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  •     संतोष सिंह

लंपी नामक बीमारी से देश के कई राज्यों में मवेशियों की जान का संकट खड़ा हो गया है। इस बीमारी ने उत्तराखण्ड में भी हजारों मवेशियों को अपनी चपेट में ले लिया है। पिछले साल भी इस बीमारी ने प्रदेश में कहर बरपाया था जिसमें सैकड़ों मवेशियों की मौत हो गई थी। तब पशुपालन मंत्रालय द्वारा टीकाकरण अभियान चलाकर बीमारी को जड़ से खत्म करने का दावा किया गया था। बावजूद इसके आज भी बेजुबानों की जान जा रही है

देश में महाराष्ट्र, गुजरात राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में लंपी वायरस ने भयंकर तबाही मचाई हुई है। उत्तराखण्ड में अब तक सैकड़ों पशुओं की मौत हो चुकी है जिससे पशुपालकों का व्यवसाय तबाह हो गया है। स्थिति को गंभीरता से देखते हुए पशुपालन विभाग अब अलर्ट मोड़ पर दिखाई दे रहा है। बावजूद पशुओं के मरने का सिलसिला अब भी जारी है। उत्तराखण्ड में पिछले वर्ष लंपी वायरस ने दस्तक दी तो जहां इस संक्रमित बीमारी से सीमांत चमोली जिले में हजारों पशु संक्रमित हुए, वहीं दर्जनों पशुओं की भी इस महामारी से मौत हुई है। पशुपालन विभाग द्वारा इस बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया गया और आगे के लिए इसकी कोई खास तैयारी नहीं की गई। जिसका परिणाम हुआ कि इस वर्ष मई-जून में एक बार फिर लंपी वायरस ने चमोली जिले में दस्तक दे दी है। जिसमें अब तक हजारों पशु प्रभावित हुए। पशुपालन विभाग के अनुसार इस वर्ष 2023 में चमोली जिले में अभी तक 1339 पशु संक्रमित हुए हैं, जबकि 23 पशुओं की मौत और 1265 पशु रिकवर हुए हैं, वहीं विभाग के अनुसार पिछले वर्ष 2022 में 82 पशु संक्रमित हुए थे और 1 पशु की मौत हुई थी। इस महामारी की रोकथाम के लिए पशुपालन विभाग द्वारा जिले में टीकाकरण के लिए 25 टीमें गठित की गई हैं। जो अब तक 96 हजार पशुओं का टीकाकरण कर चुकी है और विभाग को सरकार से अब तक एक लाख 29 हजार टीका उपलब्ध हुए हैं, अन्य पशुओं पर टीकाकरण का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है।

जबकि धरातलीय हकीकत कुछ और ही तस्वीर बयां कर रही है। पशुपालन विभाग के आंकड़े जमीनी हकीकत से दूर-दूर तक मेल नहीं खा रहे हैं। लंपी वायरस से इस वर्ष जिले में जहां हजारों पशु संक्रमित हुए हैं, वहीं इस महामारी से सैकड़ों पशुओं की भी मौत हो गई है। यही नहीं पशुपालन की टीमें आज भी उर्गमघाटी जैसे दूरस्थ गांवों में टीकाकरण के लिए नहीं पहुंची है जहां इस महामारी से दर्जनों पशुओं की अब तक मौत हो गई है। पशुपालकों द्वारा शासन-प्रशासन से शिकायत के बाद भी इन गांवों की अभी तक कोई सुध नहीं ली गई है। अपने पशुओं को बीमार और मरते देख पशुपालक रो रहे हैं। लेकिन इसका सुनने वाला कोई नहीं है। पीपलकोटी के नौरख गांव के समाजसेवी हर्षराज तड़ियाल ने बताया कि लंपी वायरस से उनके गांव में दर्जनों पशु प्रभावित हुए हैं। वहीं इस बीमारी से गांव में 6 गायों की भी मौत हुई है। उन्होंने कहा कि पशुपालन विभाग द्वारा इस बीमारी की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए जिससे अन्य गांवों में न फैले, लेकिन पशुपालन विभाग ऐसे करने में अभी तक नाकाम साबित हुआ है जिसके चलते लोगों को बड़ी आर्थिकी नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि कई परिवारों के रोजगार का आधार ही दुग्ध व्यवसाय है। इस महामारी में पशु के मरने से उनका रोजगार छिन गया है। वहीं दूसरी ओर रैतोली गांव के महेंद्र सिंह ने बताया कि दुग्ध व्यवसाय ही उनका रोजगार का आधार है। इसके लिए उन्होंने पिछले वर्ष कर्ज लेकर 40 हजार की गाय खरीदी थी जिसकी लंपी बीमारी से मौत हो गई है। अब हमारा रोजगार भी छिन गया है। उन्होंने कहा कि पशुपालन विभाग किसी तरह की कोई मदद नहीं कर रहा जिसके चलते उनके गांव में 2 गाय और 2 बछिया की लंपी से मौत हो गई है। अगथला गांव के सामाजिक कार्यकर्ता अर्जुन सिंह ने बताया कि उनके गांव में भी लंपी बीमारी से 3 पशुओं की मौत हो गई है। इस तरह पूरे जिले में इस महामारी से सैकड़ों पशुओं की मौत हो चुकी है।

