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Uttarakhand

त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ आईएमए ने खोला मोर्चा

देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार प्राइवेट लैब के खिलाफ कोरोना मरीजों की पॉजिटिव रिपोर्ट देने के आरोप में जांच कर रही है। साथ ही कई प्राइवेट जांच केंद्रों पर रोक लगा दी गई है। इसके विरोध में आईएमए ने सरकार और देहरादून के जिलाधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आईएमए का आरोप है कि सरकार और देहरादून के जिलाधिकारी की नकामी से कोरोना बेकाबू हुआ है और सरकार इसका ठीकरा प्राइवेट लैब संचालकों के ऊपर फोड़ा जा रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का साफ कहना है कि सरकार अपनी नाकामी को छुपाने के लिए प्राइवेट लेब को निशाना बना रही है। झूठी रिपोर्ट देने का अरोप लगाकर कार्यवाही की जा रही है। आईएमए ने तो सरकार पर ही गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि जिन प्राइवेट लैब पर कार्यवाही की गई है वे सभी एनएबीएल प्रमाणित हैं, जबकि दून अस्पताल के पास एनएबीएल का प्रमाण तक नहीं है। अगर सरकार ने उत्पीड़न की कार्यवाही बंद नहीं की तो सभी प्राइवेट लैब कोरोना टेस्ट करना बंद कर देंगे।

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के चलते सरकार के प्राइवेट लैब को भी कोरोना टेस्ट करने की अनुमति प्रदान की है। लेकिन इनमें पाया गया कि कई मामलों में प्राइवेट लैब से की गई जांच में मरीजों की जांच पॉजिटिव पाई गई है, जबकि उन्हीं मरीजों की सरकारी जांच केंद्रों में निगेटिव पाई गई है। इसके चलते जिला प्रशासन ने कई प्राइवेट जांच केंद्रों पर कोरोना टेस्ट करने पर रोक लगा दी और इसकी जांच करने का आदेश जारी कर दिया गया। इस दौरान यह भी पाया गया कि प्राइवेट लैब में सोशल डिस्टेंडिग का पालन नहीं किया जा रहा है। सरकार का आरोप है कि प्राइवेट लैब संचालक कोरोना की झूठी जांच रिपोर्ट दे रहे हैं जिसके चलते पॉजिटिव मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सरकार ने इसके लिए टीम बनाकर जांच करने का आदेश जारी कर दिया है।

उत्तराखण्ड में कोरोना के मामले बेहताशा बढ़ रहे हैं। लगातार कोरोना के मामले इस कदर बढ़ रहे हैं कि सरकार, शासन-प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग के अलावा पुलिस विभाग भी इसकी जद में आ चुके हैं। 22 सितंबर को स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी कोरोना आंकड़ों को देखें तो अब तक 42651 कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा पहुंच चुका है। जिसमें 11831 एक्टिव केस चल रहे हैं। अभी तक 512 लोगों की मौत हो चुकी है।

यह आंकड़ा वास्तव में डराने वाला है। आज प्रदेश के हर जिले में कोरोना के मामले हो चुके हैं। देहरादून जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है। यहां अब तक कुल 11362 कोरोना के मामले हो चुके हैं। जिसमें 22 सितंबर तक 4150 कोरोना के एक्टिव मामले चल रहे हैं। प्रदेश में कोरोना से मरने वालों की तादात भी देहरादून जिले में सर्वाधिक है। अभी तक कुल 251 लोगों की मौत हो चुकी है।

एक तरह से देहरादून पूरे प्रदेश में कोरोना हब के तौर पर उभर कर सामने आ चुका है। इसी को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने देहरादून जिलाधिकारी पर कोरोना से निपटने में नाकाम रहने का आरोप लगाया है। साथ ही जिस तरह से महज दो माह के भीतर कोरोना के मामले बेहताशा बढ़े हैं उसके लिए भी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन प्रदेश सरकार पर नाकाम रहने का आरोप लगा रही है। एसोसिएशन का कहना है कि सरकार और देहरादून जिला प्रशासन की नाकामी के चलते कोरोना बेकाबू हुआ है, जबकि सरकार अपनी नाकामी को छुपाने के लिए अब प्राइवेट लैब पर आरोप लगा रही है।

