टिहरी बांध परियोजना से प्रभावित पुनर्वास क्षेत्र के बाशिंदे बिल्डरों की मनमानी से आजिज हैं। मानकों को नजरअंदाज करते हुए बन रही अवैध बहुमंजिला इमारतों से इस क्षेत्र में रहने वाले लोग खतरा महसूस कर रहे हैं। विस्थापितों के घरों में धूप और हवा आनी बंद हो गई है। पहले से ही भूमिधरी अधिकार मांग रहे विस्थापित अब अवैध बहुमंजिला इमारतों पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं
दो दशक होने को हैं लेकिन आज तक टिहरी बांध विस्थापितों को भूमिधरी अधिकार नहीं मिल पाया है लेकिन बिल्डरां के लिए अवैध हाउसिंग कॉलोनियों के निर्माण के लिए हर प्रकार की सुविधाएं दी जा रही है। यह तब हो रहा है कि जब हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा टिहरी बांध विस्थापित क्षेत्र में सभी प्रकार के निमार्णों पर रोक लगाई हुई है। बावजूद इसके समूचा बांध विस्थापित क्षेत्र बहुमंजिला आवासीय कॉलोनियों में तब्दील हो चुका है। इसके चलते न सिर्फ इस क्षेत्र की डेमोग्राफी बदल रही है, साथ ही हवा-पानी यहां तक कि सूरज की रोशनी से भी विस्थापितों को दूर कर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी जल विद्युत टिहरी बांध परियोजना के निर्माण की खातिर सैकड़ों गांवों को विस्थापित करके प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में बसाया गया है। इसी कड़ी में ऋषिकेश के पशुलोक क्षेत्र में निर्मल ब्लॉक ए और बी तथा पुनर्वास स्थल श्यामपुर ए, बी और सी में असेना, सिंराईं, सिंराईं राजगांव, डोबरा, विरयाणी पैंदार्स, लम्बोगड़ी जोग्यिड़ा, माली देवल, आसेना, इन सभी सात गांवां को 209-391 हेक्टेयर भूमि पर विस्थापित किया गया। इसकी जनसंख्या 6120 है।
गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी सातों गांवों के विस्थापितों को 2 बीघा भूमि खेती के लिए और आधा बीघा भूमि आवास के लिए दी गई थी जिसके चलते बांध विस्थापितों के परिवार बढ़ने के कारण वह दूसरा भवन नहीं बना पा रहे हैं क्योंकि तमाम तरह की पाबंदियां और कठोर नियम थोप दिए गए हैं। लेकिन बाहरी लोगों द्वारा थोक के भाव में विस्थापितों की जमीनों की खरीद लिया गया है जिन पर कोई नियम-कानून नहीं चलता है। इसके चलते निरंतर बांध विस्थापितों की जमीनों को बाहरी बिल्डर्स खरीदते जा रहे हैं। इन पूरी खरीद-फरोक्त की प्रक्रियां में यह भी सामने आया है कि ऋषिकेश भूमि निबंधन कार्यालय में बांध विस्थापितों की भूमि की रजिस्ट्रियां की गई हैं वे सभी आवासीय प्रयोजन के लिए खरीदी गई हैं जिसके अनुसार स्टाम्प ड्यूटी दी गई है। लेकिन इसकी आड़ में बहुमंजिला भवनों की अवैध कॉलोनियां बना दी गई।
इस मामले में स्टाम्प ड्यूटी की चोरी का भी मामला बनता है। गौर करने वाली बात यह है कि बांध विस्थापन का यह समूचा क्षेत्र आज भी न तो ग्रामसभा और न ही नगर निगम ऋषिकेश के अधीन आता है। आज भी इन गांवों के निवासी ग्रामसभा में मतदान तक नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही राज्य में भू कानून का सबसे बड़ा उल्लंघन इसी क्षेत्र में होता आ रहा है।
