उत्तराखण्ड राज्य अपने गठन के 25वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है, सरकार के एक जिम्मेदार मंत्री के रूप में आप इस 24 साल के सफर को किस रूप में आंकते हैं?
जहां तक उत्तराखण्ड राज्य का सवाल है तो यह उत्तराखण्ड के लोगों के अथक संघर्ष के बाद मिला। खासकर उत्तराखण्ड की महिलाओं और युवाओं का योगदान अविस्मरणीय है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उत्तराखण्ड राज्य का सपना पूरा किया। इन 24 वर्षों में हमारे राज्य में काफी विकास हुआ। राष्ट्रीय राजमार्ग हों, रेल कनेक्टिविटी हो या एयर कनेक्टिविटी हो या फिर प्रधानमंत्री सड़क योजना ने इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूत नींव रखी। वहीं स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है। रोजगार और स्वरोजगार के क्षेत्र में बहुत काम हुआ है। हमारी राज्य की अवधारणा है कि हम एक मॉडल राज्य बन कर उभरें। उत्तराखण्ड की जनता भी चाहती है कि उत्तराखण्ड एक आदर्श राज्य बने और हमारी सरकार भी इस दिशा की ओर अग्रसित है। ऐसे आदर्श राज्य की हमारी परिकल्पना है जिसमें शिक्षा और स्वास्थ्य की अच्छी व्यवस्था हो, गांवों से पलायन कम हो। उस ओर हम आगे बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार का नीति आयोग जो अलग पैमाने पर राज्यों की रैकिंग करता है ने इस बार हमें टॉप राज्यों में आंका गया है। ये दर्शाता है कि हम समावेशी राज्य की ओर बढ़ रहे हैं। हमारी प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है। मुझे विश्वास है कि जब उत्तराखण्ड राज्य 25 वर्षों का होगा तो हम पूरे भारत में टॉप 5 राज्यों की श्रेणी में होंगे। हम इस ओर काम भी कर रहे हैं और इसके लिए हमारा एक रोड मैप भी है। मैं समझता हूं कि उत्तराखण्ड का 24 वर्षों का सफर समावेशी विकास के साथ बढ़ते उत्तराखण्ड की सकारात्मक तस्वीर दिखाता है।
किसी भी समाज या राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य बुनियादी जरूरतें हैं, इस मामले में उत्तराखण्ड को आप कहां पर पाते हैं?
शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग सौभाग्य से मेरे ही पास हैं। मैं अपने केंद्रीय नेतृत्व और मुख्यमंत्री का इसके लिए आभारी हूं कि मुझे ये दोनों महत्वपूर्ण विभाग देकर मुझ पर भरोसा जताया। प्रदेश के हर ब्लॉक में हमने डिग्री कॉलेज खोल दिए हैं। भारत सरकार की नई शिक्षा नीति (एनईपी-2020) कहती है कि 2035 तक का लक्ष्य है कि जितने बच्चे इंटरमीडिएट करते हैं उसका 50 प्रतिशत बच्चे उच्च शिक्षा ग्रहण करें ये बहुत बड़ी बात है। हमने पूरे प्रदेश के महाविद्यालय में सत्र नियमित कर दिया है। एक प्रदेश, एक प्रवेश परीक्षा, एक परिणाम और एक दीक्षांत के तहत सब नियमित कर दिया है। पूरे प्रदेश में एक ही दिन छात्र संघ चुनाव और परिणाम सम्पन्न हो रहे हैं। ‘समर्थ पोर्टल’ के माट्टयम से हम डिग्री कॉलेजों में प्रवेश दे रहे हैं। उच्च शिक्षा में फैकल्टी 90 प्रतिशत से ज्यादा है। इसी प्रकार माट्टयमिक व प्राथमिक शिक्षा में बड़ी संख्या में हम अध्यापकों की नियुक्तियां कर रहे हैं। मैं कह सकता हूं कि प्रारंभिक शिक्षा से इंटर मीडिएट तक को विद्यालय शिक्षकविहीन नहीं हैं तथा भवन, पानी, शौचालय, फर्नीचर, पुस्तक, कम्प्यूटर सब की व्यवस्था दुरुस्त है। जहां तक स्वास्थ्य विभाग का प्रश्न