भाजपा संगठन सरकार के सम्मुख बौना दिखाई दिया। अनुशासन के लिए जानी जाती रही भाजपा के बड़े नेताओं ने पार्टी पर कलंक लगाने में भी संकोच नहीं किया
भाजपा संगठन की बात करें तो पूरे साल पार्टी पर सरकार हावी रही है। हालांकि आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद उनको एक वर्ष का विस्तार दिया। लेकिन इस दौरान संगठन कोई खास काम कर पाया हो या सरकार को जनहित के विषयों पर कोई दिशा दे पाया हो, ऐसा दिखाई नहीं दिया। संगठन भी सरकार की तरह तमाम अंतर्विरोधों से घिरा दिखाई दिया। निकाय चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी नतीजों तक भाजपा में बड़ी खींचतान देखने को मिली। हालांकि भाजपा कांग्रेस से अधिक सीटें लाकर पहले स्थान पर रही, लेकिन जिस तरह से निर्दलियों ने बड़ी तादात में नगर निकायों में अपना दमखम दिखाया है, वह आने वाले समय में भाजपा संगठन के लिए एक बड़ी चुनौती है।
अजय भट्ट साल भर के अपने कार्यकाल में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर पाए। निकायों में टिकट बंटवारे में भट्ट के समक्ष कार्यकर्ताओं ने भारी रोष प्रकट किया। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के साथ विवाद सार्वजनिक हुए। इससे प्रदेश अध्यक्ष पर कई सवाल खड़े हुए हैं। कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के समय शराब घोटाले के दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग करने वाले भट्ट अपनी सरकार के मुखिया पर कोई दबाव नहीं बना पाए। हैरत की बात यह है कि निकाय चुनाव के दौरान अजय भट्ट के ऋषिकेश में शराब कारोबारी के साथ बैठक करने को लेकर सवाल खड़े हुए।
कैबिनेट में रिक्त दो पदों और दायित्वों के बंटवारे में भी सरकार पर संगठन कोई दबाब नहीं बना पाया। अब पौने दो साल के अतंराल के बाद महज 14 नेताओं को दायित्व मिल पाया है। अगर हाल के दायित्वों के बांटवारे को देखें तो इसमें संगठन को पीछे रखा गया है। तकरीबन सभी दायित्व मुख्यमंत्री के नजदीकी नेताओं को ही दिये गये हैं। भाजपा सूत्रां की मानें तो संगठन की सूची को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। अजय भट्ट और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के बीच मतभेद की खबरें सामने आती रही। गैरसैंण में सत्र के आयेजन को लेकर अजय भट्ट और मुख्यमंत्री के बीच बयानां के तीर खूब चले। भट्ट ने गैरसैंण में विधानसभा सत्र आयोजित न करने का बयान दिया तो मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया कि सत्र का आयोजन करना सरकार का काम है न कि संगठन का। इसके बाद अजय भट्ट ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुये बयान जारी किया कि जनता के बीच संगठन को ही जाना होता है। जनता के सवालों का जबाब भी संगठन को ही देना पड़ता है।
भाजपा संगठन के लिए वर्ष 2018 एक बड़े कंलक के तौर पर भी सामने आया है। प्रदेश महामंत्री (संगठन) संजय कुमार पर पार्टी की ही एक महिला कार्यकर्ता ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए। इस आरोप के बाद संजय कुमार को पद से हटना पड़ा। पूरे प्रकरण में महिला ने अजय भट्ट के अलावा भाजपा के कई बड़े नेताओं से शिकायत करने का दावा किया। यहां तक कि भाजपा महानगर देहरादून अध्यक्ष विनय गोयल को इस मामले की शिकायत करने के बावजूद उसको एक तरह से यौन उत्पीड़न सहने की सलाह तक दी गई। इससे साफ है कि भाजपा संगठन की ताकत कमजोर दिखाई दे रही है। संगठन एक महिला के उत्पीड़न पर चुप्पी साधे रहा।
भाजपा संगठन को अनुशासन का पर्याय माना जाता है, लेकिन हाल के दिनों में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर हमले करने के मामले भी सामने आये हैं। रायपुर थाने में जिस तरह भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा पुलिस की मौजूदगी में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से मारपीट की गई, वह साफ दिखाती है कि अब भाजपा संगठन में अनुशासन समाप्त हो रहा है। राफेल मामले में भी भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी के बड़े नेताओं के नेतृत्व में कांग्रेस भवन में हमला बोला। कांग्रेस भवन में पत्थरबाजी की, जबकि इस जुलूस में भाजपा के तमाम बड़े नेता भी शामिल थे।