भू अधिनियम कानून के अनुसार गैर उत्तराखण्डियों के लिए ग्रामीण क्षेत्र में एक नाली यानी 250 वर्गमीटर भूमि को आवासीय प्रयोजन के लिए खरीदने की अनुमति है, जबकि नगरीय निकाय क्षेत्र में 500 वर्ग मीटर तक की ही भूमि खरीदने की अनुमति है। लेकिन इस क्षेत्र में किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया है। यहां 250 वर्ग मीटर से लेकर दो-दो बीघे भूमि की खरीद की गई है। हैरत की बात यह है कि 250 वर्ग मीटर भूमि पर 5 से 7 मंजिला आवासीय कॉम्प्लेक्सों का निर्माण किया गया है जिसमें न तो पार्किंग की और न ही सीवर की सुविधा है।
विस्थापित क्षेत्र में कुछ एक स्थान को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी सीवर लाइन नहीं है। आज भी परम्परागत रूप से सीवर निस्तारण के लिए पिट बनाए हुए हैं। इसी तरह से इन आवासीय कॉप्लेक्सों में भी सीवर के पिट बनाए गए हैं जो अधिकतर ओवर फ्लो होकर खेतां या खाली पड़े प्लॉटों में बह रहा है। इसके चलते स्थानीय निवासी गंदगी और बदबू से परेशान हैं। इसके कारण विस्थापित क्षेत्र में गंभीर बीमारियों के फैलने की आशंका बनी हुई है। ऐसा नहीं है कि इन तरह के हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों के निर्माण के खिलाफ स्थानीय लोगों ने आवाज नहीं उठाई हो। लेकिन जब- जब विरोध किया गया तब-तब शासन-प्रशासन और रसूख के चलते विरोध को दबा दिया गया। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों द्वारा भी बिल्डर्स लॉबी के ही पक्ष में ज्यादा रूझान रहा है। वर्तमान विधायक और शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जिनके अधीन मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण भी है, ने कभी इस तरह के अवैध और अनियोजित निर्माण पर कोई कार्यवाही नहीं की है। स्थानीय निवासियों के भारी विरोध चलते एमडीडीए ने कार्यवाही का दिखावा करते हुए भवनां का निर्माण एक-दो रोका लेकिन इसके बावजूद निरंतर निर्माण होता रहा।
एमडीडीए और प्रशासन किस तरह से बिल्डर्स लॉबी के हक में काम करता है। इसका प्रमाण निर्मल बाग सी ब्लॉक में नीरज अग्रवाल के हाउसिंग कॉम्प्लेक्स का मामला है। स्थानीय लोगों के भारी विरोध के बाद एमडीडीए द्वारा इस आवासीय कॉम्प्लेक्स का निर्माण कार्य रोकते हुए उसे सील कर दिया लेकिन सील होने के बावजूद इसका निर्माण कार्य होता रहा। दो बार इस कॉम्प्लेक्स को सील करने की कार्यवाही की गई लेकिन दोनों बार इसकी सील तोड़कर निर्माण कार्य किया जाता रहा और आज यह कॉम्प्लेक्स बन कर तेयार हो चुका है। इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यह है कि जब एमडीडीए सील करने की कार्यवाही कर रहा था तो अनेक फ्लैटों के दरवाजों में विधायक लिखकर चिपकाया गया जिससे एमडीडीए के अधिकारी दबाव में आ जाए और सील करने की कार्यवाही को टाल दें। सूत्रों की मानें तो इस तरह के कई हाउसिंग
कॉम्प्लेक्सों में इसी तरह के फ्लैटों को विधायकों के हिस्सेदारी बताई जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना हे कि इस क्षेत्र में टिहरी के कई पूर्व विधायकों के साथ ही कई मौजूदा विधायकां और शासन में बैठे अधिकारियों के भी बेनामी हाउसिंग कॉम्प्लेक्स हैं जिनके कागजों में मालिक कोई और ही है। इसी के चलते क्षेत्र में किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया है। नीरज अग्रवाल ने ग्रामीण क्षेत्र में भू-कानून का उल्लंघन किया है और तय सीमा से अधिक भूमि अपने और अपनी पत्नी के नाम खरीदी हुई है।
विस्थापित कल्याण समिति द्वारा सरकार, शासन-प्रशासन और जन प्रतिनिधियों तक गुहार लगाई गई लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली तो मजबूर होकर समिति को हाईकोर्ट नैनीताल में याचिका दाखिल करनी पड़ी। जिस पर अपील नंबर 110/2019 को जस्टिस आलोक वर्मा और रमेश रंगनाथन की पीठ ने सुनवाई करते हुए 1 अगस्त 2019 को इस पूरे क्षेत्र में बगैर किसी सक्षम प्राधिकरण या अन्य संस्था के अनुमति के बगैर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य पर रोक लगाते हुए सरकार और शासन के अलावा सभी सक्षम अथॅारिटी को आदेश जारी किया। लेकिन हाईकोर्ट के इस आदेश का कभी पालन नहीं किया गया। इसके लिए एक तोड़ निकाला गया जिसमें बांध विस्थापितों के लिए अपने निजी भवन के निर्माण के लिए अनुमति दी गई थी उसी की आड़ में इस क्षेत्र में तमाम बिल्डर्स लॉबी को भवन बनाए जाने की एक तरह से सभी सक्षम अथॉरिटी ने अनुमति दे दी। इसमें किसी का भी मानचित्र और न ही किसी प्रकार की एनओसी स्वीकृत की गई है। यहां तक कि रेरा और उत्तराखण्ड आवास और अवस्थापना के मानकों के साथ-साथ शहरी विकास के मानकों को भी ताक पर रख दिया गया।
प्रदेश में रेरा के नियम लागू हो चुके हैं। साथ ही यह क्षेत्र देहरादून-मसूरी विकास प्राधिकरण के अंतर्गत है जिसमें तमाम तरह के निमय और कानून हैं। लेकिन आज तक किसी भी नियम का पालन नहीं किया गया। कोई भी बिल्डर्स रेरा में पंजीकृत नहीं है जबकि यह सबसे बड़ी शर्त रखी गई है। महज 250 वर्ग मीटर के भूखंड में 7 मंजिला आवासीय कॉम्प्लेक्स का निर्माण किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता लेकिन यहां नियम का कोई पालन नहीं किया गया। पर्यावर्णीय और अग्निशमन तक से एनओसी नहीं ली गई जो कि एनजीटी के मानकों का पूरा उल्लंघन है। रोड साइड कंट्रोल एक्ट का पालन नहीं किया गया है। साथ ही 5 मीटर की सड़क के बावजूद 7 मंजिला आवासीय कॉम्प्लेक्स के लिए महज 5 मीटर सड़क बनाई गई है जबकि न्यूनतम 20 मीटर की सड़क के नियम पर ही 7 मंजिला आवासीय कॉम्प्लेक्सों का निर्माण किया जा सकता है।
प्रेमचंद अग्रवाल विगत 15 वर्षों से इस क्षेत्र के विधायक हैं।
2022 में वे लगातार चौथी बार चुनाव जीत कर विधायक बने हैं और धामी सरकार में शहरी विकास और वित्त मंत्रालय जैसे बड़े अहम विभागों के मंत्री हैं। लेकिन आज तक अग्रवाल द्वारा इस तरह से अनियोजित और अवैध हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों के मामले में कोई कार्यवाही नहीं की है। इतना जरूर हुआ है कि विस्थापितों द्वारा ऋषिकेश नगर निगम की मेयर अनिता ममगाई को इस मामले में कार्यवाही करने के लिए मिले तो अचानक ही शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा इस मामले में एमडीडीए के साथ बैठक करके औपचारिकता पूरी की गई है। इससे यह तो साफ हो गया है कि मामले में कहीं न कहीं कुछ बड़ा झोल तो है जो आज तक बांध विस्थापितों की भूमि पर अवैध आवासीय कॉम्प्लेक्सों का निर्माण होता रहा और शहरी विकास विभाग का ही एक महत्वपूर्ण अंग एमडीडीए सोता रहा।
बात अपनी-अपनी
