पुष्कर सिंह धामी सरकार में भाजपा की वरिष्ठ नेत्री कुसुम कंडवाल राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बनी हैं। 2002 में भाजपा में शामिल होने वाली कंडवाल 2003 में पहली बार जिला पंचायत सदस्य के तौर पर राजनीति में आईं और 2004 में पौड़ी जिले की महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनीं। 2007 में प्रदेश महिला मोर्चा की अध्यक्ष के पद पर नियुक्त हुईं और 2010 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बनाई गईं। 2007-12 तक भाजपा की पार्लियामेंट कमेटी की सदस्य के साथ कंडवाल तीन बार लगातार भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। वर्तमान में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष हैं।
‘दि संडे पोस्ट’ के विशेष संवाददाता कृष्ण कुमार ने राज्य में महिला आयोग के कामकाज और बढ़ते महिला अपराधों पर उनसे बातचीत की
राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष के तौर पर आपका क्या विजन है। आप इस पद को कैसे देखती हैं?
मैं सबसे पहले अपने संगठन और माननीय मुख्यमंत्री जी का आभार व्यक्त करना चाहती हूं जिन्होंने मुझे राज्य महिला आयोग जैसे महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया है। राज्य की आधी आबादी का नेतृत्व मैं कर रही हूं तो मुझे लगता है कि उत्तराखण्ड की बहनों से मिलने का मौका मिल रहा है। महिला आयोग को केवल इसलिए जाना जाता है कि घरेलू हिंसा, उत्पीड़न या महिला के खिलाफ कोई काम न हो रहा हो, अगर हो रहा है तो उसे रोकने का काम महिला आयोग करता है यह सब तो रोज का काम है। लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती। महिला आयोग का काम महिला हित में होना चाहिए। मेरा प्रयास यह है कि उत्तराखण्ड पहाड़ी राज्य है और हर बहन देहरादून तक नहीं आ पाती। मैं उनके लिए काम करना चाहती हूं। मेरा प्रयास रहा है कि जो मुझे फोन करती है उनकी कोई समस्या है तो मैं पहले तो उनके पास स्वयं जाऊं और अगर किसी थाने में कोई समस्या है तो उस थाने से ही उसका निस्तारण करवाऊं। इसमें मुझे सफलता भी मिली है। बहुत से मामलों का निस्तारण वहीं हो जाता है। अगर किसी को काउंसलिंग की जरूरत पड़ती है तो इसके लिए हमारे वन स्टाप सेंटर चलते हैं जिसमें पांच दिनों तक पीड़िता को रख सकते हैं उसकी अलग से कांउसिलिंग की जाती है।
अभी तक आपने महिला आयोग के अध्यक्ष के तौर पर क्या-क्या काम किए हैं?
मुझे पद भार ग्रहण किए हुए तकरीबन चार महीने हो चुके हें और मैं अब तक चार जिलों का भ्रमण कर चुकी हूं। इन जिलों में वन स्टॉप सेंटर का निरीक्षण किया। बालिका विद्यालयों में जाकर उनका निरीक्षण किया कि उनमें क्या सुविधाएं मिल रही हैं। शौचालय की क्या सुविधा है और बालिकाओं को किसी प्रकार की कोई समस्या तो नहीं है। मैं समझती हूं कि महिला आयोग को हर उस बात पर संज्ञान लेना चाहिए जो महिलाओं से जुड़ी हो। जरूरी नहीं है कि केवल अपराध या किसी अन्य समस्याओं पर ही महिला आयोग काम करे उसे हर काम करना चाहिए जिससे महिलाओं का फायदा हो, उनकी तरक्की हो। आप कह सकते हें कि इसके लिए अन्य विभाग है, लेकिन महिला आयोग के तौर पर जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।
अभी आपने कहा कि आप बालिका विद्यालयों में निरीक्षण के लिए गईं और उनमें शौचालय की सुविधाएं परखीं। प्रदेश में सैकड़ों ऐसे विद्यालय हैं जिनमें बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं है। कई और सुविधाएं नहीं है। इसमें आप क्या सोचते हैं?
