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उत्तराखण्ड विधानसभा ने 2007 में प्रदेश के लिए नया भू-अध्यादेश अधिनियम पारित किया जो जमीन की खरीद-फरोख्त को नियंत्रित करने की दृष्टि से तैयार किया गया था। तब सरकार का दावा था कि इस नए कानून के बाद पहाड़ की जमीन उत्तराखण्ड मूल के नागरिकों को छोड़ अन्य किसी के लिए खरीदना लगभग असंभव है। देश का कोई भी नागरिक घर बनाने लायक सवा नाली जमीन तो उत्तराखण्ड में खरीद सकता है लेकिन अमीरों के ऐशगाह में तब्दील होते पहाड़ों में अनाप-शनाप जमीन खरीदना संभव नहीं है। बावजूद इसके प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर पहाड़ों की नैसर्गिक सुंदरता का दोहन जमकर करते रहे हैं। दशकों से पहाड़ियों की जमीन पर बाहरियों का कब्जा बेरोक-टोक जारी है। अल्मोड़ा जिले में दिल्ली के एक वरिष्ठ प्रसाशनिक अधिकारी एवी प्रेमनाथ और उनकी पत्नी आशा यादव ने अपने एनजीओ ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ के माध्यम से भारी फर्जीवाड़ा कर सीधे-सीधे कानून को ही चुनौती दे दी थी। मैणी में सैकड़ों नाली जमीन फर्जी तरीके से खरीदने के साथ ही टाडा-कांडा गांव में सरकारी जमीन को नियम विरुद्ध कब्जाने के मामलों में यह दंपति अपने छल और प्रपंच के सहारे बचता आ रहा। जब भी किसी अधिकारी ने निष्पक्ष जांच की तो प्रेमनाथ ने उसे फर्जी मामलों में फंसाकर कानूनी गिरफ्त से बच निकलने की असफल कोशिश की। लेकिन अब सरकार के शिकंजे से उसका बच निकलना संभव नहीं है। मैणी गांव की 100 नाली जमीन सरकार में निहित होने के बाद अब टाडा-कांडा की बारी है

 

A.V. Premnath

‘अब हाशिये की तरफ रुख करने लगे हैं कुछ हाशियानशीन,
यकीनन ये जमीनी जहाज अब जमीन में ही डूबने वाला है।’


देवभूमि उत्तराखण्ड में झूठ-फरेब के बल पर अपना साम्राज्य खड़ा करने वाले एक ऐसे ही अधिकारी पर आजकल यह शायरी सटीक बैठती नजर आ रही है। यह अधिकारी कोई और नहीं बल्कि दिल्ली सचिवालय में तैनात संयुक्त सचिव एवी प्रेमनाथ है। वही प्रेमनाथ जिसने अल्मोड़ा जिले के डाडा काड़ा और मैणी गांव में छल, कपट पर प्लीजेंट वैली फाउंडेशन के माध्यम से प्रपंच रचा। फर्जी तरीके से सैकड़ो नाली जमीन खरीदी और सरकारी जमीन पर एनजीओ की बेसकीमती इमारत खड़ी कर दी। कहते हैं कि देर है अंधेर नहीं। एक मामले में पहले ही 100 नाली जमीन सरकार में निहित हो जाने के बाद अब प्रेमनाथ पर सरकार अगला शिकंजा कसने की तैयारी में है। जल्द ही उनके डाडा काड़ा में स्थित संपत्ति को भी सरकार में निहित किया जा सकता है। पिछले एक दशक के अधिक समय तक अपनी पत्नी को जेल जाने से बचाने में लगे यह अधिकारी फिलहाल एनजीओ को ही किसी और के हवाले कर बच निकलने की फिराक में है।

प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा कब्जाई गई जमीन को राज्य सरकार में निहित करने की प्रक्रिया शुरू


