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Uttarakhand

असुरक्षित महिलाएं, असहाय सरकार

 

उत्तराखण्ड में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा खोखला साबित हो रहा है। इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। पिछले चार साल के आंकड़े देखें तो राज्यभर में महिलाएं उत्पीड़न का शिकार हुई हैं। पुलिस मुख्यालय से सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी इसकी तस्दीक करती है। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार में उच्च पदों पर विराजमान महानुभाव भी महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न को गंभीरता से नहीं लेते हैं। यहां कार्यस्थलों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यहां तक कि एक अधिकारी द्वारा अपनी अधीनस्थ महिला कर्मचारी के यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को बचाने के लिए धामी सरकार के मंत्री ने लिखित निर्देश तक जारी कर दिए थे प्र देश में महिला उत्पीड़न, रेप तथा यौन शोषण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पुलिस महानिदेशालय से प्राप्त जानकारी इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। वर्ष 2017 से लेकर दिसंबर 2021 तक प्रदेश में कुल 45,856 शिकायतें दर्ज हुई हैं। इससे स्पष्ट है कि राज्य में महिलाओं पर बढ़ते अपराधों में इजाफा हो रहा है। सरकारी विभागों में महिला कर्मचारियों से दुर्व्यवहार और यौन शोषण के मामले भी सामने आ रहे हैं। 2017-21 तक 12 मामले सामने आए हैं, लेकिन यह भी साफ करता है कि महिला चाहे सरकारी कर्मचारी हो या सामान्य दोनों को आज भी उत्पीड़न से जूझना पड़ रहा है। कार्यालयों में विशाखा गाइडलाइन के तहत कमेटियां बनाई गई हैं, वाबजूद इसके 5 वर्ष में ही 12 मामले बढ़ना साफ करता है कि राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।


सबसे पहले प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न और यौन शोषण तथा रेप के मामलों की बात करें तो 2017 से दिसंबर 2020 तक यौन उत्पीड़न के 1712 मामले दर्ज हुए हैं। इन आंकड़ों को वर्षवार देखें तो जहां 2017 में 393 मामले दर्ज हुए तो 2018 में 458 मामले दर्ज हुए। इसी तरह से 2019 में 413 मामले सामने आए तो 2020 में बढ़कर 448 हो गए। यानी हर वर्ष राज्य में यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। साथ ही महिलाओं की तस्करी के मामले भी विगत वर्षों में तेजी से बढ़े हैं। एनसीआरबी की 2019 की रिपोर्ट में हिमालयी राज्यों में बेटियों की तस्करी के मामले में उत्तराखण्ड पहले स्थान पर है। रिपोर्ट में सामने आया है कि कम उम्र की बेटियों को विवाह आदि के लिए सबसे ज्यादा बाहर के राज्यों में भेजा जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि इस तरह के मामले कोरोना काल में लॉकडाउन के समय सबसे ज्यादा देखने में आए थे। 2019 में इस तरह के केवल 5 मामले सामने आए थे जबकि 2020 में 12 मामले पकड़ में आए।


बलात्कार के मामले भी इन चार वर्षों में तेजी से बढ़े हैं। 2017 से 2020 तक 1354 मामले दर्ज हुए हैं जिनमें 2017 में 237 तो 2018 में 293 तथा 2019 में 342 और 2020 में 482 मामले दर्ज हुए हैं। महज 4 वर्ष में ही मामले दो गुना होने से यह तो साफ हो गया है कि राज्य में तमाम कानूनों के बावजूद रेप के मामले कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं।


इन सब मामलों में सबसे ज्यादा गंभीर बात यह है कि सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों का यौन उत्पीड़न और शारीरिक शोषण के मामलों में भी तेजी आई है। महिला कर्मचारियों के अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा, कभी स्थानांतरण को लेकर तो कभी प्रमोशन आदी को लेकर ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। हालांकि इनमें कुछ ऐसे मामले पाए गए हैं जो फर्जी या अपने अधिकारियों पर दबाव बनाने के उदे्श्य से किए गए थे जिनका खुलासा विभागीय स्तर पर बनी कमेटी द्वारा जांच के बाद सामने आया है।


सरकारी विभागों में महिला कार्मिकों के साथ हुए यौन शोषण और उत्पीड़न के मामलों की बात करें तो हरिद्वार जिले में कुल 4 मामले उत्तरकाशी में 2 तथा टिहरी में 1 मामला सामने आ चुके हैं। इसी प्रकार चमोली में 1 चम्पावत में 1 और उधमसिंह नगर में 1 तथा देहरादून में 2 मामले सामने आ चुके हैं।


उत्तरकाशी जिले के दो मामलों में से थाना पुरोला में पंजीकृत एक मामला लघु सिंचाई उपखंड नौगांव कार्यालय से जुड़ा है। इस मामले की अंतिम रिपोर्ट न्यायालय को भेजी जा चुकी है। दूसरा मामला जिले के ग्राम्य विकास विभाग से जुड़ा है जिसमें आरोपित व्यक्ति को जेल भेजा जा चुका है। इस मामले में अभियुक्त को न्यायालय से जमानत भी मिल चुकी है। इसी प्रकार से चमोली जिले में भी आईटीबीपी विभाग से जुड़ा एक मामला थाना जोशीमठ में पंजीकृत किया गया है। मामले में चार्जशीट न्यायालय में दाखिल की जा चुकी है।


