उत्तराखण्ड के हिमालयी क्षेत्र को वनौषधियों का बगीचा कहा जाता है। यहां बहुमूल्य जड़ी-बूटियों एवं पादपों की अपार संपदा है। इसकी देश-विदेश में भी भारी मांग है। यही नहीं यह राज्य को आर्थिक कंगाली से उबारने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हिमालय में पाई जाने वाली विविध औषधीय और सुगंध पादप वनस्पतियों का उपयोग मानव द्वारा सालों से किया जाता रहा। लेकिन उचित नीति के अभाव में इसका दोहन नहीं हो रहा है। हिमालयी पादपों के मानव स्वास्थ्य में उपयोगिता को देखते हुए दून विश्वविद्यालय के डाॅ हरीश चंद्र अंडोला और डाॅ विजयकांत पुरोहित ने हाल ही में ‘वनस्पतियां एवं मानव स्वास्थ्य, उपयोग और संरक्षण’ नामक पुस्तक लिखी है। इसका विमोचन पिछले दिनों देहरादून प्रवास के दौरान महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने किया। कोश्यारी ने इस पुस्तक की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मानव स्वास्थ्य के लिए वनस्पतियां बहुत महत्वपूर्ण हैं, अगर इसका सही तरीके से उपयोग किया जाए तो स्वास्थ्य संबंधी बहुत सारी समस्याओं का समाधान निकल सकता है।
कोरोना महामारी के बाद हिमालयी वनस्पतियों का महत्व काफी बढ़ गया है। ऐसे समय में प्रकाशित यह पुस्तक आम आदमी के लिए भी काफी लाभकारी सिद्ध हो सकती है। प्रकाशित पुस्तक में रीठा, लिंगड़ा, बेडू, हींग, मेलू, मांसी, थुनेर, त्रिकुट, गिलोय, खजूर, कुटकी, आमड़ा, अष्ठवर्ग सहित 58 पादपों की न सिर्फ विस्तृत जानकारी दी गई है, बल्कि इनके उपयोग एवं लाभों के बारे में भी बताया गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि इसका किस तरह से संरक्षण किया जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर महत्वपूर्ण पादपों का समय पर संरक्षण नहीं हुआ तो फिर आने वाले समय में मानव एक बड़े स्वास्थ्य लाभों से वंचित हो सकता है। अगर सरकार इसका कृषिकरण करती है तो इससे काश्तकारों को तो आर्थिक लाभ होगा ही, वहीं सरकार के राजस्व में वृद्वि के साथ ही प्रदेश के लोगों को सस्ते में इन वनौषधिायों का स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त हो सकता है। पुस्तक में हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली औषधीय वनस्पतियों की महत्वपूर्ण जानकारी और इसकी उपयोगिता को देखते हुए रुसा परियोजना निदेशालय उत्तराखण्ड ने प्रदेश के सभी कुलपतियों एवं कुल सचिवों से इस पुस्तक को विश्वविद्यालय, महाविद्यालय के पुस्तकालय में लगाने को पत्र प्रेषित किया है।
डाॅ हरीश चन्द्र अंडोला ने पूर्व में भी ‘उच्च गुणवत्ता वाले औषधाीय एवं सुगंध पादपों के कृषिकरण, तकनीक तथा उनके उपयोग’ नाम से 106 पृष्ठीय पुस्तक का लेखन किया है। जिसमें तुलसी, सतावर, एलोवीरा, तेजपत्ता, कुटकी, कूट, आंवला, जटामासी, रियम इमोडी, इन्यूला रेसीमोसा, अतीस एलोनिटम, हिटरोफिलम, एकोनिटिम, वालफोराई, रीठा, चोरू आदि की विस्तृत जानकारी एवं इनके लाभों के बारे में बताया है। डाॅ अंडोला के पादप रसायन शास्त्र में 135 पत्र राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में और विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 45 से अधिाक लेख प्रकाशित हो चुके हैं। वह विगत 19 वर्षों से औषधीय एवं सुगंध पादपों के क्षेत्र में शोधरत हैं। वहीं डाॅ विजयकान्त पुरोहित जो वर्तमान में वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं। पिछले 15 वर्षों से प्राकृतिक संसाधनों के संवर्धन और संरक्षण के क्षेत्र में शोध कार्य में जुटे हैं।
यह सर्वविदित है कि कोविड-19 के दौरान आने वाले समय में औषधीय पादपों की उपयोगिता बढ़ गई है। कोरोना के प्रकोप के बाद जिस तरह भारत से बाहर खासकर विकसित देशों में भारतीय औषधीय एवं मसालों की मांग में कई गुना वृद्धि हुई है। ऐसे समय में इस पुस्तक का प्रकाशन कई मायनों में इसकी उपयोगिता को बढ़ा देता है। पुस्तक में पादपों के गुण, इसके उपयोग की विधि एवं संरक्षण पर जिस तरह प्रकाश डाला है वह काफी अहम हो सकती है। जैसा कि इस पुस्तक की प्रस्तावना में कहा गया है कि वनस्पतियां प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए उपहारों में सर्वाधिक महत्वूपर्ण हैं। इस पुस्तक का महत्व तभी प्रमाणित होगा जब इसके लाभों को आम आदमी तक पहुंचाने के प्रयत्न हों।