बार-बार पेपर लीक की आग में सुलग रहे सूबे के बेरोजगारों का सब्र टूटा तो वे देहरादून की सड़कों पर उतरें। लाठी चार्ज हुआ तो विपक्ष को भी बैठे-बिठाए राजनीति करने का मौका मिला। इससे पहले कि मामला आगे बढ़े सीएम पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखण्ड में देश का सबसे सख्त नकल विरोधी कानून लागू कर नकल माफियाओं पर नकेल कसने की तरफ मजबूत कदम उठाया है। यह कानून गत 12 फरवरी को पहली अग्नि परीक्षा में पास हो चुका है। कहा जा रहा है कि अब पेपर लीक पर लॉक लगेगा
‘मेरे घरवाले कहते हैं कि इतने साल से तैयारी कर रहे हो लेकिन सरकारी नौकरी में सेलेक्शन नहीं हो रहा है। लेकिन घरवालों को हम कैसे समझाएं कि यह दोष हमारा नहीं मनहूस सिस्टम का है।’ यह कहना है रुद्रप्रयाग निवासी विजय सिंह नेगी का। नेगी पिछले कई सालों से सरकारी नौकरी के लिए निकल रही भर्तियों में आवेदन करते आ रहे हैं। लेकिन हर बार उनकी किस्मत में निराश होना लिखा है। इस साल की जब शुरुआत हुई तो वे लेखपाल की परीक्षा में उत्तीर्ण होने को पूरी तैयारी कर चुके थे। लेकिन परीक्षा के दिन 8 जनवरी को जब उन्हें पता चला कि यह पेपर भी लीक हो गया है तो उनके सपनों पर जैसे किसी ने डाका डाल दिया। पिछले तीन साल की ही बात करें तो यह पेपर लीक होने की तीसरी घटना थी। सबसे पहले 2021 में 13 विभागों में 916 पदों के लिए हुई परीक्षा में पेपर लीक हुआ। उसके बाद 2022 में 770 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा का पेपर लीक हुआ। लगातार हो रहे भर्ती घोटालों से सहमी राज्य सरकार ने 15 सितंबर 2022 को अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परिधि में शामिल 23 परीक्षाओं का जिम्मा उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग को दे दिया था। सरकार ने नकल विहीन परीक्षा कराने और परीक्षाओं में पारदर्शिता के लिए उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग को परीक्षाओं की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन जिस तरह से आयोग के अंदर से ही पटवारी पेपर लीक हुआ, उसके बाद अब आयोग की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है। हालांकि इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत मिलते ही प्रदेश सरकार ने न सिर्फ आयोग के एक कार्मिक को गिरफ्तार कर परीक्षा स्थगित कर दी, बल्कि उक्त परीक्षा की नई तिथि 12 फरवरी को घोषित कर परीक्षा देने वाले छात्रों को रोडवेज बसों में निःशुल्क पेपर देने हेतु आवागमन की व्यवस्था भी की। 12 फरवरी को यह परीक्षा प्रदेश के 498 केंद्रों पर सकुशल संपन्न भी हो गई है।
कई बार पेपर लीक होने के चलते सूबे के बेरोजगारों का आयोगों की कार्यप्रणाली पर से विश्वास चरमरा गया है। गत 9 फरवरी को बेरोजगारों का हुजूम देहरादून की सड़कों पर उमड़ गया। बेरोजगारों की संख्या का आकलन पुलिस का खुफिया तंत्र भी नहीं लगा सका। उमड़ी भीड़ को नियंत्रित करते समय हुए पुलिस के लाठीचार्ज ने जैसे आग में घी का काम किया। बेरोजगारों को सरकार के खिलाफ लामबंद करने में बेरोजगार संघ की भूमिका महत्वपूर्ण रही। जानकारी के अनुसार बेरोजगार संघ ने प्रदेश के युवाओं में एक सर्वे कराया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर जो सर्वे किया गया उसमें एक सवाल पूछा गया कि क्या 12 फरवरी को वर्तमान हालात में परीक्षा कराई जानी चाहिए? इस पोल में तीन विकल्प दिए गए थे। जिसमें पहले में ‘हां, हमें कोई समस्या नहीं है’ लिखा गया। इस विकल्प पर 10 प्रतिशत लोगों ने अपनी सहमति जताई। दूसरे में लिखा गया कि ‘पहले आयोग की जांच, नकल विरोधी कानून और नकलचियों के नाम सार्वजनिक हों, उसके बाद ही परीक्षा हो।’ तीसरे विकल्प में लिखा गया कि ‘हम दुविधा में हैं।’ इस विकल्प पर सिर्फ 6 प्रतिशत लोगों ने हामी भरी। इसमें सबसे ज्यादा दूसरा विकल्प लोगों ने पसंद किया। इस विकल्प में 84 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला था। इस सर्वे को ही आधार बनाकर बेरोजगार संघ ने प्रदेश के युवाओं को देहरादून में आह्नान किया। 8 फरवरी को युवाओं ने गांधी पार्क में धरना दिया था। तब इस दौरान इतनी भीड़ नहीं थी। लेकिन पुलिस ने जब आंदोलनकारी युवाओं को जबरन उठा दिया तो उसके बाद बेरोजगारों में चिंगारी भड़क उठी। आंदोलनकारी भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच कराने की मांग पर अड़े रहे। आंदोलनकारी और सरकार में बातचीत का दौर भी चला। जिसमें सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सीबीआई जांच की मांग को उत्तराखण्ड हाईकोर्ट अस्वीकार कर चुका है। हाईकोर्ट कह चुका है कि जांच सही दिशा में चल रही है, इसलिए इस प्रकरण की सीबीआई जांच नहीं कराई जा सकती। कहा गया कि आंदोलनकारी युवाओं की मांग थी कि पटवारी भर्ती का प्रश्नपत्र बदला जाए। आयोग पहले ही पुराने प्रश्न पत्र रद्द कर नए प्रश्नपत्र तैयार कर चुका है। परीक्षा नियंत्रक को भी हटाया जा चुका है। इसलिए अब आंदोलन का कोई औचित्य नहीं है। इस पर आंदोलनकारी अपनी सहमति भी जता चुके हैं।
फिलहाल, आयोग के सामने अब इस साल होने वाली 31 प्रतियोगी परीक्षाओं को सुरक्षित और पारदर्शी कराने की चुनौती भी है। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर नकल माफियाओं के खिलाफ एक्शन लगातार जारी है। एक और पिछले कुछ महीनों में नकल माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई में 60 से ज्यादा लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है वहीं दूसरी ओर प्रदेश में सख्त नकल विरोधी कानून के अध्यादेश को भी मुख्यमंत्री ने मंजूरी देकर अपनी सरकार की साफ नियत स्पष्ट कर दी है। देखा जाए तो पिछले डेढ़ सालों में धामी सरकार के सामने परीक्षा में धांधली संबंधित जो भी प्रकरण सामने आए उन पर ठोस कार्रवाई की गई। नकल विरोधी कानून के अस्तित्व में आ जाने के बाद प्रदेश में अब नकल माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई और भी सख्त तरीके से की जा सकेगी। मुख्यमंत्री धामी ने अब तक की कार्रवाई में अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया है। मुख्यमंत्री इस बात को बार-बार मंचों से कह चुके हैं कि ‘प्रदेश में नकल माफियाओं के दीमक का अंत तभी संभव है जब इसे जड़ से खत्म किया जाएगा।’
धामी सरकार के मुकाबले पुरानी सरकारों के कार्यकाल पर एक नजर डालें तो दिखेगा कि उनमें ऐसे मामलों पर जांच के नाम पर सिर्फ हिला-हवाली ही नजर आती थी। जब से उत्तराखण्ड राज्य का गठन हुआ तब से ही नकल और भर्ती माफिया सक्रिय रहा है। एनडी तिवारी सरकार में दरोगा भर्ती घोटाला, तकनीकी विवि भर्ती घोटाला, मंडी परिषद भर्ती घोटाला आदि हुआ। इसके बाद की भाजपा सरकार में आयुर्वेद चतुर्थ श्रेणी भर्ती घोटाला, जेई भर्ती घोटाला, यूपी, बिहार और दिल्ली के लोगों को जल निगम में नियम विरुद्ध भर्ती किया जाना सहित ऊर्जा निगम, यूजेवीएनएल की भर्ती आदि में फर्जीवाड़ा हुआ। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि उक्त किसी भी मामले में न कोई कार्रवाई हुई और न ही कोई जांच हुई। युवा साल दर साल ठगे चले आते रहे। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 2019 में नकल माफिया हाकम सिंह और उसके साथियों के खिलाफ मंगलौर थाने में मुकदमा दर्ज होता है, लेकिन जांच को रहस्यमय तरीके से बंद कर दिया जाता है। हाकम सिंह और उसके साथियों पर कोई कार्रवाई तक नहीं होती है। जुलाई 2022 के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के पहले कार्यकाल में इन तमाम फर्जीवाड़ों के खिलाफ कार्रवाई शुरू होती है। मुख्यमंत्री धामी ने राज्य के सरकारी महकमों की भर्ती सिस्टम को दीमक की तरह चाट रहे नकल माफिया के खिलाफ अभियान शुरू किया तो एक के बाद एक परत खुलती चली गई। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती में हुई गड़बड़ियों का सिलसिलेवार पर्दाफाश किया गया। इससे पहले विधानसभा भर्ती घोटाला, सहकारिता बैंक भर्ती घोटाला भी सामने आ चुका है। उत्तराखण्ड में सन् 2015-16 में हुई पुलिस उप निरीक्षक भर्ती मामले की जांच में संदिग्ध पाए गए 20 उप निरीक्षकों को निलंबित किया गया है। 50 से अधिक नकल माफिया को जेल भेजा गया। सभी नई पुरानी भर्तियों की जांच बैठाई गई। धामी सरकार ने यही सिलसिला लोक सेवा आयोग में भी जारी रखा। जहां भी भर्ती का फर्जीवाड़ा सामने आया, तत्काल कार्रवाई में देरी नहीं की। साथ ही लोक सेवा आयोग को तेजी के साथ भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के आदेश दिए।
बात अपनी-अपनी
हम किसी भी कीमत पर छात्रों का हित चाहते हैं। इसलिए जो सभी परीक्षाओं में गड़बड़ियां पाई गईं, राज्य सरकार ने उन्हें तत्काल रद्द कर दिया और नई तिथि घोषित की। अभ्यर्थियों को असुविधा न हो, इसके लिए उत्तराखण्ड परिवहन निगम की बसों में परीक्षा के लिए आने पर निशुल्क व्यवस्था की। परीक्षा शुल्क भी नहीं लिया गया। नकल अध्यादेश को लेकर हमने कहा था कि इसे हम जरूर लेकर आएंगे, लेकिन किन्हीं कारणों से कैबिनेट बैठक होने में देरी हो गई। कैबिनेट बैठक न होने के बावजूद हमने नकल विरोधी अध्यादेश को राज्यपाल को भेज दिया था। साथ ही यह भी तय कर दिया है कि अब जितनी भी परीक्षाएं होंगी, उन सभी में यह कानून लागू होगा। सबसे सख्त कानून जो हो सकता है, वे हमने बनाने का काम किया है। इस कानून के तहत आजीवन कारावास तक की सजा के अलावा दस करोड़ रुपये तक के जुर्माने के प्रावधान किए गए हैं। हम अपने छात्रों, बेटों-बेटियों से कहना चाहते हैं कि सभी परीक्षा पारदर्शी होंगी। किसी भी अफवाहों पर न जाएं, परीक्षा की तैयारी पर ध्यान दें। सभी परीक्षाएं निष्पक्ष और शुचिता के साथ होंगी। कुछ राजनीतिक दल देश और उत्तराखण्ड में अपनी जमीन खो चुके हैं। वे छात्र- छात्राओं के कंधों पर बंदूक रखकर ऐसा काम कर रहे हैं। वे छात्रों के रूप में उनके बीच में आ गए और आंदोलन को हिंसात्मक बनाने की दिशा में ले गए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड में भर्ती घोटाला बिना राजनीतिक संरक्षण के नहीं हो सकता। उत्तराखण्ड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग में भर्ती घोटाला होने के बाद बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां इस बात का प्रमाण है कि घोटालेबाजों के तार राजनीतिक संरक्षण तक जुड़े है। इसके बाद लोक सेवा आयोग भी संदेह के घेरे में है। प्रदेश के युवाओं का भाजपा सरकार से विश्वास उठ चुका है।
करण माहरा, प्रदेश अध्यक्ष उत्तराखण्ड कांग्रेस