मासिक धर्म तमाम वर्जनाओं व मिथकों से घिरा हुआ है। जिसके चलते महिलाओं को सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में अलग होने के लिए विवश होना पड़ता है। इसे अशुद्धता व कई मिथकों के साथ जोड़ा जाता है। इस दौरान महिलाओं को शारीरिक रूप से खराब सुरक्षा का इस्तेमाल होने के लिए विवश होना पड़ता है। मासिक धर्म के दौरान महिलाएं पूजा स्थल में प्रवेश नहीं कर सकतीं। रसोईघर में नहीं जा सकती। पवित्र चीजों को नहीं छू सकती।
भारतीय समाज कितने पाखंड़ों से घिरा हुआ है, इसका एक प्रमाण यह भी है कि अधिकांश मंदिरों में महिला पुजारी नहीं हो सकती। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि महिलाओं का शरीर अपवित्र होता है क्योंकि उन्हें मासिक धर्म होता है। अब सवाल यह उठता है कि अगर महिला का शरीर अपवित्र है तो उस अपवित्र शरीर से पैदा होने वाला पुरुष कैसे पवित्र हो गया? और उसे मंदिर का पुजारी बनने का अधिकार कैसे प्राप्त हो गया? यही नहीं सैकड़ों दैवियों के मंदिरों में जहां की सबसे अधिक श्रद्धालु भी महिलाएं ही होती हैं, वहां भी महिला पुजारी नहीं होती? विज्ञान व तकनीक के इस युग में आज भी एक नहीं कई तरह की कुरीतियां, पाखंड व अंधविश्वास व्याप्त हैं। आज भी नरबलि व पशु बलि की घटनाएं सामने आती रही हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि इसे मानने में महिलाएं ही आगे रहती हैं।
आज भी समाज में कई बातें मनगढंत व्याख्याओं से चलती हैं। अक्सर हर बात को ईश्वर से जोड़ दिया जाता है ताकि उसकी आलोचना करने से लोग डरें। ऐसे में डॉ पीताम्बर अवस्थी जो लंबे समय से पशुबलि प्रथा जैसी कुप्रथाओं के खिलाफ अभियान चलाते रहे हैं, उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से मासिक धर्म जैसे विषय पर कलम चलाकर लंबे समय से चली आ रही वर्जनाओं को तोड़ने का काम किया है। निश्चित तौर पर मंजुला अवस्थी व डॉ. पीताम्बर अवस्थी द्वारा लिखित इस पुस्तक में जहां कई सवाल खड़े किए गए हैं वहीं इन समस्याओं से बचने के उपाय भी बताए गए हैं। यह एक महत्वपूर्ण विषय पर महत्वपूर्ण पुस्तक कही जा सकती है। पुस्तक में पृष्ठभूमि सहित सात अलग-अलग विषयों में पुस्तक विभक्त है। जिसमें मासिक धर्म अपवित्र क्यों? क्या है मासिक धर्म, गर्भकाल में कैसे दें शिशु को संस्कार, एक दूसरे के पूरक बने, बदलती नारी की छवि, बात है तो दूर तक जाएगी, जैसे शीर्षकों के माध्यम से इस विषय को समझने व समझाने की कोशिश की गई है।