बागेश्वर जनपद में लंपी वायरस से पशुपालक परेशान हैं। जिले में कपकोट के गोगिना, लीती के बाद अब पंत क्वैराली के ग्रामीणों ने भी कहा है कि उनके दूध की बिक्री कम हो गई है जबकि पशु दम तोड़ रहे हैं। उन्होंने बीमारी से मुक्ति के लिए ठोस उपाय किए जाने की मांग की है। जनपद में लंपी वायरस का प्रकोप निरंतर बढ़ता जा रहा है। कई पशु इसकी चपेट में आकर दम तोड़ चुके हैं। गत दिनों कपकोट के लीती, गोगिना समेत शामा आदि गांवों के ग्रामीणों ने शिकायत की थी कि उनके पशु दम तोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि पशुपालकों को दवाइयां वितरित करने के बाद भी पशुओं की बीमारी दूर नहीं हो रही है। इधर अब पंत क्वैराली के पशुपालकों ने भी इसकी शिकायत की है।

पिथौरागढ़ जनपद के कनालीछीना में लंपी बीमारी ने अपना कहर बरपाया हुआ है। बताया गया है कि इस बीमारी से अब तक कई बकरियों की मौत हो गई है, जबकि सैकड़ों भेड़ और बकरियां इसकी चपेट में हैं। ग्रामीणों ने पशुपालन विभाग से क्षेत्र में कैंप लगाकर इनके इलाज की मांग की है। कनालीछीना ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हेम पांडे ने कहा है कि बाराकोट, देवखेत समेत कई गांवों में पशुओं में बीमारी फैल रही है। इतना ही नहीं इस बीमारी की चपेट में ज्यादातर भेड़ बकरी आ रही हैं। इससे पशुपालकों की कई बकरियां मर गईं, जिसके कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। अभी भी कई पशुपालकों की बकरियां और भेड़ें बीमारी के चपेट में हैं।

कैसे फैलता है लंपी वायरस
ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स एंड इम्यूनाइजेशन (जीएवीआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार लंपी त्वचा रोग ‘कैपरीपॉक्सवायरस’ नाम के एक वायरस की वजह से होता है। यह पूरी दुनिया के मवेशियों के लिए एक बड़े जानलेवा खतरे के रूप में उभर रहा है। जेनेटिक लिहाज से यह वायरस गोट पॉक्स और शीप पॉक्स वायरस से जुड़ा हुआ है। लंपी त्वचा रोग मवेशियों में मुख्य रूप से रक्त चूसने वाले कीटों की वजह से फैलता है। संक्रमण से पशु के शरीर पर गांठें उभरने लगती हैं। पशु के त्वचा पर उभरने वाली ये गांठें ‘लंप’ की तरह होती है। संक्रमण के बाद पशु के वजन में तेजी से गिरावट आने लगती है। उसे बुखार हो सकता है और मुंह में घाव निकलने लगता है। दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा भी कम हो जाती है। अत्यधिक लार निकलना भी इसका लक्षण है। गर्भवती गायों और भैंसों का गर्भपात हो सकता है और कई बार संक्रमित पशु की मौत भी हो जाती है। भारत में इस बीमारी का पहली बार 2019 में ओडिशा में पता चला। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की हिसार स्थित संस्था नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन इक्वीन्स (घोड़ा) ने 2019 में ही इस वायरस की पहचान की और इस बीमारी के खिलाफ वैक्सीन विकसित करने में सफलता पाई। इस बीमारी ने खासतौर से देसी गायों को संक्रमित किया है। कम प्रतिरोधी क्षमता वाली गायों में यह अधिक तेजी से फैला है।

