चमोली जिले के हेलंग में महिलाओं से घास छीनने की घटना ने एक बार फिर चिपको आंदोलन की याद दिला दी है। 80 के दशक में लोगों ने चिपको आंदोलन के दौरान कहा था कि ‘घास, लाखडू अर पाणी का बिना योजना काणी’ अर्थात घास, लकड़ी और पानी के बिना उनके लिए अन्य सभी योजनाएं खोखली हैं। तब महिलाओं की यह आवाज पूरी दुनिया में गुंजायमान हुई थी। लेकिन आज उसी धरती पर महिलाएं अपने चारागाह से घास नहीं ले पा रही हैं। चिपको आंदोलन के लिए विख्यात रैणी गांव से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर हेलंग गांव की महिलाएं आजकल अपने जंगल और चारागाह बचाने के लिए संघर्षशील हैं
जन आंदोलनों की धरती उत्तराखण्ड में पिछले दिनों चमोली जिले के हेलंग गांव में महिलाओं से घास छीनने के मामले ने एक बार फिर चिपको आंदोलन की याद दिला दी है। 80 के दशक में लोगों ने चिपको आंदोलन के दौरान कहा था कि ‘घास, लाखडू अर पाणी का बिना योजना काणी’ अर्थात घास, लकड़ी और पानी के बिना उनके लिए अन्य सभी योजनाएं खोखली हैं। तब महिलाओं की यह आवाज पूरी दुनिया में गुंजायमान हुई थी। लेकिन आज उसी धरती पर महिलाएं अपने चारागाह से घास नहीं ले पा रही हैं। चिपको आंदोलन के लिए विख्यात रैणी गांव से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर हेलंग गांव की महिलाएं आजकल अपने जंगल और चारागाह बचाने के लिए संघर्षशील हैं क्योंकि उनके चारागाह का इस्तेमाल इस क्षेत्र में निर्माणाधीन विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना (444 मेगावाट) से निकल रहे मलवे को फेंकने के लिए डंपिंग जोन के रूप में हो रहा है।
इस बांध को बनाने वाली कंपनी टीएचडीसी और इसकी सहयोगी अन्य निर्माण कंपनियों के द्वारा रात-दिन इस चारागाह के अंदर जितने भी पेड़ हैं उन्हें काटा जा रहा है। इसकी स्वीकृति निश्चित ही राज्य सरकार के द्वारा दी गई होगी। लेकिन यह समझने का प्रयास नहीं किया गया कि हेलंग गांव के लोगों का पशुपालन तो यहां की चारा पत्ती पर निर्भर है। गांव के लोगों ने अपनी पारंपरिक व्यवस्था के आधार पर इस चारागाह का संरक्षण किया है। लेकिन उनको पूछे बगैर आज इस चारागाह पर मलवा डाला जा रहा है। उसके कुछ हिस्से में बची हुई घास को महिलाएं रोज काट कर ले जाती रहती हैं।
गत 15 जुलाई 2022 की घटना है कि यहां की महिलाएं मंदोदरी देवी, लीला देवी, विमला देवी, संगीता आदि इस चारागाह से घास काट कर ले जा रही थीं तो केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के लोगों ने उनसे जबरदस्ती घास छीनना शुरू किया और उन्हें दूर जोशीमठ थाने में ले जाकर 6 घंटे तक बिठा कर रखा। महिलाएं चारागाह से अपनी पीठ पर लादे घास को बचाने के लिए बहुत जोर-जोर से चिल्लाती रहीं। लेकिन इसके बावजूद भी सुरक्षा बलों ने उनकी एक न सुनी। उन्हें चारा लेकर घर पर भोजन करने पहुंचना था लेकिन उन्हें भूखे-प्यासे रखकर इतना अपमानित किया कि थाने ले जाकर उन पर जुर्माना भी लगा दिया गया। इस घटना का वीडियो सामने आने के बाद पूरे राज्यभर में विरोध के स्वर आसमान छूने लगे। सोशल मीडिया पर इस घटना के विरोध की बाढ़-सी आ गई।
राज्य के लगभग सभी जिलों में प्रदर्शन किए गए और स्थानीय शासन-प्रशासन को ज्ञापन सौंपे गए हैंं। राजधानी देहरादून में महिला मंच के बैनर तले और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती की पहल पर विरोध-प्रदर्शन किए गए। इस दौरान लोगों ने सरकार से सवाल पूछे कि इस राज्य में लोग कैसे गांव में रहेंगे? क्योंकि गांव में रहने वाले लोग पशुपालन का काम करते हैं और पशुपालन के लिए उन्हें चारागाह चाहिए। लोगों ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि वे घस्यारी योजना क्यों चला रहे हैं? इसके बावजूद भी राज्य में कई स्थानों पर चारागाह या तो चौड़ी सड़कों के निर्माण के मलवे का डंपिंग यार्ड बन गई है या इसी तरह बांधों से निकल रहे मलवे को डंपिंग करने के उपयोग में आ रहे हैं। बाढ़-भूस्खलन से भी चारागाह संकट में पड़ गए हैं। जिसके कारण पहाड़ की महिलाओं को घास, लकड़ी गांव से औसत 8-9 किमी की दूरी से रोज लानी पड़ती है। इसलिए यहां आज भी कई गावों में महिलाएं गौरा देवी के रूप में अपने जंगल व चारागाह बचाने के लिए संघर्षशील हैं। गौरा देवी का संघर्ष अभी भी गांव-गांव में चल रहा है। लेकिन सुनता कोई नहीं है। मीडिया एकमात्र दबाव का सहारा बन रहा है। जबकि हमेशा से ही यहां के लोगों की कोशिश रही है कि जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा, इसके संतुलित दोहन के लिए अपनी पारंपरिक व्यवस्था के अनुसार जंगल, चारागाह और खेती सुरक्षा के लिए संवेदनशील रहते हैं, जिसमें सरकार कोई मदद नहीं करती। केवल गांव के लोग अपने साधनों के बल पर चौकीदारी व्यवस्था के द्वारा अपनी घास, लकड़ी बचाने का काम करते हैं।
शहरीकरण को तवज्जो देने और पलायन के विषय पर हो रही खोखली बैठकों के कारण गांवों के लोगों से जल, जंगल और जमीन के अधिकार छीन लिए गए हैं।
हेलंग में महिलाओं से चारापत्ति छीनने का मामला अभी शांत नहीं हो सकता है। क्योंकि जहां से वे चारा ला रही थीं। उस जगह को खेल का मैदान बनाने की सरकारी कार्यवाही भी चल रही है। इस संबंध में 22 मई का एक पत्र स्थानीय उप जिलाधिकारी द्वारा टीएचडीसी के प्रबंधक को लिखा गया है। जबकि यह स्थान ऐसे ढलान पर है जहां पर बांध का मलवा डालने से बरसात के समय में वह बहकर अलकनंदा में चला जाएगा। यह जानकारी खुले तौर पर ना होने के कारण गांव की महिलाएं अपने चारागाह से बार-बार घास लेने के लिए तो जाती ही रहेंगी।
यह जरूर है कि इस घटना के बाद राज्य में उठे प्रबल विरोध के स्वर के कारण मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जांच के आदेश दिए हैं। नैनीताल हाईकोर्ट में बार एसोसिएशन के सदस्यों ने इस विषय पर गांव की महिलाओं को उचित न्याय दिलाने के लिए कदम आगे बढ़ाए हैं। राज्य की महिला आयोग ने भी चमोली के जिलाधिकारी को आवश्यक जांच के निर्देश दिए हैं। इसके बाद भी जल, जंगल और जमीन पर लोगों को कब अधिकार मिलेंगे? यह सवाल हाशिए पर है।