यह समस्या तो हो सकती है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बालिकाओं के लिए शौचालय की सुविधा नहीं है। यह जरूर है कि अधिकांश स्कूलों में बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय की बेहतर सुविधा न हो, लेकिन जहां है वहां उपयोग हो रहा है। मेरी जानकारी में है कि इस पर काम भी हो रहा है। आपने बताया है तो मैं इनकार नहीं करती हूं। मैं इस पर भी नजर रखूंगी। जो मैंने देखा उसे मुझे सुविधा मिली लेकिन उसमें साफ-सफाई की ज्यादा जरूरत है। मैंने स्कूल प्रशासन को इसके लिए कहा भी है कि व्यवस्था सही होनी चाहिए।
सरकारी विभागों में महिला कर्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न और शोषण के मामले ज्यादा समाने आ रहे हैं। पांच सालों में ही 12 मामले विभाग में दर्ज हो चुके हैं। यह परिपाटी कैसे दूर होगी, महिला आयोग की इसमें क्या भूमिका रहने वाली है?
हां, यह दुर्भाग्य की बात है। सरकारी विभागों में इस तरह के मामले सामने आना बहुत ही दुःखद और चिंताजनक है। ऐसा नहीं होना चाहिए। सरकारी विभाग सरकार के ही अंग होते हैं और उनमें महिलाओं पर अपराध होना बहुत ही गंभीर बात है। महिला आयोग इस तरह के मामलों को तो प्राथमिकता के तौर पर ले रही है। मैं ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेती हूं। रुड़की का एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसके बारे में मुझे पता चला तो मैंने तत्काल कार्यवाही करने के लिए पत्र लिखा। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मामले में संज्ञान लिया है। इस मामले में कोई कोताही नहीं होने वाली।
आप कह रही हैं कि इस मामले में कोई कोताही नहीं होने वाली लेकिन इसमें तो स्वयं सरकार के एक मंत्री ने आरोपी अधिकारी के निलंबन को रद्द करने के निर्देश भी दे डाले थे और आज भी वह निलंबित अधिकारी अपने ही विभाग में अपीलीय अधिकारी के तौर पर काम कर रहा है यह प्रमाण स्वयं विभाग ने ही आरटीआई के एक जवाब में दिया है?
इस मामले में मैंने आपको बताया न कि आयोग ने इस पर कार्यवाही की है और इस पर नजर भी रखी हुई है। मेरी जानकारी में है कि वह अधिकारी सस्पेंड है, मैंने सचिव से इसकी जानकारी ली है। उन्होंने बताया है कि वह सस्पेंड किया जा चुका है। दूसरा मेरी जानकारी में नहीं है कि किसी ने ऐसा कोई निर्देश दिया है। महिला आयोग में भी इस तरह की कोई शिकायत नहीं आई है और न ही किसी ने महिला आयोग में उस अधिकारी के लिए सिफारिश की है।
राज्य में महिलाओं की तस्करी के मामले बढ़ रहे हैं। 2019 की रिपोर्ट के अनुसार हिमालयी राज्यों में महिलाओं की तस्करी के मामले में उत्तराखण्ड पहले स्थान पर है। इसे रोकने के लिए आयोग की क्या भूमिका रहेगी?
महिला आयोग इस तरह के अपराधों को रोकने के लिए कदम उठा रहा है। अभी आयोग ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग में बैठक भी की है इस पर महिला आयोग ने संज्ञान लिया है। ऐसे अपराध की सूचना हमें किसी भी माध्यम से मिलेगी तो आयोग तत्काल इस पर कार्यवाही करेगा। इसके लिए पुलिस के साथ-साथ समाज के लोगों और जनप्रतिनिधियों का सहयोग लिया जा रहा है।
एक नया माहौल आजकल प्रदेश के बड़े शहरों में सामने आ रहा है जिसमें भिखारियों की तादात अचानक से बढ़ रही है जिसमें ज्यादातर महिलाएं और नाबालिग बालक-बालिकाओं की संख्या ज्यादा है। इसको भी आयोग अपने कामकाज में शामिल करेगा?