पिछले दो दशक के इतिहास में उत्तराखण्ड राज्य में भ्रष्टाचार से जुड़े सैकड़ों मामले प्रकाश में आए हैं। इनमें कांग्रेस सरकार के घोटालों के अर्द्धशतक के साथ ही भाजपा की खनन नीति से लेकर ऋषिकेश के सिटूरजिया जमीन घोटाला तक शामिल हैं। मंत्रियों आईएएस, पीसीएस और डेप्युटेशन पर आए अधिकारियों में से अधिकतर ने जमकर प्रदेश को विभिन्न तरीकों से लूटा और चलते बने। लेकिन प्लीजेंट वैली फाउंडेशन और उसके कर्ताधर्ता एवी प्रेमनाथ तथा उनकी पत्नी आशा यादव का मामला इन सबसे इतर है। भाजपा सरकार ने उत्तराखण्ड में जमीनों की अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर रोक लगाने के उद्देश्य से भू- अधिनियम लागू किया था। जिसमें बाहरी लोग केवल सवा नाली ही जमीन उत्तराखण्ड में खरीद सकते हैं। ऐसा नहीं है कि इस नियम के लागू होने से जमीनों के विक्रय पर रोक नहीं लगी, लेकिन उत्तराखण्ड सरकार के कायदे-कानूनों के साथ एक भद्दा खेल भी शुरू हुआ। यह खेल खेलने वाली महिला आशा यादव है। जिसने बड़ी चालाकी से जून स्टेट गांव की खतोनी में फर्जी तरीके से फेरबदल कर लिया। उसके बाद खतोनी में अपना नाम चढ़वाकर वहां अपनी जमीन लिखा दी। उसी खतोनी को दिखाकर अल्मोड़ा के पटवारी क्षेत्र हवालबाग के मैणी गांव में जमीन भी खरीद ली। जमीन भी एक दो नहीं पूरी 100 नाली थी। जबकि बाहरी व्यक्ति उत्तराखण्ड में सवा नाली से अधिक एक इंच जमीन नहीं खरीद सकता। सबसे पहले 20 जून 2010 ‘दि संडे पोस्ट’ ने ‘जमीन की लूट’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की थी। इसमें बताया गया कि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले की मजखाली तहसील के टाडा कांडा गांव में ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ के नाम पर स्थानीय लोगों की पुश्तों से चली आ रही जमीन को हथियाने के प्रयास किए जा रहे हैं। रपट में फाउंडेशन द्वारा स्कूल के नाम पर आलीशान भवन निर्माण, बेनाप भूमि पर कब्जा, वन विभाग की जमीन पर अवैध सड़क निर्माण, पेड़ों के कटान और उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने के मामलों को अपनी खोजी खबरों के माध्यम से सामने लाया गया।


‘दि संडे पोस्ट’ ने 29 अगस्त 2010 के अंक में ‘आखिर कौन है आशा यादव!’ नामक समाचार प्रकाशित किया था। जिसमें ‘पहाड़ी जमीन बाहरियों ने लूटी’ शृंखला के तहत आशा यादव नामक एक ऐसी महिला का पर्दाफाश किया गया था जिसने फर्जी खसरा-खतोनी के दम पर 100 नाली जमीन अल्मोड़ा जिले में मैणी गांव में खरीद ली थी। आशा यादव ने अपने आपको छोटी मुखानी हल्द्वानी का निवासी बताते हुए नैनीताल जिले के जून स्टेट के राजस्व अभिलेखों में फर्जी तरीके से अपनी जमीन दर्शा दी थी। फिर इन्हीं फर्जी दस्तावेजों के सहारे उसने अपने आपको उत्तराखण्ड का मूल निवासी सिद्ध कर सौ नाली जमीन खरीद डाली। जबकि बाहरी होने के नाते वह उत्तराखण्ड में भू- अध्यादेश कानून के चलते महज सवा नाली जमीन ही खरीद पाती।
भाजपा सरकार ने जब 2007 में प्रदेश में भू- अध्यादेश अधिनियम लागू किया तो उसमें एक एक्ट ऐसे लोगों के लिए भी बनाया गया जो फर्जी तरीके से वहां जमीन खरीद लेते हैं जिस तरह से अल्मोड़ा जिले के मैणी गांव में आशा यादव ने जमीन खरीदी, वह अधिनियम के कानूनों के विपरीत है। ऐसे लोगों के लिए शासनादेश 2003 के 154 में पैरा तीन और चार में जमींदारी उन्मूलन एक्ट के अधिनियम अध्यादेश की संख्या 167 में स्पष्ट दर्ज है कि ऐसी फर्जी नाम से ली गई जमीन राज्य सरकार में निहित कर दी जाएगी। इसी के साथ फर्जी तरीके से जमीन खरीदने वाले लोगों पर आरोप सिद्ध होने पर उसके खिलाफ धारा 419, 420, 170, 171 के तहत भी मामला दर्ज कराया जाएगा। यही नहीं बल्कि उन अधिकारियों को भी दंड दिए जाने का प्रावधान है जिनकी जांच के बाद रजिस्ट्री की गई। रजिस्ट्री का बेनामा करते समय बिना जांच पड़ताल किए ही कैसे यह फर्जीवाड़ा हुआ इसका भी उत्तरदायित्व राजस्व अधिकारियों पर है। इस मामले की जांच की गई। जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि नैनीताल के जून स्टेट गांव की जमीन मालिकों में कुमारी आशा यादव नाम की कोई महिला है ही नहीं।


