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Uttarakhand

सरकारी संरक्षण में अवैध पार्किंग का खेल

उत्तराखण्ड की अस्थाई राजधानी देहरादून वाहनों के अनायास बढ़ रहे बोझ को सहन करने में असमर्थ साबित हो रही है। सड़कों पर वाहनों के आड़े-तिरछे खड़ा करने के चलते पार्किंग शहर के लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इस समस्या से  पटने के लिए व्यस्तम इलाकों में पार्किंग के ठेके भी छोड़ दिए गए हैं जिसमें एमडीडीए के खाते में एक तयशुदा रकम आती है। भला हो हरजिंदर सिंह का, जिनके द्वारा इस बाबत आरटीआई डाली गई तो पार्किंग का गड़बड़झाला सामने आया। नगर निगम के साथ ही जब एमडीडीए भी पार्किंग को अपनी नहीं बताते हैं तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर पार्किंग का मालिक कौन है? सवाल यह भी उठने लगे हैं कि वर्षों से पार्किंग के नाम पर चला आ रहा यह खेल सरकारी संरक्षण में तो नहीं चल रहा है?

प्रदेश के सरकारी विभागों की कार्यशैली हमेशा से ही विवादों में रही है। खास और चहेतों लोगों के लिए योजनाओं में हिस्सेदारी देने के लिए हर प्रकार के नियमों और कानूनां को ताक पर रखने वाले सरकारी विभाग ने अपने कारनामों को छुपाने के लिए भी अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। सूचना के अधिकार अधिनियम का पालन करने में परहेज के साथ ही सूचना आयोग के निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहे हैं। सरकारी संस्थान मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण का नाम भी इसी कड़ी में जुड़ गया है। यह विभाग सूचना को छुपाने के लिए हर वह कार्य कर रहा है जिससे आवेदकां को सूचना उपलबध न हो पाए। हाल ही में राज्य सूचना आयुक्त द्वारा एक सुनवाई के दौरान ऐसे ही एक मामले में एमडीडीए को न सिर्फ फटकार लगाई गई है, बल्कि लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने का भी नोटिस जारी किया गया है। हैरत की बात यह है कि एमडीडीए द्वारा एक वर्ष तक सूचना को छुपाने के साथ ही सूचना मांगने वाले आवेदक को भ्रामक और अपूर्ण सूचना देकर मामले को टरका दिया जाता है। सूचना आयुक्त के आदेशों तक को रद्दी की टोकरी में डाला जा रहा है।

देहरादून नगर के खुड़बुड़ा निवासी हरजिंदर सिंह द्वारा नगर में मुख्य सड़कां पर संचालित हो रही वाहन पार्किंग के मामले में एमडीडीए से एक वर्ष पूर्व सूचना मांगी गई थी। तय समय सीमा के भीतर सूचना न मिलने पर हरजिंदर सिंह द्वारा एमडीडीए में अपील की गई जिस पर उनको लंबे समय के बाद सूचना एमडीडीए में धारित न होने और इस बाबत एमडीडीए की जिम्मेदारी न होने की सूचना दी गई। हैरत की बात यह है कि एमडीडीए के पास उक्त सूचना उपलब्ध होने के बावजूद आवेदक के पत्र को नगर निगम को अग्रसारित कर दिया गया। संपूर्ण सूचना न देने और भ्रामक जानकारी देने पर आवेदक द्वारा राज्य सूचना आयुक्त कार्यालय में इसकी शिकायत की गई। मामला राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट की पीठ में 3 अप्रैल 2023 को आया तो कई हैरतअंगेज प्रकरण सामने आए। जिससे साफ तौर पर प्रदेश के सरकारी विभागों में सूचना को छुपाने और सूचना आयुक्त के आदेशां का पालन नहीं करने का मामला सामने आया। साथ ही 26 मई को फिर से सुनवाई किए जाने के निर्देश भी हुए। 26 मई को हुई सुनवाई में आयुक्त योगेश भटट् द्वारा एमडीडीए पर कठोर टिप्पणी करते हुए 7 जुलाई को इस प्रकरण की सुनवाई की तिथि सुनिश्चित की गई है।