वास्तव में देखा जाए तो प्रदेश में कोरोना के हालात खतरनाक स्थिति में पुहंच चुके हैं। सरकार का एक दिन का विधानसभा सत्र भी कोरोना की भेंट चढ़ चुका है। राज्य के इतिहास में पहली बार विधानसभा का सत्र होने जा रहा है जिसमें न तो विधानसभा अध्यक्ष और न ही नेता प्रतिपक्ष मौजूद हैं। यहां तक कि सदन के उपनेता प्रतिपक्ष भी गैर हाजिर रहेंगे। सरकार के दो मंत्रियों सहित आधा दर्जन विधायक इसकी चपेट में आ चुके हैं जिसकी वजह से वे सदन की कार्यवाही में भाग नहीं लेंगे। कांग्रेस के बड़े नेता भी कोरोना संक्रमण के चलते सदन से बाहर ही हैं।

इस दौरान सरकार और मंत्री, यहां तक कि भाजपा के बड़े नेता और विधायक लगातार अपनी राजनीतिक गतिविधियां चलाते रहे। इसी का असर रहा कि सबसे पहले सरकार के मंत्री सतपाल महाराज अपने स्टाफ और पूरे कुनबे के साथ कोरोना की जद में आए। इसके बाद से लगातार भाजपा संगठन के नेता कोरोना की चपेट में आते रहे। अब सरकार में मंत्री धनसिंह रावत और हरक सिंह रावत कोरोना पॉजिटिव हो चुके हैं, जबकि पूर्व छह विधायक इसकी चपेट में आ चुके हैं।

स्वयं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत भी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। उन्होंने कहा था कि वे स्नेपडील से सीएलओ टू गजट पहना हुआ है जिससे उनको दो माह तक कोरोना नहीं हो सकता। इस दौरान भगत पर कोरोना के लिए जारी गाइड लाइन का उल्लंघन का आरोप भी जमकर लगा। फिर भी अपनी सभी राजनीतिक गतिविधियां चलाते रहे। इसी तरह भाजपा के कई और विधायकों, मंत्रियों पर आरोप लगे कि उनके द्वारा कोरोना की गाइड लाइन का उल्लंघन किया जा रहा है।

हैरानी इस बात की है कि सरकार ने कोरोना की गाइड लाइन के उल्लंघन पर आम जनता के अलावा कांग्रेसी नेताओं पर जुर्माना और मुकदमा दर्ज करवाने में कोई देरी नहीं की। लेकिन जब बात अपनी ही पार्टी के विधायकों और नेताओं की आई तो कार्यवाही करना तो दूर नियमों का पालन करने की सलाह तक नहीं दी।

राज्य मंत्री धन सिंह रावत की कोरोना जांच का सैम्पल लेने के बावजूद उन्होंने केदारनाथ पुनर्निर्माण के कार्यों के निरीक्षण के लिए केदारनाथ चले गए और वहां अपने तीर्थ पुरोहितों और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती से मुलाकत की। अब धन सिंह रावत कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं तो उन सभी के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है जो रावत से मिले थे।

इसी तरह हरक सिंह रावत की कोरोना जांच रिपोर्ट आने से पहले ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, वन विभाग के मुखिया जयराज और उनकी पत्नी सहित वन विभाग के कई कर्मचारी और अधिकारी देहरादून के साथ झाझरा में फॉरेस्ट सिटी का उद्घाटन करने चले गए। अब हरक सिंह रावत भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। मुख्यमंत्री के अलावा तमाम उन अधिकारियों और स्टाफ के लोगां को कोरोना का भय सताने लगा है। स्वयं मुख्यमंत्री को भी कोरोना का संक्रमण होने का भय जताया जाने लगा है क्योंकि कार्यक्रम में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन तक नहीं किया गया था।

सरकार का पूरा फोकस आम जनता और कांग्रेसी नेताओं सहित कार्यकर्ताओं पर ही कोरोना की गाइड लाइन का उल्लंघन करने पर मुकदमा दर्ज करने पर था, जबकि हकीकत में सरकार और भाजपा नेता इसका जमकर उल्लंघन करते रहे। अब जबकि कोरोना के मामले भयावह हो चुके हैं तो सरकार और प्रशासन इसका ठीकरा किसी तरह दूसरे पर फोड़ने का काम कर रहा है जिसका आरोप इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लगा रही है।

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