29 अगस्त 2010 को प्रकाशित समाचार में बताया गया कि आशा यादव नाम की महिला ने सौ नाली जमीन मैणी, हवालबाग तहसील में खरीदी है यह आशा यादव और कोई नहीं बल्कि ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ की संचालिका आशा प्रेमनाथ हैं जो कि एवी प्रेम नाथ की पत्नी हैं। इन आशा प्रेमनाथ उर्फ आशा यादव ने फर्जी खसरा, खतौनी के जरिए खुद को उत्तराखण्ड का मूल निवासी बताते हुए यह जमीन खरीदी है। समाचार में प्रस्तुत तथ्य सही पाए गए और शासन ने इस जमीन की खरीद को खारिज कर उसके अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी। जांच में पाया गया कि इस जमीन की खरीद के लिए प्रस्तुत पता व खतौनी दोनों गलत हैं कि मूल खतौनी में छेड़छाड़ कर भूमिधर का नाम हटाकर आशा यादव का नाम लिख दिया गया है। आशा यादव पूरी कार्रवाई के दौरान प्रकट नहीं हुईं तो शासन द्वारा उपयुक्त कार्रवाई करते हुए 2011 में उपरोक्त भूमि को सरकार में निहित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। वर्ष 2013 में अल्मोड़ा कोतवाली में धोखाधड़ी के इस मामले में आशा यादव के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 के तहत मुकदमा पंजीकृत हुआ था। जिसके बाद पूरे मामले की सुनवाई अभिषेक कुमार श्रीवास्तव सिविल जज सीनियर डिवीजन की कोर्ट में चली। 15 जनवरी 2021 को सह अभियुक्त चंद्र मोहन सेठी के कनाडा जाने के कारण उनका नाम पत्रावली से अलग करने के आदेश दिए गए और आरोपी आशा यादव के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया।

 


गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपित आशा यादव ने अपने पति एवी प्रेमनाथ और कुसुम यादव उर्फ चौधरी के साथ मिलकर सिविल जज सीनियर डिवीजन अभिषेक कुमार श्रीवास्तव के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में शपथ पत्र दाखिल किया। जिसमें कहा गया कि जज अभिषेक श्रीवास्तव व उनके परिजनों को आरोपित चंद्र मोहन सेठी दिल्ली आदि स्थानों में ले गए। जिसके बाद उनका नाम फाइल से हटा दिया गया और आशा यादव के खिलाफ वारंट जारी कर दिया। जनवरी 2021 में आशा यादव और उनको जमीन बेचने वाले चन्द्रमोहन सेठी की फाइल को इस आधार पर अलग किया गया कि सेठी फिलहाल कनाडा में हैं और आशा यादव के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने पूरे मामले का संज्ञान लेते हुए सिविल जज सीनियर डिविजन अभिषेक कुमार श्रीवास्तव को अल्मोड़ा से निलंबित कर देहरादून अटैच कर दिया। मामले की पूरी जांच विजिलेंस को सौंप दी गई। इसके बाद कुसुम चौधरी के नाम से न्यायालय को गुमराह करने की कोशिश की गई। न्यायाधीश अभिषेक श्रीवास्तव के खिलाफ हाई कोर्ट को झांसे में लेने की कोशिश का विजिलेंस विभाग द्वारा पर्दाफाश किए जाने के बाद प्रेमनाथ ने विजिलेंस के ही जांच अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।