है पिथौरागढ़, ऊट्टामसिंह नगर व हरिद्वार में मेडिकल कॉलेज बन रहे हैं। अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज हमारे समय में शुरू हो चुका है। ऋषिकेश की तर्ज पर किच्छा में एम्स का सैटेलाइट सेंटर बन रहा है। इस बार हम लगभग 2 दर्जन उपजिला चिकित्सालय बना रहे हैं। आज हमारे पास लगभग 28,00 चिकित्सक हैं। चिकित्सकों की कोई कमी नहीं है राज्य में 1800 से ज्यादा वैलनेस सेंटर काम कर रहे हैं। जिनमें एक सीएचओ डॉक्टर नियुक्त है। उत्तराखण्ड में डायलेसिस सुविधा निःशुल्क है। आयुष्मान कार्ड के तहत 5 लाख तक का इलाज निःशुल्क है। तो काफी काम हमारे विभागों में हो रहे हैं। लेकिन अभी बहुत काम करने हैं। इसके लिए मेरे सामने एक स्पष्ट रोड मैप है। मैं कह सकता हूं कि 2 साल बाद हमारे उत्तराखण्ड राज्य के एक भी मरीज को इलाज के लिए दिल्ली या देश के अन्य किसी शहर में इलाज के लिए जाना नहीं पड़ेगा। सबका इलाज उत्तराखण्ड में ही हो जाएगा। हम उत्तराखण्ड के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों का ‘जेम’ मूल्यांकन करा रहे हैं। हम चाहते हैं कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर देश के किसी अन्य राज्य के शिक्षण संस्थान से कम न हो। शायद ये उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था का ही परिणाम है कि अन्य राज्यों के डेढ़ लाख बच्चे यहां आकर शिक्षण ग्रहण कर रहे हैं।
कितना चुनौतीपूर्ण है आपके लिए इन मंत्रालयों को संभावना?
स्वास्थ्य व शिक्षा ऐसे विभाग हैं जिनमें 24 घंटे काम करना है। उत्तराखण्ड के लिए गर्व की बात है कि यहां एयर-एम्बुलेंस सेवा शुरू होने जा रही है। शीघ्र ही केंद्रीय मंत्री इसके उद्घाटन के लिए आने वाले हैं। हमने लगभग हर अस्पताल में आधुनिक चिकित्सा मशीनों की व्यवस्था की है। मेडिकल कॉलेज में कैथ लैब बना रहे हैं। विभाग दोनों चुनौतीपूर्ण हैं। चुनौतियां होंगी तो हमें काम करने का हौसला मिलता है। देखिए, शिक्षा विभाग में अध्यापकों की कमी थी। हमने लगभग 5 हजार गेस्ट फैकल्टी नियुक्त किए हैं। लगभग 15 सौ एल.टी. शिक्षक दो माह के अंदर मिल जाएंगे। 3 हजार प्राथमिक शिक्षक नियुक्त कर रहे हैं। मैं कह सकता हूं कि चुनौतीपूर्ण विभाग होते हुए भी हम लोग इसमें बखूबी से काम कर रहे हैं, इसमें जनता हमारी सहयोगी है।
सहकारिता के क्षेत्र में उत्तराखण्ड के अंदर भारी संभावनाएं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारिता के महत्व को समझते हुए सहकारिता का नया मंत्रालय बनाया। उत्तराखण्ड के सारे सहकारी बैंक कम्प्यूटरीकृत हो गए हैं। हम 10 लाख किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज पर ऋण उपलब्ध करा रहे हैं जो 1 लाख से लेकर 5 लाख तक है। आज हमारा लक्ष्य किसान की आय दोगुना करने का है। इसमें सहकारिता की भूमिका बड़ी है। उत्तराखण्ड देश का पहला राज्य है जहां कोऑपरेटिव क्षेत्र में महिलाओं की 33 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। अब महिलाएं अध्यक्ष, डायरेक्टर से लेकर प्रदेश की ‘अपेक्स बॉडी’ की चेयरमैन तक बन सकती है। हम किसानी को नई तकनीकों को सीखने के लिए अन्यराज्यों का निःशुल्क दौरा कराते हैं। भण्डारण के क्षेत्र में उत्तराखण्ड अच्छा काम कर रहा है। ‘अन्न श्री’ में हमने ‘मडुए’ की ब्रांडिग कर दी है। 40 रूपए प्रति किलो के हिसाब से हम किसान से सीधे मडुआ खरीद रहे हैं। प्रट्टाानमंत्री जी ने ‘अन्न श्री योजना’ में मडुए को शामिल किया है। हमने एक बड़ा काम और किया कि 5 हजार महिला समूहों को 5-5 लाख जीरो प्रतिशत ब्याज पर उपलब्ध करा रहे हैं ताकि वो कहीं भी काम कर सकें। जैसे मधुमक्खी पालन, डेयरी पशुपालन खेती का काम, औद्यानिकी, टेलरिंग, कताई बुनाई का काम कर वे स्वालंबी बन सकती हैं।
