शायद क्षेत्र का मतदाता नेताओं की सोच नहीं रखता। कांग्रेस के एक पूर्व पदाधिकारी का कहना है कि इंदिरा हृदयेश का व्यक्तित्व ही इतना बड़ा था कि कुछ लोगों की उन्हें उनके जीवित रहते राजनीतिक हाशिए में धकेलने के प्रयासों में सफल नहीं हो पाए। लेकिन अब उनके जाने के पश्चात उनकी स्मृतियों को भी कुछ लोग भूलना चाहते हैं जिसके चलते नुकसान पार्टी को ही पहुंचना तय है। ऐसे में जब उत्तराखण्ड में कांग्रेस अपनी खोई ताकत को फिर से पाने कीकोशिश कर रही है थोड़ी सी चूक उसकी संभावनाओं पर असर डाल सकती है। इंदिरा हृदयेश को उनकी मृत्यु के बाद भी दरकिनार करने का प्रयास नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिले में कांग्रेस के लिए आत्मघाती हो सकता है।

इंदिरा हृदयेश की विरासत पर कांग्रेस के अंदर चल रही राजनीति ने हल्द्वानी सरीखी सीट पर कांग्रेस को बैकफुट पर ला खड़ा किया है। खास बात यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, जिनको कांग्रेस उनके अंतिम समय में सहेज नहीं पाई, अब उनकी विरासत की दुहाई देकर हल्द्वानी विट्टाानसभा क्षेत्र में इंदिरा हृदयेश की विरासत के समानांतर नारायण दत्त तिवारी की विरासत की एक नई ट्टाारा बहाने की कोशिश की जा रही है। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का झुकाव तिवारी जी के रिश्तेदार दीपक ब्लूटिया की तरफ है। दीपक वर्तमान में पार्टी के प्रवक्ता हैं। कांग्रेस के भीतर चर्चाएं हैं कि अचानक नारायण दत्त तिवारी की याद, खासकर हल्द्वानी विट्टाानसभा क्षेत्र में चर्चा शायद इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक विरासत को विराम देने का प्रयास है। चर्चा को कुछ हवा दी हरीश रावत के एक बयान ने, जिसमें उन्होंने हल्द्वानी विधानसभा सीट से प्रत्याशी और इंदिरा हृदयेश की राजनीतिक विरासत के संबंट्टा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में कहा कि हल्द्वानी में पार्टी जीतने वाले व्यक्ति को प्रत्याशी बनाएगी और सुमित हृदयेश के इंदिरा जी के वारिस से उनका आशय था कि सुमित उनके सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाएंगे। गौरतलब है कि इंदिरा हृदयेश की अंत्येष्टि में शामिल होने आए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि उनका आशीर्वाद हमेशा सुमित के साथ रहेगा। उस वक्त सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाने जैसा कोई वक्तव्य हरीश रावत की ओर से नहीं आया था। हरीश रावत की इन्हीं बातों को आगे बढ़ाते हुए पूर्व विट्टाानसभा अट्टयक्ष एवं जागेश्वर से विट्टाायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘सुमित ही इंदिरा जी की राजनीतिक विरासत के हकदार हैं, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए और विट्टाानसभा चुनाव में सुमित हृदयेश ही हल्द्वानी विट्ट­­­­ाानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के
उम्मीदवार होंगे।’

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