बात अपनी-अपनी
मैं अभी तमिलनाडू में हूं, देहरादून आऊंगा तो तब आपसे इस संबंध में बात करूंगा।
सौरभ बहुगुणा, पशुपालन मंत्री, उत्तराखण्ड सरकार

पशुओं में लंपी वायरस की रोकथाम के लिए जिले में 25 टीमें गठित की गई हैं जो अलग-अलग जगहों पर टीकाकरण कर रही है। अब तक 96 हजार पशुओं का टीकाकरण हो चुका है। अन्य पर भी तेजी से टीकाकरण किया जा रहा है।
डॉ. मेघा पंवार, पशु चिकित्सा, नोडल अधिकारी चमोली

लंपी स्किन डिजीज के कारण पशुओं की त्वचा प्रभावित होती है, यह रिसने लगती है, जिससे बैक्टीरिया को प्रवेश करने का मौका मिल जाता है और इस कारण सेकेंडरी पैरासिटिक संक्रमण हो जाता है। गायों की त्वचा पर जब घाव आते हैं तो मक्खियां आकर इनमें अपने अंडे दे देती हैं, जिनसे मैगट पैदा होते हैं और गाय के शरीर पर अल्सर हो जाते हैं। भारत में ऐसा बहुत हो रहा है और इसकी वजह से बड़ी संख्या में गायों की मौत हो रही है। अच्छी बात यह है कि अभी तक भैंसों पर इसका असर नहीं पड़ा है। देश में इस बीमारी से संबंधित मुख्य चिंता है, किसानों को होने वाली आर्थिक क्षति क्योंकि इस बीमारी से गायों का दूध उत्पादन कम हो जाता है, इनमें अबॉर्शन हो जाता है, इंफर्टिलिटी होती है और साथ ही जानवरों की खाल को भी नुकसान पहुंचता है, जिसके कारण उनका आर्थिक मूल्य कम हो जाता हैं।
डॉ दीपशिखा सिंह, पशु चिकित्सक, ग्रेटर नोएडा

उत्तराखण्ड के शहरों और गांवों में विचित्र प्रकार का पशु रोग फैला हुआ है। विगत दिवस क्षेत्र के भ्रमण के दौरान प्रभावितों ने भी बताया कि सैकड़ों पालतू पशु इस विचित्र बीमारी की वजह से मर चुके हैं तथा पूरे क्षेत्र में प्रायः सभी पालतू पशु इस बीमारी की चपेट में हैं। प्रभावित पशुपालकों ने यह भी बताया कि पशुपालन विभाग के लोग गाड़ियों में बैठकर सड़कों का दौरा तो भले कर रहे हों लेकिन गांव के अंदर पहुंच कर बीमार पशुओं की जांच नहीं कर रहे हैं। बिना जांच किए ही जो दवाइयां लोगों को दी जा रही है। उन दवाइयों से कोई भी लाभ बीमार पशुओं को नहीं हो रहा है। पशुओं में फैली यह बीमारी विकराल रूप धारण कर चुकी है, इस बीमारी से पशुपालकों को निजात दिलाने के लिए हमारी पार्टी ने सीएम से मांग की है कि उपरोक्त प्रभावित गांवों के केंद्रीय स्थलों पर पशुपालन विभाग के चिकित्सकों का कैंप लगाकर हर संभव इलाज बीमार पशुओं तक पहुंचाया जाए। गांवों में जितने भी पशु इस बीमारी की वजह से मरे हैं उन पशुओं की आम सभाओं से सूचियां लेकर पशुपालकों को उनके मृतक पशुओं का उचित मुआवजा भी दिया जाए।
शिव प्रसाद सेमवाल, केंद्रीय प्रवक्ता, उत्तराखण्ड क्रांति दल

उर्गमघाटी में लंपी बीमारी से सैकड़ों पशु प्रभावित हुए हैं, वहीं दर्जनों पशुओं की अब तक मौत हो गई है। पशुपालक अपने पशुओं को लेकर चिंतित हैं और विभाग ने अभी तक कोई सुध नहीं ली है।
रघुबीर सिंह नेगी, समाजसेवी

 

 

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