नई शिक्षा नीति (एनईपी- 2020) लागू करने की बात आप कह तो रहे हैं लेकिन लगता है कि ये अभी आधी-अधूरी ढंग से लागू हो पाई है? नई शिक्षा नीति तो ये भी कहती है कि शिक्षा का बजट जीडीपी का 6 प्रतिशत होना चाहिए लेकिन हमने देखा कि ये जीडीपी का 3 प्रतिशत भी नहीं है। कम बजट में इसका क्रियान्वयन कैसे संभव है?
अंगीकार कर लिया है। 2030 तक एनईपी-2020 के अंतर्गत भारत सरकार की जो परिकल्पनाएं होंगी उससे पहले ही हम सब चीजें कर चुके होंगे। एनईपी-2020 कहती है कि बस्ते का बोझ कम होगा, हमने कर दिया। एनईपी-2020 कहती है कि अपनी मातृभाषा में पढ़ाई होनी चाहिए, अपने राज्य के महापुरुषां, विरासत और मेलों की किताबें पढ़ाई जानी चाहिए। बच्चे को च्वॉइस बेस शिक्षा देनी चाहिए, बच्चे को रोजगारपरक शिक्षा देनी चाहिए। एनईपी-2020 के जो भी कंपोनेंट थे उन्हें अंगीकार करने की दिशा में हमारी सरकार इस पर तेजी से काम कर रही है।
उत्तराखण्ड राज्य बनने के 24 वर्षों बाद भी हम उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था को एक व्यवस्थित रूप नहीं दे पाए, क्यों? क्या इसमें समग्र राजनीतिक दृष्किोण की कमी रही या फिर नौकरशाही के स्तर पर लापरवाही?
देखिए, हमारी सरकार आने के बाद हम आमूलचूल बदलाव लाने में सफल रहे हैं। हम हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाना चाहते हैं। हमने तय किया है कि अगर कहीं राज्य के स्कूल में एक भी बचा है तो हम एक अध्यापक वहां देंगे। हमें उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थितियों का भी मूल्यांकन करना होता है। मैं एक योजना लाया क्लस्टर विद्यालय की। कलस्टर स्कूल में हम बच्चे को हॉस्टल देंगे, अगर बच्चे को घर से ले जाना है तो 22 रूपये प्रति किमी. की दर से आने-जाने का खर्चा भी देंगे ताकि जहां उसकी पसंद होगी वहीं पढ़ाई करेगा। इस बार पूरे देश में देखने में आया है कि निजी विद्यालयों की ओर बच्चों का रूझान बढ़ा है। प्राइवेट स्कूल भी अपने ही हैं, वो भी हमारे पाठ्यक्रम पर ही चलते हैं। राज्य में हम धीरे-धीरे जब हम कलस्टर स्कूल लाए, अटल आदर्श स्कूल लाए, मॉडल स्कूल लाए, पीएम श्री स्कूल लाए तो बच्चे सरकारी स्कूलों की ओर बच्चों और अभिभावकों का रूझान बढ़ा है। अभी हमने 13 हॉस्टल खोले हैं। जिसमें हम अनाथ बच्चों, शिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों, विकलांग बच्चों को जिनकी संख्या 1400 होगी, मुफ्त दाखिला देंगे। उत्तराखण्ड पहला राज्य है जिसने अंत्मोदय के बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा लिया है। शिक्षा व्यवस्था को गुणवत्तापरक बनाने के लिए अटल आदर्श स्कूल, पीएम श्री स्कूल, मॉडल विद्यालय की आप बात करते हैं लेकिन अटल आदर्श स्कूल उसी कुव्यवस्था के शिकार हो गए।
सीबीएससी से संबद्ध अटल आदर्श विद्यालयों के 10वीं और 12वीं का परिक्षाफल 50 प्रतिशत के आस-पास रहा है। सरकार इस पर किसकी जवादेही तय करेगी?