संस्था के साथ सरकार की शर्त नं. 9 में इस तरह हुआ उल्लंघन


प्रेमनाथ के इस फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हाईकोर्ट उत्तराखण्ड की विजिलेंस जांच से सामने आ गया। इस जांच रिपोर्ट में विजिलेंस पुलिस ने जज अभिषेक श्रीवास्तव के खिलाफ लिखी गई फर्जी शिकायतों का मास्टर माइंड एवी प्रेमनाथ को करार दिया है। रिपोर्ट सामने आने के बाद प्रेमनाथ और उसकी पत्नी आशा प्रेमनाथ पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जा चुका है और दोनों के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया है। हाल फिलहाल दोनों ने इस वारंट पर उच्च न्यायालय से स्टे ले लिया है।
मैणी के बाद अब डाडा काड़ा में होगी कार्रवाही ‘दि संडे पोस्ट’ में प्रकाशित समाचारों और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी की शिकायत के बाद अल्मोड़ा के तत्कालीन जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल द्वारा एडीएम राजीव शाह की अध्यक्षता में 2011 में एक जांच टीम का गठन किया गया। जांच टीम ने जो अपनी जांच की उसके अनुसार जांच संख्या 2173 स्वयं सेवी संस्था प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा क्रयशुदा भूमि के अतिरिक्त राज्य सरकार की आरक्षित वन भूमि की श्रेणी/परिधि वाली भूमि 0.911 हेक्टेयर भूमि में अवैध रूप से अतिक्रमण किया गया है। इस संस्था द्वारा उक्त क्षेत्र में चार बड़े भवनों और ब्लॉकों का निर्माण किया गया है। जिसमें से एक बड़ा भवन पूर्ण रूप से राज्य सरकार की भूमि में निर्मित किया गया है। जांच संख्या 2173 बिंदु संख्या 8 में प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा राज्य सरकार की भूमि आरक्षित वन श्रेणी की परिधि वाली भूमि में किए गए अतिक्रमण के संबंध में पटवारी द्वारा चालान किया गया है। हालाँकि राज्य सरकार की भूमि में 30 चीड़ के वृक्षों के क्षतिग्रस्त होने के संबंध में क्षेत्रीय पटवारी अथवा वन विभाग द्वारा वृक्षों के अवैध कटान पर भारतीय दंड सहिता एवं वन अधिनियम के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए थी जो नहीं की गई। संस्था के विरुद्ध तीन चालानी रिपोर्ट की गई। जिसमे पहली सरकारी जमीन से कच्चे रोड का निर्माण करने पर। दूसरी सरकारी जमीन पर कच्ची सड़क, फील्ड, मकान, पानी की टंकी निर्माण करने संबंधित थी। जबकि तीसरी रिपोर्ट कच्ची रोड, भवन निर्माण, दीवालबंदी फील्ड तथा 30 वृक्षों को मलबे से दबाकर क्षति पहुंचाने के संबंध में दर्ज की गई। तत्कालीन अपर जिला अधिकारी राजीव शाह ने अपनी जांच संख्या 2173 के बिंदु संख्या 9 में संस्था द्वारा अपनी क्रय शुदा भूमि का कोई सीमाकंन नहीं किया जाने और क्रेता द्वारा प्रस्तावित भूमि के अतिरिक्त राज्य सरकार की भूमि में कब्जा किए जाने की पुष्टि की थी। तब उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया कि समिति के नियमों में अपर सचिव उत्तराखण्ड की शर्तों के अंतर्गत स्कूल एवं हॉस्टल के निर्माण के लिए भूमि क्रय करने की अनुमति प्रदान की गई है जिसमें शर्त संख्या 9 का उल्लंघन हुआ है।