गौर करने वाली बात यह है कि सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सुनवाई के दौरान यह माना है कि एमडीडीए द्वारा सूचना नहीं होने की बात कहकर आवेदक को भटकाने का काम किया गया है। साथ ही सुनवाई में एमडीडीए ने यह भी माना है कि इन पार्किंग स्थलां से मिलने वाले राजस्व का 30 प्रतिशत भाग एमडीडीए को मिलता है। अब 7 जुलाई को इस मामले का अंतिम निर्णय आने की संभावना है। आयुक्त द्वारा एमडीडीए की इस पार्किंग के मामले में अहम भूमिका होने के बाद सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 5 के तहत सचिव एमडीडीए को लेक सूचना अधिकारी मानते हुए उनको पक्षकार बनाया गया है और इस मामले की 7 जुलाई 2023 को सुनावाई की तारीख तय कर दी गई है। अब 7 जुलाई को इस मामले में क्या निर्णय आता है, यह देखने वाली बात होगी। गौरतलब है कि देहरादून नगर में मुख्य सड़कां के किनारे वाहन पार्किंग कई वर्षों से चल रही है नगर की अतिव्यस्तम मुख्य सड़कों राजपुर रोड, गांधी रोड और दून अस्पताल की सड़कों पर वाहनों की पार्किंग की जा रही है। एमडीडीए इस पार्किंग से मिलने वाले राजस्व का 30 प्रतिशत ले रहा है।

ब्रिडकुल से विगत दो वर्ष में एमडीडीए 8 लाख 11 हजार रुपए पार्किंग से वसूल कर चुका है। इससे यह बात तो साफ हो जाती है कि एमडीडीए इस पार्किंग से लाखों की कमाई कर चुका है। बावजूद इसके एमडीडीए इससे पल्ला झाड़ रहा है।
शहर में कई स्थानों पर पार्किंग का ठेका चल रहा है। हैरत की बात यह है कि यह पार्किंग किसके द्वारा स्थापित की गई इसका किसी को पता तक नहीं चल पाया। पहले भी इस पार्किंग स्थल के बारे में जानने के प्रयास किए गए लेकिन न तो नगर निगम और न ही एमडीडीए से इसकी जानकारी मिल पाई। अति व्यस्ततम मार्गों पर अचानक ही वाहन पार्किंग किए जाने पर तमाम तरह की बातें होने लगीं और सरकार के साथ-साथ नगर निगम पर भी सवाल उठने लगे। जब इस पार्किंग के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली तो इस मामले ने तूल पकड़ा। तत्कालीन समय में कांग्रेस पार्टी ने भी सरकार की मंशा पर सवाल तो खड़े किए ही थे, साथ ही इसे एक बड़े भ्रष्टाचार के खेल को रचने का भी आरोप त्रिवेंद्र रावत सरकार पर लगाया था। तब यह जानकारी निकल कर आई कि यह पार्किंग ब्रिडकुल (ब्रिज, रोपवे, टनल एंड अदर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड) द्वारा स्थापित की गई है तथा एमडीडीए और नगर निगम टीमों द्वारा यह पार्किंग व्यवस्था बनाई गई है। इसके लिए बकायदा टेंडर प्रक्रिया अपनाई गई है और इसके लिए अनुबंध भी किया गया है। जिसके अनुसार पार्किंग से मिलने वाले राजस्व में से 70 प्रतिशत ब्रिडकुल तथा 30 प्रतिशत हिस्सा एमडीडीए को मिलेगा। हैरत की बात यह है कि नगर निगम जो कि इनमें तीसरा भागीदार है, को मिलने वाले राजस्व से कोई भी हिस्सा नहीं है। यह अपने आप में बेहद चौंकाने वाली बात है। क्योंकि नगर की सभी पर्किंग की सफाई व्यवस्था, पथ प्रकाश नगर निगम के जिम्मे तो है लेकिन कमाई में से एक भी ढेला नगर निगम को नहीं मिल रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि ब्रिडकुल जिसके पास इस पार्किंग से प्राप्त होने वाला राजस्व में 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है उनका इस पार्किंग की देखरेख से कोई सरोकार नहीं है लेकिन राजस्व का एक बहुत बड़ा हिस्सा ब्रिडकुल को मिल रहा है।

देहरादून को स्मार्ट सिटी परियोजना में रखा गया है और इसके लिए नगर में पार्किंग स्थल इसी योजना के तहत बनाए जाने हैं। लेकिन 7 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक नगर में कोई बड़ी पार्किंग की व्यवस्था नहीं बन पाई है। पूर्व में बहुगुणा सरकार के समय पुरानी तहसील स्थल और घंटाघर स्थित कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट को पार्किंग की व्यवस्था के लिए बनाया गया था। इन दोनों पार्किंग का संचालन एमडीडीए द्वारा ही किया जाता है। जिस एमडीडीए को स्मार्ट सिटी परियोजना में नई पार्किंग व्यवस्था बनानी थी वही शासन-प्रशासन के साथ मिलकर नियम विरुद्ध नगर के मुख्य मार्गों के दोनों ओर पार्किंग की व्यवस्था बनाकर काम चलाऊ व्यवस्था अपना रहा है। जबकि यह व्यवस्था यातायात के लिए सबसे बड़ी समस्या भी बन चुकी है।