जब से मैं शहरी विकास मंत्री बना हूं तब से लेकर आज तक विस्थापित क्षेत्र के लेग मेरे पास इस समस्या को लेकर नहीं आए हैं। जब मैं विधानसभा अध्यक्ष था तब एक बार कुछ लोग मेरे पास आए थे और मैंने उनकी शिकायत पर कार्यवाही करने के आदेश भी एमडीडीए को दिए थे। लेकिन मैं इस मामले को स्वतः ही संज्ञान में लेकर पहले ही एमडीडीए और जिलाधिकारी देहरादून को कार्यवाही करने के आदेश दे चुका हूं। कार्यवही शुरू भी हो चुकी है। कई लोगों को नोटिस भी दिया जा चुका है और कुछ को सील भी किया गया है। शहरी विकास मंत्री होने के नाते मैं इस मामले में इतना कह सकता हूं कि हमारी सरकार किसी भी तरह के अतिक्रमण और अवैध कार्यों को सहन नहीं करने वाली। जो भी दोषी होगा उस पर कानूनी कार्यवाही होना तय है।
प्रेम चंद अग्रवाल, शहरी विकास मंत्री, उत्तराखण्ड सरकार
जो भी इस तरह के अवैध निर्माण के मामले हमारे सामने आते हैं उन पर नियमानुसार कार्यवाही की जाती है। मैं अभी ऋषिकेश के एसडीएम को इस मामले को देखने के लिए कहती हूं।
सोनिका, जिलाट्टिकारी देहरादून एवं एमडीडीए देहरादून
मेरे संज्ञान में यह मामला अभी आया है। मैंने कुछ समय पूर्व ही चार्ज लिया है, जो भी बिल्डिंग अवैध और नियम के खिलाफ पाई जाएगी उसे सील करने की कार्यवाही शुरू की जाएगी। मैंने पुलिस प्रशासन से भी कहा है कि कार्यवाही के लिए सहयोग करे, जल्द ही आपको कार्यवाही दिखाई देगी।
नंदन कुमार, उप जिलाट्टिकारी ऋषिकेश
मैं एमडीडीए का सचिव हूं तो हर जगह तो नहीं जाउंगा। ऐसा संभव ही नहीं है। वहां का काम ऋषिकेश के एसडीएम साहब देखते हैं। मैं देहरादून का देखता हूं। हर जगह के लिए अलग-अलग अथॉरिटी दी हुई है। आपको इसके लिए ऋषिकेश के एसडीएम साहब से पूछना चाहिए।
मोहन सिंह बर्निया, सचिव एमडीडीए एवं वीसी रेरा उत्तराखण्ड
हाईकोर्ट को आदेश के पालन तो करना दूर यहां तो बिल्डरां के लिए अधिकारी काम कर रहे हैं। जब हमारे विरोध के दबाव में कार्यवाही करने कोई आता है तो उसे या तो हटा दिया जाता है या उसे फोन आता है और वह बगैर कार्यवाही के ही लौट जाता है। फ्लैटों में विधायक लिख दिया जाता है। इससे यह साफ है कि इन बिल्डरों के ऊपर बड़े लोगों का हाथ है। नीरज अग्रवाल राज्य का भूमिधरी नहीं है लेकिन उसने 500 मीटर से ज्यादा जमीन खरीद कर बहुमंजिला हाउसिंग कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दिया जबकि दो बार इसे सील किया गया है। इससे आप समझ सकते हैं कि सरकार और मंत्री भी बिल्डरां का साथ दे रहे हैं। अब हम जल्द ही इस मामले में बहुत बड़ा आंदोलन करने वाले हैं जिसमें भूख हड़ताल तो होगी, साथ ही हाईकोर्ट की अवमानना का भी केस दाखिल करेंगे।
हरि सिंह भंडारी, अध्यक्ष विस्थापित समन्वय समिति पशुलोक ऋषिकेश
हम इस कदर परेशान हो चुके हैं कि अब हमारा धैर्य जबाब दे चुका है। स्थानीय विधायक और मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल जी को हम कई बार इस मामले की शिकायत कर चुके हैं, लेकिन वे एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। हमारे क्षेत्र में बंगाल, राजस्थान और झारखंड से कई लोग आकर यहां बस रहे हैं जिससे हमारी संस्कृति और परम्परा के साथ-साथ हमारा पर्यावरण और डेमोग्राफी भी बदल रही है। यहां तमाम तरह के अवैध काम हो रहे हैं जिनके अनेक काम भी चल रहे हैं। कोरोना काल के बाद तो यहां बाहरी लोगों की आमद बहुत बढ़ गई है। विरोध करने में मारपीट और गाली-गलौच की घटनाएं अधिक हो रही हैं।
मनीष मैठाणी, सदस्य विस्थापित समन्वय समिति पशुलोक ऋषिकेश