शर्त संख्या 9 के अनुसार शासनादेश संख्या 1340, 182008 के तहत यह तय हुआ था कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन को
चेरिटेबल स्कूल और हॉस्टल निर्माण के लिए 2 हेक्टेयर भूमि क्रय करने की अनुमति दी गई थी इसी के साथ यह भी तय हुआ था कि सार्वजनिक उपयोग की भूमि या अन्य कोई भूमि पर कब्जा न हो इसके लिए भूमि क्रय के तत्काल बाद उसका सीमांकन कर लिया जाए। लेकिन प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा इस शर्त के वर्षों बीत जाने के बाद भी पालन नहीं किया। इसके पीछे फाउंडेशन के मालिकों की मंशा सरकारी जमीन को कब्जाने की थी। क्योंकि अगर जमींन खरीद लेने के तुरंत बाद ही उसका सीमांकन कर लिया जाता तो फिर अवैध कब्जे होने की संभावना खत्म हो जाती। तब एडीएम शाह ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि ऐसी स्थिति में प्रश्नगत प्रकरण ने संबंधित भूमि के शासन द्वारा क्रय किए जाने की स्वीकृति को निरस्त किए जाने की पुष्टि के साथ ही शासन द्वारा स्वीकृति निरस्त करने की अनुमति प्राप्त होने उपरांत भूमि को राज्य सरकार में निहित करने की कार्यवाही किए जाने की संस्तुति की जाती है। जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल की जांच संख्या 1420, दिनांक 4 मई 2011 यह प्रकरण में धोखाधड़ी से भूमि क्रय करने की दशा में आपराधिक मामला दर्ज किया जाना और फर्जी तौर पर भूमि को क्रय कर नामांकन की कार्यवाही करने पर उत्तर प्रदेश जमीदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 167 के अंतर्गत उक्त क्रय की गई भूमि राज्य सरकार के पक्ष में निहित करने का प्रकरण बनता है। इसके बाद प्लीजेंट वैली फाउंडेशन द्वारा किए गए कारनामों की जांच तत्कालीन उपजिलाधिकारी सीमा विश्वकर्मा के द्वारा 15 अप्रेल 2020 को की गई। इस जांच में भी प्लीजेंट वैली पर सरकारी जमीन कब्जाने की पुष्टि की गई है। इस मामले को लेकर लगातार आंदोलन करते रहे वरिष्ठ अधिवक्ता और उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी की मांग पर दो साल बाद एक बार फिर इसी संबंध में जांच के आदेश हुए। जांच संख्या 615 के तहत अल्मोड़ा के एसडीएम गोपाल सिंह चौहान ने 11 मार्च 2022 को जो अपनी जांच रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपी है। उसमें भी शर्त संख्या 9 का पालन नहीं किए जाने की पुष्टि की गई है। चौहान की जांच रिपोर्ट में वर्तमान स्थिति को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है कि उक्त संस्था द्वारा अभी भी अपना सीमांकन नहीं किया गया है। फिलहाल एक कब्जे को उन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में सरकार में निहित होना बताया है जबकि तीन अन्य मामलों में अभी भी यथा स्थिति है। यानी कि संस्था द्वारा सरकारी जमीन पर अभी भी प्लीजेंट वैली फाउंडेशन का कब्जा बरकरार है। फिलहाल 13 जुलाई 2020 को एसडीएम गोपाल सिंह चौहान द्वारा अपने एक आदेश में संस्था को नोटिस देते हुए कार्रवाही करने के संकेत दे दिए है। जिनमें चौहान ने स्पष्ट कहा है कि धारा 167 के तहत कब्जे वाली वह जमीन जिस पर जो भी निर्माणाधीन है उसे क्यों ना राज्य सरकार में निहित समझा जाए।


प्लीजेंट वैली फाउंडेशन मामले में जल्द ही फैसला हो जाएगा। जिन तीन अवैध कब्जां पर मामले चल रहे हैं उनमें भी अब स्थिति काफी स्पष्ट हो चुकी है। पहले यह मामले प्लीजेंट वैली फाउंडेशन की जमीन के विक्रेता चंद्र मोहन सेठी तथा संस्था के अधिकृत्य सदस्य और मैनेजर रहे गोपाल सिंह बिष्ट के नाम से चल रहे थे, लेकिन फिलहाल वह संस्था से अलग हो चुके हैं। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि प्लीजेंट वैली फाउंडेशन से अब उनका कोई संबंध नहीं रह गया है। ऐसे में इस संस्था के मुख्य कर्ताधर्ता पर कार्यवाही होना तय है। एवी प्रेमनाथ का बचना मुश्किल है। रही बात एनजीओ को दूसरे के नाम करके अपने आपको बचाने की तो वह सोसायटी एक्ट के अंतर्गत हो नहीं सकता है।
गोपाल सिंह चौहान, उपजिलाधिकारी अल्मोड़ा

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