जब हम राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों की तस्वीर देखते हैं तो इसमें सरकार की घोर लापरवाही नजर आती है। कई विद्यालय भवन की राह देख रहे हैं। 2016 के शासनादेश के अनुसार नवोदय विद्यालयों के लिए एक नियमावली बननी थी लेकिन 8 साल बीत जाने के बाद भी उस नियमावली का कोई पता नहीं। नैनीताल जिले के स्यात (कोटाबाग) में अव्यवस्थाओं के चलते जिस प्रकार 3 सौ से अधिक अभिभावक अपने बच्चों को ले गए उससे सरकार की छवि को धक्का लगा। क्या नया राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों जैसी आवासीय शिक्षण संस्थाओं के प्रति ये नीतिगत चूक है या प्रशासनिक चूक या फिर किसी प्रकार की राजनीतिक अरूचि?
देखिए, हमारे जो राजीव गांधी नवोदय विद्यालय हैं उनके लिए हम काम कर रहे है। जब से मैं शिक्षा मंत्री बना मैंने उत्तरकाशी के राजीव गांधी नवोदय विद्यालय के लिए 45 करोड़, रूद्रप्रयाग के लिए 45 करोड़ स्वीकृत किए। अभी तक वहां भवन नहीं थे। राजीव गांधी नवोदय विद्यालय की नियमावली गतिमान है। हम डाइट और नवोदय विद्यालय दोनों की नियमावली बनवा रहे हैं। हम सबसे विचार विमर्श कर इसे बना रहे हैं। मुझे यकीन है कि ये जल्द ही धरातल पर आ जाएगी।
इंटर और हाईस्कूलों में प्रधानाचार्यो की सीधी भर्ती के विरोध में शिक्षक आंदोलनरत हैं आखिर सरकार व शिक्षकों के बीच टकराव का क्या कारण है?
अशासकीय माध्यमिक और महाविद्यालयों में काफी समय से या तो शिक्षको की भर्ती नहीं हुई या फिर भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भर्तियों पर रोक लगा दी गई। अशासकीय शिक्षण संस्थाओं के लिए सरकार स्पष्ट नीति क्यों नहीं बना पाई अब तक?
अशासकीय महाविद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में नियुक्ति के लिए हम एक नीति बना रहे हैं। मैंने विधानसभा में भी कहा है कि इसमें काफी काम हो रहा है। हमारा प्रयास है कि इन विद्यालयों में नियुक्तियां आयोग के माध्यम से की जाए। इससे योग्य शिक्षक मिलने के साथ भ्रष्टाचार की जो चर्चाएं रहती हैं वो भी खत्म हो जाएगी।
सरकार के दावों के विपरीत अक्सर देखने में आता है कि सुदूर ग्रामीण इलाकों से मरीजों को डॉक्टर के अभाव में मीलों चलकर मरीज को शहरों में लाया जाता है। खासकर पहाड़ों में। कहीं डॉक्टर महीनों गायब रहते हैं। एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड की मशीनें रेडियोलॉजिस्ट के अभाव में बंद पड़ी हैं ऐसे में उपकरण उपल्बध कराने का क्या फायदा जब सरकारें उनके संचालन की ही व्यवस्था नहीं कर पा रही हैं?