जी, यह तो आयोग का ही काम है। हमने इसके लिए ही एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग की बैठक की है। इसमें निर्णय लिया है कि जो भी भिखारी है चाहे वह बच्चे हां या महिला, को चिन्हित किया जाए और उनको किसी सुरक्षित स्थान पर रखा जाए। इसके लिए नारी निकेतन या अन्य कोई स्थान हो सकते हैं। इसमें यह देखना है कि कहीं ये बच्चे या महिला तस्करी के तौर पर तो नहीं लाई गई हैं। क्योंकि भीख मंगवाने के लिए भी गिरोह काम करते हैं और वे इसी तरह से बच्चों को तस्करी करके लाते हैं।
राज्य में वेश्यावृति के नए-नए मामले देखने को मिल रहे हैं। अब स्पा सेंटर में देह व्यापार के मामले देखने में आ रहे हैं। इसे कैसे रोका जा सकता है?
हां, यह बहुत गंभीर मामला है। देवभूमि उत्तराखण्ड राज्य जहां देवताओं का स्थान माना जाता है वहां इस तरह के अनैतिक काम होना बेहद दुःखद और चिंतनीय है। सरकार भी इसके लिए ठोस कदम उठाने जा रही है। मैं नैनीताल जिले के हल्द्वानी भ्रमण पर गई थी तो मैंने कुछ स्पा सेंटर का निरीक्षण किया, मेरे साथ पुलिस प्रशासन भी था। हमें कुछ ऐसा लगा कि यहां कुछ न कुछ गलत हो रहा है। महिला आयोग ने सभी स्पा सेंटरों के लिए एक नियमावली बनाई है जिसको आयोग ने शासन को भेजा दिया है। अभी स्वीकृति मिलनी बाकी है।
देहरादून का नारी निकेतन विवादों में रहा। कई गंभीर मामले भी हो चुके हैं। आप नारी निकेतन या संवासिनी केंद्रों की बेहतरी के लिए क्या करेंगी?
मैं देहरादून और हल्द्वानी दोनों ही नारी निकेतन गई थी। हल्द्वानी में तो कुल नौ ही महिला हैं लेकिन देहरादून में बहुत ज्यादा संख्या में हैं। मेरा प्रयास रहेगा कि जहां तक हो सके मैं उसको सुधारने का प्रयास करूंगी। अब दोनों ही नारी निकेतन की स्थिति पहले की अपेक्षा ज्यादा अच्छी है। यह मैंने स्वयं देखा है। मैं इतना कह सकती हूं जो पहले हुआ उस तरह का तो कम से कम मेरे कार्यकाल में नहीं होने वाला।
राज्य महिला आयोग राजनीति से बंधा हुआ देखा गया है। जिस पार्टी की सरकार है उसके लिए आयोग नरम ही रहा है। भाजपा की पिछली सरकार में संघ से जुड़े एक बड़े नेता के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे। महिला आयोग की भूमिका इस मामले में ज्यादा देखी नहीं गई। आपके सामने अगर इस तरह का मामला आता है तो आप किसे ज्यादा तरजीह देंगी?
महिला आयोग एक संवैधानिक पद है। किसी महिला के खिलाफ कोई काम होता है तो महिला आयोग स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही करता है। उसे किसी राजनीतिक दल से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। यह ठीक है कि सरकार ही किसी को पद पर तैनात करती है और वह व्यक्ति सरकार चलाने वाली पार्टी का होता है। लेकिन जिस तरह से सरकार संवैधानिक होती है वह किसी पार्टी की नहीं होती, उसी तरह महिला आयोग भी संवैधानिक पद होता है। मैं इसी के तहत काम कर रही हूं और भविष्य में भी करती रहूंगी। अभी कुछ समय पहले देहरादून अस्पताल का एक मामला सामने आया था जिसमें एक महिला चिकित्सक का स्थानांतरण स्वास्थ्य सचिव ने केवल इसलिए कर दिया था कि उनकी पत्नी को उक्त महिला चिकित्सक का व्यवहार पसंद नहीं आया। जैसे ही मुझे इसकी जानकारी मिली मैंने तुरंत मुख्यमंत्री जी और स्वास्थ्य मंत्री जी से मिलकर महिला
चिकित्सक को न्याय दिए जाने की बात की।