इसके अलावा यह भी गौर करने वाली बात है कि जिन सड़कों को एमडीडीए द्वारा वाहन पार्किंग की व्यवस्था के लिए अपनाया गया है, वह सभी सड़कें लोक निर्माण विभाग के अधीन आती हैं और नगर निगम इन सड़कों की साफ-सफाई की व्यवस्था करता है। फिर किस नियम के तहत लोक निर्माण विभाग की सड़कों को पार्किंग के लिए संचालित किया जा रहा है यह अपने आप में गंभीर सवाल बना हुआ है। आज स्मार्ट सिटी के तहत नगर में जो भी काम हो रहे हैं उन पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। पूर्व मेयर और विधायक विनोद चमोली जिनके कार्यकाल में देहरादून को स्मार्ट सिटी योजना से जोड़ा गया था, वे भी स्मार्ट सिटी के कामों पर सवाल उठा रहे हैं। जो काम दो वर्ष पूर्व पूरे हो जाने चाहिए थे एमडीडीए की नाकामी के चलते वे काम अभी तक निर्माणाधीन ही चल रहे हैं। वाहन पार्किंग व्यवस्था भी आज तक पूरी नहीं हो पाई है।

बात अपनी-अपनी
यह पार्किंग नगर निगम, एमडीडीए और ब्रिडकुल का ज्वॉइंट वैंचर के तहत बनाई गई है। ब्रिडकुल केवल कार्यदाई संस्था है। इसके लिए अनुबंध किया गया है जिसमें ब्रिडकुल को प्राप्त राजस्व का 70 प्रतिशत और एमडीडीए का 30 प्रतिशत मिलना है। अनुबंध के अनुसार पार्किंग घाटे में चले या न चले लेकिन एमडीडीए 30 प्रतिशत राजस्व पहले ही काट लेता है। जब से यह पार्किंग बनी है तब से यह लगातार घाटे में ही चल रही है लेकिन एमडीडीए का राजस्व उसे नियमित मिल रहा है इसलिए एमडीडीए इसकी जवाबदेही से बच नहीं सकता। इस बारे में आपको जो भी जानकारी लेनी है वह एमडीडीए से ही लेनी होगी क्योंकि यह पार्किंग स्मार्ट सिटी के तहत बनाई गई है और स्मार्ट सिटी की नोडल एजेंसी एमडीडीए ही है।
अनूप कुमार, महाप्रबंधक, मानव संसाधन ब्र्रिडकुल

यह पुराना मामला है और तब अनुबंध कैसे हुए यह तो मैं नहीं बता पाऊंगा लेकिन मैं इसको दिखवाता हूं कि अनुबंध की शर्तें क्या हैं और नगर निगम को इसमें कुछ हिस्सा क्यों नहीं रखा गया। लेकिन इतना मैं जानता हूं कि नगर निगम ने इसका कोई टेंडर नहीं करवाया था। ब्रिडकुल सरकारी एजेंसी है उसको यह काम सरकार ने ही दिया है।
मनोज गोयल, मुख्य नगर आयुक्त, नगर निगम देहरादून

नगर की अति व्यस्ततम सड़कां में अचानक पार्किंग बना देना पूरी तरह से गलत है। पहले ही नगर की यातायात व्यवस्था चौपट हो चुकी है और एमडीडीए ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। आज नगर की सड़कों के हाल इस कदर हो चुके हैं कि वाहन तो छोड़िए पैदल चलना भी दूभर हो चुका है। जो कि इस पार्किंग से लाखों रुपए राजस्व प्राप्त कर चुका है। जब हमने सूचना मांगी तो एक साल तक तो सूचना ही नहीं दी गई और आवेदन पत्र को जान-बूझकर एक विभाग से दूसरे विभाग में भेजा जाता रहा जिससे हमें सही सूचना न मिल पाई। हमारा प्रयास है कि ये सभी पार्किंग हटाई जाए नहीं तो मैं हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करूंगा।
हर जिंदर सिंह, आरटीआई कार्यकर्ता

ऐसा न करो भाई मुझसे क्यों बयान लेते हो। मेरे बयान मत लो यार।
मोहन सिंह बर्निया, सचिव, एमडीडीए देहरादून

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