मैं बार-बार कह रहा हूं उत्तराखण्ड में डॉक्टरों की कमी नहीं है। नीति से लेकर त्यूनी तक, बलुवाकोट से लेकर मुनस्यारी तक हमने डॉक्टर नियुक्त किए हैं। हां विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी मैं स्वीकार करता हूं। अभी तक विशेषज्ञ डॉक्टर 60 साल में रिटायर हो जाते थे हमने रिटायरमेंट की आयु सीमा बढ़ाकर 65 वर्ष कर दी है। अब 5 साल तक कोई डॉक्टर रिटायर नहीं होगा इन पांच वर्षों में जो पीजी करके डॉक्टर निकलेंगे उनसे एक हद तक आने वाले समय में विशेषज्ञ डॉक्टरों की समस्या हल हो जाएगी। जहां तक अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों की बात है अब आईपीएचएस मानकों के अनुसार तय किया जा रहा है कि अल्ट्रासाउंड व अन्य मशीनं किन अस्पतालों में लगेंगी और कहां रेडियोलॉजिस्ट देने हैं। हर प्रकार की व्यवस्था जा रही है। आज उत्तराखण्ड में जन्म -मृत्यु दर अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है। हमारा मानक अच्छा है पूरे भारत में।
मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी छोड़ कर जा रही हैं। ऐसे में आप अच्छे डॉक्टर्स कैसे दे पाएंगे? कई बार इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मानकों को पूरा दिखाने के लिए लीपापोती तक करनी पड़ती है?
उत्तराखण्ड सरकार ने अभी हाल ही में अस्थाई कर्मचारियों के विनियमितिकरण की बात कही है। आपके मेडिकल और शिक्षा विभाग में भी काफी अस्थाई कर्मचारी हैं, खासकर उपनल के माध्यम से तो क्या इसमें उपनल कर्मचारी भी शामिल होंगे?
पंडित नारायण दत्त तिवारी के पांच साल के कार्यकाल को छोड़ दें तो उत्तराखण्ड राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा। 2007 में खण्डूड़ी, निशंक, खण्डूड़ी, 2012 में विजय बहुगुणा, हरीश रावत, 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत फिर पुष्कर सिंह धामी। अब इस बार भी बदलाव की आवाज गाहे बगाहे सुनाई देने लगी हैं। आप इन सब के पीछे क्या कारण देखते हैं?
आज मैं कह सकता हूं कि प्रदेश में राजनीतिक स्थिरता जैसी कोई बात नहीं है। राज्य राजनीतिक स्थिरता की ओर बढ़ चुका है। 2022 में पहली बार ऐसा हुआ कि उत्तराखण्ड की जनता ने मिथक तोड़ते हुए किसी सरकार को दोबारा चुना। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार अच्छा कार्य कर रही है। हम सामूहिक रूप से लगातार काम कर रहे है। उत्तराखण्ड हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। अस्थिरता का तो कोई मतलब ही नहीं।
2021 में त्रिवेंद्र सिंह रावत के हटने के बाद मुख्यमंत्री के नाम पर आपकी काफी चर्चा थी लेकिन पहले तीरथ सिंह रावत फिर पुष्कर सिंह धामी बाजी मार ले गए। 2022 में आप फिर पिछड़ गए। इस बार फिर चर्चाओं का बाजार गर्म है नेतृत्व परिवर्तन की दशा में आपका दावा कितना मजबूत है?
मैंने आपको दो टूक कह दिया कि हमारे राज्य में 100 प्रतिशत स्थिरता है नेतृत्व का कोई संकट नहीं है। जो इधर-उधर की बातें करते हैं उसकी कोई गुंजाइश नहीं है। जहां तक मेरा प्रश्न मैं भाजपा का एक सामान्य कार्यकर्ता हूं। पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया है। उत्तराखण्ड भाजपा में संगठन मंत्री, प्रदेश महामंत्री, प्रदेश उपाध्यक्ष से आज सरकार में मंत्री हूं। पार्टी ने मुझ जैसे कार्यकर्ता को इस जगह तक पहुंचाया जो बहुत बड़ी बात है।
क्या आपको लगता है कि आप राज्य का मुखिया होने के स्वाभाविक दावेदार थे लेकिन हाईकमान संस्कृति और पैरोकार संस्कृति के चलते आपका दावा कमजोर हो गया?