चम्पावत जिले में भी एक मामला सामने आया है जिसमें एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ विभाग की एक महिला कर्मचारी ने गंभीर धाराओं में कोतवाली में दर्ज करवाया है। इस प्रकरण में भी आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल हो चुका है।
प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग भी महिला कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न और शोषण से नहीं बच पाया है। विभाग के जिला
चिकित्सालय पंडित दीनदयाल उपाध्याय और गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय में तैनात महिला कर्मचारी द्वारा चिकित्सा अधीक्षक के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई है। दूसरा मामला टिहरी जिले के एक अस्पताल का है उसमें भी इसी तरह की शिकायत दर्ज करवाई गई है। दोनों मामलों में अभी जांच चल रही है।


पुरुष होने का दंभ और बचाव में मशीनरी
राजकीय मुद्राणालय रुड़की में अफसैट मशीन सहायक ने अपने अपर निदेशक के खिलाफ यौन उत्पीड़न और यौन शोषण के मामले की शिकायत शासन स्तर पर दर्ज करवाई है। इस मामले में गौर करने वाली बात यह हे कि शासन द्वारा शिकायत पर
आरोपित अपर निदेशक सर्वेश कुमार गुप्ता को पहले अपर सचिव औद्योगिक विकास अनुभाग 2 उत्तराखण्ड देहरादून में सम्बद्ध किया गया और फिर अनुशासनिक कार्यवाही प्रस्तावित करते हुए निलंबित कर दिया गया। तब से सर्वेश कुमार गुप्ता विभागीय स्तर पर निलंबित ही चल रहे हैं।


हैरानी की बात यह कि निलंबन के बावजूद आज भी सर्वेश कुमार गुप्ता राजकीय मुद्राणलय रुड़की में अपर निदेशक विभागीय अपीलीय अधिकारी के पद पर तैनात है जिसका प्रमाण सूचना के अधिकार के तहत स्वयं लोक सूचना अधिकारी राजकीय मुद्राणलय रुड़की द्वारा दी गई सूचना में स्पष्ट है।


तत्कालीन तीरथ सिंह रावत सरकार के समय इस मामले में एक नया मोड़ तब आया कि तत्कालीन औद्योगिक विकास मंत्री गणेश जोशी ने सर्वेश कुमार गुप्ता का निलंबन रद्द करने और उनको विभाग में तैनात करने के निर्देश दिए गए। इस मामले में तब तीरथ सरकार पर सवाल भी खड़े हुए। मुख्यमंत्री तीरथ रावत सरकार में पहली बार मंत्री बने विधायक गणेश जोशी पर ऐसे आरोपी अधिकारी को बचाने का आरोप लगा और भाजपा की ‘बेटी बचाओं – बेटी पढ़ाओ’ की नीति पर भी सवाल उठे।
एक बड़ा ही दिलचस्प मामला प्रसार प्रशिक्षण केंद्र, शंकरपुर का सामने आया है जिसमें केंद्र में कार्यरत सहायक प्रशासनिक अधिकारी के विरुद्ध शिकायत की गई थी। हैरत की बात यह है कि शिकायतकर्ता वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ही थी।

 

आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले में 2017 में महिला यौन उत्पीड़न निवारण के लिए गठित समिति की बैठक की गई जिसमें आरोपित अधिकारी के खिलाफ बैठक में केंद्र के अनेक कर्मचारियों द्वारा शिकायत की गई और जो आरोप लगाए गए उनको सभी ने माना। आरोपित अधिकारी महिला हो या पुरुष सभी को अपशब्दों के प्रयोग करने और नीचा दिखाने के साथ-साथ दुर्व्यवहार करने के इतने आदी हो चुके थे कि तकरीबन सभी कर्मचारी और अधिकारी उनसे आजिज आ चुके थे। अपने ही वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के खिलाफ ‘खराब औरत हो और तुम्हें कोई भी नमस्कार नहीं करना चाहता’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे।


गौर करने वाली बात यह है कि उक्त आरोपी अधिकारी लंबे समय से कर्मचारियों को कई प्रकार से परेशान करते रहे थे। समिति ने सभी मामले और शिकायतों का परीक्षण करके जांच की लेकिन इसमें अश्लील बातों या क्रियाकलाप नहीं पाए जाने पर और कार्यालय कोड के अनुरूप आचरण नहीं होने के चलते उक्त अधिकारी को केंद्र के सभी कर्मचारियों की मांग पर सार्वजनिक लिखित माफीनामा दिए जाने पर मामले का निस्तारण किया गया।


इस मामले में एक बात यह भी साफ हो गई है कि सरकारी विभागों में कर्मचारी एक-दूसरे के खिलाफ किस तरह से व्यवहार करते हैं खास तौर पर पुरुष मानसिकता और अधिकार का दंभ इस कदर भरता जा रहा है कि अपने ही वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी तक के साथ दुर्व्यवहार करने में पीछे नहीं है। यह परीपाटी तकरीबन हर सरकारी विभागों में देखी जाती रही है जिसका खामियाजा आखिरकार महिलाओं को भी भुगतना पड़ता है।


एक नजर आंकड़ों पर

  • 2017 से दिसंबर 2020 तक 1712 मामले यौन उत्पीड़न के दर्ज हुए
  • 2017-20 तक बलात्कार के 1354 मामले दर्ज
  • सरकारी विभागों में महिलाओं के साथ यौन शोषण के 12 मामले दर्ज
  •  एनसीआरबी की 2019 की रिपोर्ट में हिमालयी राज्यों में बेटियों की तस्करी के मामले में उत्तराखण्ड पहले नंबर पर है
  • कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी द्वारा आरोपी अधिकारी को शह देने से सरकार की कार्यप्रणाली पर उठ रहे हैं सवाल

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