ऐसा नहीं है। भाजपा ही एक मात्र पार्टी है जहां एक सामान्य कार्यकर्ता विधायक, सांसद का प्रत्याशी बन सकता है। भाजपा में आंतरिक लोकतंत्र है, सामूहिक नेतृत्व है। हमारे उच्च नेतृत्व के पास कार्यकर्ता की क्षमता को पहचानने और उसे दायित्व देने का भी सुख है। भाजपा ऐसा दल है जिसमें कार्यकर्ता को उसकी क्षमता और कार्य अनुरूप उचित सम्मान मिलता है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था अब भारतीय जनता पार्टी स्वयं में इतनी सक्षम है कि उसे आरएसएस की उतनी जरूरत नहीं है क्या वाकई में भाजपा को संघ की अब आवश्यकता नहीं है?
हम सबकी पृष्ठभूमि संघ है और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हमें जो संस्कार दिए हैं उसके कारण ही हम आगे बढ़े हैं। संघ से हमारा नाता अटूट है और आज हम संघ के कारण यहां तक पहुंचे हैं। मैं निश्चित रूप से स्वीकार करता हूं कि संघ की बड़ी भूमिका है। हम सामूहिक विषयों पर देखें जो संघ ने देश के लिए आगे बढ़ाए वो आज भी प्रासंगिक हैं। हम राम मंदिर निर्माण की बात करें, ट्टाारा-370 की बात करें, इसके पीछे संघ की ही वैचारिक पृष्ठभूमि ही है। संघ है तो हम सब आगे बढ़े है।
हम उत्तराखण्ड में डबल इंजन की सरकार, जीरो टॉलरेंस की सरकार के दावे बहुत सुनते हैं। लेकिन आए दिन भ्रष्टाचार के नये मामले खुलकर सामने आ रहे हैं विजिलेंस के छापे में सरकारी कर्मचारी रिश्वत लेते पकड़े जा रहे हैं, आम जनता में धारणा बनती जा रही है कि ऊपर से नीचे तक सरकार का कोई भी विभाग भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है। आखिर ढ़ाई साल में ही सरकार की छवि इतनी दरक कैसे गई?
इस बीच जब प्रदेश में बदलाव की चर्चाओं का दौर चल रहा था तब कुछ लोगों ने कुमाऊं-गढ़वाल का पुट इसमें डाल दिया। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए ऐसे क्षेत्रवाद की बात भड़काना क्या उचित है वो भी तब जब हम उत्तराखण्ड के 24वें साल में चल रहे हैं?
सड़क दुर्घटना के आंकड़े देखें तों 2022 में 4 लाख 61 हजार 312 सड़क दुर्घटनाएं हुई इनमें 62 हजार मृत्यु हुई। पूरे भारत वर्ष में जान जोखिम वाली दुर्घटनाएं 34 प्रतिशत थी और इनकी घातकता 36.5 प्रतिशत थी हम उत्तराखण्ड की बात करें तो यहां 51 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं जान-जोखिम वाली थी जिनकी घातकता 62 प्रतिशत से अधिक थी। सवाल ये है कि एक्सीडेंट वाले कितने ब्लैक स्पॉट चिन्हित किए गए। उनको सुधारने का क्या काम किया गया? कितनी एम्बुलेंस उन ब्लैक स्पॉट पर रहती हैं। सड़क दुर्घटना रोकने के लिए हाईवे अथॉरिटी, स्वास्थय विभाग और पुलिस विभाग को काम करना होता है क्या ऐसा कोई एकीकृत अभियान था कार्ययोजना सरकार द्वारा बनाई गई है सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए?